भारतीय इतिहासक किछु तिथि संकेत
भारतीय इतिहासक काल विभाजन एहि प्रकारेँ अधिक समीचीन लगैत अछि जकर विरोध सम्भवत: रूढि़वादी इतिहासकार क• सकैत अछि।
प्रागैतिहासिककाल : र्इ. पूर्व 8000 र्इ. पूर्व 3500 धरि।
प्राचीनकाल : र्इ. पूर्व 3500 सँ।
(क) सैन्धव सभ्यताकाल : र्इ. पू. 3500 सँ प्रारम्भ।
(ख) वैदिक सभ्यताकाल : र्इ. पू. 2500 सँ प्रारंभ।
आदिकाल : र्इ. पूर्व 500 सँ 500 र्इ. धरि।
मध्यकाल : 500 र्इ. सँ प्रारंभ।
आधुनिककाल : 1700 र्इ. सँ अधावधि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे समस्त प्राचीन भारतीय इतिहासमे किछु तिथि विन्दू जतबे महत्वपूर्ण अछि, ओ ततबे विवादास्पद सेहो अछि, जाहिमे मुख्य अछि आर्यक आगमन, ऋग्वेदक रचना तिथि, महाभारतक घटनाकाल एवं रचना काल आदि जे आइयो उचित निर्णयक प्रतीक्षामे अछि।
आर्य आगमन एवं ऋग्वेदक रचनाबिन्दू सर्वाधिक विवादास्पदे नहि रहल अपितु, कालावधिक अंतरो महान अछि। ऋग्वेदिक तिथिविन्दू तिलक केर 4500 र्इ. पूर्व सँ ल• केँ मैक्समूलरक 1500 र्इ. पूर्वक बीचमे डोलैत रहल। 1907 र्इ. क (आधुनिक तुर्कीक) बोगाजकोइक उत्खननक पश्चात जाहिमे इन्द्र मित्र वरूणक उल्लेख भेटि गेल जाहिसँ ओ स्वयं अपन तिथिविन्दु 1200 केँ पूर्व 1500 वर्ष ल• गेलाह, कारण बोगाजकोइक ओ संधिलेख र्इ. पूर्व 1400 र्इ. पूर्वक छल। आ कल्पना कयल गेल जे भारतीय आर्य पुन: तुर्की दिस घुमल तेँ भारतीय इन्द्र-मित्र वरूण तुर्की पहुँचल। प्राय: यैह मान्यता मान्य रहल। एहि कल्पनाकेँ ततेक बेर दोहराओल गेल जे पाछू सत्यक प्र्रतिष्ठा प्राप्त क• गेल।
कहबाक प्रयोजन नहि जे मैक्समूलरक अवधारणा शुद्धत: कल्पना पर आधारित छल, कोनो पुरातातिवक साक्ष्य पर नहि। समस्त वैदिक साहित्यकेँ सूत्र साहित्य, उपनिषद साहित्य आ ब्राह्राण साहित्यकेँ बुद्धसँ पूूर्व मानि जे थिकहो, ऋग्वेदक काल 1200 र्इ. पूर्व मानल गेल छल। एकर पुषिट एहू तथ्यसँ कयल गेल जे र्इ. पूर्व 2000 वर्ष, मध्य एषियामे भूकम्प भेल छल जकर बादे विभिन्न आर्यदल विभिन्न दिषामे चलल आ भारतीय आर्य 1800 वर्ष र्इ. पूर्व र्इरान तथा 1500 र्इ. पूर्वमे भारत पहुँचल।
किन्तु पाछू स्वयं मैक्समूलर अपन मतक खंडन केलनि।
असलमे, एहि कार्यक लेल, पुरातातिवक साक्ष्यक अभावमे कल्पना आवष्यके छल। किन्तु से साधार एवं समीचीन होमक चाही जकर घोर अभाव मैक्समूलरक मतमे अछि।
वस्तुत: एकर निर्णय ऋग्वेदक अंत:साक्ष्य तथा अन्य साहिव्यक ठोस आधार पर कर• पड़त तखनहि एहि प्रष्न सभक उत्तर भेटि सकैछ।
भूकम्प बला तथ्य अर्धसत्य थिक। अपन मूल अभिजनसँ लगभग र्इ. पूर्व 3500 वर्षक आसपास सर्वप्रथम एकटा बृहत आर्यदल कासिपयन सागरक पूब होइत दक्षिण दिस चलल छल, जाहिसँ हित्ती, मित्तनी, हुर्री, कस्साइट तथा इंडो र्इरानीक विभिन्न आर्यदलक निर्माण कालांतरमे भेल। आ तेँ र्इ. पूर्व 3100 वर्षक दजला फरातक ओ महाबढि़, जाहिमे अनक नगर भासि गल छल, केर स्मृति महाप्लावनक रूपमे (वैदिक साहित्य) शतपथ ब्राह्राणमे सुरक्षित अछि।
श्रोचक तथ्य र्इ अछि जे सुमेरियाक पौराणिक कथामे महाप्लावनसँ नाह द्वारा मात्र राजा जियसूद्र बचैत अछि, बाइबिलमे ओहिना नाहसँ नूह बचैत अछि तथा शतपथ ब्राह्राणमे नाहेसँ मात्र मनु बचैत अछि। र्इ साम्य एहि तथ्य दिस संकेत करैत अछि जे एहि घटनाकेँ निकटसँ देखल ओ सुनल गेल अछि। बाइबिलक रचनाकार हिब्रू मेसोपोटामियाक (दजला फरातक) पषिचमी तट पर छल आ र्इ आर्यदल पूर्वी तट पर ओहि समय धरि अवष्ये छल। पूर्वी तटक आर्य भने प्रत्यक्षत: प्रभावित नहि भेल हो किन्तु निकटक एहन महान दुर्घटना अवष्ये आतंक उपसिथत कयने होयत। आ तेँ ओकर स्मृति भारतीय आर्यमे बनल रहल जे शतपथमे प्रकट भेल। अवष्य र्इ लौकिक परम्परामे रहल होयत ओहिना, जहिना हिब्रू जनम रहल, कारण ओल्ड टेस्टामेन्टक रचना केर कालखंड प्राय: वैह थिक जे शतपथ ब्राह्राएरक थिक अर्थात र्इ. पूर्व 1000 वर्षक आसपास। ऋग्वेद अवेस्ता तथा ओल्ड टेस्टामेन्ट एक समयक एक व्यकितक रचना नहि थिक।
