किसुन संकल्प लोक
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        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
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        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
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        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
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गजानन माधव "मुक्तिबोध" 

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आधुनिक हिन्दी साहित्य के प्रसिद्ध कवि गजानन माधव "मुक्तिबोध" का जन्म १३नवम्बर १९१७ को श्योपुर में ग्वालियर के निकट हुआ था। इनके पिता पुलिस विभाग केइंस्पेक्टर थे और उनका तबादला प्रायः होता रहता था। इसीलिए मुक्तिबोध जी की पढाई मेंबाधा पड़ती रहती थी। सन १९३० में मुक्तिबोध जी ने मिडिल की परीक्षा ,उज्जैन से दी औरफेल हो गए । कवि ने इस असफलता को अपने जीवन की महत्वपूर्ण घटना के रूप मेंस्वीकार किया है । मुक्तिबोध, अपने दोस्तों के साथ रात -बेरात शहर घूमने को निकल जाते थे। बीडी पीने की आदत शायदवही से पड़ी । रात का भयानक सन्नाटा ,रहस्यमयी वातावरण ,जुर्मो का अँधेरा संसार जो उनकी कविता में है ,रात को घूमनेके कारण ने भी ऐसे बिम्बों को सजोने में मदद की होगी । इसके बाद मुक्तिबोध किसी तरह संभले और उनकी पढाई कासिलसिला ठीक ढंग से चला और साथ ही जीवन के प्रति उनकी नई संवेदना और जागरूकता बढ़ने लगी । मुक्तिबोध जी,उज्जैन में पढ़ते हुए १९५३ में इन्होने साहित्य रचना का कार्य प्रारम्भ किया। सन १९३९ में इन्होने शांताजी से प्रेम विवाहकिया।
मुक्तिबोध जी ने छोटी आयु में बडनगर के मिडिल स्कूल में अध्यापन कार्य प्रारम्भ किया। इसके बाद शुजालपुर,उज्जैन,कलकत्ता,इंदौर ,बम्बई, तथा बनारस आदि जगहों पर नौकरिया की। उन्होंने लिखा है कि "नौकरिया पकड़ता और छोड़तारहा । शिक्षक ,पत्रकार ,पुनः शिक्षक ,सरकारी और गैर सरकारी नौकरिया। निम्न -मध्यवर्गीय जीवन,बाल -बच्चे ,दवादारू,जन्म -मौत में उलझा रहा।मुक्तिबोध की रूचि अध्ययन -अध्यापन,पत्रकारिता और समसामयिक राजनितिक एवं साहित्य के विषयों पर लेखन मेंथी। सन १९४२ के आस-पास वे वामपंथी विचारधारा को ओर झुके तथा शुजालपुर में रहते हुए उनकी वामपंथी चेतनामजबूत हुई। आजीवन गरीबी से लड़ते हुए, और रोगों का मुकाबला करते हुए अंततः ११ सितम्बर १९६४ को इनका देहांत होगया।
डॉ.नामवर सिंह जी के शब्दों में - "नई कविता में मुक्तिबोध की जगह वही है ,जो छायावाद में निराला की थी। निराला के समान ही मुक्तिबोध ने भी अपनी युग के सामान्य काव्य-मूल्यों को प्रतिफलित करने के साथ ही उनकी सीमा की चुनौती देकर उस सर्जनात्मक विशिषटता को चरितार्थ किया, जिससे समकालीन काव्य का सही मूल्याकन हो सका ।" मुक्तिबोध जी की रचनाओ में एक स्वस्थ सामाजिक चेतना ,लोक मंगल भावना तथा जीवन के प्रति एक व्यापक दृष्टिकोण विद्यमान है। काव्य -सृजन के प्रति इनका दृष्टिकोण सर्वदा प्रगतिशील रहा है, अतः इन्हे आधुनिक हिन्दी कविता के बाद के किसी संकरे कटघरे में सीमित करना उचित नही :
" मै अपने से ही सम्मोहित ,मन मेरा डूबा निज में हीमेरा ज्ञान निज में से ,मार्ग निकाला अपने से हीमै अपने में ही जब खोया ,तो अपने से ही कुछ पायानिज का उदासीन विश्लेषण आँखों में आंसू भर लाया। "
*************************************************************************************"
पूरी दुनिया साफ़ करने के लिए मेहतर चाहिए -
वह मेहतर मै नही हो पाता। 
"रचना'' - कर्म  :काव्य : चाँद का मुँह टेढा है, भूरी भूरी खाक धूल 
आलोचना-साहित्य : कामायनी :एक पुनर्विचार ,भारत : इतिहास और संस्कृति, नई कविता का आत्म संघर्ष तथा अन्यनिबंध ,नए साहित्य का सौंदर्यशास्त्र ।कथा-साहित्य : काठ का सपना, विपात्र, सतह से उठता आदमी

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        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
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        • ।।गोनू झाक गीत।।
        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
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        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
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        • कंकरीला मैदान
        • गई बिजली
        • पाँव हैं पाँव
        • बुलंद है हौसला
        • बूढ़ा पेड़
        • आओ बैठो
        • आदमी की तरह
        • एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
        • घर के बाहर
        • दुख ने मुझको
        • पहला पानी
        • बैठा हूँ इस केन किनारे
        • वह उदास दिन
        • हे मेरी तुम
        • वसंती हवा
        • लघुदीप
        • एक खिले फूल से
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        • अँधा युग
      • सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला >
        • सरोज स्मृति
        • कुकुरमुत्ता
        • राम की शक्ति पूजा
        • तोड़ती पत्थर
      • कालीकांत झा "बूच" >
        • सरस्वती वंदना
        • गीत
        • आउ हमर हे राम प्रवासी
        • गौरी रहथु कुमारी
        • कपीश वंदना
      • जगदीश प्रसाद मण्‍डल >
        • एकैसम सदीक देश
        • मन-मणि
        • जरनबि‍छनी
        • गीत- १
        • गीत-२
      • वंदना नागर उप्पल >
        • रूह......
        • आखरी पल
        • जरा
        • शान
      • प्रियंका भसीन >
        • परिचय
  • उपन्यास
    • मायानंद मिश्र >
      • भारतीय परम्पराक भूमिका >
        • सुर्यपुत्रिक जन्म
        • भूगोलक मंच पर इतिहासक नृत्य
        • सभ्यताक श्रृंगार :सांस्कृतिक मुस्कान
        • भारतक संधान : इतिहासक चमत्कार
        • भारतमे इतिहासक संकल्पना
        • भारतीय इतिहासक किछु तिथि संकेत
        • भारतीय समाज : चतुर पंच
        • भारतीय आस्थाक रूप : विष्वासक रंग
        • पूर्वोत्तरक तीन संस्कृति - कौसल,विदेह,मगध
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