पूर्वोत्तरक तीन संस्कृति - कौसल,विदेह,मगध
प्राचीन भारतक पूर्वोत्तर ओ आधुनिक भारतक पूर्वोत्तरमे अंतर अछि। प्राचीनक पूर्वोत्तर थिक, बंग कलिंग धरि।
स्मरणीय जे भारतक, प्राचीन इतिहास राजनीतिक इतिहास नहि अपितु सांस्कृतिक इतिहास थिक, कमसँ कम एही रूप मे देखक चाहि। राजनीतिक इतिहास प्रारम्भ होइत अछि जखन समाज संगठित भ• कँ अपन व्यवस्थापनक लेल एकटा मर्यादाक निर्माण करैत अछि अथवा एकटा सत्ताकेँ जन्म दैत अछि।
भारतक आदिम मानव, द्रविड़ सभ्यता एवं समाजकेँ गठित केलक किन्तु ओ निर्माण यूग छल, निरंतर आविष्कार भइये रहल छल तेँ ओ सभ्यता, कृषि आ वणिक संस्कृतिक निर्माण केलक जे आवष्यक छल। सत्ताक जन्म तकरे बाद होइत। ता आर्यक आगमन भेल अथवा ओहि क्षेत्रक भौगोलिक परिसिथति बदलि गेल आ ओ सभ्यता उजडि़ गेल।
आर्य अपन प्रवेषकालमे पशुचारी गत्वर छल। ओकर राजा सेहो गत्वर समाजक गत्वर सेनापति छल। जखन आर्य अनार्य मीलिकेँ एकटा समाजक निर्माण केलक आ भूमिसँ जुड़ल तखने राज्यक कल्पना सम्भव छल जे महाभारतक घटनाकालमे भेल तेँ भारतक राजनीतिक इतिहास तकर पश्चाते आरम्भ होइत अछि। डा. रोमिला थापरक अनूसारेँ भारतमे राजतंत्रक जन्म कोसल ओ मिथिलामे भेल।
जहिना अर्थषास्त्रक सम्बन्ध प्रकृतिक विपुलतासँ नहि अपितु मानव द्वारा निर्मित सीमित साधनसँ अछि तहिना राजनीति केर जन्म मानवक भूमि पर स्वामित्वसँ प्रारम्भ्ज्ञ होइत अछि जे भारतमे व्यापक रूपेँ महाभारतक युद्धक पश्चाते अर्थात उत्तर वैदिकेयुगमे भेल। तेँ प्राचीन मुख्यत: प्रागैतिहासिक भारतक इतिहास, भारतक सांस्कृतिके इतिहास हेायत।
आ सांस्कृतिक इतिहास लेल साहित्य एवं अनुभूति अत्यन्त उपादेय सामग्री मानल जायत।
एखन धरि भारतक इतिहासमे पूर्वोतर भारतक ने उचित मूल्यांकन भेल, ने एकर इतिहास निर्माण पर ध्यान देल गेल।
पूर्वोत्तर भारतकेँ ठीक-ठीक बूझक लेल रामयाण, महाभारतकेँ ओकर वास्तविक रूपमे बूझक अत्यावष्यक अछि।
डा. कीथक अनूसारेँ पाणिनि काल धरि वासुदेव कृष्णकेँ अवतार रूपमे मान्यता भेटि गेल छलनि। अष्टाध्यायीमे (डा. वासुदेवषरण अग्रवालक मतानुसारेँ) अजर्ुन, कृष्णक सड.हि महाभारतक उल्लेख सेहो अछि। पणिनिक काल एखनहुँ र्इ. पूर्व 500 सँ र्इ. पूर्व 600 वर्षक बीच डोलि रहल अछि।
उपनिषदमे वृहदारण्यक तथा छान्दोग्य उपनिषद प्राचीनतम थिक जकर समय कोनो प्रकारेँ र्इ. पूर्व 900 र्इ. सँ पाछु नहि सम्भव अछि। छान्दोग्यमे घोर आंगिरस ऋषिक षिष्यक रूपमे कृष्णक उल्लेख अछि तथा वृहदारण्यकमे परीक्षित जनमेजय अतीतक अनुश्रति बनि गेेल अछि।
डा. राधकुमुद मुखर्जीक आधारपर ऐत्तरेय ब्राह्राणमे उल्लेख अछि जे सर्वप्रथम वैषम्पायन व्यास जनमेजयकेँ भारतयुद्धक घटना सुनौने छलाह। एकर अर्थ भेल, जे र्इ. पूर्व 1000 वर्षक आसपास जयकाव्यसँ भारतकाव्य नाम भ• गेल छल।
वैषम्पायनसँ कृष्ण द्वैपायन व्यास पूर्ववर्ती तथा युद्धक समकालीन। जय काव्य मे 8800 सै श्लोक छल। अनुश्रुतिक अनुसारेँ वैष्म्पायन व्यास, कृष्ण द्वैपायनक षिष्य छलाह जे एकरा भारतक नाम देलनि तथा आहिमे 24000 श्लोक भेल। ओकरे नाम कालान्तरमे महाभारत भेल जे र्इ. पूर्व 700 र्इ. पूर्व धरि एहि नाम ख्यात भ• गेल, जकर आधुनिक रूप र्इसार दोसर शताब्दीक आसपासक थिक।
कृष्ण द्वैपायण व्यास युद्धक समकालीन छलाह अर्थात र्इ. पूर्व 1200 र्इ. पूर्वमे जयकाव्य तथा र्इ. पूर्व 1000 र्इ. धरि भारत काव्यक रचना भ• गेल होयत जकरा वैषम्पायन जनमेजयकेँ सुनौने छलाह। तकर बादेसँ भारतकाव्य महाभारत दिस बढ़ल होयत।
रामायणक घटना तथा रचना पूर्वी भारतमे भेल। कहबाक प्रयोजन नहि जे र्इ दुनू काव्य, युद्ध गीते नहि थिक अपितु वीरगाथा सेहो थिक जे ओहि समयमे सूत परम्परा द्वारा रचित हेाइत छल या जकरा स्वयं राजा (अथवा वीर नायक) यज्ञक अवसर पर सुनैत छलाह। वाल्मीकि द्वारा रचित एहि काव्यकेँ (वीणा पर) कुषीलव द्वारा राम सुननहुँ छलाह। इतिहासकार लोकनिमे महाभारतक घटनाकालक संबंधमे दुर्इ गोट मुख्य मत अछि, प्रथम र्इ. पूर्व 900 दोसर र्इ. पूर्व 1400। जे विद्वान महाभारतक घटनाकेँ र्इ. पूर्व 1400 र्इ.क मानैत छथि ओ लोकनि रामायणक घटनाकेँ तीन सै वर्ष पूर्वक अर्थात र्इ. पूर्व 1700 र्इ.क मानैत छथि।
किन्तु जँ महाभारतक घटनाकाल र्इ. पूर्व 1200 र्इ. मानल जाइत अछि तँ रामायणक घटनाकाल भेल र्इ. पूर्व 1500 र्इ. जे सुवास्तु तटसँ पूर्वोतर धरि आर्य प्रसार भेले समयक दृषिट´े समीचीन अछि।
रामायणक घटना भारतमे छल कि नहि से कहबाक कोनो साधन नहि अछि किन्तु महाभारतमे तँ अछिये जे लगैत अछि र्इ. पूर्व 1000 र्इ.क आसपास जखन पवर्ूी भारतसँ आवागमन किछु बढ़ल होयत तखन रामायण कथा महाभारतमे आबिकेँ जुटि गेल होयत।
महाभारतमे शतपथ ब्राह्राणकेँ सर्वश्रेष्ठ मानल गेल अछि। शतपथ, शुक्ल यजुर्वेदक ब्राह्राण ग्रंथ थिक जकर प्रवक्ता छथि याज्ञवल्क्य।
शुक्ल यजुर्वेदक प्रवक्ता याज्ञवल्क्य आ परषर कतकालीन नहि भ• सकैत छथि। याज्ञकल्क्य, परामर्ष कृष्ण द्वैपायन व्यासक षिष्य वैषम्पायनक समकालीन छलाह। तेँ शुक्ल यजुर्वेदक आरंभ अवष्ये पराषरक द्वारा भेल होयत जकरा कालांतरमे याज्ञवल्क्य बढ़ौलनि। डा. विंटरनित्जक अनुसारेँ शुक्ल यजुर्वेदक अठारहमसँ चालसम अध्याय धरि याज्ञवल्क्यक रचना थिक।
रामयाण कथा अपन मूल रूप र्इ पूर्व 1000 र्इ.मे प्राप्त क• गेल छल जाहिसँ र्इ प्रकट होइत अछि रामायणक घटनाकाल निषिचते एहिसँ बहुत पूर्वक थिक। तखने आदि वाल्मीकि केर गाथा अपन यात्रा करैत पषिचमी भारत धरि पहुँचल होयत आ अपन काव्यात्मकता तथा सामाजिक चेतनाक कारणे महत्वपूर्ण मानल गेल होयत एवं भारत काव्यमे सनिनति भेल होयत। रामायण मूलत: आर्य मर्यादाक काव्य थिक। र्इ स्वरूप ताधरि रामयाणकेँ प्राप्त भ• गेल होयत तेँ भारत कारकेँ स्वीकार्य भेल होयत।
स्मरणीय जे ब्राह्राण साहित्य (ब्राह्राण ग्रंथ तथा उपनिषद) मे बेर-बेर इतिहासक उल्लेख भेटैत अछि ओ इतिहास यैह रामायण महाभारत थिक। र्इ दुनू ग्रंथ सामाजिक षिक्षा लेल अथवा जकरा वैदिक ग्रंथ पढ़क अधिकार नहि छल, तकरा लेल तँ छलहे सड.हि षिक्षाक विषय सेहो भेल जा रहल छल। महाभारतक वन पर्वमे रामकथाकेँ एकटा प्राचीन गाथाक रूपमे स्मरण कयल गेल अछि।
ठहो निषिचत जे जहिना व्यास अनेक भेलाह तहिना वाल्मीकि सेहो अनेक भेलाह। रामक समकालीन वाल्मीकि गाथाकाव्यकेँ जन्म देलनि आ नाम देलनि रामायण। महाभाष्यमे, रामायाणमे मात्र बारह हजार श्लोक केर उल्लेख अछि। सम्प्रति चौबीस हजार अछि।
कलांतरमे अनेक व्यास परम्पर जकाँ वाल्मीकि परम्परा भेल होयत जे एहि कथाकेँ पूर्णता दैत चल गेल हताह। तैं भाषाक आधार पर एहि दूनू ग्रंथक निर्णय नहि कयल जा सकैछ। र्इ वैदिक साहित्य जकाँ यज्ञवादसँ नहि जुड़ल दल जाहि कारणे भाषामे परिवर्तन सम्भव नहि छल, र्इ लौकिक काव्य छल, भाषा परिवर्तन अवष्यम्भावी छल। आदिम मूल रामायण वैदिक संस्कृतमे होयत। किन्तु जाधरि पूर्वी भारतक निर्माणक बात ठीकसँ नहि बूझल जायत, जाहि पर आइ धरि ध्यान नहि देल गेल अछि ताधरि र्इ तथ्य स्पष्ट नहि होयत।
पूर्वोतर भारतक इतिहास निर्माण लेेल कपिलवस्तुक शाक्य एकटा महत्वपूण्र सूत्र थिक, जकरा विषयमे डा. डी.डी. कौसम्बी कहैत छथि जे आदिम ओर अत्यनत अविकसित छोटा सा शाक्य ... कबिलार्इ जीवन की अधिक आदिम अवस्था में थे। शाक्यक र्इ सिथति बुद्धकाल धरि छल। डा डी. एन. झाक कथन अछि जे जैन महावीर की तरह गौतम बुद्ध का विवाह अपनी चचेरी बहन से हुआ था। एहि बातक समर्थन र्इ. जे टामस (लाइफ आफ बुद्ध, पृ 23 मे) सेहो करैत छथि। एहि कथनक आधार सिंहली ग्रंथ जाहिमे कहल गेल अछि जे बुद्धक माता-पिताक विवाह सेहो सपिंड सम्बनिध्येमे भेल छल। शाक्यमे यैह प्रथा छल। महावस्तुक अनुसारेँ डा. राधाकुमुद मुखर्जी (अपन पुस्तक हिन्दू सभ्यता पृ. 249 मे) लिखैत छथि जे-वह शाक्यों का कुल था जो कोसल की राजधानी साकेत से निर्वासित होकर हिमालय के तट प्रदेष मे चले गये और वहाँ उन्होनें कपिलवस्तु नगर की स्थापना की।
शाक्यक अत्यन्त अविकसित कबिलार्इ जीवन सपिंड विवाह पाछू गौतम बुद्धक राजतंत्रक विरोध तथा वर्ण व्यवस्थामे जन्मनाक स्थान पर कर्मणाक समर्थन आदि तथ्य एहि क्षेत्रक इतिहासक अंधगुफा दिस प्रकाष किरण फेकैत अछि। लगैत अछि जे शाक्य पहिने कोसलेमे छल, निर्वासित भेला पर कपिलवस्तु गेल। लगैत अछि जे शाक्य सब आर्य जीवनक आदिम गणतंत्रीय पद्धति पसिन्न करैत छल जे कोसलक लेल अनूकूल नहि छल, तेँ विरोध भेल होयत, तेँ निष्कासन भेल। शाक्यमे राजतंत्रक सड.हि कोसलक प्रति सबदिन विद्रोहे भाव रहल अछि जहि कारणे ओ समाप्तो भेल।
एकटा आरो महत्वपूर्ण ओ रोचक तथ्य अछि जे शाक्यो, कोसले जकाँ इक्ष्वाकुये थिक, अपितु पूर्वोतर भारतमे मल्ल, विदेह, काषी, वैषालीमे इक्ष्वाकुये क्षत्रियक प्रधानता पबैत छी, जाहिठाम राजतंत्र भेल (विदेह, काषी, कोसलमे) इक्ष्वाकुये कुलक राज्य भेल। र्इ एकटा एहन तथ्य थिक जकरा आकसिमकता कहिकेँ टारल नहि जा सकैछ। किन्तु इतिहासमे आइधरि एहि पर विचार नहि भ• सकल अछि, से आष्चर्येक विषय थिक।
एतेक धरि जे आइधरि मिथिलाक जतेक इतिहास लीखल गेल, ताहूमे एहि पर विचार नहि भेल अछि।
डा. डी.डी. कौसम्बी एकटा अति महत्वपूर्ण तथ्यकेँ उठौलनि किन्तु ओ कोनो तारमम्य नहि जोडि़ सकलाह। ओ लिखैत छथि जे ये शाक्य (सक्क) लोग आर्य परिवार की भाषा बोलते थे और अपने को आर्य कहते थें पालो का यही सक्क शब्द र्इ. पूर्व छठी सदी के हखमनि सम्राट दारा प्रथमके षिलालेखोंके एलामी पाठ में भी देखने को मिलता है। सम्भव है कि एक ही शब्द के इन दो उल्लेखों में कोर्इ सीधा सम्बन्ध न हो।
किन्तु डा डी.डी. कौसम्बीक ध्यान एहि दिस नहि जा सकलनि। दुनू सक्क उल्लेखमे महत्वपूर्ण घनिष्ठ सम्बंध अछि। र्इ मात्र आकसिमकता नहि थिक।
किन्तु हमरा बुझने र्इ सक्क शब्दकेँ अषुद्ध पढ़ल गेल अछि कारण, र्इरानी (पार्षव) से केर उच्चारण नहि क• पबैत अछि, जाहि कारणे सिन्धसँ हिन्द तथा सोमसँ होम भेल अछि। ओकरा कस्स होमक चाही जे संयुक्त सतथा (सम्भव) वर्ण विपर्ययसँ नहि भ• सकल। कारण ओहि षिलालेखमे जाहि क्षेत्रकेँ अथवा जातिकेँ पराजित करबाक बात कहल गेल अछि ओ कषअथवा कस्साइट थिक।
कहबाक प्रयोजन नहि जे पषिचम एषियाक इतिहासमे कष अथवा कस्साइट लोकनिक किछु ओही प्रकारक महत्व अछि जेहन हित्ती, मित्तनी तथा असुर आदिक। र्इ सबटा इंडो योरोपीय भाषा परिवार केर छल। आर. गि्रसमैनक अनुसार कष अथवा कसिसक प्राचीनतम उल्लेख र्इ. पूर्व 2400 र्इ. मे भेल अछि। र्इ कष अथवा कसिसक जन एलमक मुलनिवासी नहि छल। सम्भव (स्राबोक अनुसार) कासिपयन सागर दिससँ आयल दल आ पाछू बेबीलोन पर राज्यो कयने छल जहिना हित्ती, मित्तनी अपन-अपन क्षेत्रमे केलक।
हित्ती, मित्तनी, कस्साइट आदि इंडो र्इरानी दलक सड.े सर्वप्रथम अपन मूल अभिजनसँ निकलल छल जे र्इ. पूर्व 3000 वर्षक आसपास र्इरानक उतरी छोरपर आबि गेल छल, जकर बाद इंडो र्इरानीक अर्थात स्वयं अपन देवता इन्द्रमित्र आदि ल• केँ तुर्की गेल। आ तेँ एहि क्षेत्रमे र्इ पूर्व 2400 र्इ. मे कसिस जातिक उल्लेख्.ा प्रथम-प्रथम भेटल अछि। एहि मान्यतामे कोनो तथ्य नहि अछि जे आइधरि मानल जा रहल अछि जे भारतीय आर्यदल घुमल छल, जकरासँ हित्ती मित्तनी भारतीय देव इन्द्र मित्रकेँ लेलक जे बोगाजकोइमे भेटैत अछि। र्इ. पूर्व 1500 र्इ.क ऋग्वेदक मंत्र देवता एकेसै वर्षमे तुर्की पहुँचि गेल आ हिती मानियो लेलक, महान असंगत आ अनैतिहासिक थिक जखन कि बोगाजकोइक ओ संधिलेेख र्इ. पूर्व 1400 र्इ. क थीक। कहियो एही मार्गकेँ भारतीय आर्य 5-6 सै वर्षम पार कयने छल।
जाहि कुष केर उल्लेख दारा (522-486 र्इ. पूर्व) केर हमदान अभिलेखमे भेल अछि खषयार्ष (486-465 र्इ. पूर्व) कर पर्सिपोलिस अभिलेखमे कुषिय जनक अर्थमे भेल अछि। अर्थात र्इ शब्द क्षेत्र तथा जन दुनूक लेल भेल अछि। हेरोडोटस (र्इ पूर्व 5म सदी) एलम केर उल्लेख किसिसयाक रूपमे केलक अछि। स्राबो कसिसकेँ कोस्सइओइ कहलक अछि।
