सभ्यताक श्रृंगार : संस्कृतिक मुस्कान
सभ्यता जाहि दिन जीवकँ मनुष्य बनौलक, संस्कृति दिनसँ ओहि मानवकँ अपन अधिकार क्षेत्रमें ल• लेलक। जँ भौतिकताक कारणे कोनो सभ्यताक जन्म होइछ तँ आधिभौतिकताक कारणे संस्कृतिक।
सभ्यता आर्थिक आयोजन थिक, संस्कृति सामाजिक प्रयोजन। सभ्यताक इतिहास भोजन व्यवस्थाक इतिहास थिक किन्तु संस्कृतिक इतिहास मानस विकासक इतिहास थिक।
कोनो सभ्यता, कोनो संस्कृतिकँ भने जन्म दैत हो, किन्तु वही संस्कृति, ओहि सभ्यताक इतिहासकँ युग-युगानतर धरि सुरक्षित रखैत अछि। आ तेँ जँ संस्कृति कोनो सभ्यताकँ इतिहास दैत अछि, तँ सभ्यता ओहि संस्कृतिकेँ दैत अछि भूगोल। कालांतरमे यैह इतिहास आ भूगोल मानवीय चिंतनक मंच बनैत अछि। एही चिंतनक मंच पर स्पष्ट होइत अछि सभ्यताक श्रृंगार तथा संस्कृतिक मुसुकान।
संस्कृति एकटा एहन बैरोमीटर थिक जाहिसँ कोनो प्राचीनतकेँ नापल जा सकैछ। दार्षनिक चिंतनक गाम्भीर्ये तथा साहितियक अभिव्यकितक सूक्ष्मते कोनो सभ्यता एवं संस्कृतिक प्राचीनताक परिचायक होइत अछि।
सभ्यता जँ कोनो संस्कृतिकेँ शरीर दैत अछि तँ साहित्य दैत अछि आत्मा तथा दर्षन दैत अछि व्यकितत्व। भारीतय सभ्यता ओ संस्कृतिक प्राचीनतम शरीरकेँ सबलता देलक अछि प्राचीनतम साहित्य तथा व्यकितत्वमें सौभ्यता देलक अछि प्राचीनतम दर्षन। भारतीय साहित्य एवं दर्षन विष्वक प्राचीनतम वैभव थिक जाहि आधार पर आइयो विष्वमानव मनकेँ बूझल जा सकैछ।
सभ्यता केर विकासमे राज (राजनीति) सबदिन मावन समाजकेँ तोड़ैत आयल अछि तथा संस्कृति (साहित्य) ओकरा जोड़ैत आयल अछि। साहित्य, मानवताकेँ अमृत दैत आयल अछि आ राजनीति, विष।
एहने अमुत आ विषक संधान इतिहासक लक्ष्य थिक जाहिसँ अतीतक आधार पर वर्तमान एवं भविष्यक मानवताकेँ उत्कर्ष देखा सकय, समाजकेँ मार्गदर्षन द• सकय, सुख आ शांतिक दिषा संकेत क• सकय। र्इ इतिहास लेखनक एकटा दायित्व थिक।
आधुनिक इतिहास लेखनक कर्तव्य मात्र राजा, सामंत आ युद्धक विवरणे प्रस्तुत करब नहि थिक अपितु समाज विकासक वैज्ञानिक आकलनी करब थिक। आ तेँ सभ्यता संस्कृति विवेचन इतिहास लेखनक आत्मा बनि जाइत अछि।
सभ्यता ओ संस्कृति एकटा एहन शब्द युग्म थिक जाहि पर अनेक विचार भेल अछि, अनेक परिभाषा बनल अछि। दैनिक जीवनमे एकर प्रयोग विस्तृत अर्थमे होइत अछि, हम ककरहु सुसभ्य ओ सुसंस्कृत कहि दैत छी। किन्तु विचार शास्त्रमे एकर प्रयोग रूढ़ अर्थमे, संकुचित अर्थमे होइत अछि।
