सपना अधूरा
संभालकर रखते हुए
जाने क्या बुदबुदाती हो
अपने आप से
रूककर आईने के पास
ढूंढती हो
शायद अपना चेहरा
अपनी पलकों पर उग आये ख्वाहिशों को
रखती हो
डायरी के पन्नों के बीच
बड़ी
हिफाजत से
गीली आँखों से
करती हो प्रार्थनाएं
जाने किसके लिए
रेत पर लिखते हुए कोई नाम
हंस पड़ती हैं
तुम्हारी सूजी हुई आँखें
नींद में पुकारती हो उसे
और
भड़भड़ा कर टूट जाता है
सपना अधूरा