एकटा आरो महत्वपूर्ण बात अछि जे कसिस जन अपन जन देवताकेँ कष्षु कहैत छल। र्र्इ सब एलमेमे रहल छल। इ। सब सूर्यपूजक छल। कुष आ कसिस एकहि मूलक शब्द थिक, जकर समर्थन र्इ कष्षु सेहो करैत अछि।
एही कुषसँ कुषिक शब्द बनि सकैत अछि। आष्चर्य बात तँ र्इ थिक जे यैह कुषिक शब्द ऋग्वेदमे बहुवचन रूपमे भेल अछि। ऋग्वेद (3333)मे विष्वामित्र अपन परिचय कुषिकस्य सुनु केर रूपमे देने छथि। ऋग्वैदिक अनुक्रमणीमे गाथिन कौषिककेँ कुषिकक पुत्र तथा गाथिन विष्वामित्रकेँ गाथिन कौषिकक पुत्र कहल गेल अछि। एहि प्रकारेँ कुषिकस्य सुनु केर अर्थ कुषिक वंषीय केर रूपमे कयल जा सकैछ।
ऋग्वेद (35312) केर अनुसार कौषिक विष्वामित्र भरत जनक राजा सुदासक पुरोहित सेहो छलाह जनिकासँ विरोध भेल छल, जकर परिणाम भेल दाषराज्ञ युद्ध।
स्मरणीय जे ऋग्वेदक प्रमुख पाँच जन-अनु,द्रहयु, पुरू, यदु आ तुर्वषकेँ पंचजना: कहल गेल अछि। जाहिमे यदु आ तुर्वषक निदो कयल गेल अछि। राजा सुदासक भरत-त्रित्सु-संृजय आदि जन गौणजन थिक, जकरा प्रति सेहो निन्दा भावे अछि।
दाशराज्ञ युद्धक एक पक्षक प्रधान राजा सुदास जकर जीत होइत अछि, रावीसँ दक्षिण-पूबमे बसल छल, सम्भव सरस्वती तट पर ।महर्षि वषिषठकेँ जे पाछू पूरोहित भेल छलाह, सरस्वतिये तट पर बसाओल गेल छलनि।
एकटा आरो आष्चर्यक विषय थिक जे जाहि विष्वमित्र आ वषिषठकेँ रावी तट पर ओहि दाषराज्ञ युद्धकालमे पबैत छी, तनिका पुन: सरयू तट पर सेहो पबैत छी महाकाव्यक वर्णनमे । ओकरे एक सम्बंध (विष्वमित्रक) पुन: मिथिलाक कोषी नदीसँ सेहो जोड़ल जाइत अछि।
क्हबाक प्रयोजन नहि जे कोनो प्रसिद्ध नामपर ओहि कुल अथवा वंषमे वैह नाम चल• लगैत छल तैं रावीतटक विष्वमित्र, वषिष्ठकेँ सरयू तट पर सेहो पबैत छी।
टाब एहि समस्त तथ्यकेँ जँ एक सूत्रमे जोड़ल जाय तँ मान• पड़त जे र्इरानक देवासुर संग्रामक पश्चात जखन भारतीय आर्यदल भारत दिस चलल तँ ओहिमे अन्य जन (उपदल) केर अतिरिक्त कस्साइट जन केर सेहो किछु लोक एम्हर आयल आ अधिकांष र्इरानक (पषिचमी दक्षिणी भाग) एलम दिस चल गेल होयत, जकरा सम्बन्धमे विभिन्न उल्लेख भेटैत अछि। ओही कस्साइटक अथवा कुषिक वंषक विष्वामित्रकेँ ऋग्वेदक तृतीय मंडलमे पबैत छी जे (2 सँ 7 मंडल प्राचीनतम थिक) प्राचीनतम मंडलमे सँ अछि।
एकर अर्थ भेल जे संग-संग आयल अछि। किन्तु कुषिक केर अथवा कस्साइटक एकटा अपन विषेषता छल जे एकरा अन्य आर्यदलसँ भिन्न बन दैत अछि। ओ विषेषता थिक एकर युद्धप्रियता तथा योद्धारूप। तेँ (सम्भव) ऋग्वेद (1.10.11) मे इन्द्रक लेल कौषिक शब्द आयल अछि। युद्धप्रियता तेँ विष्वामित्रमे सेहो पर्याप्त अछि जाहि कारणे (कमसँ कम एक कारण) दाषराज्ञ युद्ध भेल छल। यैह कारण थिक जे सूर्यमंत्र गायत्री सवित्रीक जन्मदाता षिवामित्रे भेलाह।
लगैत अछि जे वैह कुषिक जन तथा भरत त्रित्सु आदि मीलिकेँ (कस्साइट) पाछू इक्ष्वाकू कहाब• लागल। स्मरणीय जे विष्वामित्रकेँ क्षत्रिये मानल गेल अछि आ समस्त इक्ष्वाकु वंष क्षत्रिय थिक, जकर राज्य अथवा प्रमुखता पूर्वोतर भारतमे पाछू भेल जे परस्पर मगध साम्राज्य मगध धरि लड़ैत रहल। काषी, कोसल, वैषाली, शाक्य आ विदेहक परस्पर वैमनस्य आ युद्ध भारतक प्राचीन इतिहासक एकटा रोचक प्रसंग थिकं एतब नहि, मल्ल जे इक्ष्वाकुये थिक सेहो एकठाम नहि रहि सकल, दुइटा राजधानी बना लेलक।
पषिचम एषियामे जे कस्साइट रहल पाछू ओ बेेबीलोन पर राज्य धरि केलक। सम्भव थिक मिस्रक जाहि हिक्सस जाति जे अति लड़ाकू दल आ जे मिस्रमे किछू दिन राज्यो केलक आ जकर कोनो पता इतिहासकारकेँ नहि लागि रहल छनि एही कस्साइटक एकटा शाखा रहल हो।
सम्भव थिक जे एही कुषिक वंषमे कियो इक्ष्वाकु नामक प्रतापी योद्धा भेल हेताह जनिका नाम पर पाछू सब इक्ष्वायकुये कहब• लागल। एहि प्रसंगमे ऋग्वेद मौन अछि।
पूर्वे कहल जे कुषिक जन गौणजन दल जे भरत, त्रित्सु जन संग रहैत दल विष्वमित्र एकरे पुरोहितो कहियो छलाह। भरत त्रित्सुक नेता दिवोदासक पुरोहित विष्वामित्र छलाह किन्तु सुदासक वषिष्ठ।
एकटा आरो ध्यान देबाक बात थिक जे कुषिक केर चर्च तँ ऋग्वेदक तेसर मंडलमे भेल अछि किन्तु प्राचीतर प्राचीनतम मंत्रमे इक्ष्वाकु केर चर्च नहि अछि। अछि दसम मंडल (10603) मे। दसमे मंडलमे एक बेर इक्ष्वाकुक संग मान्धाताक उल्लेख अछि। दसम मंडल बादक मानल जाइत अछि किन्तु ओ तथापि ब्राह्राणग्रंथ सँ बहुत पूर्वक तँ थिकहे। ऋग्वेदमे कतहु कोसल तथा विदेहक चर्च नहि अछि।
एकर अर्थ थिक जे कुषिक जन केर जखन इक्ष्वाकुमे रूपान्तरण भेल तकर बाद मूख्य आर्यक्षेत्रसँ ओ सब कतहु चल गेल। प्रष्न उठैत अछि जे कत• गेल आ कियैक गेल? कत• गेलसे कहब तँ आब कठिन नहि अछि किन्तु गमनक कारण ठीक-ठीक नहि कहल जा सकैद। मात्र अनुमान लगाओल जा सकैछ।
सम्भव थिक रावी तटक दाषराज्ञ युद्धक पश्चात (जे र्इ. पूर्व 1800 र्इ.क घटना थिक) विष्वामित्रक बाद कोनो महान योद्धा इक्ष्वाकु केर नेतृत्वमे भरत त्रित्सु तथा कुषिक कस्साइटक एकटा बृहत दल पूर्वोतर व्यास नदी दिस अर्थात हिमालयक दिषामे चलल, कारण ऋग्वेद विष्वामित्रक व्यास पार करबाक बात कहैछ। ब्राह्राण विषेषत: शतपथ आ पुराण एहि प्रसंगमे बहुत कह• लगैत अछि।
पुराणमे मनुपुत्री इलाक प्रसंग अछि जकर संतान ऐल कहौलकं इक्ष्वाकु ऐलवंषसँ सम्बंनिधत सेहो मानल जाइत अछि। सड.हि पुराण पारंगत डा. पार्जिटर ऐलकेँ आर्य मानैत छथि तथा ओकर आवास (क्षेत्र) हिमालय केर तहहटीक इलावृतकेँ मानैत छथि। सम्भव थिक जे सरयू तटक (कोसल दिस) दिषामे चल• सँ पूर्व किछु दिन धरि व्यास नदीक उतरी पूर्वी भागमे ओ दल रहि गेल हो जकर स्मृतिषेष पुराणकेँ इलावृतक रूपमे अछि।
एकर समर्थन डा. हार्नलेक ओ उकित सेहो करैत अछि जे आर्य अनेक धक्कामे आयल तथा एकटा दल हिमालयक तलहटी होइत पूब दिस गेल। किन्तु ओ के छल ताहि प्रसंग ओ मौन छथि। हार्नलेक समर्थन डा. ए.एल.वैषम अपन अदभूत भारत मे सेहो करैत कहैत छथि जे र्इ देषान्तरमे बस• बला आर्यक दोसर दल छल।
ळमर निषिचत मत अछि जे ओ भरत, त्रित्सु कुषिक केर इक्ष्वाकु महादल दल जे रावी तटक बाद हिमालयक तलहटी दने किछु दिन ओतहि रहैत पुन: अपन एक उपदलकेँ छोडि़ दक्षिण दिस घ ुमल आ सरयू तट पर बसि गेल। कालांतरमे वैह भेल कोसल। ओ दल कोसलमे निषिचत रूपमे र्इ. पूर्व 1600-1700 र्इ.क आसपास बसि गेल होयत। कोसल दिस आब• बला महादलसँ एकटा आरो छोट उपदल ओही इलावृत क्षेत्रमे किछु दिनूक लेल रहि गेल जकर सम्पर्क सम्बंध ओहि क्षेत्रक पर्वतीय किरात ओ मंगोलाइटसँ भेल। एहि कारणे ओ उपदल मिश्रित भ• गेल। कर्मकांडकेँ बहुत अंषमे बिसरि गेल। वैह उपदल आबि पाछू वैषालीक निर्माण कयलक, जकर विरोध कर्मकांड समर्थक कोसल ओ विदेहसँ रह• लागल।डा. उपेन्द्र ठाकुरक अनुसार वैषालीक लिच्छविकेँ मनुस्मृति व्रात्य मानैत अछि। एही लिच्छविसँ तिब्बत लíाख ओ नेपाल राजवंष अपन सम्बंध जोड़़ैत अछि, जे ओहि पूर्व मिश्रणक स्मृतिषेष थिक। रावण एही वैषालीक मिश्रित पुत्र छलाह। रामायण तथा पुराणक आधार पर एहि वंषक वृक्ष प्रामाणिक रूपमे प्रस्तुत करब तँ कठिन अछि अथवा अध्ययन साध्य अछि, किन्तु मान्धताक उल्लेख जेँ ल• केँ ऋग्वेदमे अछि तेँ र्इ एहि वंषक प्रमाणिक तथा सड.हि प्रतापी राजा भेल हेताह।
र्इ दल जाहि दिनमे सरयू तट पर पहुँचल होयत ओहि दिनमे एहि क्षेत्रमे अनेक अनार्य जन छल, जाहिमे किछु अत्यन्त अविकसित छल। दोसर दल निषाद जे अर्ध विकसित छल आ पशुपालन छोडि़केँ कृषि युगमे आबि गेल छल।
सम्भव थिक जे द्रविड़ सभ्यतामे जाहि रोपड़ (हरियाणा) केर मिश्रित संस्कृतिक चर्च भेल अछि, यैह निषाद रहल हो जे आर्यप्रसार एवं आतंकक कारणे एम्हर आबि गेल हो। निषाद द्रविड़संस्कृतिसँ प्रभावित छल आ षिष्नदेवा: सेहो छल। एकर अतिरिक्त एहिक्षेत्रमे अजास, षिग्रु तथा नाग जातिक लोक रहल होयत।
आगंतुक आर्य इक्ष्वाकुजन सर्वप्रथम अपन सम्बंध एही अर्ध विकसित निषाद जातिसँ बनौने होयत। सम्भव थिक कृषि जीवनमे प्रवेष क• जेबाक कारणे निषादजन शीघ्र आर्यजनसँ मीलि गेल हो आ एकटा मिश्रित संस्कृतिक जन्म भेल हो, जकर प्रमाण पाछू राम ओ निषादराजक वार्तामे (रामायणक आधार पर) भेटैत अछि। एहि दुनूक मिलनक दोसर प्रमाण थिक रामक मूर्तिपूजक भ• जायब आ षिष्नदेव (महादेव) केर पूजन आरम्भ करब।
विस्तृत निषादजनसँ मिलनक लेल इक्ष्वाकु वंषक विवषता भ• गेल होयत। र्इ विवषता राज्य संचालन लेल सेहो आवष्यक भेल होयत। राजाकेँ प्रजाक धर्मकेँ स्वीकार कर• पड़ैत अछि। इतिहासक यैह प्रथम आर्यवंष भेल जे मूर्तिपूजक भेल जे सांस्कृतिक मिलन लेल अत्यावष्यक छल। रामक षिवपूजा एकटा राजनीतिक विवषता छलनि।
इक्ष्वाकु लोकनिक राज्यस्थापनाक बाद सम्भवत: मान्धातेक समयमे अर्थात र्इ. पूर्व 1700-1600 र्इ.क आसपास दक्षिणक कीकटकेँ आरो दक्षिण दिषामे तथा उतरक किरातकेँ आरो उतरमे ठेलि देल गेल होयत आ इक्ष्वाकु राज्यमे किछु निषिचन्तता आयल होयत। सड.हि राजतंत्र क्रमष: निरंकुषता दिस उन्मुख भेल होयत।
एही समयमे परस्पर विरोध भेल होयत आ कोसलसँ एक दल पुन: पूब दिस बढि़ आयल जे शाक्य कहौलक। ताधरि इलावृतमे छूटल ओ उपदल मिश्रित भ• केँ आयल आ वैषालीक निर्माण केलक।
रावीतटसँ र्इ इक्ष्वाकु दल अपन पूर्वक पशुपालनक संस्कृति ल• केँ आयल छल, शाक्य तँ ओही संस्कृतिकेँ ल• क• गेल किन्तु कोसल ओहि अर्धविकसित निषादक संग क्रमष: कृषि दिस बढ़ल। रामक समयधरि कृषि एहि क्षेत्रमे अपन पूर्णताकेँ प्राप्त क• गेल छल, तखने पारिवारिक मर्यादा बढ़ल होयत। अत्यन्त विकसित कृषियेक प्रमाण तथा परिणाम रामक एकपत्नीव्रत तथा सीताक एकपतिव्रत थिक।
समकालीन संस्कृति कोसलक कृषिक विकसित संस्कृति थिक जे एकपति तथा एकपत्नीव्रतसँ प्रकट होइत अछि। मान्धाताक पश्चात सम्भव हरिष्चन्द्र एतिहासिक पात्र थिकाह कारण हुनक उल्लेख ऐतरेमे ब्राह्राणमे सेहो अछि, किन्तु रामसँ पूर्व शेषवंषज जकर पूराणमे उल्लेख अछि तकर प्रामाणिकता संदिग्ध अछि।
मिश्रण कोसल, विदेह ओ वैषाली सबमे भेल। किन्तु वैषालीक मिश्रण पर्वत क्षेत्रक लोकसँ भेल छलि। कौषल्या, सम्भव ओहि कोसलक नहि छलीह, जाहि कोसलमे राज्ये छलनि ओ महाकोसलक छलीह, जाहिठाम यदुवंषक हैहेय क्षत्रियक राज्य दल जकरा कहियो मान्धाता पराजितो कयने छलाह आ जे बहुत मिश्रित भ• गेल छल। किन्तु कैकेयी अकिखनी तटक (चेनाव) छलीह जाहि ठाम एखनहुँ शुद्ध आर्यरक्त छल। भरतक उत्तराधिकारक पाछूू केकैयीक यैह तर्क रहल होयत।
रामक महानता एही आर्यत्वक प्रसारमे निहित अछि जाहि कारणे ओ महाकाव्यक नायक भ• सकलाह। कोसल आ विदेह दूनू कौलिक राजतंत्रक सड.हि यज्ञवाद ओ कर्मकांड समर्थक छल आ वैषाली ओ शाक्य गणतंत्रक विषेषत: यज्ञवाद ओ कर्मकांडक विरोधी। एकर अतिरिक्त अविकसित ओ अर्ध विकसित अनार्य बहुल र्इ क्षेत्र तेँ राजतंत्र समर्थक कोसल ओ विदेहमे संधि भेल जकर सुदृढ़ीकरण भेल राम ओ सीताक विवाहसँ । पाछू कोसल ओ विदेह मीलिकेँ आर्यीकरणक कार्य केलक जकर नेतृत्व केलनि कोसलक राम। सम्भव राम गोदावरी तट धरि अवष्य गेलाह, जकर प्रमाण थिक ओहिठामक एकटा इक्ष्वाकु राजवंष जे कालांतरमे अष्मक राज्यक रूपमे पबैत छी। ओ (राम) एहि बीचक अनेक अनार्य तथा वन्य जनकेँ आर्यवृत्तमे अनलनि जकर प्रमाण थिक हनुमान, जटायु आदि। शवर जातिक एखनहुँ असितत्व अछि जकरे कथा थिक शवरी कथा। तेँ रामायणमे एकरा महत्व देल गेल अछि।
आर्यक दक्षिण प्रवेषकेँ र्इ. पूर्व 800 र्इ.क बादक घटना मानल जाइत अछि जे असंगत अछि। र्इ काल सामान्यत: दक्षिण आ उत्तरक सांस्कृतिक विजय कठिने नहि अपितु समय सापेक्ष सेहो थिक।
दक्षिण भारतकेँ अपन सुदीर्घ सांस्कृतिक परम्परा छल जकर पडि़ द्रविड़ सभ्यतामे अछि आ जे आर्य संस्कृतिसँ सर्वथा भिन्ने नहि अपितु प्रबलो दल जाहि कारणे उत्तरक आर्यकेँ मूर्तिपूजक होम• पड़ल, ओहि दक्षिणक मनकेँ जीतब सहज नहि छल।