सम्भव थिक जे ओहि मूलअभिजनमे बचल शेष आर्यभाषाभाषी पुन: संख्याधिक्यक कारणे विभिन्न दिषामे चलल होयत जकर प्रमाण थिक डोरियन आ एकियन आर्यदल जे यूनानक इतिहासमे र्इ. पूर्व 1500 आसपास प्रकट होइत अछि।
हमरा बुझने एहि भूकत्पकेँ मूल अभिजनसँ आर्य निष्क्रमणक सम्बन्ध जोड़ब अर्धसत्य थिक।
दोसर, दूइये से वर्षमे (र्इ. पूर्व 2000 वर्षक चलल) इंडो र्इरानी दल लगभग सात-आठ सै मीलक कासिपयन सागरक दूरी तय करैत र्इरान पहुँचल जखन कि ओहि समयमे प्षुचारणक क्रममे प्रसार गति अति मंथर होइत छल आ लक्ष्यहीन अपरिचित यात्रामे सेहो गति मंथर होइते अछि, असम्भव लगैत अछि। शेष तीन सै वर्षक अभ्यन्तरे इंडो र्इरानी सौमनस्यपूर्वक रहल जाहि कारणे इन्द्र वरूणक उपाधि व्यागल गेल, आ पुन: भारतक दूरी तय करैत 1500 र्इ. पूर्वमे भारत पहुँचि गेल, युकितसंगत नहि लगैत अछि।
आब तँ प्राय: र्इ निषिचत भ• गेल अछि जे भारतीय आर्य दल र्इ. पूर्व 2000 वर्षक आसपास भारत पहुँचि गेल छल जकर प्रमाण सुवास्तु तटक उत्खनन सेहो प्रस्तुत करैत अछि जामिे धूसर मृदभांड भेटल अछि।
डा. विंटरनित्ज साहसपूर्वक ऋग्वेदक तिथिविन्दुकेँ र्इ. पूर्व 2500 वर्ष ल• गेल छलाह। र्इ मत सत्यक मात्र निकट अछि, सत्य नहि।
ऋग्वेदक रचनाक आरम्भविन्दू, सम्भव र्इ. पूर्व 3000-3200 वर्षक आसपास होमक चाही जखन अपन मूल अभिजनसँ दक्षिणी आर्यदल चलिकेँ र्इरानक उत्तरी तथा कासिपयन दक्षिणी छोरक आसपास पहुँचल होयत। अवेस्ताक ऐर्यन वेइजो नामक स्थानक सम्बन्धमे विवाद अछि ओ स्थान एहीक निकट होमक चाही जकरा र्इरानक वेनिददादमे आर्य कमूल अभिजन कहल गेल अछि। सम्भव समिमलित दक्षिणी आर्यदल बहुत दिन धरि एहीठाम (अर्थात कासिपयन दक्षिणी एवं र्इरानक उत्तरी छोर पर) रहि गेल हों तैं एहि दूनू आर्यदलमे रचना परम्पराक प्राचीनता अछि, एकमे ऋग्वेद तथा दोसरमे अवेस्ता।
ऋग्वेदमे (प्राय: धोखासँ) यमयमीक सम्वाद संकलित अछि जाहिम यमी बहीनि, भाय यमसँ रति दानक याचना करैत अछि जकरा भाय यम अस्वीकार क• दैत अछि। एहिसँ दुइ बातक संकेत भेटैत अछि।
सम्भव, र्इ. पूर्व 3500 वर्षसँ पूर्व, मूल आर्यअभिजनमे एहन परम्परा रहल हो जकर प्रमाण योरापमे भेटैत अछि, किन्तु एहि समयक आसपास जे दक्षिणी आर्य चलल से एहि परम्पराकेँ छोडि़ देलक। सामान्यत: आर्यभाषाभाषीमे र्इ परम्परा 3500 र्इ. पूर्वक पश्चात नहि रहल। तेँ यम, यमीक प्रस्तावकेँ अस्वीकार क• दैत अछि।
र्इ. पूर्व 3500 वर्षक आसपास अपन मूल अभिजनसँ चलल दक्षिणी आर्य, एहि चारि सै वर्षमे प्राय: 700 मील चलिकेँ 3100 र्इ. पूर्वक आसपास र्इरान पहुँचि गेल होयत तखने ओकरा महाप्लावनक अनुभव भेलैक।
कहबाक प्रयोजन नहि जे ओहि समयमे आर्य जीवन पशुपालन युगमे छल जखन षिकार मुख्य आजीविका होइत अछि। आ एहन समयमे, एहन सिथतिमे, संख्याधिक्य भेला पर निष्क्रमण वहिर्गमन होइत अछि।
गीतरचना सम्भव पहिनहुँ होइत हो, किन्तु र्इ. पूर्व 3000-3200 वर्षक आसपाससँ र्इरान कालमे रचनापरम्परा अवष्य तीव्र भेल होयत तथा इन्द्र, मित्र, वरूण, नासत्य, वैष्वानर आदि देवता अपन दृढ़ रूपमे असितत्वमे आबि गेल होयत जकर प्रमाण थिक जे एही देवताकेँ ल• क• हित्ती मित्तनी दल र्इ. पूर्व 2800 के आसपास पुन: कासिपयन सागरक पषिचमी तट होइत उत्तर दिषामे चलल जे 2500 र्इ. पूर्वक आसपास (आधुनिक) तुर्की प्रवेष केलक। मित्तनी तँ दक्षिणे रहल किन्तु हित्ती उत्तरी तुर्की धरि गेल। एहि दुनू दलकेँ अपन-अपन क्षेत्रमे पूर्व आदिवासीसँ प्राय: हजार वर्ष धरि संघर्ष कर• पड़ल। पाछू कालांतरमे मिश्रित भ• गेल किन्तु आर्य देवताक स्मृति रहिये गेल। तेँ जखन हित्ती ओ मित्तनीक अलग-अलग राज्य स्थापन भेल तँ परस्पर युद्ध होमय लागल जकर प्रमाण थिक बोगाजकोइक आ संधिलेख जे र्इ. पूर्व 1400 वर्षक थिक जाहिमे इन्द्र, मित्री, वरूणक उल्लेख साक्षीरूपमे भेल अछि तथा जे हित्ती ओ मित्तनीक बीचक संधि थिक।
