उग रहा सूरज …
उग रहा सूरज कि मिटती जा रही है रात
जा रही है रात मिटती
फट रही तम की जवनिका
और अब तो लड़खड़ाते पाँव है इस अंधियारी के
उजाला आ रहा है |
: : :
मिटेगी यह विषमता
सब एक होंगे आज के मानव
कि बस अब एक- से सुख दुःख बाँटेंगे
सभी होंगे सुखी औ संतुष्ट जीवन
रह न पायेगा कहीं कोई कभी अब
मनुज विह्वल, वस्त्रहीन, विपन्न
या कि निर्धन, निरानंद, निरन्न
और अब इन मंदिरों के देवता से
मस्जिदों गिरिजाघरों के
गौड या अल्लाह से ऊँचा रहेगा
हाड़ मांसों का बना यह मनुज सर्वश्रेठ
लिख रहा पूरब क्षितिज पर
नए युग का मधुर अरुणिम प्रात
लाल स्याही से यह कुछ इस तरह की बात
उग रहा सूरज की मिटती जा रही है रात |
जा रही है रात मिटती
फट रही तम की जवनिका
और अब तो लड़खड़ाते पाँव है इस अंधियारी के
उजाला आ रहा है |
: : :
मिटेगी यह विषमता
सब एक होंगे आज के मानव
कि बस अब एक- से सुख दुःख बाँटेंगे
सभी होंगे सुखी औ संतुष्ट जीवन
रह न पायेगा कहीं कोई कभी अब
मनुज विह्वल, वस्त्रहीन, विपन्न
या कि निर्धन, निरानंद, निरन्न
और अब इन मंदिरों के देवता से
मस्जिदों गिरिजाघरों के
गौड या अल्लाह से ऊँचा रहेगा
हाड़ मांसों का बना यह मनुज सर्वश्रेठ
लिख रहा पूरब क्षितिज पर
नए युग का मधुर अरुणिम प्रात
लाल स्याही से यह कुछ इस तरह की बात
उग रहा सूरज की मिटती जा रही है रात |