एक टा कविता
हम टूटल तार सबहक जालक
सतरंगी सर्जक
अन्गुरीक पोर सभ पर
प्रतीक्षाक दिन गनैत
घाव कें सोहरबैत
अबे दऽ कहि-कहि
कहियो नहि आबैत
एक टा मिथ्या वचन छि |
सतरंगी सर्जक
अन्गुरीक पोर सभ पर
प्रतीक्षाक दिन गनैत
घाव कें सोहरबैत
अबे दऽ कहि-कहि
कहियो नहि आबैत
एक टा मिथ्या वचन छि |