डा. विंटरनित्जक आधार पर बोधायन तथा आपस्तम्ब आदि वैदिक सम्प्रदायक जन्म दक्षिणेमे भेल अछि। एहि दुनू सूत्र साहित्यक जन्म बुद्धसँ पूव नहि तँ बुद्धक आसपास अवष्य भेल अछि। अर्थात मात्र दुइ सै वर्षमे दक्षिण, उत्तरक संस्कृत भाषा सीखिकेँ पारंगतेटा नहि भेल अपितु वैदिकको धर्मकेँ मानि गेल, समीचीन नहि लगैत अछि। एतब नहि उत्तरक शुक्ल यजुर्वेदमे, जकर रचना निषिचत रूपेँ र्इ. पूर्व 1000 क आसपास भेल, शतरूदि्रय प्रकरणक कोन प्रयोजन पड़ल, षिव तँ दक्षिणक देव छलाह।
एकर अर्थ थिक जे र्इ. पूर्व 1000 र्इ.के बादसँ सांस्कृतिक मिलन प्रारम्भ भ• जाइत अछि तेँ दक्षिणमे आर्यप्रवेष निषिचत रूपेँ पूर्वक घटना थिक। एहि कथनक साक्ष्य उपसिथत करैत अछि शतपथ ब्राह्राण (12931) केर दक्षिणक रेवोतराक उल्लेख जकरा आइ नर्मदा मानल जाइत अछि। अर्थात र्इ. पूर्व 1000 र्इ.क आसपाससँ वैदिक साहित्यमे दक्षिणके भूगोल जाग• लगैत अछि, एकर अर्थ थिक जीवनमे र्इ पूर्वे जागल छल।
सम्भव दक्षिणक आर्यीकरण तीन चरणमे पूर्ण भेल अछि।
प्रथम, दाषराज्ञक आसपास राजा विदर्भ अगस्त्यक नेतृत्वमे दक्षिण गेल छल जे सुराष्ट्र (गुजरात) तथा अवन्ती (मालवा) क्षेत्रमे पहुँचल, पसरल आ राज्य केलक। र्इ घटना र्इ. पूर्व 1600 र्इ.क आसपासक थिक।
दोसर चरण थिक राम केर जनिका अगस्त्य आश्रम भेटल छलनि तथा गोदावरी तट पर किछु इक्ष्वाकु रहि गेल। र्इ. घटना र्इ. पूर्व 1500 र्इ.क आसपास थिक। एकरे प्रभाव ओ प्रमाण थिक र्इ. पूर्व 1000-800 र्इ.क बादक सांस्कृतिक मिलन जखन दक्षिण प्रवेष बहुत सहज भ• गेल। ओ सब आर्य भाषा सेहो सीखि गेल जे मात्र कर्मकांडमे रहल, लोकभाषा अपन पूर्वे भाषा रहल जे एखनहुँ अछि।
एहि प्रसंगमे ब्यूलर तथा ओलडेनवर्गक विवेचनक आधार पर डा. विंटरनित्जक एहि कथनकेँ स्मरण कयल जा सकैछ जे 700 सालक अवधि राष्ट्रक विजय-पराजय लेल कोनो पर्याप्त अवधि नहि थिक।
एहि प्रकारेँ महाभारतक घटनाकेँ जे विद्वान र्इ. पूर्व 1400 र्इ. मानैत छथि। अर्थात दुनूमे तीन सै वर्षक अंतर मानैत छथि। किन्तु जँ महाभारतक घटनाकेँ र्इ. पूर्व 1200 र्इ. मानल जाय तँ रामायणक घटना अथवा राम काल र्इ. पूर्व 1500 र्इ. होइत अछि। एहि रूपमेे, र्इ. पूर्व 1600-1700 र्इ. क आसपास इक्ष्वाकु दलकेँ कोसल पहुँचबाक समयसँ सेहो संगति होइत अछि तथा महाभारत रामयणक घटनाकाल तथा रचनाकालक संगति भारतीय अनुश्रूति तथा दक्षिण विजयसँ सेहो भ• जाइत अछि, जे सर्वथा तर्कसंगत लगैत अछि।
पलि प्राकृतक एकटा विषेष भेदरूप थिक। आर्य अनार्यक मिलनक प्रतिफल थिक प्राकृत। अनार्यक सेहो अपन बोली रहल होयत ओ से विभिन्न आंचलिकताक आधार पर विभिन्न रहल होयत। द्रविड़ संस्कृतिक भिन्न बोली छल जे एखनहुँ दक्षिणमे अछि।
आर्य संस्कृत जखन अनार्यक उच्चारणमे आयल तँ ओ सरलता दिस उन्मुख भेल अर्थात ओहिमे विकृति आयल, वैह भेल प्राकृत एहि प्राकृतक विभिन्न भेद आंचलिकताक आधार पर अछि। पूर्वोतर भारतक तीन प्राकृत भेद अछि जाहिमे प्राचीतम थिक पालि। एहि पालिमे आंचलिकताक आधार पर सेहो भेद आयल जाहि कारणे मागधी तथा अर्धमागधी प्राकृतक स्वरूप भिन्न भेल।
डा. विंटरनित्जक कथन अछि जे पालि कोनो व्यामिश्रित भाषा छल जे मगधिये कमूल छल। एहि प्रसंग डा ए.एल. वैषम एकटा महत्वपूर्ण तथ्य दिस संकेत करैत छथि जे र्इ (पालि) शास्त्रीय संस्कृतक अपेक्षा वस्तुत: वैदिक संस्कृतसँ अधिक प्रभावित अछि। ओ आगू ओही पृष्ठ पर लिखैत छथि जे मागधी बोलीमे नियमित रूपसँ (वर्ण) परिवर्तन भ• जाइत अछि जाहिमे राजा, लाजा भ• जाइत अछि। मगहीम एखनहुँ आदमीकेँ आमदी कहैछ।
डा. ए.एल. वैषमक कथनसँ दुइटा महत्वपूर्ण तथ्य प्रकट होइत अछि। एक तँ कुषिक इक्ष्वाकु जे रावी तटसँ चलल से अपने भाषा कहियो नहि छोड़लक जकर प्रमाण थिक पालि जे वैदिके संस्कृतक अधिक निकट अछि। आ दोसर वर्ण विपर्ययक कारणे कस्से सक्क भ• गेल। आ तेँ र्इरानक एलासी पाठक सक्क केँ डा. डी.डी. कौसम्बी आकसिमकता मानैत छथि से नहि थिक। दुनूमे धनिष्ठ सम्बंध एहि प्रकारेँ भ• जाइत अछि जाहि पर सम्भव डा. कौसम्बीक ध्यान नहि गेलनि।
केसलक एही इक्ष्वाकुसँ जहिना कपिलवस्तुक जन्म भेल तहिना। कालांतरमे पावाक मल्ल, वैषालीक वृजिज तथा काषीक जन्म भेल अछि। काषीक कोनो राजनीतिक महत्व नहि भेल, एकर महत्व भेल व्यापारिक दृषिट´े । एहि पर किछु दिन कोसलो तथा मिथिलोक लोक आबिकेँ शासन केलक तेँ एहिठाम जनक नामक राजाक उल्लेख अछि। किन्तु एहिठामक राजाक नामे होइत छल ब्रह्रादत्त। पाछू किछु दिनुक लेल स्वतंत्र भेल, पुन: कोसलक अधीन भेल तत्पष्चात मगध साम्राज्यक अंग बनल।
काशी छोडि़केँ सबठाम (मल्ल, कोलिय, तृजिज तथा शाक्य) आर्यक प्राचीनतम कबिलार्इ संस्कृतिक प्रधानता रहल, जकर प्रमाण थिक गणतंत्रक प्रति आग्रह तथा परवर्ती आर्यक दैवी सिद्धान्त पर आधारित राजतंत्रक विरोध। एही दैवी सिद्धान्तक प्रतिष्ठापक ब्राह्राणक कर्मकांडक प्रति एहि सबठामसँ विरोध स्वर प्रकट भेल, काषीसँ पाष्र्व, वृजिजसँ महावीर तथा शाक्यसँ बुद्धक स्वरमे। एहि सबठाम आर्यक कर्मकांडक प्रधानता नहि रहल।
एहिसँ भिन्न, दोसर प्रकारक संस्कृति भेल मिथिलाक। भारतीय इतिहासमे मिथिला किछु ओही प्रकारक कार्य केलक जे कार्य पाछू अषोक केलक तथा बहुत बादमे अकबर केलक।
वस्तुत: मिथिलाक इतिहासक वैह महत्व अछि जे महत्व यूनानक इतिहासमे एथेंसक अछि अथवा आधुनिक योरोपक इतिहासमे फ्रांसक अछि। मिथिलाक इतिहासमे डा. उपेन्द्र ठाकुर शतपथ ब्राह्राणक आधार पर विदेघ माथवकेँ, पुरोहित गोतम रहूगणक संग जंगलकेँ जरबैत सदानीरा तथा ओहिसँ पूर्व बढ़ैत मिथिला राज्यक स्थापनाक बात मानने छथि।
एकर समर्थन प्रा. राधाकृष्ण चौधरीक सड.हि अन्य जतेक इतिहासकार भेलाह, जनिका मिथिला पर लिखबाक भेलनि, एहि प्रसंगक प्राचीनतम साहित्य शतपथकेँ आधार मानिकेँ चललाह।
शतपथक एहि कथामे तीन गोट अति महत्वपूर्ण बात अछि जाहि पर ध्यान नहि गेल अछि।
प्रथम थिक जे एहिमे सरस्वती तटसँ आगि ल• केँ चलबाक बात कहल गेल अछि। सरस्वती तट ऋग्वैदिक आर्य लोकनिक सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवास एवं कालखंड थिक। एहीठाम ऋषि परम्परा, मंत्र परम्परा तथा आर्यकर्म परम्परा निषिचत स्वरूप धारण करैत अपन चरम पर पहुँचल छल। उत्तर वैदिकयुगम जाहि यज्ञवादकेँ जे देखैत छी ओकर विकास एहीठाम चलबाक अर्थ भेल जे विकसित यज्ञवादक भेल । एहिठाम आगि ल• केँ गोतम रहूगण चलल छलाह। आगि वन्य प्रांतरक लेल सेहो आवष्यक छल आ याज्ञिक कर्म लेल सेहो।
ओहि समयक यात्रा बड़ कठिन होइत छल। गांगेय प्रदेष दुर्गम बन ओ भयंकर वन्य जन्तु तथा वन्यजनसँ भरल छल तेँ पर्वत तलहटी बला मार्ग उत्तम मानल जाइत छल आ तेँ पहिल दल ओही देने आबिकेँ कोसल, वैषाली, काषी, शाक्य एवं मल्ल जनपदक निर्माणो कयने छल। ओहि समयमे बहुत पैध-पैध दल बनाकेँ चलल जाइत छल जकर प्रमाण मौर्यकाल धरिक सार्थवाहसँ भेटैत अछि जाहिमे पाँच सै धरिक संख्याक प्रमाण अछि।
कहल गेल अछि जे इक्ष्वाकु केर छोट पुत्रकेँ विदेहक राज्य भेटल। एकर अर्थ भेल जे इक्ष्वाकुक पहिल दलक बाद दोसर दल सदानीराक (गंडकीक) मार्गमे विदेहराज्यक स्थापना केलक आ वैह गंडकी कोसल तथा विदेहक सीमा बनल। छोट इक्ष्वाकु पुत्रक अर्थ इहो भेल जे एहिदलमे इक्ष्वाकु क्षत्रियक संख्या कम छल। कुषिक इक्ष्वाकु केर बड़का दल तँ पहिनहि चल गेल दल जकर प्रमाण थिक कोसल, मल्ल तथा शाक्य, जाहिठाम आइयो क्षत्रियेक संख्या अधिक अछि। मिथिला आब•बला दलमे इक्ष्वाकु क्षत्रियक संख्या बहुत कम छल, अधिक दल ब्राह्राणक संख्या, जकर संकेत एहि सरस्वती आगि तथा रहूगण मे निहित अछि।
गोतम रहूगण कोनो प्रसिद्ध ऋषि नहि बुझना जाइछ, सम्भव र्इ दृषद्वती तटक छलाह। आ दृषाद्वती आवासकेँ (जे सरस्ततियेक शाखा नदी छल) ऋग्वेदमे हीन दृषिटसँ देखल गेल अछि संभव कृषि उन्मुखताक कारणे तेँ एहि कथामे सरस्वती तटक आगि केर विषेष रूपेँ उल्लेख अछि। अर्थात एहि दलम दृषद्वती तटक अधिकांष ब्राह्राण छल होयत जे उपेक्षित जकाँ दल आ जकर नेतृत्व गोतम रहूगण केलनि याज्ञिक कर्मकांडक संग।
शतपथक एही कथामे अदि जे तकर बाद विदेहक पौरोहित्य लेल वषिष्ठ अर्थात वषिष्ठवंषी ब्राह्राण लोकनि पाछूसँ अयलाह। निषिचते एहि दलमे अधिकांष ब्राह्राणे हेताह आ सेहो विभिन्न वंषक।
यैह कारण थिक जे आइयो मिथिलामे वैदिक कर्मकांडक प्रधानते नहि अछि अपितु क्षत्रियक अपेक्षा ब्राह्राणक संख्या बहुत अधिक अछि आ सेहो विभिन्न कुल गोत्र केेर। मिथिलामे ब्राह्राणक संख्या बढ़बाक एकटा आरो कारण अछि।
पौराणिक अनुश्रुति अछि जे शुकदेव अपन यौवनेकालमे मिथिला आयल छलाह। अवष्ये एहु दलमे ब्राह्राणेक संख्याधिक्य रहल होयत।
जँ दाषराज्ञ युद्धक पश्चात अर्थात र्इ. पूर्व 1800-1700 र्इ.क आसपास पहिल इक्ष्वाकु दल व्यास बाटेँ चलल छल तँ दोसर दल सरस्वती तटसँ निषिचत रूपेँ र्इ.पूर्व 17म शताब्दीक आरम्भमे चलल होयत। कोसलक निर्माण तथा ओहि क्षेत्रक आर्यीकरणक पश्चात ओ मार्ग अधिक सुरक्षित भ• गेल होयत तेँ गंडकी पूर्वी तट पर आरमिभक विदेह राज्यक स्थापन र्इ. पूर्व 1500 र्र्इ. मे अवष्ये भ• गेल होयत।
अनुश्रूति अछि जे सीता पिता दोसर जनक सीरध्वज नाम छलाह। एहि प्रकारेँ ओ रामक समकालीन अर्थात र्इ. पूर्व 1500 र्इ.मे अवष्ये गíी पर छल हेताह।
महाभारतक घटनाक पश्चात उत्तर वैदिकयुग आरम्भ होइत अछि, जकर समय र्इ. पूर्व 1200-1100क बीच राखल जा सकैछ जाहि ठामसँ आर्यजीवनमे महान परिवर्तन आब• लागल। किन्तु स्वयंवर प्रथा तथा क्षत्रियकेँ हर चलेबाक प्रथा जे प्राचीनता सिद्ध करैत अछि। रामकथाकेँ प्राचीन सिद्ध करबाक लेल सीताक जन्मकथाकेँ सेहो प्रामाणिक मानल जेबाक चाही। सीताक जन्मकथामे इक्ष्वाकु वंषक पूर्व कथाकेँ दोहराओल गेल अछि जे शकुंतलाक जन्मकथा थिक।
इक्ष्वाकु माधव जखन अपन राज्य स्थापन क• रहल छलाह, तखन एहि क्षेत्रमे अनेक वन्य जातिक प्रधानता छल जे कोसलक निषादे जकाँ अर्ध विकसित छल तथा पशुपालनक सड.हि कृषिकेँ सेहो अपना रहल छल। तेँ जनककेँ कृषि प्रतीक हरो चलब• पड़ल।
कासलक पश्चाते विदेह राज्य केर स्थापना भेल होयत तकर एकटा आरो प्रमाण देल जा सकैत अछि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे कोसल दिस जे आर्यदल आयल छल से अपन पशुचारी जीवनक उत्तरार्धमे छल जकर षिकारप्रथा प्रमुख होइत अछि, जकर प्रमाण शाक्यक बुद्ध धरिमे अछि। बुद्ध पशुक प्रति अति मोह रखैत छलाह जे पशूपालनक विषेषता थिक। ओ तँ रावीतट केर घटना छल किन्तु सरस्वती तट सँ जे आर्यदल मिथिला आयल छल ओ कृषि संस्कृति ल• केँ चलल छल जकर प्रतीक थिक जनकक हर चलायब। अकाल ओहि युगमे नहि पड़ैत छल।
ब्राह्राण अपन जन्मना सिद्धान्तक कारणे बहुत कêर ओ रूढि़वादी भेल, जाहि कारणे मिथिलामे आइयो वर्ण भेद तीव्र, विषद तथा कठोर अछि किन्तु एहन रूढि़वादी जातिमे प्राचीनता बहुत सूक्ष्म रूपेँ सुरक्षित रहि जाइत अछि। मिथिलाक एकटा पाबनि थिक जूडषीतल, जाहिमे ब्राह्राण षिकार पर जाइते टा अछि र्इ ओही षिकार पशुपालन युगक स्मृतिषेष थिक।
कर्मकांडक प्रमुखताक कारणे मिथिलामे याज्ञवल्क्य केर प्रादुर्भाव भेल जे भारतीलय संस्कृतिकेँ किछु एहन वस्तु तत्व देलक जे कालांतरक हिन्दूये जीवनक लेल महत्वपूर्ण नहि भेल अपितु विष्व मानसक लेल सेहो उल्लेखनीय मानल गेल।
स्मरणीय जे जाहि जनककेँ तत्वज्ञानी मानल जाइत अछि ओ याज्ञवल्क्यक समाकालीन छलाह अर्थात सीरध्वज जनकसँ लगभग 500 सै वर्षक पश्चात र्इ. पूर्व 1000 र्इ.क आसपास कृतिजनक।
र्इ कृतिजनक मिथिलाक महान जनक भेलाह जे अपन समन्वयवादक द्वारा राजनीतिक जीवनमे वैह कार्य केलनि जे बहुत बादमे अषोक केलनि तथा बहुत बादमे अकबर कर• चाहैत छलाह।
