अन्धकार में खड़े हैं
अन्धकार में खड़े हैं
प्रकाश के प्रौढ़ स्तम्भएक नहीं, हज़ार
इस पार--उस पारकुएँ के मौन में डूबे स्तब्ध;
भूल में भूली नदी,
हंस की चोंच में दबीआकाश में चली जा रही है उड़ी
न जाने कहाँ--न जाने कहाँ,
रुई ओटती है दुनिया
स्वप्न देखती है झुनिया ।
प्रकाश के प्रौढ़ स्तम्भएक नहीं, हज़ार
इस पार--उस पारकुएँ के मौन में डूबे स्तब्ध;
भूल में भूली नदी,
हंस की चोंच में दबीआकाश में चली जा रही है उड़ी
न जाने कहाँ--न जाने कहाँ,
रुई ओटती है दुनिया
स्वप्न देखती है झुनिया ।