हमरा बुझने सभ्यता ओ महल थिक जाहिमे संस्कृति निवास करैत अछि, दुनू सापेक्षिक अछि, अन्योन्याश्रित अछि। सभ्यता जँ शरीर थिक तँ संस्कृति आत्मा, सभ्यता बाहय उपादान थिक, संस्कृति आभ्यन्तरिक तत्व। तेँ सभ्यतेक सरोवरमे संस्कृतिक कमल प्रस्फुटित होइत अछि।
बहुत दिन धरि दुनूकेँ एक्के मानल जाइत रहल अछि। प्रसिद्ध नरविज्ञानी टाइलर (प्रिमीटिव कल्चर) तथा हर्सकोविटस (मैन एंड हिज वक्र्स) दुनूकेँ पर्यायवाची मानने छथि। ए.जे. टवायनबी (ए स्टडी आफ हिस्ट्रीमे) संस्कृति शब्दक व्यवहारे नहि केलनि मात्र सभ्यता शब्दक व्यवहार कयने छथि। ओ सभ्यताक विकास युगक प्रष्न ओ ओकर उत्तरमे मानैत छथि जे भौतिक थिक।
किन्तु ओसवाल्ड स्पेंगलर (सोषल फिलासफीज आफ क्राइसिसमे) दुनूमे भेद मानैत, सभ्यताकेँ संस्कृतिक अनिवार्य परिणति मानैत छथि। ओ सभ्यताकेँ कोनो संस्कृतिक वाहय अवस्थकेँ मानैत छथि। हुमायुँ कबीर (आवर हेरीटेजमे) संस्कृतिकेँ सभ्यताक उपलबिध मानैत छथिं हमरा बुझने कबीर साहेब एहि मान्यताममे, सत्यक अधिक निकट छथि। वस्तुत: सभ्यताक फुलडालीमे संस्कृति फूल थिक। सभ्यताक मुखमंडल पर संस्कृति चानन थिक। सभ्यताक पंचपात्रमें संस्कृति अध्र्य थिक जाहिसँ महाकालक पूजा होइत आबि रहल अछि।
कार्ल माक्र्स संस्कृतिकेँ वर्गक वस्त1 मानैत छथि। ओ उत्पादन पद्धति तथा ओहिसँ उत्पन्न सामाजिक सम्बन्धकेँ संस्कृतिक आधारषिला मानैत छथि, तेँ उत्पादन साधन पर जाहि वर्गक आधिपत्य रहत ओकरे आदर्ष, संस्कृतिक विषिष्टता बनत तथा मान्य होयत।
हमरा बुझने एक तँ माक्र्स संस्कृति शब्दकेँ बहुत संकुचित करैत छथि आ दुनूकेँ एक्के मानबाक दिषामे अग्रसर भ• जाइत छथि। संस्कृतिक कानो सम्बन्ध भतिकतासँ नहि अछि आ माक्र्सक चिंतन भौतिकतासँ आगू नहि बढि़ पबैत अछि। मनुष्यकेँ पेटे टा नहि अछि, माथो अछि, हदयो अछि, चिंतनमे अधिकठाम माक्र्स एहि बातकेँ बिसरि जाइत छथि।
निषिचत रूपेँ सत्य एकटा एहन हारा थिक जाहिमे अनेक कोण होइत अछि, ओकर अनेक प्रकाष होइत अछि। माक्र्स मात्र एकटा प्रकाष किरणकेँ पकडि़ पबैत छथि आ ओकरहि सर्वांगीन मानि लैत छथि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे सभ्यता आ संस्कृति अनेक मानसकेँ उद्वेलित केलक अछि तथा अनेक उदगार प्रकट भेल अछि, सभक विवरण प्रस्तुत करब निष्प्रयोजन अछि।