वस्तुत: जनकक समन्वयवाद रामक मूर्तिपूजने जकाँ एकटा राजनीतिक विवषता छल। एहि कृति जनकक प्राय: जतेक समकालीन क्षत्रिय राजा, अष्वपति केकैय, प्रवाहण जैबालि, पांचाल तथा अजातषत्रु काषी छलाह, एकदिससँ सब उपनिषदक वेदान्ती ब्रह्रावादी छलाह आ तेँ यज्ञवादी कर्मकांडक विरोधीये नहि, निन्दको छलाह जे राजतंत्रक अनुकूल पड़ैत छल। एही राजतंत्र लगसँ आत्माक अमरताक बात उठल छल, जकर उपज थिक पुनर्जन्मवाद तथा कर्मफलवाद अथवा भाग्यवाद जे राजस्व कराधानक विरूद्ध किसान विद्रोहकेँ करबाक अदभुत मार्ग छल। तेँ उपनिषदीय कथामे बेर-बेर र्इ कहल गेल अछि ब्राह्राण राजा लग जाकेँ एहि तत्वक बातकेँ बुझलनि।
वस्तुत: कर्मकांडी ब्राह्राणक लेल र्इ सर्वथा अपरिचित वस्तु छल किन्तु कराधानक प्रयोजन ओकरहु छल, तखने ओकरा राजासँ दान भेटि सकैत छल आ गुरूकुल चलि सकैत दल किन्तु र्इ दोष ब्राह्रामण अपना माथ पर नहि लेब• चाहैत छल तेँ एहि कथाक जन्म भ्ेाल आ राजा सेहो प्रसन्न भ्ेालाह।एकर प्रमाण थिक स्वयं शुक्ल यजुर्वेद जकर (अंतिम) चालीसम अध्याय र्इषोपनिषदे थिक जे उपनिषदीय भावनाक मूले नहि थिक अपितु आरंभो थिक। एहीमे निष्काम कर्मक सिद्धान्तक पहिल बेर प्रतिपादल भेल अछि जे पाछू गीतामे कृष्णक मुँहसुँ कहबाओल गेल अछि।
स्मरणीय जे शुक्ल यजुर्वेदक उत्तरार्ध मिथिलामे लीखल गेल जकर प्रवक्ता याज्ञवल्क्य छलाह। एही शुक्ल यजुर्वेदक ब्राह्राण थिक शतपथ ब्राह्रामण जकर रचनाकार थिकाह याज्ञवल्क्य जाहिमे पहिलुक बेेर अवतारवादक कल्पना भेल अछि। एही शतपथक परिषिष्ट थिक वृहदारण्यक तथा बृहदारण्यक उपनिषद जाहिमे प्रथम बेर पुनर्जन्मवाद तथा कर्मफलवादक जन्म भेल अछि।
वस्तुत: उपनिषद, तत्कालीन समाजक महान आवष्यकता छल।
आर्यीकरण अपन तीव्रता पर छल, आर्य अनार्य मीलि रहल छल किन्तु अनार्यकेँ आर्यवृतमे आनिकेँ अधिकांषकेँ उत्पादक वर्गमे राखल जा रहल छल। अधिकांष शुद्र अथवा वैष्य केर हाथमे छल उत्पादन जकर उपभोग क्षत्रिय राजन्य वर्ग तथा पुरोहित एवं षिक्षक ब्राह्रामणकेँ करक छल।
तेँ ब्रह्रावादसँ जकरा अनुसारेँ सब एके ब्रह्राकेर (आत्मा) अंष थिक तथा ओही ब्रह्रामे सभक अंतिम गति अछि, एकताक भावनाकेँ बल भेटैत छल। आ एही एकीकरणक लेल शुक्ल यजुर्वेदक अठारहम अध्यायमे शतरूद्रीय प्रकरणक व्यवस्था भेल। अछि। उपनिषदीय भावना संन्यासक निवृतिमार्गक अनुकूले छल तेँ उत्पादन कर्मकेँ प्रोत्साहित करबाक लेल निष्कामकर्मक सिद्धान्त प्रतिपादित कयल गेल जाहिसँ भौतिकतामे बाधा नहि पड़ैक। एही लेल पुनर्जन्मवाद आवष्यक छल जकर प्रतिउपज थिक कर्मफलवाद जे कराधान व्यवसािक प्रति विद्रोह भावनापर अंकुषक लेल छल। कहबाक प्रयोजन नहि अछि जे सामान्यत: चिंतनक आधार भौतिकते होइत अछि जे उपनिषद सन शुद्ध दार्षनिकचिंतनक मूलमे देखल जा सकैत अछि।
एहि प्रकारेँ शुक्ल यजुर्वेदक र्इषोपनिषदक ब्रह्रावादी तत्वचिंतन एवं निष्काम कर्म तथा शतपथ ब्राह्राणक अवतारवाद आ वृहदारण्यक केर पुनर्जन्मवाद ओ कर्मफलवाद जे भारतीय चिंतनक मूलाधार बनल, मिथिलामे याज्ञवल्क्यक नेतृत्वमे रचित सम्पादित भेल जकर कारण बनल विदेहराज जनकक राजतंत्र। निर्विवाद रूपेँ उपनिषदीय चिंतन राजतंत्रक उपज थिक।
जे हो, मिथिलामे ब्राह्राण वर्गक अधिकते तथा कर्मकांडक प्रधानतेक कारणे, काषी, केकैय तथा पांचालक क्षत्रिय राजासँ भिन्न विदेहक जनककेँ ज्ञानकांड ओ कर्मकांडमे समन्वय स्थापित कर• पड़लनि जे हुनक समर्थ राजनीतिक चेतनाक परिचायक थिक आ जे हुनका महान बना देलक। यैह समन्वय पाछू गीताक कृष्णक द्वारा उपसिथत कयल गेल जे वस्तुत: भारतीय चिंतक केर विषेषता थिक कारण गीताक रचनाकाल सामान्यत: र्इ पूर्व दोसर शताब्दीसँ र्इ. पश्चात दोसर सदीक बीचक मानल जाइत अंिछ। किन्तु गीताक समन्वयमे कर्म, ज्ञानक सड.हि एकटा तेसर नीवन तत्व अछि, भकिततत्व, अपितु एकरे प्रधानता अछि जे तत्कालीन प्रयोजन छल आ जे कालांतरमे हिन्दू जीवनक प्रधान अंग बनि गेल।
एहि गीताक दार्षनिकताक जन्म भारतीय चिंतनजरम्परामे सर्वप्रथम र्इषोपनिषदेमे भ• जाइत अछि जे वस्तुत: याज्ञवल्क्यक चिंतन थिक, मिथिलाक एकटा एहन अवदान थिक जाहकारणे भारतीय जीवनमे संतुलनेटा नहि उपसिथत भेल अपितु परवर्ती भारतीय चिंतन परम्पराकेँ एकटा निषिचत ठोस मुलाधार दैत, विष्वमानसकेँ अपन उपनिषदीय चिंतन सूक्ष्मतासँ चकित क• देलक।
यैह थिक मिथिलाक इतिहासक भारतीय इतिहास लेल अनिवार्यता। वस्तुत: भकितकेँ छोडि़ जे दक्षिणक देन थिक, मिथिला कर्म आ ज्ञानक क्षेत्रमे, विषेषता: समन्वयनक दृषिटसँ, जे दान भारतीय संस्कृतिकेँ देलक ओ दान विष्वमे एथेन्सकेँ छोडि़ आर कोनो क्षेत्र नहि द• सकल।
क्हबाक प्रयोजन नहि जे भारतक प्राचीन इतिहास, राजनीतिक इतिहास नहि थिक, नहि भ• सकैत अछि। कारण अन्य देष जकाँ मात्र राजा रानी आ सेनापतिकेँ महत्व देब भारत नहि सिखलक, भारत समस्त समाजकेँ एकटा समग्रतामे देखलक तथा ओकर विकासक चिंता केलक तेँ एकर इतिहास जखन होयत तखन सांस्कृतिके इतिहास होयत विषेषत: प्रागैतिहासिक कालक, जकर उíेष्य रहत समस्त समाज आ समाजक गतिषीलता ओ परिवर्तनषीलताकेँ अति सूक्ष्मतासँ रेखांकित करब। मिथिलाक इतिहास एकटा एहने रेखांकन थिक जे किछु कालखंडक लेल भारतीय सांस्कृतिक इतिहासक शीर्षक बनि जाइत अछि।
ओ मिथिले थिक जाहि कारणे भगवान बुद्धक जन्म भेल। मिथिला महान कर्मकांडी छल जे कृष्ण यजुर्वेद जकाँ अपन कर्मकांडकेँ मिश्रिते रूपमे नहि रखलक अपितुु कर्मकांडक लेल अपन ब्राह्राणकेँ अलग क• लेलक जे थिक शतपथ जे महानतम ब्राह्राण थिक।
किन्तु जेँ ल• केँ कानो अंगरेज इतिहासकारक ध्यान एहि दिस नहि जा सकल तेँ आइ धरि भारतीय इतिहाससँ र्इ बात छूटल रहि गेल।
स्मरणीय थिक जे भूगोल इतिहासकेँ जन्म दैत अछि। कोनो क्षेत्र विषेषेक समस्या कोना चिंतन विषेषक भूमिका प्रस्तुत करैत अछि, र्इ बात भिन्न थिक जे कतिपय कारणे ओ समस्त मानवीय मुल्यबोधक चिंतन बनि जाइत अछि। आ तेँ समस्त समाज ओकरा अंगीकार क• लैत अछि।
बुद्धक चिंतनमे मानवीयता तँ छल किन्तु आचरणमे वैह प्राचीन आर्यसप्त मर्यादा (अहिंसा, ब्रह्राचार्य, आस्तेय आदि) छल तेँ जाहि देषकेँ अपन कोनो व्यापक धर्म नहि छल से तँ स्वीकार केलक, अपन देषमे नहि रहि सकल।
असलमे बुद्धक वास्तविक मूल्यांकन सेहो आइधरि नहि भ• सकल अछि जे भेल अछि से अंगरेज इतिहासकार द्वारा बनाओल लीख पर जे ओकर समस्त एषियामे शोषण करबाक लेल कहियो भेल छल।
बुद्धक (गणतंत्रक) विरोध जे सामाजिक समझौता सिद्धान्त पर आधारित अछि, राजतंत्रसँ अछि जे दैवी सिद्धान्त पर आधारित अछि जे निकटमे कोसल आ विदेहमे छल। तेँ बुद्धक मूल्यांकन बिनू मिथिलाक इतिहासक सम्भवे नहि अछि। मिथिलाक इतिहासक एकटा इहो अनिवार्यता थिक।
भगवान बुद्धक विरोध अथवा विद्रोह मगधक आजीवक केर प्रति सेहो छल जे अक्रियावादी, अराजकतावादी तथा यौनाचारी छल। आ बुद्ध छलाह कर्म द्वारा कर्मबंधनकेँ बदलि देबाक पक्षपाती। ओ क्रांतिकारी छलाह लोकभाषाक प्रयोगकर्ताक रूपमे।
मगधक इतिहास केर आँखि जरासंधसँ खुजैत अछि किन्तु जागैत अछि वस्तुत: अथवेदसँ। जरासंधक प्रामाणिकता संदिग्ध अछि किन्तु अथर्ववेदक प्रमाण इतिहासे थिक से इतिहास थिक व्रात्यकेर।
वैदिक साहित्यमे व्रात्यकेर मुख्यत: दूइटा अर्थ भेटैत अछि, एकटा तँ अनार्य तथा दोसर वर्णसंकर। अथर्ववेद (1513) मे वर्णसंकर व्रात्यक प्रति सम्मानो व्यक्त कयल गेल अछि। सम्भव थिक र्इ सम्मन ओकरा लेल व्यक्त कयल गेल हो जे दासीपुत्र होइतहँु वैदिक अर्यधर्मकेँ मानैत हो। एहन अनेक दासीपुत्र छलाह जे मंत्रद्रष्टा ऋषि तक भ• गेल छथि। किन्तु से पूर्वकालमे, लगैत अछि र्इ परम्परा इतरा दासीपुत्र, महिदास ऐत्तरेय लग अर्थात उत्तर वैदिकयुगक प्रारम्भेमे समाप्त भ• जाइत अछि। कारण, एकर बाद वर्णव्यवस्था अपन आधुनिक स्वरूपकेँ प्राप्त करबाक लेल यात्रा प्रारम्भ क• देने होयत जकर अनेक प्रमाणो भेटैत अछि।
किन्तु एहनो वर्णसंकर छल जे आर्यधमकेँ छोडि़ अपन मातृपक्षक धर्मकेँ धेने रहैत होयत। शुद्ध अनार्य तँ व्रात्य छलहे। मगध एहने व्रात्यसँ भरल छल जे वैदिक धर्मक विरूद्ध आचरण करैत छल, अथर्ववेदमे (52214) कहल गेल अछि जे हे ज्वर अहाँ अंग आ मगध चहल जाय।
ओहि समयमे लोक ज्वरसँ बहुत डरैत छल, अर्थात वैदिक आर्यकेँ मगधसँ अन्यव्रता: हेबाक कारणे अति वितृष्णा छल, से स्पष्ट अछि।
अथर्ववेदक रचना सम्पादन र्इ. पूर्व 1100 र्इ.मे अर्थात महाभारतक घटनाक बादे भेल अछि, यधपि एकर किछु मंत्रकेँ ऋग्वेदोसँ प्राचीन मानल जाइत अछि जाहिमे अनार्य अभिचार क्रिया वर्णन अछि।
पौराणिक कथाक अनुसार आनवक (अनुजन) एक शाखा तितिक्षुक नेतृत्वमे एम्हर आयल छल। दोसर कथाक अनुसार कान्यकुब्जक कुष राजाक वंषज आमूर्तरसगय आबिकेँ गया नगरक जन्म देने छल।
एहि दुनू कथासँ प्रकट होइछ जे एम्हर दुइटा आर्यवंषक दुइटा टुकड़ी आयल छल जे एहि क्षेत्रक आदिवासीक संग मीलिकेँ एकाकार भ• गेल किन्तु ओ दुनू दल आर्यीकरणक बीजारोपन अवष्ये कयने गेल तथा आर्य जीवनक प्रति आकर्षण सेहो उत्पन्न करैत गेल। एकर प्रमाण थिक एकटा अन्य पौराणिक कथा जाहिमे एहि आनवक एकटज्ञ शाखा जे पूब चम्पा (अंग) दिस गेल छल, जकर राजा बलि छल ओ आर्य तीर्घतमाक स्वागते टा नहि कयने छल अपितु अपन पत्नी सुदेष्णासँ नियोग द्वारा तीर्घतमासँ अनेक पुत्रोक प्रापित कयने छल।
महाभारतक अनुसार यादव (ऋग्वैदिक यदुकेर वंषज)क वैवाहिक सम्बन्ध पूर्वेसँ एहि क्षेत्रसँ छल जकर प्रमाण थिक जरासंध ओ कंषक सम्बन्ध।
जे हो, र्इ सबटा पौराणिक कथा मात्र एकटा विन्दु दिस केनिद्रत अछि जे किछु आर्य टुकड़ी एम्हर आयल छल जे मिश्रित तथा व्रात्य भ• गेल जकर पाछू व्रात्यष्टोम यज्ञ द्वारा अर्यीकरण भेल।
रामायणक अनुसार एम्हर धर्र्मारण्य छल जत• राक्षस रहैत छल जे आर्य विरोधी छल, जकरा नाष करबाक लेल विष्वमित्र रामसँ सहायता लेने छलाह। किन्तु इतिहासमे र्इ क्षेत्र कीकटक मानल गेल अछि। संभव थिक दुनू एक्के रहल हो। किन्तु एकर अतिरिक्त पषिचम यमुनासँ आयल किछु नाग जातिक लोक सेहो रहल हो जाहिमे किछु आरो पूब चलि गेल हो, जकर प्रमाण थिक कालांतरक षिषुनाग वंष। आधुनिक बंगालमे सेहो नाग उपाधि भेटैत अछि, आसाम तँ नाग जातिक गढ़े थिक।
सम्भव थिक एही तीनू प्रकारक अनार्यजातिसँ आर्यक किछु छोट-छोट टुकड़ीक मिश्रण भेल हो जे पाछू आर्यधमकेँ छोडि़ देने हेा, जे राजनीतिक दृषिटसँ स्वाभाविके लगैत अछि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे अनार्य बहुल क्षेत्रमे प्राय: सबठाम राजतंत्रे भेल। पूर्वोत्तर भारतक कमसँ कम कोसल, विदेह, मगध तथा चम्पामे यैह देखैत छी। शाक्य, मल्ल, कोलिय तथा वैषालीम प्राचीन आर्येक संख्या अधिक छल अथवा संख्याधिक्यक कारणे तत्क्षेत्रीय अनार्यक शीघ्र आर्यीकरण भ• गेल होयत। एतब तँ निषिचत अछि जे ओहि कालमे वन्यजन पर्ववीय क्षेत्र दिस रहब अधिक पसिन्न करैत छल जेम्हर दलदल भूमि तथा सघन वन्यप्रांतकक अभाव रहैत अछि।
स्मरणीय अछि जे ब्राहद्रथ जरासंधकेँ शूद्र कहल गेल अछि, राक्षस, कीकट अथवा अनार्य, दस्यु ओ दास नहि। एकर अर्थ थिक जे र्इ वंष विषुद्ध अनार्यक नहि अपितु वर्णसंकरक थिक जाहिमे कमसँ कम एक रक्त आर्यक अछि। आ एहनेक हाथमे राजतंत्र रहल। राजनीतिक दृषिट´े प्रजाक धर्मक पालन ओकर विविषतो भ• सकैछ जे कोसलकेँ सेहो भ्ेाल दल मूर्तिपूजनक।
मगधक र्इ वर्णसंकरक आधिक्य, भारतीय इतिहासमे एकटा महान क्रांति केलक जे इतिहासकेँ एकर देन थिक। यैह मगध जे एखनधरि भारतक सांस्कृतिक इतिहास दल तकरा राजनीतिक इतिहास बना देलक। यैह मगध पहिलुक बेर समस्त भारतकेँ हिमालयसँ कन्याकुमारी धरि एक सूत्रमे बानिहकेँ एक क• देलक। यैह मगध यातायातक तेहन विकास केलक जे देषकेँ एक दिस व्यापारिक समृद्धि देलक तँ दोसर दिस राजतंत्रीय शासनकेँ पटु व्यवस्था देलक तथा अन्य देषकेँ मानवताक धर्म देलक। मगधक राजतंत्र जे अपन वर्ण संकरतेक कारणे कहियो सुदृढ़ भेल छल, कालांतरमे भारतीय इतिहासकेँ राजनीति देलक, राजनीति विज्ञानकेँ साम्राज्यवाद देलक तथा साम्राज्यकेँ भारतवर्षक महान एकता देलक।
