जयशंकर प्रसाद

महाकवि
के रूप में सुविख्यात जयशंकर प्रसाद (१८८९-१९३७) हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य लेखन की अपूर्व ऊँचाइयाँ हैं। काव्य साहित्य में कामायनी बेजोड कृति है। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में वे अनुपम थे। आपके पाँच कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास और लगभग बारह काव्य-ग्रन्थ हैं। तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य लेखन कीअपूर्व ऊँचाइयाँ हैं।
जयशंकर प्रसाद का जन्म १८७८ ई० में वाराणसी (उ० प्र०) में पिता श्री देवी प्रसाद साहू के घर में हुआ था जो एक अत्यन्त समृद्ध व्यवसायी थे। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई तथा संस्कृत, हिन्दी, फारसी तथा उर्दू के लिए अलग-अलग शिक्षक नियुक्त हुए। इसके उपरांत वाराणसी के क्वींस इंटर कॉलेज में अध्ययन किया। इनका विपुल ज्ञान इनकी स्वाध्याय की प्रवृति थी और अपने अध्यवसायी गुण के कारण छायावाद के महत्वपूर्ण स्तम्भ बने तथा हिन्दी साहित्य को अपनी रचनाओं के रूप में कई अनमोल रत्न प्रदान किए।
सत्रह वर्ष की अवस्था तक इनके माता-पिता एवं ज्येष्ठ भ्राता के देहावसान के कारण गृहस्थी का बोझ आन पड़ा। गृह कलह में साडी समृद्धि जाती रही। इन्ही परिस्थितियों ने प्रसाद के कवि व्यक्तित्व को उभारा। १५ नवम्बर १९३७ को इस महान रचनाकार की लेखनी ने जीवन के साथ विराम ले लिया।
'कामायनी' जैसे महाकाव्य के रचयिता जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में अंतर्द्वद्व का जो रूप दिखाई पड़ता है वह इनकी लेखनी का मौलिक गुण है। इनके नाटकों तथा कहानियो में भी यह अंतर्द्वंद्व गहन संवेदना के स्तर पर उपस्थित है। इनकी अधिकांश रचनाएँ इतिहास तथा कल्पना के समन्वय पर आधारित हैं तथा प्रत्येक काल के यथार्थ को गहरे स्तर पर संवेदना की भावभूमि पर प्रस्तुत करती हैं। जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में शिल्प के स्तर पर भी मौलिकता के दर्शन होते हैं। उनकी रचनाओं में भाषा की संस्कृतनिष्ठता तथा प्रांजलता विशिष्ट गुण हैं। चित्रात्मक वस्तु-विवरण से संपृक्त उनकी रचनाएँ प्रसाद की अनुभूति और चिंतन के दर्शन कराती हैं। इनकी रचनाओं का विवरण निम्नवत है-
काव्य-चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम-पथिक, महाराणा का महत्व, झरना, करुणालय, आंसू, लहर एवं कामायनी।
नाटक- सज्जन, कल्याणी परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, विशाख, कामना, जन्मेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, एक घूंट, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
कथा संग्रह- छाया, प्रतिध्वनी, आकाश दीप, आंधी, इंद्रजाल।
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती।
निबंध संग्रह- काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
इस प्रकार हिन्दी साहित्य की सभी महत्वपूर्ण विधाओं में इनकी रचनाएँ इनकी प्रखर सृजनशीलता का प्रमाण हैं। प्रसाद छायावाद ही नही वरन हिन्दी साहित्याकाश में अनवरत चमकते नक्षत्र हैं। इनके द्वारा सृजित इनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य थाती हैं।