हित्ती मित्तीक एही निष्क्रमण कालमे सम्भव कासिपयन सागरक पषिचम, अरब दिससँ आयल अकाडियनसँ सम्पर्क भेल जाहिसँ असुर नामक एकटा मिश्रित जातिक जन्म (हिब्रुये जकाँ) भेल। सम्भव र्इ घटना कासिपयन सागरक ठीक मध्य पषिचममे उर्मियाँ झील ओ टारस पर्वतक आसपास भेल होयत, कारण पाछू यैह क्षेत्र असुर जातिक भेल जाहिमे जरथुस्ट्र भेल।
अकाडियन घुमक्कड़ जाति छल जे पाछू दजला पर क• केँ बेबिलोनियामे, सुमेरी सभ्यताकेँ नष्ट करैत, राज्य कर• लागल जकर प्रसिद्ध राजा भेल सारगन (र्इ. पूर्व 2700 अथवा 2400 वर्ष) सुलगी तथा हम्मूरावी (र्इ. पूर्व 2100 वर्ष) जे प्राय: विष्वक प्रथम कानूनग्रंथक संग्रहकत्र्ता थिक जे माटिक तख्तीपर कीलाक्षरमे अछि।
एही अकाडियन राजाक भयसँ, जे बहुत प्रतापी भेल, असुर, र्इरान दिस ससरि आयल जे सम्भव र्इ. पूर्व 2500-2600 वर्षक आसपासक घटना थिक। किछु दिन धरि तँ इंडो र्इरानी दलसँ नीक सम्बंध रहल जाहि कारणे असुर उपाधि ग्राहय भेल किन्तु कालांतरमे मतभेद आरम्भ भेल आ देवासुर संग्राम घटित भेल जाहिमे असुर आ पार्षव तथा मद्र (मिडस) एक दिस भेल तथा भारत दिस चल• बला आर्य एक दिस। एहि युद्धमे भारतीय आर्यक विजय भेल किन्तु तकर बाद भारतीय दल पूब मुहेँ चलि देलक। एहि समय धरि भारतीय आर्य अपन देवतेक नामे राजा अथवा सेनापतिक नामकरण कर• लागि गेल छल, तेँ र्इ युद्ध इन्द्रक नेतृत्वमे लड़ल गेल। तेँ अवेस्तामें इन्द्र त्याज्य भेल। तेँ असुर शब्दक अर्थ बदलल, र्इरानमे असुर भेल देव (अहुर मज्दा) किन्तु भारतीय आर्यमे असुर भेल राक्षस ज अर्थ रहिये गेल।
जैं ल• क• इडो र्इरानी दल बहुत दिन धीरे संगसंग रहल तैं दुनूक भाषा प्राय: एके रहल जकर प्रमाण थिक ऋग्वेद तथा अवेस्ता। एही कालखंडमें अर्थात 300 र्इ. पूर्व आसपास पूर्वक गान परम्पार, जे सम्भव मूल अभिजनेक आसपास आरम्भ भेल होयतख् यज्ञसँ सम्बद्ध भ• गेल।
मूल अभिजनमे आगि आ गीत दुनू भने रहल हो किन्तु दुनूमे सम्बन्ध नहि छल। यज्ञक तथा अगिनक पूजा आरम्भ नहि भेल दल, से आरम्भ भेल र्इरानमे, सेहो 3000 र्इ. पूर्वसैं ल• केँ 2500 र्इ. पर्वक बीच। तेँ र्इरानमे कुंड बनाकेँ अगिनक पूजा प्रथा चलल। यैह प्रथा भारतीयो आर्यक सड.े चलल आ यज्ञवाद प्रारम्भ भेल तथा गीत बनल मंत्र एवं मंत्रकेँ भेटल कंठ परम्परा। यैह कंठ परम्परा अवेस्तोकेँ भेटल जकर सम्पादन र्इ. पूर्व छठम शताब्दीक आसपास भेल आ यैहह श्रुति परम्परा ऋग्ंवेदोकेँ भेटल जकर सम्पादन महाभारत घटनाकालमे भेल। स्मरणीय जे बोगाजकोइलेखमे 'अगिन' उल्लेख नहि अछि। अगिन आधान परवत्ती थिक।
र्इरान कालधरि अर्थात र्इत्र पूर्व 2500 वर्षसँ पूर्व, मंत्रमे रचनाकारक (ऋषिक) नामक परम्परा नहि छल, यैह प्रथा अवेस्तोम अछि। तेँ वेदकेँ (ऋग्वेदकेँ) कहल गेल 'अपौरूषेय जेँ ल• केँ र्इ. पूर्व तीनो हजार वर्षसँ गीतरचनाक परम्परा छल तेँ कहल गेल 'अनादिआ अगिन आधान द्वारा यज्ञसेँ सम्बद्ध भेल तेँ भेल 'पवित्र'।
मंत्रकेँ भेटी गेल कंठ जे पिता-पुत्र अथवा गुरू-षिष्य परम्परा द्वारा सुनिकेँ स्मरण राखल गेल, तेँ बनल श्रुति।
र्इ. पूर्व 2500 वर्षक पश्चात अर्थात जखन भारतीय आर्य हेलमन्द (अफगानिस्तान)क तटक आसपास छल ताधरि देवासुर संग्रामक कारणे बहुत रास पूर्वक गान लुप्त भ• गेल छल। यैह कारण थिक जे महाभाष्य एक्कैसटा ऋग्वेदक शाखाक उल्लेख करैत अछि जाहिन सम्प्रति एकटा शाकल शाखा प्राप्त अछि। निष्चये, हेलमन्दक पश्चात मंत्ररचना परम्परा तीव्र भेल होयत कारण ताधरि भारतीय यज्ञवादक जन्म भ• गेल छल आ गान, मंत्रक गरिमा प्राप्त क• गेल छल जे सुवास्तु तटक बाद तीव्रतर भेल आ (सुवास्तु तटक बाद मंत्रमे ऋषि एवं देवक नामो रहय लागल) जे सरस्वती तट धरि तीव्रतम भेल। किन्तु यमुना तटक सम्पादक कालमे, एहू बीचक बहुत मंत्र लुप्त भ• गेल अथवा सम्पादित नहि कयल जा सकल। मंत्र लोपक भावना अवष्य समाजमे रहल होयत तेँ र्इ. पूर्व दोसर शताब्दीक महाभाष्य एक्कैस शाखाक उल्लेख करैत अछि।
र्इरानसेँ हेलमन्द धरि (ता आधुनिक भौगोलिक सीमाक जन्म नहि भेल छल) मंत्र स्मरण भने आर्यक सामूहिक प्रवृति रहल हो किन्तु तकर बादेसँ स्मृति कर्म वर्गीय भ• गेल होयत। कारण, एकर बाद हेलमनद तटक आसपासक आदिवासी अनार्य जातिसँ संघर्ष करैत बढ़• पड़ल होयत तेँ प्रसार गतियों मन्द भेल तथा अधिकांषकेँ युद्धोमे संलग्न रह• पड़ैत होयत।