हमरा बुझने मनुष्यक (विकासक) मौलिक आवष्यकता भोजन, आवास आ वस्त्र। एहिमे भोजन आ आवासक सम्बंध सभ्यतासँ अछि। सब देषक मानव अपन भोजन प्रापितक लेल अथवा भौतिक जीवनक सामान्य सुविधाक लेल समान रूपेँ, प्रकृतिसँ संघर्ष केलक आ प्रकृति पर विजय प्राप्त करैत भोजनक संग्रह कर• लागल- र्इ छल सभ्यताक संग्राहक संस्कृति जे समान रूपेँ सब देषमे घटित भेल। एही कालखंउमे आदिम व्यकितवादक विकास एकटा मानव समाजक रूपमे भ• रहल छल, आसीमित समूहवादमे भ• रहल छल। र्इ बात पषुओमे अछि, समस्त पशु अपन-अपन जाति रूपमे रहैत अछि, र्इ अति प्राकृतिक थिक। एषिया आ अफि्रकामे र्इ सिथति र्इ. पूर्व 30 हजार वर्ष आबि गेल छल जे प्राय: 10 हजार वर्ष र्इ. पूर्व धरि रहल।
यधपि मानव सभ्यता र्इ. पूर्व 15 हजार पर्वहिसँ, आगिक आविष्कारहिसँ, उत्पादक संस्कृतिमे प्रवेष कर• लागि गेल छल जे अपन पूर्णताकेँ प्राप्त केलक र्इ. पूर्व 10 हजार वर्षक पष्चाते जखन ओ पषुपालन आ गृइ निर्माणक सड.हि ग्रामवास कर• लागल। एषियामे 8 हजार वर्ष र्इ0 पूर्व तथा अफि्रकामे 6 हजार वर्ष र्इ. पूर्व सभ्यताक सूर्योदय भेल, अंधकार युग समाप्त भेल जे योरोपमे 3 हजार वर्ष र्इ. पूर्व भेल।
एहि समस्त कालखंडकेँ हाब्स आ लाक असभ्यता ओ बर्बरताक काल कहैत छथि। योरोपक पथराह भूमि, अफि्रकाक अत्यधिक वर्षाक कारणे सघनतम वन्य प्रांतर तथा पषिचम एषियाक सीमित भूमि सम्पदाक कारणे हाब्स, लाक केर विचार तर्कसंगत लगैत अछि। किन्तु भारतक लेल रूसो अधिक संगत अछि। एहिठामक समषीतोष्ण जलवायु तथा भूमि ओ वन्यपषुक अधिकता सह असितत्व एवं सहिष्णुतेेकेँ जन्म देलक जकर प्रमाण थिक निग्रोइटसँ ल• केँ हूण धरिक आगमन आ भारतमे शानितपूर्वक ओकर पाचन।
वस्तुत: मानव सभ्यता र्इ. पूर्व 5 हजार वर्षक पश्चाते, नदीघाटी सभ्यता कालमे व्यवसिथत रूपेँ उत्पादक संस्कृतिमे प्रवेष करैत अछि जकर बाद ओ वस्त्र धारण करैत अछि। एही कालखंडसँ जीवनमे षिल्प, समाजमे व्यवस्था तथा मानसमे वैचारिकताक जन्म होइत अछि, सभ्यताक क्षेत्र समाप्त होइत अछि आ संस्कृतिक विकासयात्रा प्रारम्भ होइत र्अछि। र्इ विकासयात्रा भिन्न-भिन्न भूखंडक भिन्न-भिन्न प्रकारेँ प्रारम्भ होइत र्अछि जकर पाथेय बनैत अछि भूखंड तथा भूखंडक जलवायु। एही जलवायुसँ बनैत अछि आचार तथा विचार जे कोनो संस्कृतिक अपन स्वभाव थिक।
हमरा बुझने सभ्यता शब्दक जन्म भारतमे ऋगवैदिक सभासँ भेल अछि जकर सदस्यकेँ सभ्य कहल जाइत छल, ओहीसँ भेल सभ्यता। आ सभ्यताक विषेष चिहनकेँ जे परम्परा आधार पर निर्मित होइत अछि वैह थिक संस्कार, ओहीसँ भेल अछि संस्कृति।
