तुम
यादों की गीली माटी पर
अब भी
तुम्हारे पाँव के निशान हैं
टेढ़े मेढ़े से
भागते हुए
मेरे कमरे के एक कोने में
मैंने संभालकर रखी है
तुम्हारी उजली हंसी
सबसे छुपाकर
किसी किताब के भीतर
उग आये थे तुम
शब्द बनकर
मैं दिन रात ढूंढती रहती
तुम्हारे नए नए अर्थ
कभी नाकाम
तो कभी
जीत के नए आयाम गढ़ती
दुनिया नयी हो गयी थी
और
बहुत अलग
जीवंत … .
अब भी
तुम्हारे पाँव के निशान हैं
टेढ़े मेढ़े से
भागते हुए
मेरे कमरे के एक कोने में
मैंने संभालकर रखी है
तुम्हारी उजली हंसी
सबसे छुपाकर
किसी किताब के भीतर
उग आये थे तुम
शब्द बनकर
मैं दिन रात ढूंढती रहती
तुम्हारे नए नए अर्थ
कभी नाकाम
तो कभी
जीत के नए आयाम गढ़ती
दुनिया नयी हो गयी थी
और
बहुत अलग
जीवंत … .