सीमित रूपमे एही समयसँ समाज वर्ग विभाजन दिस बढ़ल। यैह कारण अछि जे डा. ए. एल वैषम भारतीय आर्यमे अति प्राचीने कालसँ वर्ग कल्पना करैत दथि। किन्तु वर्गक स्वरूप सुवास्तु तटक पष्चाते अर्थात र्इ. पूर्व 2000 वर्षक बाद स्पष्ट भेल होयत जे सिन्धु पास केलाक बाद प्रकट भेल।
जे हो, सुवास्तु तट धरि मंत्ररचना अथवा स्मरण कार्य एक विषेष वर्गक देख रेखमे चल• लागत होयत कारण यज्ञ ताधरि आर्यसमाजक एकट आवष्यक अंग भ• गेल छल। यैह वर्ग कालांतरमे ब्राह्राण संस्कार कहौलक। अन्य दोसर वर्ग सिन्धुसँ पूर्व नहि भेल होयत। सब मीलिसेकेँ युद्धो करैत छल, पशुपालनो आ यज्ञो।
मुख्य सिन्धु पार केलाक बादे आर्य कृषिमे प्रवृत भेल तकर बादे अन्य वर्ग स्पष्ट भेल जकर विवेचन आगू होयत।
कहल जाइत अछि जे (विषेषत: मैक्समूलरक र्इ मत मान्य अछि) भारत अयलाक बाद पुन: एकटा दल पषिचम दिस घुमल आ तुर्की धरि पहुँचल आ तखन ओहि संधिलेखमे इन्द्र, मित्र, वरूण, नासत्यक उल्लेख सम्भव भेल। र्इ मान्यता महान असंगत, तर्कहीन तथा असम्बद्ध अछि।
भारतमे र्इ. पूर्व 1500 केर आसपास धरि ऋग्वेदक रचना होइत रहैत अछि आ वैह मंत्र तथा देवता ल• केँ आर्यदल जाइछ सेहो मात्र एक सै वर्षमे (कारण र्इ. पूर्व 1400 वर्षक ओ संधिलेख थिक, र्इ निषिचत अछि) आ किछुये वर्षमे हित्ती मित्तनी भारतीय देवताकेँ स्वीकारो क• लैत अछि। र्इ सबटा असम्बद्ध तथा असंगत अछि।
एक तेँ जाहि मार्गकेँ भारतीय आर्य, र्इरानसेँ सुवास्तु तट धरि 300-400 सै वर्षमे पार केलक तथा सुवास्तु (खैबर) सेँ सरस्वती तट धरिमे प्राय: 400-500 सै वर्ष लागल अर्थात कुल 700-800 वर्ष लागल तकरा एहिठामसँ जाइबाला आर्य मात्र एक सै वर्षमे पार क• गेल, र्इ अत्यन्त असंगत लगैत अछि।
दोसर, जाइते हित्ती मित्तनी भारतीय धर्म ओ देवताकेँ स्वीकारो क• लेलक, र्इ आरो तर्कहीन लगैत अछि। कारण अन्य धर्म ओ संस्कृतिक ग्रहण कइिन ओ समय साध्य अछि। चारिम, जाहि मार्ग होइत आर्य प्रथम बेर आयल छल कठिन ओकर भयंकरता आ आंतक ओकरा मानसमे पुराणकाल धरि रहल अछि, तकरा बिसरिकेँ ओ कोना घुमल होयल ? एहन प्रत्यागमनक उल्लेख ऋग्देवमे कतहु नहि अछि। तुर्वषक सम्बन्धमे एहन संकेत भेटितो अछि तेँ इहो संकेतज अछि ओ सब सिन्धुक पषिचमी पारमे बसि गेल। दोसर, ओहि समयमे जखन पषिचम एषिया हिक्सस, करसाइट, अकाडियन तथा असुर सबसेँ अषांते नहि छल, अपितु आतंकितो छल आ ताहि मार्गकेँ कोनो आर्यदल र्इरानक बादो लगभग हजार मील चलिकेँ तुर्की पहुँचि गेल, असम्बद्ध कल्पना थिक।
पाँचम, भारत सन सुखद जलवायु, विपुल भूमि, अनन्त वन्य पषुकेँ छोडि़के आर्यक ओहि दलकेँ घुमबाक प्रयोजने कोन छल? र्इ ओहि कालक निष्क्रमणक अवधारणाक सर्वथा विपरीत अछि। तेँ एहि कल्पनाम, जे आर्यक दल पुन: घुमल होयत आ ताहिसँ हित्ती मित्तनी प्रभावित भेल होयत जे प्राय: दू हजार मीलसँ अधिक दूरी पर अछि, घोर तथ्यहीन आ निराधार लगैत अछि।
समीचीन यैह लगैत अछि ज अपन मूल अभिजनसँ निष्क्रमणक बादो र्इरान धरि हित्तह मित्तनी कस्साइट हुर्रीक इल इंडो र्इरानीक सड.हि बहुत दिन धरि रहल होयत तथा इंडो र्इरानीमे यज्ञवाद आरम्भ होइसँ पूर्वे चलो गेल तेँ ओकरा सभक सड.े गेल मात्र देवता कल्पना। एही इंडो र्इरानी देवमे सेँ धौस, जियस बनिके यूनान गेल तथा मित्र रोम धरि पहुँचि सकल।
एकटा आरो दुष्कल्पना अंिछ जे हित्ती मित्तनी कृष्ण सागर दिससँ अर्थात उत्तर बाटेँ तुर्की प्रवेष केलक। इहो मत निराधार अछि, कारण एहिमे हित्तियेटाकेँ उत्तरी तुर्कीमे पबैत छी, शेष सब (मित्तनी, कस्साइट, हिक्सस, हुर्री) या तँ दक्षिणी तुर्कीमे अछि अथवा तुर्कीक दक्षिण पषिचम उर्बर अर्धचन्द्र मे स्थापित पबैत छी। बादोमे दुर्गम हेबाक कारणे तुर्कीक उत्तरक मार्ग कहियो प्रचलित नहि भेल, अपितु उर्मियाँ झील अथवा टारस पर्वत जे कासिपयन सागरक प्राय: ठीक मध्य पषिचममे अछि, यैह मार्ग कहियो व्यापारिक मार्ग बनल छल। तेसर जँ असुर जाति हिब्रू जकाँ मिश्रित जाति थिक तँ ओ निषिचते अकाडियन आ हित्ती मित्तनीक मिश्रण होयत। आ जेँ ल• केँ अकाडियन बेबिलोनियामे तथा असुर टारस पर्वतक आसपास अछि तेँ हित्तीक दक्षिणी मागेँ, तुर्की प्रवेषक संकेत करैत अछि।
