तुम्हारे इंतजार में
काश पढ़ सकती मैं
भाषा
तुम्हारे मौन की
जाने किन गुफाओं में
कैद कर रखी है
तुमने
अपनी गूंजती मुस्कुराहटें
और
अपनी पेशानी पर
पड़ती सिलवटें
कुछ भी तो नहीं कहती है
तुम्हारी उदास आँखें
जाने किन
अधूरे सपनों की तलाश में भटकती है
यूँ बेजार होकर
तुम्हारी खामोशियों के
जंग लगे ताले भी
उब चुके हैं
अपनी चुप्पी से
एक बार पलट कर देखो तो
तुम्हारी परछाई के संग
सुगबुगाती इच्छाएं
तुम्हारे इन्तेजार में है ......
भाषा
तुम्हारे मौन की
जाने किन गुफाओं में
कैद कर रखी है
तुमने
अपनी गूंजती मुस्कुराहटें
और
अपनी पेशानी पर
पड़ती सिलवटें
कुछ भी तो नहीं कहती है
तुम्हारी उदास आँखें
जाने किन
अधूरे सपनों की तलाश में भटकती है
यूँ बेजार होकर
तुम्हारी खामोशियों के
जंग लगे ताले भी
उब चुके हैं
अपनी चुप्पी से
एक बार पलट कर देखो तो
तुम्हारी परछाई के संग
सुगबुगाती इच्छाएं
तुम्हारे इन्तेजार में है ......