प्राचीन पूर्वोतर दिस आर्य प्रसार, भारतीय इतिहासकेँ राम ओ कृष्ण देलक, जनक ओ याज्ञवल्क्य देलक, महावीर ओ बुद्ध देलक तथा कौटिल्य ओ अषोक देलक, जाहिसँ स्वयं संस्कृति धन्य भेल अछि।
स्मरणीय जे भारतक, प्राचीन इतिहास राजनीतिक इतिहास नहि अपितु सांस्कृतिक इतिहास थिक, कमसँ कम एही रूप मे देखक चाहि। राजनीतिक इतिहास प्रारम्भ होइत अछि जखन समाज संगठित भ• कँ अपन व्यवस्थापनक लेल एकटा मर्यादाक निर्माण करैत अछि अथवा एकटा सत्ताकेँ जन्म दैत अछि।
भारतक आदिम मानव, द्रविड़ सभ्यता एवं समाजकेँ गठित केलक किन्तु ओ निर्माण यूग छल, निरंतर आविष्कार भइये रहल छल तेँ ओ सभ्यता, कृषि आ वणिक संस्कृतिक निर्माण केलक जे आवष्यक छल। सत्ताक जन्म तकरे बाद होइत। ता आर्यक आगमन भेल अथवा ओहि क्षेत्रक भौगोलिक परिसिथति बदलि गेल आ ओ सभ्यता उजडि़ गेल।
आर्य अपन प्रवेषकालमे पशुचारी गत्वर छल। ओकर राजा सेहो गत्वर समाजक गत्वर सेनापति छल। जखन आर्य अनार्य मीलिकेँ एकटा समाजक निर्माण केलक आ भूमिसँ जुड़ल तखने राज्यक कल्पना सम्भव छल जे महाभारतक घटनाकालमे भेल तेँ भारतक राजनीतिक इतिहास तकर पश्चाते आरम्भ होइत अछि। डा. रोमिला थापरक अनूसारेँ भारतमे राजतंत्रक जन्म कोसल ओ मिथिलामे भेल।
जहिना अर्थषास्त्रक सम्बन्ध प्रकृतिक विपुलतासँ नहि अपितु मानव द्वारा निर्मित सीमित साधनसँ अछि तहिना राजनीति केर जन्म मानवक भूमि पर स्वामित्वसँ प्रारम्भ्ज्ञ होइत अछि जे भारतमे व्यापक रूपेँ महाभारतक युद्धक पश्चाते अर्थात उत्तर वैदिकेयुगमे भेल। तेँ प्राचीन मुख्यत: प्रागैतिहासिक भारतक इतिहास, भारतक सांस्कृतिके इतिहास हेायत।
आ सांस्कृतिक इतिहास लेल साहित्य एवं अनुभूति अत्यन्त उपादेय सामग्री मानल जायत।
एखन धरि भारतक इतिहासमे पूर्वोतर भारतक ने उचित मूल्यांकन भेल, ने एकर इतिहास निर्माण पर ध्यान देल गेल।
पूर्वोत्तर भारतकेँ ठीक-ठीक बूझक लेल रामयाण, महाभारतकेँ ओकर वास्तविक रूपमे बूझक अत्यावष्यक अछि।
डा. कीथक अनूसारेँ पाणिनि काल धरि वासुदेव कृष्णकेँ अवतार रूपमे मान्यता भेटि गेल छलनि। अष्टाध्यायीमे (डा. वासुदेवषरण अग्रवालक मतानुसारेँ) अजर्ुन, कृष्णक सड.हि महाभारतक उल्लेख सेहो अछि। पणिनिक काल एखनहुँ र्इ. पूर्व 500 सँ र्इ. पूर्व 600 वर्षक बीच डोलि रहल अछि।
उपनिषदमे वृहदारण्यक तथा छान्दोग्य उपनिषद प्राचीनतम थिक जकर समय कोनो प्रकारेँ र्इ. पूर्व 900 र्इ. सँ पाछु नहि सम्भव अछि। छान्दोग्यमे घोर आंगिरस ऋषिक षिष्यक रूपमे कृष्णक उल्लेख अछि तथा वृहदारण्यकमे परीक्षित जनमेजय अतीतक अनुश्रति बनि गेेल अछि।
डा. राधकुमुद मुखर्जीक आधारपर ऐत्तरेय ब्राह्राणमे उल्लेख अछि जे सर्वप्रथम वैषम्पायन व्यास जनमेजयकेँ भारतयुद्धक घटना सुनौने छलाह। एकर अर्थ भेल, जे र्इ. पूर्व 1000 वर्षक आसपास जयकाव्यसँ भारतकाव्य नाम भ• गेल छल।
वैषम्पायनसँ कृष्ण द्वैपायन व्यास पूर्ववर्ती तथा युद्धक समकालीन। जय काव्य मे 8800 सै श्लोक छल। अनुश्रुतिक अनुसारेँ वैष्म्पायन व्यास, कृष्ण द्वैपायनक षिष्य छलाह जे एकरा भारतक नाम देलनि तथा आहिमे 24000 श्लोक भेल। ओकरे नाम कालान्तरमे महाभारत भेल जे र्इ. पूर्व 700 र्इ. पूर्व धरि एहि नाम ख्यात भ• गेल, जकर आधुनिक रूप र्इसार दोसर शताब्दीक आसपासक थिक।
कृष्ण द्वैपायण व्यास युद्धक समकालीन छलाह अर्थात र्इ. पूर्व 1200 र्इ. पूर्वमे जयकाव्य तथा र्इ. पूर्व 1000 र्इ. धरि भारत काव्यक रचना भ• गेल होयत जकरा वैषम्पायन जनमेजयकेँ सुनौने छलाह। तकर बादेसँ भारतकाव्य महाभारत दिस बढ़ल होयत।
रामायणक घटना तथा रचना पूर्वी भारतमे भेल। कहबाक प्रयोजन नहि जे र्इ दुनू काव्य, युद्ध गीते नहि थिक अपितु वीरगाथा सेहो थिक जे ओहि समयमे सूत परम्परा द्वारा रचित हेाइत छल या जकरा स्वयं राजा (अथवा वीर नायक) यज्ञक अवसर पर सुनैत छलाह। वाल्मीकि द्वारा रचित एहि काव्यकेँ (वीणा पर) कुषीलव द्वारा राम सुननहुँ छलाह। इतिहासकार लोकनिमे महाभारतक घटनाकालक संबंधमे दुर्इ गोट मुख्य मत अछि, प्रथम र्इ. पूर्व 900 दोसर र्इ. पूर्व 1400। जे विद्वान महाभारतक घटनाकेँ र्इ. पूर्व 1400 र्इ.क मानैत छथि ओ लोकनि रामायणक घटनाकेँ तीन सै वर्ष पूर्वक अर्थात र्इ. पूर्व 1700 र्इ.क मानैत छथि।
किन्तु जँ महाभारतक घटनाकाल र्इ. पूर्व 1200 र्इ. मानल जाइत अछि तँ रामायणक घटनाकाल भेल र्इ. पूर्व 1500 र्इ. जे सुवास्तु तटसँ पूर्वोतर धरि आर्य प्रसार भेले समयक दृषिट´े समीचीन अछि।
रामायणक घटना भारतमे छल कि नहि से कहबाक कोनो साधन नहि अछि किन्तु महाभारतमे तँ अछिये जे लगैत अछि र्इ. पूर्व 1000 र्इ.क आसपास जखन पवर्ूी भारतसँ आवागमन किछु बढ़ल होयत तखन रामायण कथा महाभारतमे आबिकेँ जुटि गेल होयत।
महाभारतमे शतपथ ब्राह्राणकेँ सर्वश्रेष्ठ मानल गेल अछि। शतपथ, शुक्ल यजुर्वेदक ब्राह्राण ग्रंथ थिक जकर प्रवक्ता छथि याज्ञवल्क्य।
शुक्ल यजुर्वेदक प्रवक्ता याज्ञवल्क्य आ परषर कतकालीन नहि भ• सकैत छथि। याज्ञकल्क्य, परामर्ष कृष्ण द्वैपायन व्यासक षिष्य वैषम्पायनक समकालीन छलाह। तेँ शुक्ल यजुर्वेदक आरंभ अवष्ये पराषरक द्वारा भेल होयत जकरा कालांतरमे याज्ञवल्क्य बढ़ौलनि। डा. विंटरनित्जक अनुसारेँ शुक्ल यजुर्वेदक अठारहमसँ चालसम अध्याय धरि याज्ञवल्क्यक रचना थिक।
रामयाण कथा अपन मूल रूप र्इ पूर्व 1000 र्इ.मे प्राप्त क• गेल छल जाहिसँ र्इ प्रकट होइत अछि रामायणक घटनाकाल निषिचते एहिसँ बहुत पूर्वक थिक। तखने आदि वाल्मीकि केर गाथा अपन यात्रा करैत पषिचमी भारत धरि पहुँचल होयत आ अपन काव्यात्मकता तथा सामाजिक चेतनाक कारणे महत्वपूर्ण मानल गेल होयत एवं भारत काव्यमे सनिनति भेल होयत। रामायण मूलत: आर्य मर्यादाक काव्य थिक। र्इ स्वरूप ताधरि रामयाणकेँ प्राप्त भ• गेल होयत तेँ भारत कारकेँ स्वीकार्य भेल होयत।
स्मरणीय जे ब्राह्राण साहित्य (ब्राह्राण ग्रंथ तथा उपनिषद) मे बेर-बेर इतिहासक उल्लेख भेटैत अछि ओ इतिहास यैह रामायण महाभारत थिक। र्इ दुनू ग्रंथ सामाजिक षिक्षा लेल अथवा जकरा वैदिक ग्रंथ पढ़क अधिकार नहि छल, तकरा लेल तँ छलहे सड.हि षिक्षाक विषय सेहो भेल जा रहल छल। महाभारतक वन पर्वमे रामकथाकेँ एकटा प्राचीन गाथाक रूपमे स्मरण कयल गेल अछि।
ठहो निषिचत जे जहिना व्यास अनेक भेलाह तहिना वाल्मीकि सेहो अनेक भेलाह। रामक समकालीन वाल्मीकि गाथाकाव्यकेँ जन्म देलनि आ नाम देलनि रामायण। महाभाष्यमे, रामायाणमे मात्र बारह हजार श्लोक केर उल्लेख अछि। सम्प्रति चौबीस हजार अछि।
कलांतरमे अनेक व्यास परम्पर जकाँ वाल्मीकि परम्परा भेल होयत जे एहि कथाकेँ पूर्णता दैत चल गेल हताह। तैं भाषाक आधार पर एहि दूनू ग्रंथक निर्णय नहि कयल जा सकैछ। र्इ वैदिक साहित्य जकाँ यज्ञवादसँ नहि जुड़ल दल जाहि कारणे भाषामे परिवर्तन सम्भव नहि छल, र्इ लौकिक काव्य छल, भाषा परिवर्तन अवष्यम्भावी छल। आदिम मूल रामायण वैदिक संस्कृतमे होयत। किन्तु जाधरि पूर्वी भारतक निर्माणक बात ठीकसँ नहि बूझल जायत, जाहि पर आइ धरि ध्यान नहि देल गेल अछि ताधरि र्इ तथ्य स्पष्ट नहि होयत।
पूर्वोतर भारतक इतिहास निर्माण लेेल कपिलवस्तुक शाक्य एकटा महत्वपूण्र सूत्र थिक, जकरा विषयमे डा. डी.डी. कौसम्बी कहैत छथि जे आदिम ओर अत्यनत अविकसित छोटा सा शाक्य ... कबिलार्इ जीवन की अधिक आदिम अवस्था में थे। शाक्यक र्इ सिथति बुद्धकाल धरि छल। डा डी. एन. झाक कथन अछि जे जैन महावीर की तरह गौतम बुद्ध का विवाह अपनी चचेरी बहन से हुआ था। एहि बातक समर्थन र्इ. जे टामस (लाइफ आफ बुद्ध, पृ 23 मे) सेहो करैत छथि। एहि कथनक आधार सिंहली ग्रंथ जाहिमे कहल गेल अछि जे बुद्धक माता-पिताक विवाह सेहो सपिंड सम्बनिध्येमे भेल छल। शाक्यमे यैह प्रथा छल। महावस्तुक अनुसारेँ डा. राधाकुमुद मुखर्जी (अपन पुस्तक हिन्दू सभ्यता पृ. 249 मे) लिखैत छथि जे-वह शाक्यों का कुल था जो कोसल की राजधानी साकेत से निर्वासित होकर हिमालय के तट प्रदेष मे चले गये और वहाँ उन्होनें कपिलवस्तु नगर की स्थापना की।
शाक्यक अत्यन्त अविकसित कबिलार्इ जीवन सपिंड विवाह पाछू गौतम बुद्धक राजतंत्रक विरोध तथा वर्ण व्यवस्थामे जन्मनाक स्थान पर कर्मणाक समर्थन आदि तथ्य एहि क्षेत्रक इतिहासक अंधगुफा दिस प्रकाष किरण फेकैत अछि। लगैत अछि जे शाक्य पहिने कोसलेमे छल, निर्वासित भेला पर कपिलवस्तु गेल। लगैत अछि जे शाक्य सब आर्य जीवनक आदिम गणतंत्रीय पद्धति पसिन्न करैत छल जे कोसलक लेल अनूकूल नहि छल, तेँ विरोध भेल होयत, तेँ निष्कासन भेल। शाक्यमे राजतंत्रक सड.हि कोसलक प्रति सबदिन विद्रोहे भाव रहल अछि जहि कारणे ओ समाप्तो भेल।
एकटा आरो महत्वपूर्ण ओ रोचक तथ्य अछि जे शाक्यो, कोसले जकाँ इक्ष्वाकुये थिक, अपितु पूर्वोतर भारतमे मल्ल, विदेह, काषी, वैषालीमे इक्ष्वाकुये क्षत्रियक प्रधानता पबैत छी, जाहिठाम राजतंत्र भेल (विदेह, काषी, कोसलमे) इक्ष्वाकुये कुलक राज्य भेल। र्इ एकटा एहन तथ्य थिक जकरा आकसिमकता कहिकेँ टारल नहि जा सकैछ। किन्तु इतिहासमे आइधरि एहि पर विचार नहि भ• सकल अछि, से आष्चर्येक विषय थिक।
एतेक धरि जे आइधरि मिथिलाक जतेक इतिहास लीखल गेल, ताहूमे एहि पर विचार नहि भेल अछि।
डा. डी.डी. कौसम्बी एकटा अति महत्वपूर्ण तथ्यकेँ उठौलनि किन्तु ओ कोनो तारमम्य नहि जोडि़ सकलाह। ओ लिखैत छथि जे ये शाक्य (सक्क) लोग आर्य परिवार की भाषा बोलते थे और अपने को आर्य कहते थें पालो का यही सक्क शब्द र्इ. पूर्व छठी सदी के हखमनि सम्राट दारा प्रथमके षिलालेखोंके एलामी पाठ में भी देखने को मिलता है। सम्भव है कि एक ही शब्द के इन दो उल्लेखों में कोर्इ सीधा सम्बन्ध न हो।
किन्तु डा डी.डी. कौसम्बीक ध्यान एहि दिस नहि जा सकलनि। दुनू सक्क उल्लेखमे महत्वपूर्ण घनिष्ठ सम्बंध अछि। र्इ मात्र आकसिमकता नहि थिक।
किन्तु हमरा बुझने र्इ सक्क शब्दकेँ अषुद्ध पढ़ल गेल अछि कारण, र्इरानी (पार्षव) से केर उच्चारण नहि क• पबैत अछि, जाहि कारणे सिन्धसँ हिन्द तथा सोमसँ होम भेल अछि। ओकरा कस्स होमक चाही जे संयुक्त सतथा (सम्भव) वर्ण विपर्ययसँ नहि भ• सकल। कारण ओहि षिलालेखमे जाहि क्षेत्रकेँ अथवा जातिकेँ पराजित करबाक बात कहल गेल अछि ओ कषअथवा कस्साइट थिक।
कहबाक प्रयोजन नहि जे पषिचम एषियाक इतिहासमे कष अथवा कस्साइट लोकनिक किछु ओही प्रकारक महत्व अछि जेहन हित्ती, मित्तनी तथा असुर आदिक। र्इ सबटा इंडो योरोपीय भाषा परिवार केर छल। आर. गि्रसमैनक अनुसार कष अथवा कसिसक प्राचीनतम उल्लेख र्इ. पूर्व 2400 र्इ. मे भेल अछि। र्इ कष अथवा कसिसक जन एलमक मुलनिवासी नहि छल। सम्भव (स्राबोक अनुसार) कासिपयन सागर दिससँ आयल दल आ पाछू बेबीलोन पर राज्यो कयने छल जहिना हित्ती, मित्तनी अपन-अपन क्षेत्रमे केलक।
हित्ती, मित्तनी, कस्साइट आदि इंडो र्इरानी दलक सड.े सर्वप्रथम अपन मूल अभिजनसँ निकलल छल जे र्इ. पूर्व 3000 वर्षक आसपास र्इरानक उतरी छोरपर आबि गेल छल, जकर बाद इंडो र्इरानीक अर्थात स्वयं अपन देवता इन्द्रमित्र आदि ल• केँ तुर्की गेल। आ तेँ एहि क्षेत्रमे र्इ पूर्व 2400 र्इ. मे कसिस जातिक उल्लेख्.ा प्रथम-प्रथम भेटल अछि। एहि मान्यतामे कोनो तथ्य नहि अछि जे आइधरि मानल जा रहल अछि जे भारतीय आर्यदल घुमल छल, जकरासँ हित्ती मित्तनी भारतीय देव इन्द्र मित्रकेँ लेलक जे बोगाजकोइमे भेटैत अछि। र्इ. पूर्व 1500 र्इ.क ऋग्वेदक मंत्र देवता एकेसै वर्षमे तुर्की पहुँचि गेल आ हिती मानियो लेलक, महान असंगत आ अनैतिहासिक थिक जखन कि बोगाजकोइक ओ संधिलेेख र्इ. पूर्व 1400 र्इ. क थीक। कहियो एही मार्गकेँ भारतीय आर्य 5-6 सै वर्षम पार कयने छल।
जाहि कुष केर उल्लेख दारा (522-486 र्इ. पूर्व) केर हमदान अभिलेखमे भेल अछि खषयार्ष (486-465 र्इ. पूर्व) कर पर्सिपोलिस अभिलेखमे कुषिय जनक अर्थमे भेल अछि। अर्थात र्इ शब्द क्षेत्र तथा जन दुनूक लेल भेल अछि। हेरोडोटस (र्इ पूर्व 5म सदी) एलम केर उल्लेख किसिसयाक रूपमे केलक अछि। स्राबो कसिसकेँ कोस्सइओइ कहलक अछि।