एही असुरक राज्य अकाडियनक पश्चात उत्तरी बेबिलोनिया (असीनिया) मे, र्इ. पूर्व चौदहम शताब्दीक पश्चात भेल छल जकरा आतंकसँ पषिचम एषिया काँपि उठल छल जे बर्बरताक इतिहास कीर्तिमान बनि गेल। आगि आ पानिक परीक्षा, असुरे परीक्षा थिक जे भारतो धरिमे प्रचलित भेल, अस्तु।
द्रविड़ सभ्यताक अंत सामान्यत: 1750 र्इ. क आसपास मानल जाइत अछि आ अनेक कारणमे सँ एक कारण आर्य आतंक सेहो मानल जाइत अछि।
इहो तथ्य थिक जे उत्तरी भारतसँ समस्त हड़प्पा सभ्यताक अंत एकाएक एके बेरमे नहि भेल होयत। र्इ. पूर्व 1750 सामान्यत: निम्न बिन्दू तक। एकर अर्थ भेल जे हड़प्पा पतन सर्वप्रथम भेल आ से भेल पूर्णत: आर्यक हाथेँ, तेँ इन्द्र पुरन्दर तथा ऋग्वेदमे हरीयूपिया पतनक चर्च अछि ज हड़प्पा थिक। तेँ र्इ अनुमान सहजहि कयल जा सकैछ जे हडप्पाक पतन जे रावीतट पर अछि, र्इ. पूर्व 1800 वर्षक आसपास अवष्ये भ• गेल होयत, तखन भेल मोअन जोदड़ोक,तखन लोथल केर आ 1750 र्इ. पूर्व धरि र्इ सभ्यता सामान्यत: उत्तर भारतसँ समाप्त भ• गेल।
जँ र्इ. पूर्व 1800 क आसपास आर्य रावी धरि पहुँचल तँ एकर अर्थ थिक जे रावीसँ उत्तर चेनाव, ताहिसँ उत्तर झेलम आ ताहूसँ उत्तर मुख्य सिन्धु तथा ओकर उत्तर सुवास्तु तट अछि, जकरा र्इ. पूर्व 2000 क आसपास आर्य अवष्ये छोडि़ देने होयत। एतेक पैघ दूरीक लेल 200 वर्ष कोनो प्रकारेँ अधिक नहि मानल जायत।
ऋग्वेदमे सुवास्तु तटक जेहन प्रषंसात्मक वर्णन अछि ताहिसँ लगैत अछि जे आर्य ओत• किछु अधिके दिन रहल होयत जाहि लेल 200 वर्ष अधिक नहि थिक। एकर अर्थ र्इ भेल जे र्इ. पूर्व 2500 सैक आसपास जे भारतीय आर्य र्इरानसँ चलल से र्इ. पूर्व 2400 वर्षक आसपास हेलमन्द नदी (अफगानिस्तान) पार कयने होयत तथा र्इ. पूर्व 2200-2300 वर्षक आसपास सुवास्तु तट पर आबि गेल होयत।
सामान्यत खैबर घाटीसँ सरस्वती तट धरि प्रसार गतिमे 500 सै वर्ष मानल जाइत अछि। र्इ. पूर्व 1800 वर्षक आसपास हड़प्पा पतन पश्चात राविये तट पर दाषराज्ञ युद्ध भेल छल ताधरि आर्य प्रसार दृषद्वती तटसँ दक्षिणी भूभाग धरि भ• गेल छल, कारण राजा सुदासक राज्य एही आसपासमे छल। आ र्इ. पूर्व 1300 र्इ. क आसपास धरि यमुना तट पर कुरू तथा गंगाक तट पर पांचाल बसि गेल होयत, तखने महाभारतक घटना घटल। माहभारतेक घटनाक आसपास ऋग्वेदक सम्पादन विभाजन भेल अछि।
एकर अर्थ भेल जे सुवास्तु तटसँ सरस्वती दृषद्वती तट धरि मंत्ररचना एवं श्रुतिक कंठ परम्परामे अत्याधिक तीव्रता ओ सुव्यवस्था आयल जकर सम्पादन यमुना तट पर भेल।
एहि प्रकारेँ, र्इ. पूर्व 3500 वर्षक आसपास मूल अभिजनक लोकगीत परम्परा, र्इरानमे र्इ. पूर्व 3000 वर्षक आसपाससँ मंत्र जरम्परामे परिवर्तित भेल होयत आ र्इ. पूर्व 2500 वर्षक बादसँ एहिमे तीव्रता आयब प्रारम्भ भेल होयत जे हेलमन्द तट धरि (जे कतेक बेर भारतक अंग भेल) तीव्रतर तथा सरस्वती तट धरि तीव्रतम भेल होयत। एहि प्रकारेँ ऋग्वेदक रचनाकालकेँ र्इ. पूर्व 3000 वर्षसँ र्इ. पूर्व 1500 र्इ. पूर्व धरिक मानबामे आपति नहि होमक चाही।
दोसर महत्वपूर्ण तिथि भारतक प्राचीन इतिहासक थिक महाभारतक घटना काल। कारण, एकर बादे उत्तर वैदिककाल अर्थात ब्राह्राण काल मानल जाइत अछि जाहिमे अथर्ववेदसँ सूत्र साहित्य धरिक रचना ओ सम्पादन भेल अछि।
महाभारतक घटनाकालक प्रसंग तीनटा मत अछि मुदा प्रचलित मात्र दुइ गोट अछि।
प्रथम थिक डा. चिन्तामणि विनायक वैधक र्इ. पूर्व 3100 वर्षक। दोसर, डा. काषीप्रसाद जायसवाल तथा डा. राधाकुमुद मुखर्जी लोकनिक र्इ. पूर्व 1400 र्इ. क। किन्तु एहि दुनूमे सम्प्रति इतिहासजगतमें डा. बी. बी. लालक मत र्इ. पूर्व 900 र्इ. बला अधिक मान्य भेल जकरा डा. आर. एस. शर्मा तथा डा. रोमिला थापरक सेहो समर्थन प्राप्त भेल। र्इ मत अछि पुरातातिवक साक्ष्यक सीमित आधार पर।
