।।घरबे।।
‘घरबे छी यौ….?’
डेढिया पर सं आबाज द’ रहल छथि
हमर क्यो अपेक्षित।
हम घरे मे छी।
घरक भीतर चौकी पर बैसल
निहारि रहल छी एहि बगडा कें।
बगडा चार मे लगेने अछि खोता,
खोता मे ओकर चारि-पांच बच्चा,
आ तकरा सब सं
बतिया रहल अछि एखन विभोर।
आ,
हम विभोर छी निहारै मे।
हम अपन घर मे छी
आ बगडा सेहो अपन घर मे अछि।
‘घरबे छी यौ….?’
फेर पुकार लगबै छथि अपेक्षित।
वाह!
केहन रहत
जं हमरा बदला ई बगडा दियय जबाव
आउ आउ अपेक्षित, अहांक स्वागत।
डेढिया पर सं आबाज द’ रहल छथि
हमर क्यो अपेक्षित।
हम घरे मे छी।
घरक भीतर चौकी पर बैसल
निहारि रहल छी एहि बगडा कें।
बगडा चार मे लगेने अछि खोता,
खोता मे ओकर चारि-पांच बच्चा,
आ तकरा सब सं
बतिया रहल अछि एखन विभोर।
आ,
हम विभोर छी निहारै मे।
हम अपन घर मे छी
आ बगडा सेहो अपन घर मे अछि।
‘घरबे छी यौ….?’
फेर पुकार लगबै छथि अपेक्षित।
वाह!
केहन रहत
जं हमरा बदला ई बगडा दियय जबाव
आउ आउ अपेक्षित, अहांक स्वागत।