आ तेँ हमरा बुझने समस्त विष्वकेर मानव सभ्यता एक थिक किन्तु संस्कृति अनेक। सभ्यताक सम्बन्ध प्रकृतिक संघर्षसँ अछि तथा संस्कृति सम्बन्ध अछि विषेष सिथति- परिसिथतिमे पड़ल मानव मनसँ जे विभिन्न परम्पराक आधार पर भेल अछि, विभिन्न भौगोलिक-ऐतिहासिक आयोजने-प्रयोजने भेल अछि।
एहि प्रकारेँ सभ्यता जीवन दैत अछि आ संस्कृति दैत अछि जीवनक सौंदर्य। एही सभ्यता संस्कृतिसँ जीवन व्यवसिथत होइत अछि, आनन्दमय होइत अछि। इतिहासक दृषिट एकरे संधानमे लागल रहैत अछि आ भविष्यक लेल वर्तमानक हाथमे अतीतकेँ दैत अछि। संस्कृतिक लक्ष्य जीवनकेँ महाने बनायब थिक।
सृषिट तत्वे जकाँ संस्कृति परिवर्तनषील अछि। आ र्इ परिवर्तन अबैत अछि, परिवर्तित भौगोलिकतासँ, ऐतिहासिक प्रयोजनसँ तथा दुइ संस्कृतिक संघर्ष तथा आदान-प्रदानसँ। क्रीट आ ग्रीसक संस्कृति अपन रूपे बदलिकेँ योरोप जा सकल। कृषि विकास भेल कि विवाह प्रथा बद्धमूल भ• गेल। हिन्दू संस्कृतिमे अनार्यक आचार अछि आर्यक विचार अछि जे दुनूक संघर्ष एवं सामंजस्यक प्रतिफलन थिक।
भारतीय संस्कृतिक विषेषता
भारतीय संस्कृतिक प्राथमिक विषेषता थिक एकर प्राचीनता तथा परम्पराक अविचिछन्नता।
र्इ तथ्य आब सर्वमान्य भ• गेल अछि जे चारि-पाँच लाख वर्ष पूर्व भारतीय भूखंड पर मानवसम प्राणीक असितत्व छल जकर विकास आधुनिक मानवक रूपमे 50 हजार वर्ष पूर्वे भ• गेल आ जे 30 हजार वर्ष पूर्व धरती पर, खोहमे रह• लागल तथा 10 हजार वर्ष पूर्वेसँ ओकर विकसित सभ्यता प्रकट होम• लागल। जकर प्रमाण थिक पूर्ण विकसित द्रविड़ सभ्यता। एहि सभ्यताक अपन एकटा विषेष संस्कृति छल जकर संघर्ष आर्य संस्कृतिसँ भेल छल तथा जे आइयो अपन पूर्ण वर्चस्वक संग हिन्दू संस्कृतिमे वर्तमान अछि। यैह द्रविड़ संस्कृति मिस्रकेँ वस्त्र देलक तथा मेसोपोटामियाकेँ व्यापार तथा र्इरानकेँ कृषि सिखौलक जे सुमेरियाक पौराणिक कथा प्रकट करैत अछि।
एहि प्रकारेँ कहबाक प्रयोजन नहि जे भारतीय संस्कृति विष्वक प्राचीनतम संस्कृति थिक विष्वकेँ प्रथम-प्रथम बौद्धिक क्षेत्रमे दार्षनिकता देलक, धर्मक क्षेत्रमे एकेष्वरवाद देलक जे सर्वप्रथम ऋग्वेदमे सहस्रषीर्षाक रूपमे प्रकट भेल जे कालांतरमे (पूर्व सम्बन्धक कारणे) जरथुष्ट्र ग्रहण केलक जाहिसँ हिब्रूमे गेल आ हिब्रूसँ योरोप गोल। भारतीय संस्कृति प्रथम-प्रथम गणित, शून्य एवं दषमलव प्रणालीक आविष्कार केलक जे अरब होइत (जत• आइयो गणितकेँ हिन्दसा कहल जाइछ) योरोप गेल जे आधुनिक विज्ञानक कारण बनल। भारत, विष्वकेँ चिकित्सा (पशुओ चिकित्सा) शास्त्रे टा नहि देलक, ज्योतिष, बीजगणित सड.हि, व्यावहारिक जीवन लेल चाउर, कपास, कुसियार तथा मसालाक सड.हि खेलेबाक लेल शतरंजो देलक।