कहबाक प्रयोजन नहि जे भारतीय पुरातत्व 1784क बादसँ आइधरि अपन विवषता तथा अभावगाथा कहैत रहल अछि, प्राय: कोनो उत्खनन पूर्ण नहि भ• पबैत अछि, कतेक आवष्यक उत्खनन कार्य तेँ प्रारम्भो नहि भेल अछि, जे होइतो अछि ओ अदहे-छिदहा होइत अछि। निर्विवाद पुरातातिवक साक्ष्य इतिहास निर्माण लेल सर्वाधिक ठोस ओ महत्वपूर्ण साक्ष्य थिक, किन्तु भारतक प्राचीन इतिहास मात्र ण्ही आधार पर ठाढ़ नहि कयल जा सकैछ।
आर्य सभ्यता ग्राम्य सभ्यता छल आ सड.ही गत्वर सेहो। दोसर र्इ. पूर्व 500 र्इ. धरि पाथर तथा पाकल र्इटाक व्यवहार सामान्यत: नहि´े भेल अछि। लोहाक ततेक अविकसित षिल्प छन जे ओकरा माटिमे मीलि जेबाक अधिक सम्भावना छल। तै ँ प्राचीन इतिहास लेल साहित्यके साक्ष्य अधिक मान्य होमक चाही। डा. आर. एस. षर्माक र्इ कथन एहि प्रसंग महत्वपूर्ण अछि जे र्इ. पूर्व 1800 सै सँ र्इ. पूर्व 300 वर्षक बीच केर पुरातातिवक साक्ष्य बड़ दुर्लभ अछि। तै इतिहास निर्माण लेल अन्य साक्ष्य पर निर्भर कर• पड़त।
महाभारत घटनाकालक प्रसंग र्इ. पूर्व 900 वर्ष बला मत सेहो समीचीन नहि लगैत अछि। एहि दृषिट´े र्इ. पूर्व 1400 र्इ. बला मत अधिक समीचीन अछि।
महाभारत घटनाकाल 1200 र्इ. पूर्व होमक चाही, तखने अनेक तथ्यक संगति बैसि सकैत अछि।
हसितनापुरक उत्खनन एम्हरी भेल अछि ताहि आधार पर डा. रोमिला थापर कहैत छथि जे 800 र्इ. पूर्व गंगा के किनारे पर यह (हसितनापुर) बसा हुआ था। पुराणों में बताया बया है कि यह घटना युद्ध के तत्काल बाद हसित्नापुर में राज्य करनेवाले राजा के सातवें उत्तराधिकारी के शासनकाल में हुर्इ थी। इससे महाभारत युद्ध का समय लगभग 900 र्इ. पूर्व ठहरता है।
सात पीढ़ीक लेल मात्र एक सै वर्षक अंतराल निर्धारित करब उचित नही जखन कि अंतराल निर्धारण लेल एक पीढ़ीक समय सामान्यत: 20 वर्षसँ 33 वर्ष धरि मानल जाइत अछि। एहि प्रकारेँ डा. थापरक तिथि 940 र्इ. पूर्व अथवा 1030 र्इव पूर्व होमक चाही।
एक पीढ़ी लेल 20 वर्षक सीमा पाष्चात्य इतिहासकारक थिक जाहिठाम जीवनमे अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता एवं परिवर्तनषीलता अछि। अंगरेज इतिहासकारक लेल र्इ स्वाभाविक अछि। जाहि यूनान अथवा रोमकेँ र्इ सब आर्दष मानैत अछि ओकर आर्य सभ्यताक जन्मे क्रमष: र्इ. पूर्व 1400 तथा र्इ. पूर्व 800 र्इ. क पश्चात होइत अछि आ अनेक कारणे योरोपक जीवनगति ओहू समयमे अपेक्षाकृत तीवे्र छल। पार्जीटर साहब क• केँ पौराणिक पीढ़ीक लेल 33 वर्ष मानलनि।
दोसर अथर्ववेद (20-127-10)मे परीक्षित राज्यक समृद्धिक चर्च भेल अछि। एहिसँ दुइटा प्रामाणिक साक्ष्य उपसिथत होइत अछि।
महाभारत युद्ध वर्णनमे जे अतिषयोकित हो एतबा तँ अछिये जे कुरूराज्यक अतिरिक्त ओहि आसपासक अनेक राज्यक महान विनाष भेल होयत तथा कृषि कार्य कर• बला अधिकांष युवा प्रौढ़क मृत्यु रूपमे भ• गेल होयत। पुन: कृषि विकासक लेल नवीन पीढ़ीकेँ कासँ कम 30-40 वर्षक अंतराल अवष्ये चाही। अर्थात महाभारतक युद्धक 40-50 वर्षक पष्चाते पुन: आंहि क्षेत्रमे (कुरू राज्यमे) समृद्धिक सम्भावना बनैत अछि जकर चर्च अथर्ववेदमे राजा परीक्षित प्रसंगमे अछि। एकर अथ। भेल जे परीक्षितक राज्यकाल 50-60 वर्षसँ अधिके रहल होयत। अर्थवेद सन प्रामाणिक ग्रंथक समक्ष पुराणक कथा प्रामाणिक अवष्ये नहि मानल जायत।
दोसर महाभारतसँ पूर्व नागक संगब आर्यक नीक सम्बन्ध छल अपितु वैवाहिको सम्बन्ध होम• लागल छल आ तकरहि सड.े परीक्षितक सम्बन्ध पुन: बिगडि़ जाइत अछि। जाहि युद्धमे ओकर मृत्यु होइत अछि तकरा पुराण नाग दंष कहैत अछि। या तँ र्इ कथा मिथ्या थिक नहि तँ नाग विद्रोहक कारण ताक• पड़त। सम्भव थिक परीक्षितक समृद्धि घुमला पर अथज्र्ञत युद्धक 50-60 वर्षक पश्चात परीक्षितक निरंकुषता पुन: बढि़ गेल हो तथा नागक प्रति जे ओकर यमुने तटक प्रजा छल, शोषण बढि़ गेल हो तेँ ओ विद्रोह क• देने हो, जाहिमे परीक्षितक मृत्यु भ• गेल हो। र्इ नागयुद्ध जनमेजयकाल धरि चलैत पबैत अछि।
