_तुम
_अपने हर
टूटे हिस्से को रखती हो
बड़े जतन से संभालकर
किसी पुराने बक्से के भीतर
अपने आंसुओं और मुस्कुराहटों की
धीमी फुसफुसाहटों के बीच
तुम भी हंस पड़ती हो
आँखों से
चूल्हे की आंच से
करती हो लम्बी बातें
सपनों के पंख
छुपा कर
नींद की हथेली पर लिखती हो
अपनी करवटों की कहानी
धुओं से मिन्नतें करती हो
ले जाने को
अपनी चिट्ठियाँ बेनाम शहर की
तुम
कुहासे के पन्नों पर रचती हो
सर्द रातों की कंपकपाती
कवितायेँ
टूटे हिस्से को रखती हो
बड़े जतन से संभालकर
किसी पुराने बक्से के भीतर
अपने आंसुओं और मुस्कुराहटों की
धीमी फुसफुसाहटों के बीच
तुम भी हंस पड़ती हो
आँखों से
चूल्हे की आंच से
करती हो लम्बी बातें
सपनों के पंख
छुपा कर
नींद की हथेली पर लिखती हो
अपनी करवटों की कहानी
धुओं से मिन्नतें करती हो
ले जाने को
अपनी चिट्ठियाँ बेनाम शहर की
तुम
कुहासे के पन्नों पर रचती हो
सर्द रातों की कंपकपाती
कवितायेँ