एकटा आरो महत्वपूर्ण बात अछि जे कसिस जन अपन जन देवताकेँ कष्षु कहैत छल। र्र्इ सब एलमेमे रहल छल। इ। सब सूर्यपूजक छल। कुष आ कसिस एकहि मूलक शब्द थिक, जकर समर्थन र्इ कष्षु सेहो करैत अछि।
एही कुषसँ कुषिक शब्द बनि सकैत अछि। आष्चर्य बात तँ र्इ थिक जे यैह कुषिक शब्द ऋग्वेदमे बहुवचन रूपमे भेल अछि। ऋग्वेद (3333)मे विष्वामित्र अपन परिचय कुषिकस्य सुनु केर रूपमे देने छथि। ऋग्वैदिक अनुक्रमणीमे गाथिन कौषिककेँ कुषिकक पुत्र तथा गाथिन विष्वामित्रकेँ गाथिन कौषिकक पुत्र कहल गेल अछि। एहि प्रकारेँ कुषिकस्य सुनु केर अर्थ कुषिक वंषीय केर रूपमे कयल जा सकैछ।
ऋग्वेद (35312) केर अनुसार कौषिक विष्वामित्र भरत जनक राजा सुदासक पुरोहित सेहो छलाह जनिकासँ विरोध भेल छल, जकर परिणाम भेल दाषराज्ञ युद्ध।
स्मरणीय जे ऋग्वेदक प्रमुख पाँच जन-अनु,द्रहयु, पुरू, यदु आ तुर्वषकेँ पंचजना: कहल गेल अछि। जाहिमे यदु आ तुर्वषक निदो कयल गेल अछि। राजा सुदासक भरत-त्रित्सु-संृजय आदि जन गौणजन थिक, जकरा प्रति सेहो निन्दा भावे अछि।
दाशराज्ञ युद्धक एक पक्षक प्रधान राजा सुदास जकर जीत होइत अछि, रावीसँ दक्षिण-पूबमे बसल छल, सम्भव सरस्वती तट पर ।महर्षि वषिषठकेँ जे पाछू पूरोहित भेल छलाह, सरस्वतिये तट पर बसाओल गेल छलनि।
एकटा आरो आष्चर्यक विषय थिक जे जाहि विष्वमित्र आ वषिषठकेँ रावी तट पर ओहि दाषराज्ञ युद्धकालमे पबैत छी, तनिका पुन: सरयू तट पर सेहो पबैत छी महाकाव्यक वर्णनमे । ओकरे एक सम्बंध (विष्वमित्रक) पुन: मिथिलाक कोषी नदीसँ सेहो जोड़ल जाइत अछि।
क्हबाक प्रयोजन नहि जे कोनो प्रसिद्ध नामपर ओहि कुल अथवा वंषमे वैह नाम चल• लगैत छल तैं रावीतटक विष्वमित्र, वषिष्ठकेँ सरयू तट पर सेहो पबैत छी।
टाब एहि समस्त तथ्यकेँ जँ एक सूत्रमे जोड़ल जाय तँ मान• पड़त जे र्इरानक देवासुर संग्रामक पश्चात जखन भारतीय आर्यदल भारत दिस चलल तँ ओहिमे अन्य जन (उपदल) केर अतिरिक्त कस्साइट जन केर सेहो किछु लोक एम्हर आयल आ अधिकांष र्इरानक (पषिचमी दक्षिणी भाग) एलम दिस चल गेल होयत, जकरा सम्बन्धमे विभिन्न उल्लेख भेटैत अछि। ओही कस्साइटक अथवा कुषिक वंषक विष्वामित्रकेँ ऋग्वेदक तृतीय मंडलमे पबैत छी जे (2 सँ 7 मंडल प्राचीनतम थिक) प्राचीनतम मंडलमे सँ अछि।
एकर अर्थ भेल जे संग-संग आयल अछि। किन्तु कुषिक केर अथवा कस्साइटक एकटा अपन विषेषता छल जे एकरा अन्य आर्यदलसँ भिन्न बन दैत अछि। ओ विषेषता थिक एकर युद्धप्रियता तथा योद्धारूप। तेँ (सम्भव) ऋग्वेद (1.10.11) मे इन्द्रक लेल कौषिक शब्द आयल अछि। युद्धप्रियता तेँ विष्वामित्रमे सेहो पर्याप्त अछि जाहि कारणे (कमसँ कम एक कारण) दाषराज्ञ युद्ध भेल छल। यैह कारण थिक जे सूर्यमंत्र गायत्री सवित्रीक जन्मदाता षिवामित्रे भेलाह।
लगैत अछि जे वैह कुषिक जन तथा भरत त्रित्सु आदि मीलिकेँ (कस्साइट) पाछू इक्ष्वाकू कहाब• लागल। स्मरणीय जे विष्वामित्रकेँ क्षत्रिये मानल गेल अछि आ समस्त इक्ष्वाकु वंष क्षत्रिय थिक, जकर राज्य अथवा प्रमुखता पूर्वोतर भारतमे पाछू भेल जे परस्पर मगध साम्राज्य मगध धरि लड़ैत रहल। काषी, कोसल, वैषाली, शाक्य आ विदेहक परस्पर वैमनस्य आ युद्ध भारतक प्राचीन इतिहासक एकटा रोचक प्रसंग थिकं एतब नहि, मल्ल जे इक्ष्वाकुये थिक सेहो एकठाम नहि रहि सकल, दुइटा राजधानी बना लेलक।
पषिचम एषियामे जे कस्साइट रहल पाछू ओ बेेबीलोन पर राज्य धरि केलक। सम्भव थिक मिस्रक जाहि हिक्सस जाति जे अति लड़ाकू दल आ जे मिस्रमे किछू दिन राज्यो केलक आ जकर कोनो पता इतिहासकारकेँ नहि लागि रहल छनि एही कस्साइटक एकटा शाखा रहल हो।
सम्भव थिक जे एही कुषिक वंषमे कियो इक्ष्वाकु नामक प्रतापी योद्धा भेल हेताह जनिका नाम पर पाछू सब इक्ष्वायकुये कहब• लागल। एहि प्रसंगमे ऋग्वेद मौन अछि।
पूर्वे कहल जे कुषिक जन गौणजन दल जे भरत, त्रित्सु जन संग रहैत दल विष्वमित्र एकरे पुरोहितो कहियो छलाह। भरत त्रित्सुक नेता दिवोदासक पुरोहित विष्वामित्र छलाह किन्तु सुदासक वषिष्ठ।
एकटा आरो ध्यान देबाक बात थिक जे कुषिक केर चर्च तँ ऋग्वेदक तेसर मंडलमे भेल अछि किन्तु प्राचीतर प्राचीनतम मंत्रमे इक्ष्वाकु केर चर्च नहि अछि। अछि दसम मंडल (10603) मे। दसमे मंडलमे एक बेर इक्ष्वाकुक संग मान्धाताक उल्लेख अछि। दसम मंडल बादक मानल जाइत अछि किन्तु ओ तथापि ब्राह्राणग्रंथ सँ बहुत पूर्वक तँ थिकहे। ऋग्वेदमे कतहु कोसल तथा विदेहक चर्च नहि अछि।
एकर अर्थ थिक जे कुषिक जन केर जखन इक्ष्वाकुमे रूपान्तरण भेल तकर बाद मूख्य आर्यक्षेत्रसँ ओ सब कतहु चल गेल। प्रष्न उठैत अछि जे कत• गेल आ कियैक गेल? कत• गेलसे कहब तँ आब कठिन नहि अछि किन्तु गमनक कारण ठीक-ठीक नहि कहल जा सकैद। मात्र अनुमान लगाओल जा सकैछ।
सम्भव थिक रावी तटक दाषराज्ञ युद्धक पश्चात (जे र्इ. पूर्व 1800 र्इ.क घटना थिक) विष्वामित्रक बाद कोनो महान योद्धा इक्ष्वाकु केर नेतृत्वमे भरत त्रित्सु तथा कुषिक कस्साइटक एकटा बृहत दल पूर्वोतर व्यास नदी दिस अर्थात हिमालयक दिषामे चलल, कारण ऋग्वेद विष्वामित्रक व्यास पार करबाक बात कहैछ। ब्राह्राण विषेषत: शतपथ आ पुराण एहि प्रसंगमे बहुत कह• लगैत अछि।
पुराणमे मनुपुत्री इलाक प्रसंग अछि जकर संतान ऐल कहौलकं इक्ष्वाकु ऐलवंषसँ सम्बंनिधत सेहो मानल जाइत अछि। सड.हि पुराण पारंगत डा. पार्जिटर ऐलकेँ आर्य मानैत छथि तथा ओकर आवास (क्षेत्र) हिमालय केर तहहटीक इलावृतकेँ मानैत छथि। सम्भव थिक जे सरयू तटक (कोसल दिस) दिषामे चल• सँ पूर्व किछु दिन धरि व्यास नदीक उतरी पूर्वी भागमे ओ दल रहि गेल हो जकर स्मृतिषेष पुराणकेँ इलावृतक रूपमे अछि।
एकर समर्थन डा. हार्नलेक ओ उकित सेहो करैत अछि जे आर्य अनेक धक्कामे आयल तथा एकटा दल हिमालयक तलहटी होइत पूब दिस गेल। किन्तु ओ के छल ताहि प्रसंग ओ मौन छथि। हार्नलेक समर्थन डा. ए.एल.वैषम अपन अदभूत भारत मे सेहो करैत कहैत छथि जे र्इ देषान्तरमे बस• बला आर्यक दोसर दल छल।
ळमर निषिचत मत अछि जे ओ भरत, त्रित्सु कुषिक केर इक्ष्वाकु महादल दल जे रावी तटक बाद हिमालयक तलहटी दने किछु दिन ओतहि रहैत पुन: अपन एक उपदलकेँ छोडि़ दक्षिण दिस घ ुमल आ सरयू तट पर बसि गेल। कालांतरमे वैह भेल कोसल। ओ दल कोसलमे निषिचत रूपमे र्इ. पूर्व 1600-1700 र्इ.क आसपास बसि गेल होयत। कोसल दिस आब• बला महादलसँ एकटा आरो छोट उपदल ओही इलावृत क्षेत्रमे किछु दिनूक लेल रहि गेल जकर सम्पर्क सम्बंध ओहि क्षेत्रक पर्वतीय किरात ओ मंगोलाइटसँ भेल। एहि कारणे ओ उपदल मिश्रित भ• गेल। कर्मकांडकेँ बहुत अंषमे बिसरि गेल। वैह उपदल आबि पाछू वैषालीक निर्माण कयलक, जकर विरोध कर्मकांड समर्थक कोसल ओ विदेहसँ रह• लागल।डा. उपेन्द्र ठाकुरक अनुसार वैषालीक लिच्छविकेँ मनुस्मृति व्रात्य मानैत अछि। एही लिच्छविसँ तिब्बत लíाख ओ नेपाल राजवंष अपन सम्बंध जोड़़ैत अछि, जे ओहि पूर्व मिश्रणक स्मृतिषेष थिक। रावण एही वैषालीक मिश्रित पुत्र छलाह। रामायण तथा पुराणक आधार पर एहि वंषक वृक्ष प्रामाणिक रूपमे प्रस्तुत करब तँ कठिन अछि अथवा अध्ययन साध्य अछि, किन्तु मान्धताक उल्लेख जेँ ल• केँ ऋग्वेदमे अछि तेँ र्इ एहि वंषक प्रमाणिक तथा सड.हि प्रतापी राजा भेल हेताह।
र्इ दल जाहि दिनमे सरयू तट पर पहुँचल होयत ओहि दिनमे एहि क्षेत्रमे अनेक अनार्य जन छल, जाहिमे किछु अत्यन्त अविकसित छल। दोसर दल निषाद जे अर्ध विकसित छल आ पशुपालन छोडि़केँ कृषि युगमे आबि गेल छल।
सम्भव थिक जे द्रविड़ सभ्यतामे जाहि रोपड़ (हरियाणा) केर मिश्रित संस्कृतिक चर्च भेल अछि, यैह निषाद रहल हो जे आर्यप्रसार एवं आतंकक कारणे एम्हर आबि गेल हो। निषाद द्रविड़संस्कृतिसँ प्रभावित छल आ षिष्नदेवा: सेहो छल। एकर अतिरिक्त एहिक्षेत्रमे अजास, षिग्रु तथा नाग जातिक लोक रहल होयत।
आगंतुक आर्य इक्ष्वाकुजन सर्वप्रथम अपन सम्बंध एही अर्ध विकसित निषाद जातिसँ बनौने होयत। सम्भव थिक कृषि जीवनमे प्रवेष क• जेबाक कारणे निषादजन शीघ्र आर्यजनसँ मीलि गेल हो आ एकटा मिश्रित संस्कृतिक जन्म भेल हो, जकर प्रमाण पाछू राम ओ निषादराजक वार्तामे (रामायणक आधार पर) भेटैत अछि। एहि दुनूक मिलनक दोसर प्रमाण थिक रामक मूर्तिपूजक भ• जायब आ षिष्नदेव (महादेव) केर पूजन आरम्भ करब।
विस्तृत निषादजनसँ मिलनक लेल इक्ष्वाकु वंषक विवषता भ• गेल होयत। र्इ विवषता राज्य संचालन लेल सेहो आवष्यक भेल होयत। राजाकेँ प्रजाक धर्मकेँ स्वीकार कर• पड़ैत अछि। इतिहासक यैह प्रथम आर्यवंष भेल जे मूर्तिपूजक भेल जे सांस्कृतिक मिलन लेल अत्यावष्यक छल। रामक षिवपूजा एकटा राजनीतिक विवषता छलनि।
इक्ष्वाकु लोकनिक राज्यस्थापनाक बाद सम्भवत: मान्धातेक समयमे अर्थात र्इ. पूर्व 1700-1600 र्इ.क आसपास दक्षिणक कीकटकेँ आरो दक्षिण दिषामे तथा उतरक किरातकेँ आरो उतरमे ठेलि देल गेल होयत आ इक्ष्वाकु राज्यमे किछु निषिचन्तता आयल होयत। सड.हि राजतंत्र क्रमष: निरंकुषता दिस उन्मुख भेल होयत।
एही समयमे परस्पर विरोध भेल होयत आ कोसलसँ एक दल पुन: पूब दिस बढि़ आयल जे शाक्य कहौलक। ताधरि इलावृतमे छूटल ओ उपदल मिश्रित भ• केँ आयल आ वैषालीक निर्माण केलक।
रावीतटसँ र्इ इक्ष्वाकु दल अपन पूर्वक पशुपालनक संस्कृति ल• केँ आयल छल, शाक्य तँ ओही संस्कृतिकेँ ल• क• गेल किन्तु कोसल ओहि अर्धविकसित निषादक संग क्रमष: कृषि दिस बढ़ल। रामक समयधरि कृषि एहि क्षेत्रमे अपन पूर्णताकेँ प्राप्त क• गेल छल, तखने पारिवारिक मर्यादा बढ़ल होयत। अत्यन्त विकसित कृषियेक प्रमाण तथा परिणाम रामक एकपत्नीव्रत तथा सीताक एकपतिव्रत थिक।
समकालीन संस्कृति कोसलक कृषिक विकसित संस्कृति थिक जे एकपति तथा एकपत्नीव्रतसँ प्रकट होइत अछि। मान्धाताक पश्चात सम्भव हरिष्चन्द्र एतिहासिक पात्र थिकाह कारण हुनक उल्लेख ऐतरेमे ब्राह्राणमे सेहो अछि, किन्तु रामसँ पूर्व शेषवंषज जकर पूराणमे उल्लेख अछि तकर प्रामाणिकता संदिग्ध अछि।
मिश्रण कोसल, विदेह ओ वैषाली सबमे भेल। किन्तु वैषालीक मिश्रण पर्वत क्षेत्रक लोकसँ भेल छलि। कौषल्या, सम्भव ओहि कोसलक नहि छलीह, जाहि कोसलमे राज्ये छलनि ओ महाकोसलक छलीह, जाहिठाम यदुवंषक हैहेय क्षत्रियक राज्य दल जकरा कहियो मान्धाता पराजितो कयने छलाह आ जे बहुत मिश्रित भ• गेल छल। किन्तु कैकेयी अकिखनी तटक (चेनाव) छलीह जाहि ठाम एखनहुँ शुद्ध आर्यरक्त छल। भरतक उत्तराधिकारक पाछूू केकैयीक यैह तर्क रहल होयत।
रामक महानता एही आर्यत्वक प्रसारमे निहित अछि जाहि कारणे ओ महाकाव्यक नायक भ• सकलाह। कोसल आ विदेह दूनू कौलिक राजतंत्रक सड.हि यज्ञवाद ओ कर्मकांड समर्थक छल आ वैषाली ओ शाक्य गणतंत्रक विषेषत: यज्ञवाद ओ कर्मकांडक विरोधी। एकर अतिरिक्त अविकसित ओ अर्ध विकसित अनार्य बहुल र्इ क्षेत्र तेँ राजतंत्र समर्थक कोसल ओ विदेहमे संधि भेल जकर सुदृढ़ीकरण भेल राम ओ सीताक विवाहसँ । पाछू कोसल ओ विदेह मीलिकेँ आर्यीकरणक कार्य केलक जकर नेतृत्व केलनि कोसलक राम। सम्भव राम गोदावरी तट धरि अवष्य गेलाह, जकर प्रमाण थिक ओहिठामक एकटा इक्ष्वाकु राजवंष जे कालांतरमे अष्मक राज्यक रूपमे पबैत छी। ओ (राम) एहि बीचक अनेक अनार्य तथा वन्य जनकेँ आर्यवृत्तमे अनलनि जकर प्रमाण थिक हनुमान, जटायु आदि। शवर जातिक एखनहुँ असितत्व अछि जकरे कथा थिक शवरी कथा। तेँ रामायणमे एकरा महत्व देल गेल अछि।
आर्यक दक्षिण प्रवेषकेँ र्इ. पूर्व 800 र्इ.क बादक घटना मानल जाइत अछि जे असंगत अछि। र्इ काल सामान्यत: दक्षिण आ उत्तरक सांस्कृतिक विजय कठिने नहि अपितु समय सापेक्ष सेहो थिक।
दक्षिण भारतकेँ अपन सुदीर्घ सांस्कृतिक परम्परा छल जकर पडि़ द्रविड़ सभ्यतामे अछि आ जे आर्य संस्कृतिसँ सर्वथा भिन्ने नहि अपितु प्रबलो दल जाहि कारणे उत्तरक आर्यकेँ मूर्तिपूजक होम• पड़ल, ओहि दक्षिणक मनकेँ जीतब सहज नहि छल।