एहिसँ परीक्षित कालक दीर्घता सेहो प्रकट होइत अछि सड.हि अथर्ववेदक उल्लेख कालनिर्णयक साक्ष्य सेहो प्रस्तुत करैत अछि।
डा. विंटरनित्ज अथर्ववेदक किछु अंषकेँ ऋग्वेदोसँ प्राचीन मानने छथि जे वस्तुत: अछियो किन्तु ओकर अंतिम निषिचत रूप महाभारतक घटनाकालमे अथवा तुरत बादमे आबि गेल होयत। तेँ ओकर तिथि र्इ. पूर्व 1100 र्इ. मानल जा सकैछ।
बुद्धक तिथि सर्वमान्य रूपेँ निषिचत अछि र्इ. पूर्व छठम शताब्दी। बुद्धसँ पूर्व समस्त ब्राह्राण साहित्य (ब्राह्राण, आरण्यक, उपनिषद) केर रचना समाप्त तँ भइये गेल छल जे सूत्र साहित्य सेहो अपन रचनात्मक मघ्य-सिथतिमे छल। डा. राधाकुमुद मुखर्जी सूत्र साहित्य काल र्इ. पूर्व 800 र्इ. मानैत छवि।
र्इ तिथि एहि कारणे संगत अछि जे सूत्र साहित्य काल घिरे भारतीय समाजमे प्राय: जन्मनाक सिद्धान्त आबि गेल छल, अपितु किछु वर्ण बद्धमूलो भ• गेल छल जकर विरोध बुद्ध कयने छलाह आ कर्मणेक सिद्धान्त चलब• चाहैत छलाह जे आव सम्भव नहि रहल छल। जैं ल• केँ बुद्ध शाक्य सन अर्धविकसित जाति अथवा क्षेत्रक छलाह जाहिठाम प्राचीन ऋग्वैदिक जीवन, समाज पद्धति (गणतंत्रीय सामाजिक समझौता सिद्धान्त मान• बला) छल तेँ कर्मणे चाहैत छलाह।
सूत्र साहित्यक अनेक उíेष्यमे सँ एकटा महत्वपूर्ण उíेष्य अछि वर्णाश्रम धर्मक प्रतिष्ठापन तथा उपनिषदक पश्चात केर सन्यास सम्बन्धी अराजकताक निराकरण करैत विभिन्न आर्य संस्कारक मर्यादा निर्धारित करब। एकर अथ भेल जे आरण्यक उपनिषद के मान्यताक प्रचारक बादे सूत्र साहित्यक र्इ प्रयोजन अनुभव कयल गेल होयत। र्इ कार्य उपनिषदक रचनाक सै दू सै वर्षक पश्चाते भेल होयत। एकर अर्थ जे उपनिषदक रचना र्इ. पूर्व 900 र्इ. पूर्व क आसपास अवष्ये अपन मध्यकालमे आबि गेल होयत। र्इ तर्कसंगत एहि कारणे सेहो अछि जे 200-300 वर्षक उपनिषदक प्रचारक बादे बुद्धक जन्म (र्इ. पूर्व छठम सदी) भेल होयत। कारण एक तँ बुद्ध उपनिषदेक मूल भावना पर अपन मत निर्माण कयने छलाह, दोसर उपनिषदक मूल सुसम्बद्धता नहि अछि। आत्मकेँ मानब किन्तु नित्याकेँ नहि मानब र्इ उपनिषदसँ दूरिये प्रकट करैत अछि।
किन्तु स्वयं उपनिषदक ज्ञानकांड, ब्राह्राण ग्रंथक यज्ञवाद अथवा कर्मकांडक प्रतिक्रियामे भेल छल। एहि प्रतिक्रिया लेल सेहो कम सँ कम सौ दू सै वर्ष चाही। ओहि कालक जीवन पद्धतिक मंथरताकेँ देखैत अथवा यज्ञवाद सन आर्यक प्राचीन मान्यताक विरोधमे मत निर्माण अत्यन्त दूर्गम कार्य रहल होयत। महाभारतक घटनाक बादे यज्ञवाद जटिल ओ आडम्बरपूर्ण भेल होयत। अर्थात एहि लेल सेहो कम सँ कम 200-300 वर्ष अवष्ये चाही।
एहि प्रकारेँ उपनिषदक रचनाकाल (र्इ. पूर्व 900 र्इ.) सँ कम सँ कम 200 वर्ष पूर्व अर्थात र्इ. पूर्व 1100 र्इ.मे कृष्ण यजुर्वेद जाहिमे ब्राह्राण अंष संयुक्ते अछि, असितत्वमे आबि गेल होयत, एकर बादे शुक्ल यजुर्वेद तथा ऐत्तरेष् ओ शतपथ ब्राह्राणक रचना भेल होयत।
अथर्ववेद ब्राह्राण ग्रंथसँ पूर्वक थिक र्इ सर्वमान्य अछि जाहिमे परीक्षितक चर्च अछि। एकर अर्थ थिक जे महाभारतक घटना र्इ. पूर्व 1200 र्इ. धरि अवष्ये सम्पन्न भ• गेल होयत।
अर्थर्ववेदक बादेक थिक ऐतरेय तथा शतपथ ब्राह्राण जकर परिषिष्ट थि वृहदारण्यक जाहिमे परीक्षितक प्रसंग जिज्ञासा व्यक्त कयल गेल अछि जे ओहि कालक अतीत थिक, जकरा लेल समाजमे उत्सुकता बनल अछि। एहूसँ सिद्ध होइत अछि जे ब्राह्राणसँ तँ युद्धघटना पूर्वक थिकहे अथर्ववेदोसँ पूर्वक थिक। तेँ युद्धघटनाक समय र्इ. पूर्व 1200 सँ एम्हर नहि आबि सकैत अछि।
दोसर, पाष्र्वनाथक तिथि थिक (777 र्इ. पूर्व ?) बुद्ध सेँ 250 वर्ष पूर्व अर्थात र्इ. पूर्व 800 र्इ. । एही पाष्र्वकेँ सर्वप्रथम एतिहासिक रूपेँ वैदिक कर्मकांडक विषेषत: आडम्बरक विरोध करैत पबैत छी। पाष्र्वनाथ निषिचत रूपेँ लगभग 200 वर्षक उपनिषदीय चिंतनक बादक छवि। आ स्वयं उपनिषदक तत्वचिंतन जे कर्मकांडक विरोधमे मानल जाइत अछि, सँ कम सँ कम दम सै वर्षक कर्मकांडक प्रचार विस्तारक बादे भेल होयत। पूर्व वैदिकयुग सरल कर्मकांड दू सै वर्षक विस्तारेमे जटिल ओ आडम्बरपूर्ण भेल होयत जकर प्रतिक्रिया उपनिषदकेँ मानल जाइत अछि। एहि प्रकारेँ पाष्र्वनाथसँ अर्थात 800 र्इ. पूर्वसँ पूर्वे 400 वर्षक आसपास महाभारततक घटना भेल अर्थात र्इ. पूर्व 1200 र्इ. समीचीन लगैत अछि।