के रूप में सुविख्यात जयशंकर प्रसाद (१८८९-१९३७) हिंदी साहित्य में एक विशिष्ट स्थान रखते हैं। तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य लेखन की अपूर्व ऊँचाइयाँ हैं। काव्य साहित्य में कामायनी बेजोड कृति है। कथा साहित्य के क्षेत्र में भी उनकी देन महत्त्वपूर्ण है। भावना-प्रधान कहानी लिखने वालों में वे अनुपम थे। आपके पाँच कहानी-संग्रह, तीन उपन्यास और लगभग बारह काव्य-ग्रन्थ हैं। तितली, कंकाल और इरावती जैसे उपन्यास और आकाशदीप, मधुआ और पुरस्कार जैसी कहानियाँ उनके गद्य लेखन कीअपूर्व ऊँचाइयाँ हैं।
जयशंकर प्रसाद का जन्म १८७८ ई० में वाराणसी (उ० प्र०) में पिता श्री देवी प्रसाद साहू के घर में हुआ था जो एक अत्यन्त समृद्ध व्यवसायी थे। प्रारंभिक शिक्षा घर पर ही प्रारम्भ हुई तथा संस्कृत, हिन्दी, फारसी तथा उर्दू के लिए अलग-अलग शिक्षक नियुक्त हुए। इसके उपरांत वाराणसी के क्वींस इंटर कॉलेज में अध्ययन किया। इनका विपुल ज्ञान इनकी स्वाध्याय की प्रवृति थी और अपने अध्यवसायी गुण के कारण छायावाद के महत्वपूर्ण स्तम्भ बने तथा हिन्दी साहित्य को अपनी रचनाओं के रूप में कई अनमोल रत्न प्रदान किए।
सत्रह वर्ष की अवस्था तक इनके माता-पिता एवं ज्येष्ठ भ्राता के देहावसान के कारण गृहस्थी का बोझ आन पड़ा। गृह कलह में साडी समृद्धि जाती रही। इन्ही परिस्थितियों ने प्रसाद के कवि व्यक्तित्व को उभारा। १५ नवम्बर १९३७ को इस महान रचनाकार की लेखनी ने जीवन के साथ विराम ले लिया।
'कामायनी' जैसे महाकाव्य के रचयिता जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में अंतर्द्वद्व का जो रूप दिखाई पड़ता है वह इनकी लेखनी का मौलिक गुण है। इनके नाटकों तथा कहानियो में भी यह अंतर्द्वंद्व गहन संवेदना के स्तर पर उपस्थित है। इनकी अधिकांश रचनाएँ इतिहास तथा कल्पना के समन्वय पर आधारित हैं तथा प्रत्येक काल के यथार्थ को गहरे स्तर पर संवेदना की भावभूमि पर प्रस्तुत करती हैं। जयशंकर प्रसाद की रचनाओं में शिल्प के स्तर पर भी मौलिकता के दर्शन होते हैं। उनकी रचनाओं में भाषा की संस्कृतनिष्ठता तथा प्रांजलता विशिष्ट गुण हैं। चित्रात्मक वस्तु-विवरण से संपृक्त उनकी रचनाएँ प्रसाद की अनुभूति और चिंतन के दर्शन कराती हैं। इनकी रचनाओं का विवरण निम्नवत है-
काव्य-चित्राधार, कानन कुसुम, प्रेम-पथिक, महाराणा का महत्व, झरना, करुणालय, आंसू, लहर एवं कामायनी।
नाटक- सज्जन, कल्याणी परिणय, प्रायश्चित, राज्यश्री, विशाख, कामना, जन्मेजय का नागयज्ञ, स्कंदगुप्त, एक घूंट, चन्द्रगुप्त, ध्रुवस्वामिनी।
कथा संग्रह- छाया, प्रतिध्वनी, आकाश दीप, आंधी, इंद्रजाल।
उपन्यास- कंकाल, तितली, इरावती।
निबंध संग्रह- काव्य और कला तथा अन्य निबंध।
इस प्रकार हिन्दी साहित्य की सभी महत्वपूर्ण विधाओं में इनकी रचनाएँ इनकी प्रखर सृजनशीलता का प्रमाण हैं। प्रसाद छायावाद ही नही वरन हिन्दी साहित्याकाश में अनवरत चमकते नक्षत्र हैं। इनके द्वारा सृजित इनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अमूल्य थाती हैं।