डा. विंटरनित्जक आधार पर बोधायन तथा आपस्तम्ब आदि वैदिक सम्प्रदायक जन्म दक्षिणेमे भेल अछि। एहि दुनू सूत्र साहित्यक जन्म बुद्धसँ पूव नहि तँ बुद्धक आसपास अवष्य भेल अछि। अर्थात मात्र दुइ सै वर्षमे दक्षिण, उत्तरक संस्कृत भाषा सीखिकेँ पारंगतेटा नहि भेल अपितु वैदिकको धर्मकेँ मानि गेल, समीचीन नहि लगैत अछि। एतब नहि उत्तरक शुक्ल यजुर्वेदमे, जकर रचना निषिचत रूपेँ र्इ. पूर्व 1000 क आसपास भेल, शतरूदि्रय प्रकरणक कोन प्रयोजन पड़ल, षिव तँ दक्षिणक देव छलाह।
एकर अर्थ थिक जे र्इ. पूर्व 1000 र्इ.के बादसँ सांस्कृतिक मिलन प्रारम्भ भ• जाइत अछि तेँ दक्षिणमे आर्यप्रवेष निषिचत रूपेँ पूर्वक घटना थिक। एहि कथनक साक्ष्य उपसिथत करैत अछि शतपथ ब्राह्राण (12931) केर दक्षिणक रेवोतराक उल्लेख जकरा आइ नर्मदा मानल जाइत अछि। अर्थात र्इ. पूर्व 1000 र्इ.क आसपाससँ वैदिक साहित्यमे दक्षिणके भूगोल जाग• लगैत अछि, एकर अर्थ थिक जीवनमे र्इ पूर्वे जागल छल।
सम्भव दक्षिणक आर्यीकरण तीन चरणमे पूर्ण भेल अछि।
प्रथम, दाषराज्ञक आसपास राजा विदर्भ अगस्त्यक नेतृत्वमे दक्षिण गेल छल जे सुराष्ट्र (गुजरात) तथा अवन्ती (मालवा) क्षेत्रमे पहुँचल, पसरल आ राज्य केलक। र्इ घटना र्इ. पूर्व 1600 र्इ.क आसपासक थिक।
दोसर चरण थिक राम केर जनिका अगस्त्य आश्रम भेटल छलनि तथा गोदावरी तट पर किछु इक्ष्वाकु रहि गेल। र्इ. घटना र्इ. पूर्व 1500 र्इ.क आसपास थिक। एकरे प्रभाव ओ प्रमाण थिक र्इ. पूर्व 1000-800 र्इ.क बादक सांस्कृतिक मिलन जखन दक्षिण प्रवेष बहुत सहज भ• गेल। ओ सब आर्य भाषा सेहो सीखि गेल जे मात्र कर्मकांडमे रहल, लोकभाषा अपन पूर्वे भाषा रहल जे एखनहुँ अछि।
एहि प्रसंगमे ब्यूलर तथा ओलडेनवर्गक विवेचनक आधार पर डा. विंटरनित्जक एहि कथनकेँ स्मरण कयल जा सकैछ जे 700 सालक अवधि राष्ट्रक विजय-पराजय लेल कोनो पर्याप्त अवधि नहि थिक।
एहि प्रकारेँ महाभारतक घटनाकेँ जे विद्वान र्इ. पूर्व 1400 र्इ. मानैत छथि। अर्थात दुनूमे तीन सै वर्षक अंतर मानैत छथि। किन्तु जँ महाभारतक घटनाकेँ र्इ. पूर्व 1200 र्इ. मानल जाय तँ रामायणक घटना अथवा राम काल र्इ. पूर्व 1500 र्इ. होइत अछि। एहि रूपमेे, र्इ. पूर्व 1600-1700 र्इ. क आसपास इक्ष्वाकु दलकेँ कोसल पहुँचबाक समयसँ सेहो संगति होइत अछि तथा महाभारत रामयणक घटनाकाल तथा रचनाकालक संगति भारतीय अनुश्रूति तथा दक्षिण विजयसँ सेहो भ• जाइत अछि, जे सर्वथा तर्कसंगत लगैत अछि।
पलि प्राकृतक एकटा विषेष भेदरूप थिक। आर्य अनार्यक मिलनक प्रतिफल थिक प्राकृत। अनार्यक सेहो अपन बोली रहल होयत ओ से विभिन्न आंचलिकताक आधार पर विभिन्न रहल होयत। द्रविड़ संस्कृतिक भिन्न बोली छल जे एखनहुँ दक्षिणमे अछि।
आर्य संस्कृत जखन अनार्यक उच्चारणमे आयल तँ ओ सरलता दिस उन्मुख भेल अर्थात ओहिमे विकृति आयल, वैह भेल प्राकृत एहि प्राकृतक विभिन्न भेद आंचलिकताक आधार पर अछि। पूर्वोतर भारतक तीन प्राकृत भेद अछि जाहिमे प्राचीतम थिक पालि। एहि पालिमे आंचलिकताक आधार पर सेहो भेद आयल जाहि कारणे मागधी तथा अर्धमागधी प्राकृतक स्वरूप भिन्न भेल।
डा. विंटरनित्जक कथन अछि जे पालि कोनो व्यामिश्रित भाषा छल जे मगधिये कमूल छल। एहि प्रसंग डा ए.एल. वैषम एकटा महत्वपूर्ण तथ्य दिस संकेत करैत छथि जे र्इ (पालि) शास्त्रीय संस्कृतक अपेक्षा वस्तुत: वैदिक संस्कृतसँ अधिक प्रभावित अछि। ओ आगू ओही पृष्ठ पर लिखैत छथि जे मागधी बोलीमे नियमित रूपसँ (वर्ण) परिवर्तन भ• जाइत अछि जाहिमे राजा, लाजा भ• जाइत अछि। मगहीम एखनहुँ आदमीकेँ आमदी कहैछ।
डा. ए.एल. वैषमक कथनसँ दुइटा महत्वपूर्ण तथ्य प्रकट होइत अछि। एक तँ कुषिक इक्ष्वाकु जे रावी तटसँ चलल से अपने भाषा कहियो नहि छोड़लक जकर प्रमाण थिक पालि जे वैदिके संस्कृतक अधिक निकट अछि। आ दोसर वर्ण विपर्ययक कारणे कस्से सक्क भ• गेल। आ तेँ र्इरानक एलासी पाठक सक्क केँ डा. डी.डी. कौसम्बी आकसिमकता मानैत छथि से नहि थिक। दुनूमे धनिष्ठ सम्बंध एहि प्रकारेँ भ• जाइत अछि जाहि पर सम्भव डा. कौसम्बीक ध्यान नहि गेलनि।
केसलक एही इक्ष्वाकुसँ जहिना कपिलवस्तुक जन्म भेल तहिना। कालांतरमे पावाक मल्ल, वैषालीक वृजिज तथा काषीक जन्म भेल अछि। काषीक कोनो राजनीतिक महत्व नहि भेल, एकर महत्व भेल व्यापारिक दृषिट´े । एहि पर किछु दिन कोसलो तथा मिथिलोक लोक आबिकेँ शासन केलक तेँ एहिठाम जनक नामक राजाक उल्लेख अछि। किन्तु एहिठामक राजाक नामे होइत छल ब्रह्रादत्त। पाछू किछु दिनुक लेल स्वतंत्र भेल, पुन: कोसलक अधीन भेल तत्पष्चात मगध साम्राज्यक अंग बनल।
काशी छोडि़केँ सबठाम (मल्ल, कोलिय, तृजिज तथा शाक्य) आर्यक प्राचीनतम कबिलार्इ संस्कृतिक प्रधानता रहल, जकर प्रमाण थिक गणतंत्रक प्रति आग्रह तथा परवर्ती आर्यक दैवी सिद्धान्त पर आधारित राजतंत्रक विरोध। एही दैवी सिद्धान्तक प्रतिष्ठापक ब्राह्राणक कर्मकांडक प्रति एहि सबठामसँ विरोध स्वर प्रकट भेल, काषीसँ पाष्र्व, वृजिजसँ महावीर तथा शाक्यसँ बुद्धक स्वरमे। एहि सबठाम आर्यक कर्मकांडक प्रधानता नहि रहल।
एहिसँ भिन्न, दोसर प्रकारक संस्कृति भेल मिथिलाक। भारतीय इतिहासमे मिथिला किछु ओही प्रकारक कार्य केलक जे कार्य पाछू अषोक केलक तथा बहुत बादमे अकबर केलक।
वस्तुत: मिथिलाक इतिहासक वैह महत्व अछि जे महत्व यूनानक इतिहासमे एथेंसक अछि अथवा आधुनिक योरोपक इतिहासमे फ्रांसक अछि। मिथिलाक इतिहासमे डा. उपेन्द्र ठाकुर शतपथ ब्राह्राणक आधार पर विदेघ माथवकेँ, पुरोहित गोतम रहूगणक संग जंगलकेँ जरबैत सदानीरा तथा ओहिसँ पूर्व बढ़ैत मिथिला राज्यक स्थापनाक बात मानने छथि।
एकर समर्थन प्रा. राधाकृष्ण चौधरीक सड.हि अन्य जतेक इतिहासकार भेलाह, जनिका मिथिला पर लिखबाक भेलनि, एहि प्रसंगक प्राचीनतम साहित्य शतपथकेँ आधार मानिकेँ चललाह।
शतपथक एहि कथामे तीन गोट अति महत्वपूर्ण बात अछि जाहि पर ध्यान नहि गेल अछि।
प्रथम थिक जे एहिमे सरस्वती तटसँ आगि ल• केँ चलबाक बात कहल गेल अछि। सरस्वती तट ऋग्वैदिक आर्य लोकनिक सर्वाधिक महत्वपूर्ण आवास एवं कालखंड थिक। एहीठाम ऋषि परम्परा, मंत्र परम्परा तथा आर्यकर्म परम्परा निषिचत स्वरूप धारण करैत अपन चरम पर पहुँचल छल। उत्तर वैदिकयुगम जाहि यज्ञवादकेँ जे देखैत छी ओकर विकास एहीठाम चलबाक अर्थ भेल जे विकसित यज्ञवादक भेल । एहिठाम आगि ल• केँ गोतम रहूगण चलल छलाह। आगि वन्य प्रांतरक लेल सेहो आवष्यक छल आ याज्ञिक कर्म लेल सेहो।
ओहि समयक यात्रा बड़ कठिन होइत छल। गांगेय प्रदेष दुर्गम बन ओ भयंकर वन्य जन्तु तथा वन्यजनसँ भरल छल तेँ पर्वत तलहटी बला मार्ग उत्तम मानल जाइत छल आ तेँ पहिल दल ओही देने आबिकेँ कोसल, वैषाली, काषी, शाक्य एवं मल्ल जनपदक निर्माणो कयने छल। ओहि समयमे बहुत पैध-पैध दल बनाकेँ चलल जाइत छल जकर प्रमाण मौर्यकाल धरिक सार्थवाहसँ भेटैत अछि जाहिमे पाँच सै धरिक संख्याक प्रमाण अछि।
कहल गेल अछि जे इक्ष्वाकु केर छोट पुत्रकेँ विदेहक राज्य भेटल। एकर अर्थ भेल जे इक्ष्वाकुक पहिल दलक बाद दोसर दल सदानीराक (गंडकीक) मार्गमे विदेहराज्यक स्थापना केलक आ वैह गंडकी कोसल तथा विदेहक सीमा बनल। छोट इक्ष्वाकु पुत्रक अर्थ इहो भेल जे एहिदलमे इक्ष्वाकु क्षत्रियक संख्या कम छल। कुषिक इक्ष्वाकु केर बड़का दल तँ पहिनहि चल गेल दल जकर प्रमाण थिक कोसल, मल्ल तथा शाक्य, जाहिठाम आइयो क्षत्रियेक संख्या अधिक अछि। मिथिला आब•बला दलमे इक्ष्वाकु क्षत्रियक संख्या बहुत कम छल, अधिक दल ब्राह्राणक संख्या, जकर संकेत एहि सरस्वती आगि तथा रहूगण मे निहित अछि।
गोतम रहूगण कोनो प्रसिद्ध ऋषि नहि बुझना जाइछ, सम्भव र्इ दृषद्वती तटक छलाह। आ दृषाद्वती आवासकेँ (जे सरस्ततियेक शाखा नदी छल) ऋग्वेदमे हीन दृषिटसँ देखल गेल अछि संभव कृषि उन्मुखताक कारणे तेँ एहि कथामे सरस्वती तटक आगि केर विषेष रूपेँ उल्लेख अछि। अर्थात एहि दलम दृषद्वती तटक अधिकांष ब्राह्राण छल होयत जे उपेक्षित जकाँ दल आ जकर नेतृत्व गोतम रहूगण केलनि याज्ञिक कर्मकांडक संग।
शतपथक एही कथामे अदि जे तकर बाद विदेहक पौरोहित्य लेल वषिष्ठ अर्थात वषिष्ठवंषी ब्राह्राण लोकनि पाछूसँ अयलाह। निषिचते एहि दलमे अधिकांष ब्राह्राणे हेताह आ सेहो विभिन्न वंषक।
यैह कारण थिक जे आइयो मिथिलामे वैदिक कर्मकांडक प्रधानते नहि अछि अपितु क्षत्रियक अपेक्षा ब्राह्राणक संख्या बहुत अधिक अछि आ सेहो विभिन्न कुल गोत्र केेर। मिथिलामे ब्राह्राणक संख्या बढ़बाक एकटा आरो कारण अछि।
पौराणिक अनुश्रुति अछि जे शुकदेव अपन यौवनेकालमे मिथिला आयल छलाह। अवष्ये एहु दलमे ब्राह्राणेक संख्याधिक्य रहल होयत।
जँ दाषराज्ञ युद्धक पश्चात अर्थात र्इ. पूर्व 1800-1700 र्इ.क आसपास पहिल इक्ष्वाकु दल व्यास बाटेँ चलल छल तँ दोसर दल सरस्वती तटसँ निषिचत रूपेँ र्इ.पूर्व 17म शताब्दीक आरम्भमे चलल होयत। कोसलक निर्माण तथा ओहि क्षेत्रक आर्यीकरणक पश्चात ओ मार्ग अधिक सुरक्षित भ• गेल होयत तेँ गंडकी पूर्वी तट पर आरमिभक विदेह राज्यक स्थापन र्इ. पूर्व 1500 र्र्इ. मे अवष्ये भ• गेल होयत।
अनुश्रूति अछि जे सीता पिता दोसर जनक सीरध्वज नाम छलाह। एहि प्रकारेँ ओ रामक समकालीन अर्थात र्इ. पूर्व 1500 र्इ.मे अवष्ये गíी पर छल हेताह।
महाभारतक घटनाक पश्चात उत्तर वैदिकयुग आरम्भ होइत अछि, जकर समय र्इ. पूर्व 1200-1100क बीच राखल जा सकैछ जाहि ठामसँ आर्यजीवनमे महान परिवर्तन आब• लागल। किन्तु स्वयंवर प्रथा तथा क्षत्रियकेँ हर चलेबाक प्रथा जे प्राचीनता सिद्ध करैत अछि। रामकथाकेँ प्राचीन सिद्ध करबाक लेल सीताक जन्मकथाकेँ सेहो प्रामाणिक मानल जेबाक चाही। सीताक जन्मकथामे इक्ष्वाकु वंषक पूर्व कथाकेँ दोहराओल गेल अछि जे शकुंतलाक जन्मकथा थिक।
इक्ष्वाकु माधव जखन अपन राज्य स्थापन क• रहल छलाह, तखन एहि क्षेत्रमे अनेक वन्य जातिक प्रधानता छल जे कोसलक निषादे जकाँ अर्ध विकसित छल तथा पशुपालनक सड.हि कृषिकेँ सेहो अपना रहल छल। तेँ जनककेँ कृषि प्रतीक हरो चलब• पड़ल।
कासलक पश्चाते विदेह राज्य केर स्थापना भेल होयत तकर एकटा आरो प्रमाण देल जा सकैत अछि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे कोसल दिस जे आर्यदल आयल छल से अपन पशुचारी जीवनक उत्तरार्धमे छल जकर षिकारप्रथा प्रमुख होइत अछि, जकर प्रमाण शाक्यक बुद्ध धरिमे अछि। बुद्ध पशुक प्रति अति मोह रखैत छलाह जे पशूपालनक विषेषता थिक। ओ तँ रावीतट केर घटना छल किन्तु सरस्वती तट सँ जे आर्यदल मिथिला आयल छल ओ कृषि संस्कृति ल• केँ चलल छल जकर प्रतीक थिक जनकक हर चलायब। अकाल ओहि युगमे नहि पड़ैत छल।
ब्राह्राण अपन जन्मना सिद्धान्तक कारणे बहुत कêर ओ रूढि़वादी भेल, जाहि कारणे मिथिलामे आइयो वर्ण भेद तीव्र, विषद तथा कठोर अछि किन्तु एहन रूढि़वादी जातिमे प्राचीनता बहुत सूक्ष्म रूपेँ सुरक्षित रहि जाइत अछि। मिथिलाक एकटा पाबनि थिक जूडषीतल, जाहिमे ब्राह्राण षिकार पर जाइते टा अछि र्इ ओही षिकार पशुपालन युगक स्मृतिषेष थिक।
कर्मकांडक प्रमुखताक कारणे मिथिलामे याज्ञवल्क्य केर प्रादुर्भाव भेल जे भारतीलय संस्कृतिकेँ किछु एहन वस्तु तत्व देलक जे कालांतरक हिन्दूये जीवनक लेल महत्वपूर्ण नहि भेल अपितु विष्व मानसक लेल सेहो उल्लेखनीय मानल गेल।
स्मरणीय जे जाहि जनककेँ तत्वज्ञानी मानल जाइत अछि ओ याज्ञवल्क्यक समाकालीन छलाह अर्थात सीरध्वज जनकसँ लगभग 500 सै वर्षक पश्चात र्इ. पूर्व 1000 र्इ.क आसपास कृतिजनक।
र्इ कृतिजनक मिथिलाक महान जनक भेलाह जे अपन समन्वयवादक द्वारा राजनीतिक जीवनमे वैह कार्य केलनि जे बहुत बादमे अषोक केलनि तथा बहुत बादमे अकबर कर• चाहैत छलाह।
वस्तुत: जनकक समन्वयवाद रामक मूर्तिपूजने जकाँ एकटा राजनीतिक विवषता छल। एहि कृति जनकक प्राय: जतेक समकालीन क्षत्रिय राजा, अष्वपति केकैय, प्रवाहण जैबालि, पांचाल तथा अजातषत्रु काषी छलाह, एकदिससँ सब उपनिषदक वेदान्ती ब्रह्रावादी छलाह आ तेँ यज्ञवादी कर्मकांडक विरोधीये नहि, निन्दको छलाह जे राजतंत्रक अनुकूल पड़ैत छल। एही राजतंत्र लगसँ आत्माक अमरताक बात उठल छल, जकर उपज थिक पुनर्जन्मवाद तथा कर्मफलवाद अथवा भाग्यवाद जे राजस्व कराधानक विरूद्ध किसान विद्रोहकेँ करबाक अदभुत मार्ग छल। तेँ उपनिषदीय कथामे बेर-बेर र्इ कहल गेल अछि ब्राह्राण राजा लग जाकेँ एहि तत्वक बातकेँ बुझलनि।
