जेहन में
मेरे जेहन में
सुन्दर सपने सी
आती तुम
जैसे पकने पर
शहतूतों में लाली आती
रिसियाए होंठों पर औचक
ही गाली आती
गर्म जेठ की तपिश
छुअन से
दूर भगाती तुम
जैसे मकई के
दाने में दूध उतरता है
कपड़े पर गिरते ही जल-कण
अधिक पसरता है
वैसे ही
साँसों में बनकर
गंध समाती तुम
मेरी आँखों में
है नींद नहीं तुम ही तुम हो
पूजा की थाली में रोली
अक्षत, कुमकुम हो
तृषित हिया की
भूख, प्यास औ घुटन
मिटाती तुम
सुन्दर सपने सी
आती तुम
जैसे पकने पर
शहतूतों में लाली आती
रिसियाए होंठों पर औचक
ही गाली आती
गर्म जेठ की तपिश
छुअन से
दूर भगाती तुम
जैसे मकई के
दाने में दूध उतरता है
कपड़े पर गिरते ही जल-कण
अधिक पसरता है
वैसे ही
साँसों में बनकर
गंध समाती तुम
मेरी आँखों में
है नींद नहीं तुम ही तुम हो
पूजा की थाली में रोली
अक्षत, कुमकुम हो
तृषित हिया की
भूख, प्यास औ घुटन
मिटाती तुम