वस्तुत: भारत विष्वकेँ आनन्दपूर्वक जीवन बितेबाक लेल प्रवृत्ति मार्ग देलक, आषावादी दृषिटकोण देलक, र्इ निराषा तथा भाग्यवाद तेँ परतर युगक वस्तु थिक, बुद्धक बादक वस्तु थिक।
भारतीय संस्कृतिक एकटा प्रधान तत्व थिक संष्लेषण आ सामंजस्य जे एकर विविधतासँ प्रकट होइत अछि। जँ आधुनिक कुतिसत रानीति बाधा नहि उपसिथत करय आ सहअसितत्व ओ सहिष्णुता जे भारतीयताक मूल थिक, सबकेँ मान्य होइक तँ एसगर भारत विष्वमे एक विष्व संस्कृतिक निर्माण क• सकैत अछि।
भारतीय संस्कृतिक दोसर विषेषता थिक वर्णाश्रम धर्म जे आधुनिक उत्पादन केर श्रम विभाजनक आदिम रूप थिक आ तत्कालीन जीवन, समाज तथा धर्मक अत्यन्त वैज्ञानिक एवं व्यवसिथत व्यवस्था थिक।
भारतीय संस्कृतिक अन्य विषेषता थिक एकर दार्षनिकता, आध्यातिमकता तथा मानवीयता जे आतिथ्य सेवा तथा सर्वे भवन्तु सुखिन: सँ प्रकट होइत र्अछि। एकर चतुर्वर्ग-धर्म, अर्थ, काम आ मोक्ष- एहन वैज्ञानिक विभाजन अछि जे जीवन आ समाजकेँ एकटा संतुलने टा नहि दैत अछि अपितु इहलोक आ परलोकक लेल सिद्ध मार्गकेँ उन्मुक्त क• दैत अछि।
भारतीय संस्कृतिक अन्यतम वस्तु थिक भाषा, साहित्य, लिपि, संगीत तथा कला। भारतीय साहित्य अपन प्राचीनते टा सँ नहि अपितु उदात्त भावक कारणे विष्वक लेल अनुकरणीय बनल रहल अछि। अन्य कलामे सेहो भारत विकसित रहल अछि जकर इतिहास बहुत प्राचीन भ• जाइत अछि।
भारत विष्वक लघु थिक। जे विष्वमे नहि अछि भारतोमे नहि अछि। वस्तुत: अपन संस्कृतिमे, भारतात्मा विष्वात्मा थिक।
भारतीय संस्कृति सूर्य जकाँ प्राचीन अछि, सोम जकाँ समन्वयवादी अछि, वायु जकाँ समदर्षी अछि, जल जकाँ अभियोजनषील अछि, आकाष जकाँ महान अछि तथा धरती जका सहिष्णु अछि।
वस्तुत: भारत अदभूत अछि एहि लेल जे जतेक वस्तु, सिथति तथा परिसिथति समस्त विष्व भरिमे अछि-से सबटा भारतमे एकठाम अछि। अदभूत अछि एहि लेल जे समस्त विष्व अपन प्राचीनता तथा पूर्वजकेँ विसरि गेल, भारत आइयो, हजारो वर्षक पूर्वक संस्कृतिकेँ अपन कानमे, अपन आखिमे राखने अछि। विष्व भरिमे चीन आ भारते टा एहन देष अछि जे अपन प्राचीन परम्पराकेँ सुरक्षित रखने अछि।