वस्तुत: कर्मकांडी ब्राह्राणक लेल र्इ सर्वथा अपरिचित वस्तु छल किन्तु कराधानक प्रयोजन ओकरहु छल, तखने ओकरा राजासँ दान भेटि सकैत छल आ गुरूकुल चलि सकैत दल किन्तु र्इ दोष ब्राह्रामण अपना माथ पर नहि लेब• चाहैत छल तेँ एहि कथाक जन्म भ्ेाल आ राजा सेहो प्रसन्न भ्ेालाह।एकर प्रमाण थिक स्वयं शुक्ल यजुर्वेद जकर (अंतिम) चालीसम अध्याय र्इषोपनिषदे थिक जे उपनिषदीय भावनाक मूले नहि थिक अपितु आरंभो थिक। एहीमे निष्काम कर्मक सिद्धान्तक पहिल बेर प्रतिपादल भेल अछि जे पाछू गीतामे कृष्णक मुँहसुँ कहबाओल गेल अछि।
स्मरणीय जे शुक्ल यजुर्वेदक उत्तरार्ध मिथिलामे लीखल गेल जकर प्रवक्ता याज्ञवल्क्य छलाह। एही शुक्ल यजुर्वेदक ब्राह्राण थिक शतपथ ब्राह्रामण जकर रचनाकार थिकाह याज्ञवल्क्य जाहिमे पहिलुक बेेर अवतारवादक कल्पना भेल अछि। एही शतपथक परिषिष्ट थिक वृहदारण्यक तथा बृहदारण्यक उपनिषद जाहिमे प्रथम बेर पुनर्जन्मवाद तथा कर्मफलवादक जन्म भेल अछि।
वस्तुत: उपनिषद, तत्कालीन समाजक महान आवष्यकता छल।
आर्यीकरण अपन तीव्रता पर छल, आर्य अनार्य मीलि रहल छल किन्तु अनार्यकेँ आर्यवृतमे आनिकेँ अधिकांषकेँ उत्पादक वर्गमे राखल जा रहल छल। अधिकांष शुद्र अथवा वैष्य केर हाथमे छल उत्पादन जकर उपभोग क्षत्रिय राजन्य वर्ग तथा पुरोहित एवं षिक्षक ब्राह्रामणकेँ करक छल।
तेँ ब्रह्रावादसँ जकरा अनुसारेँ सब एके ब्रह्राकेर (आत्मा) अंष थिक तथा ओही ब्रह्रामे सभक अंतिम गति अछि, एकताक भावनाकेँ बल भेटैत छल। आ एही एकीकरणक लेल शुक्ल यजुर्वेदक अठारहम अध्यायमे शतरूद्रीय प्रकरणक व्यवस्था भेल। अछि। उपनिषदीय भावना संन्यासक निवृतिमार्गक अनुकूले छल तेँ उत्पादन कर्मकेँ प्रोत्साहित करबाक लेल निष्कामकर्मक सिद्धान्त प्रतिपादित कयल गेल जाहिसँ भौतिकतामे बाधा नहि पड़ैक। एही लेल पुनर्जन्मवाद आवष्यक छल जकर प्रतिउपज थिक कर्मफलवाद जे कराधान व्यवसािक प्रति विद्रोह भावनापर अंकुषक लेल छल। कहबाक प्रयोजन नहि अछि जे सामान्यत: चिंतनक आधार भौतिकते होइत अछि जे उपनिषद सन शुद्ध दार्षनिकचिंतनक मूलमे देखल जा सकैत अछि।
एहि प्रकारेँ शुक्ल यजुर्वेदक र्इषोपनिषदक ब्रह्रावादी तत्वचिंतन एवं निष्काम कर्म तथा शतपथ ब्राह्राणक अवतारवाद आ वृहदारण्यक केर पुनर्जन्मवाद ओ कर्मफलवाद जे भारतीय चिंतनक मूलाधार बनल, मिथिलामे याज्ञवल्क्यक नेतृत्वमे रचित सम्पादित भेल जकर कारण बनल विदेहराज जनकक राजतंत्र। निर्विवाद रूपेँ उपनिषदीय चिंतन राजतंत्रक उपज थिक।
जे हो, मिथिलामे ब्राह्राण वर्गक अधिकते तथा कर्मकांडक प्रधानतेक कारणे, काषी, केकैय तथा पांचालक क्षत्रिय राजासँ भिन्न विदेहक जनककेँ ज्ञानकांड ओ कर्मकांडमे समन्वय स्थापित कर• पड़लनि जे हुनक समर्थ राजनीतिक चेतनाक परिचायक थिक आ जे हुनका महान बना देलक। यैह समन्वय पाछू गीताक कृष्णक द्वारा उपसिथत कयल गेल जे वस्तुत: भारतीय चिंतक केर विषेषता थिक कारण गीताक रचनाकाल सामान्यत: र्इ पूर्व दोसर शताब्दीसँ र्इ. पश्चात दोसर सदीक बीचक मानल जाइत अंिछ। किन्तु गीताक समन्वयमे कर्म, ज्ञानक सड.हि एकटा तेसर नीवन तत्व अछि, भकिततत्व, अपितु एकरे प्रधानता अछि जे तत्कालीन प्रयोजन छल आ जे कालांतरमे हिन्दू जीवनक प्रधान अंग बनि गेल।
एहि गीताक दार्षनिकताक जन्म भारतीय चिंतनजरम्परामे सर्वप्रथम र्इषोपनिषदेमे भ• जाइत अछि जे वस्तुत: याज्ञवल्क्यक चिंतन थिक, मिथिलाक एकटा एहन अवदान थिक जाहकारणे भारतीय जीवनमे संतुलनेटा नहि उपसिथत भेल अपितु परवर्ती भारतीय चिंतन परम्पराकेँ एकटा निषिचत ठोस मुलाधार दैत, विष्वमानसकेँ अपन उपनिषदीय चिंतन सूक्ष्मतासँ चकित क• देलक।
यैह थिक मिथिलाक इतिहासक भारतीय इतिहास लेल अनिवार्यता। वस्तुत: भकितकेँ छोडि़ जे दक्षिणक देन थिक, मिथिला कर्म आ ज्ञानक क्षेत्रमे, विषेषता: समन्वयनक दृषिटसँ, जे दान भारतीय संस्कृतिकेँ देलक ओ दान विष्वमे एथेन्सकेँ छोडि़ आर कोनो क्षेत्र नहि द• सकल।
क्हबाक प्रयोजन नहि जे भारतक प्राचीन इतिहास, राजनीतिक इतिहास नहि थिक, नहि भ• सकैत अछि। कारण अन्य देष जकाँ मात्र राजा रानी आ सेनापतिकेँ महत्व देब भारत नहि सिखलक, भारत समस्त समाजकेँ एकटा समग्रतामे देखलक तथा ओकर विकासक चिंता केलक तेँ एकर इतिहास जखन होयत तखन सांस्कृतिके इतिहास होयत विषेषत: प्रागैतिहासिक कालक, जकर उíेष्य रहत समस्त समाज आ समाजक गतिषीलता ओ परिवर्तनषीलताकेँ अति सूक्ष्मतासँ रेखांकित करब। मिथिलाक इतिहास एकटा एहने रेखांकन थिक जे किछु कालखंडक लेल भारतीय सांस्कृतिक इतिहासक शीर्षक बनि जाइत अछि।
ओ मिथिले थिक जाहि कारणे भगवान बुद्धक जन्म भेल। मिथिला महान कर्मकांडी छल जे कृष्ण यजुर्वेद जकाँ अपन कर्मकांडकेँ मिश्रिते रूपमे नहि रखलक अपितुु कर्मकांडक लेल अपन ब्राह्राणकेँ अलग क• लेलक जे थिक शतपथ जे महानतम ब्राह्राण थिक।
किन्तु जेँ ल• केँ कानो अंगरेज इतिहासकारक ध्यान एहि दिस नहि जा सकल तेँ आइ धरि भारतीय इतिहाससँ र्इ बात छूटल रहि गेल।
स्मरणीय थिक जे भूगोल इतिहासकेँ जन्म दैत अछि। कोनो क्षेत्र विषेषेक समस्या कोना चिंतन विषेषक भूमिका प्रस्तुत करैत अछि, र्इ बात भिन्न थिक जे कतिपय कारणे ओ समस्त मानवीय मुल्यबोधक चिंतन बनि जाइत अछि। आ तेँ समस्त समाज ओकरा अंगीकार क• लैत अछि।
बुद्धक चिंतनमे मानवीयता तँ छल किन्तु आचरणमे वैह प्राचीन आर्यसप्त मर्यादा (अहिंसा, ब्रह्राचार्य, आस्तेय आदि) छल तेँ जाहि देषकेँ अपन कोनो व्यापक धर्म नहि छल से तँ स्वीकार केलक, अपन देषमे नहि रहि सकल।
असलमे बुद्धक वास्तविक मूल्यांकन सेहो आइधरि नहि भ• सकल अछि जे भेल अछि से अंगरेज इतिहासकार द्वारा बनाओल लीख पर जे ओकर समस्त एषियामे शोषण करबाक लेल कहियो भेल छल।
बुद्धक (गणतंत्रक) विरोध जे सामाजिक समझौता सिद्धान्त पर आधारित अछि, राजतंत्रसँ अछि जे दैवी सिद्धान्त पर आधारित अछि जे निकटमे कोसल आ विदेहमे छल। तेँ बुद्धक मूल्यांकन बिनू मिथिलाक इतिहासक सम्भवे नहि अछि। मिथिलाक इतिहासक एकटा इहो अनिवार्यता थिक।
भगवान बुद्धक विरोध अथवा विद्रोह मगधक आजीवक केर प्रति सेहो छल जे अक्रियावादी, अराजकतावादी तथा यौनाचारी छल। आ बुद्ध छलाह कर्म द्वारा कर्मबंधनकेँ बदलि देबाक पक्षपाती। ओ क्रांतिकारी छलाह लोकभाषाक प्रयोगकर्ताक रूपमे।
मगधक इतिहास केर आँखि जरासंधसँ खुजैत अछि किन्तु जागैत अछि वस्तुत: अथवेदसँ। जरासंधक प्रामाणिकता संदिग्ध अछि किन्तु अथर्ववेदक प्रमाण इतिहासे थिक से इतिहास थिक व्रात्यकेर।
वैदिक साहित्यमे व्रात्यकेर मुख्यत: दूइटा अर्थ भेटैत अछि, एकटा तँ अनार्य तथा दोसर वर्णसंकर। अथर्ववेद (1513) मे वर्णसंकर व्रात्यक प्रति सम्मानो व्यक्त कयल गेल अछि। सम्भव थिक र्इ सम्मन ओकरा लेल व्यक्त कयल गेल हो जे दासीपुत्र होइतहँु वैदिक अर्यधर्मकेँ मानैत हो। एहन अनेक दासीपुत्र छलाह जे मंत्रद्रष्टा ऋषि तक भ• गेल छथि। किन्तु से पूर्वकालमे, लगैत अछि र्इ परम्परा इतरा दासीपुत्र, महिदास ऐत्तरेय लग अर्थात उत्तर वैदिकयुगक प्रारम्भेमे समाप्त भ• जाइत अछि। कारण, एकर बाद वर्णव्यवस्था अपन आधुनिक स्वरूपकेँ प्राप्त करबाक लेल यात्रा प्रारम्भ क• देने होयत जकर अनेक प्रमाणो भेटैत अछि।
किन्तु एहनो वर्णसंकर छल जे आर्यधमकेँ छोडि़ अपन मातृपक्षक धर्मकेँ धेने रहैत होयत। शुद्ध अनार्य तँ व्रात्य छलहे। मगध एहने व्रात्यसँ भरल छल जे वैदिक धर्मक विरूद्ध आचरण करैत छल, अथर्ववेदमे (52214) कहल गेल अछि जे हे ज्वर अहाँ अंग आ मगध चहल जाय।
ओहि समयमे लोक ज्वरसँ बहुत डरैत छल, अर्थात वैदिक आर्यकेँ मगधसँ अन्यव्रता: हेबाक कारणे अति वितृष्णा छल, से स्पष्ट अछि।
अथर्ववेदक रचना सम्पादन र्इ. पूर्व 1100 र्इ.मे अर्थात महाभारतक घटनाक बादे भेल अछि, यधपि एकर किछु मंत्रकेँ ऋग्वेदोसँ प्राचीन मानल जाइत अछि जाहिमे अनार्य अभिचार क्रिया वर्णन अछि।
पौराणिक कथाक अनुसार आनवक (अनुजन) एक शाखा तितिक्षुक नेतृत्वमे एम्हर आयल छल। दोसर कथाक अनुसार कान्यकुब्जक कुष राजाक वंषज आमूर्तरसगय आबिकेँ गया नगरक जन्म देने छल।
एहि दुनू कथासँ प्रकट होइछ जे एम्हर दुइटा आर्यवंषक दुइटा टुकड़ी आयल छल जे एहि क्षेत्रक आदिवासीक संग मीलिकेँ एकाकार भ• गेल किन्तु ओ दुनू दल आर्यीकरणक बीजारोपन अवष्ये कयने गेल तथा आर्य जीवनक प्रति आकर्षण सेहो उत्पन्न करैत गेल। एकर प्रमाण थिक एकटा अन्य पौराणिक कथा जाहिमे एहि आनवक एकटज्ञ शाखा जे पूब चम्पा (अंग) दिस गेल छल, जकर राजा बलि छल ओ आर्य तीर्घतमाक स्वागते टा नहि कयने छल अपितु अपन पत्नी सुदेष्णासँ नियोग द्वारा तीर्घतमासँ अनेक पुत्रोक प्रापित कयने छल।
महाभारतक अनुसार यादव (ऋग्वैदिक यदुकेर वंषज)क वैवाहिक सम्बन्ध पूर्वेसँ एहि क्षेत्रसँ छल जकर प्रमाण थिक जरासंध ओ कंषक सम्बन्ध।
जे हो, र्इ सबटा पौराणिक कथा मात्र एकटा विन्दु दिस केनिद्रत अछि जे किछु आर्य टुकड़ी एम्हर आयल छल जे मिश्रित तथा व्रात्य भ• गेल जकर पाछू व्रात्यष्टोम यज्ञ द्वारा अर्यीकरण भेल।
रामायणक अनुसार एम्हर धर्र्मारण्य छल जत• राक्षस रहैत छल जे आर्य विरोधी छल, जकरा नाष करबाक लेल विष्वमित्र रामसँ सहायता लेने छलाह। किन्तु इतिहासमे र्इ क्षेत्र कीकटक मानल गेल अछि। संभव थिक दुनू एक्के रहल हो। किन्तु एकर अतिरिक्त पषिचम यमुनासँ आयल किछु नाग जातिक लोक सेहो रहल हो जाहिमे किछु आरो पूब चलि गेल हो, जकर प्रमाण थिक कालांतरक षिषुनाग वंष। आधुनिक बंगालमे सेहो नाग उपाधि भेटैत अछि, आसाम तँ नाग जातिक गढ़े थिक।
सम्भव थिक एही तीनू प्रकारक अनार्यजातिसँ आर्यक किछु छोट-छोट टुकड़ीक मिश्रण भेल हो जे पाछू आर्यधमकेँ छोडि़ देने हेा, जे राजनीतिक दृषिटसँ स्वाभाविके लगैत अछि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे अनार्य बहुल क्षेत्रमे प्राय: सबठाम राजतंत्रे भेल। पूर्वोत्तर भारतक कमसँ कम कोसल, विदेह, मगध तथा चम्पामे यैह देखैत छी। शाक्य, मल्ल, कोलिय तथा वैषालीम प्राचीन आर्येक संख्या अधिक छल अथवा संख्याधिक्यक कारणे तत्क्षेत्रीय अनार्यक शीघ्र आर्यीकरण भ• गेल होयत। एतब तँ निषिचत अछि जे ओहि कालमे वन्यजन पर्ववीय क्षेत्र दिस रहब अधिक पसिन्न करैत छल जेम्हर दलदल भूमि तथा सघन वन्यप्रांतकक अभाव रहैत अछि।
स्मरणीय अछि जे ब्राहद्रथ जरासंधकेँ शूद्र कहल गेल अछि, राक्षस, कीकट अथवा अनार्य, दस्यु ओ दास नहि। एकर अर्थ थिक जे र्इ वंष विषुद्ध अनार्यक नहि अपितु वर्णसंकरक थिक जाहिमे कमसँ कम एक रक्त आर्यक अछि। आ एहनेक हाथमे राजतंत्र रहल। राजनीतिक दृषिट´े प्रजाक धर्मक पालन ओकर विविषतो भ• सकैछ जे कोसलकेँ सेहो भ्ेाल दल मूर्तिपूजनक।
मगधक र्इ वर्णसंकरक आधिक्य, भारतीय इतिहासमे एकटा महान क्रांति केलक जे इतिहासकेँ एकर देन थिक। यैह मगध जे एखनधरि भारतक सांस्कृतिक इतिहास दल तकरा राजनीतिक इतिहास बना देलक। यैह मगध पहिलुक बेर समस्त भारतकेँ हिमालयसँ कन्याकुमारी धरि एक सूत्रमे बानिहकेँ एक क• देलक। यैह मगध यातायातक तेहन विकास केलक जे देषकेँ एक दिस व्यापारिक समृद्धि देलक तँ दोसर दिस राजतंत्रीय शासनकेँ पटु व्यवस्था देलक तथा अन्य देषकेँ मानवताक धर्म देलक। मगधक राजतंत्र जे अपन वर्ण संकरतेक कारणे कहियो सुदृढ़ भेल छल, कालांतरमे भारतीय इतिहासकेँ राजनीति देलक, राजनीति विज्ञानकेँ साम्राज्यवाद देलक तथा साम्राज्यकेँ भारतवर्षक महान एकता देलक।
प्राचीन पूर्वोतर दिस आर्य प्रसार, भारतीय इतिहासकेँ राम ओ कृष्ण देलक, जनक ओ याज्ञवल्क्य देलक, महावीर ओ बुद्ध देलक तथा कौटिल्य ओ अषोक देलक, जाहिसँ स्वयं संस्कृति धन्य भेल अछि।