एखन धरि भारतमे लौह संस्कृतिकेँ र्इ. पूर्व 800 र्इ. क मानल जाइत छल। एम्हर जे किछु उत्खनन कार्य भेल अछि जाहि आधार पर अहाड़ (राजस्थान) केर तिथि र्इ. पूर्व 1500 र्इ. क तथा नागदा एवं एरण केर तिथि र्इ. पूर्व 1300 र्इ. क मानल जा रहल अछि। थाइलैंड जे ढलल लोहा भेटल र्अछि ओकर समय र्इ. पूर्व 1200 सै सँ 1600 र्इ. पूर्वक मानल जा रहल अछि। एही आधर पर डा. दिलीप कुमार चक्रवती भारतक लौह संस्कृतिक काल र्इ. पूर्व 1100 र्इ. मानैत छथि। 2
ठहो मालन जा रहल र्अछि जे लोहाक उपयोग पहिने युद्धेमे भेल अछि तखन कृषिमे। जँ र्इ. पूर्व 1100 र्इ. बला मत स्वीकार्य तँ एहू दृषिट´े महाभारत युद्ध सै दू सै वर्ष पूर्वक घटना मानल जायत।
महाभारतक धटनाकाल जँ सिथर, मान्य भ• जाय तँ भारतक प्राचीन इतिहासक बहुत रास तिथि जे अंधकारमे डूबल अछि, प्रकाष तट पर आबि जायत।
एहि प्रकारेँ किछु तिथि संकेत निम्न रूपेँ भ• जाइछ।
आर्य आगमन: र्इ.पूर्व 2500 मे भारतीय क्षेत्रप्रवेष3 ऋग्वेद रचनाकाल : र्इ. पूर्व 3000 सँ 1200 र्इ. क बीच, महाभारत घटनाकाल : र्इ. पूर्व 1200 र्इ.अन्य वेदकाल : र्इ पूर्व 1100 र्इ. सम्पादन, ब्राह्राण रचनाकाल : र्इ. पूर्व 1000 र्इ. सँ प्रारम्भ, उपनिषद काल : र्इ. पूर्व 900 र्इ. पूर्व 900 र्इ. सूत्र साहित्य : र्इ. पूर्व 800 र्इ. यास्क: र्इ. पूर्व 700 र्इ. पाणिनी : र्इ पूर्व 500 र्इ।
प्रागैतिहासिककाल : र्इ. पूर्व 8000 र्इ. पूर्व 3500 धरि।
प्राचीनकाल : र्इ. पूर्व 3500 सँ।
(क) सैन्धव सभ्यताकाल : र्इ. पू. 3500 सँ प्रारम्भ।
(ख) वैदिक सभ्यताकाल : र्इ. पू. 2500 सँ प्रारंभ।
आदिकाल : र्इ. पूर्व 500 सँ 500 र्इ. धरि।
मध्यकाल : 500 र्इ. सँ प्रारंभ।
आधुनिककाल : 1700 र्इ. सँ अधावधि।
कहबाक प्रयोजन नहि जे समस्त प्राचीन भारतीय इतिहासमे किछु तिथि विन्दू जतबे महत्वपूर्ण अछि, ओ ततबे विवादास्पद सेहो अछि, जाहिमे मुख्य अछि आर्यक आगमन, ऋग्वेदक रचना तिथि, महाभारतक घटनाकाल एवं रचना काल आदि जे आइयो उचित निर्णयक प्रतीक्षामे अछि।
आर्य आगमन एवं ऋग्वेदक रचनाबिन्दू सर्वाधिक विवादास्पदे नहि रहल अपितु, कालावधिक अंतरो महान अछि। ऋग्वेदिक तिथिविन्दू तिलक केर 4500 र्इ. पूर्व सँ ल• केँ मैक्समूलरक 1500 र्इ. पूर्वक बीचमे डोलैत रहल। 1907 र्इ. क (आधुनिक तुर्कीक) बोगाजकोइक उत्खननक पश्चात जाहिमे इन्द्र मित्र वरूणक उल्लेख भेटि गेल जाहिसँ ओ स्वयं अपन तिथिविन्दु 1200 केँ पूर्व 1500 वर्ष ल• गेलाह, कारण बोगाजकोइक ओ संधिलेख र्इ. पूर्व 1400 र्इ. पूर्वक छल। आ कल्पना कयल गेल जे भारतीय आर्य पुन: तुर्की दिस घुमल तेँ भारतीय इन्द्र-मित्र वरूण तुर्की पहुँचल। प्राय: यैह मान्यता मान्य रहल। एहि कल्पनाकेँ ततेक बेर दोहराओल गेल जे पाछू सत्यक प्र्रतिष्ठा प्राप्त क• गेल।
कहबाक प्रयोजन नहि जे मैक्समूलरक अवधारणा शुद्धत: कल्पना पर आधारित छल, कोनो पुरातातिवक साक्ष्य पर नहि। समस्त वैदिक साहित्यकेँ सूत्र साहित्य, उपनिषद साहित्य आ ब्राह्राण साहित्यकेँ बुद्धसँ पूूर्व मानि जे थिकहो, ऋग्वेदक काल 1200 र्इ. पूर्व मानल गेल छल। एकर पुषिट एहू तथ्यसँ कयल गेल जे र्इ. पूर्व 2000 वर्ष, मध्य एषियामे भूकम्प भेल छल जकर बादे विभिन्न आर्यदल विभिन्न दिषामे चलल आ भारतीय आर्य 1800 वर्ष र्इ. पूर्व र्इरान तथा 1500 र्इ. पूर्वमे भारत पहुँचल।
किन्तु पाछू स्वयं मैक्समूलर अपन मतक खंडन केलनि।
असलमे, एहि कार्यक लेल, पुरातातिवक साक्ष्यक अभावमे कल्पना आवष्यके छल। किन्तु से साधार एवं समीचीन होमक चाही जकर घोर अभाव मैक्समूलरक मतमे अछि।
वस्तुत: एकर निर्णय ऋग्वेदक अंत:साक्ष्य तथा अन्य साहिव्यक ठोस आधार पर कर• पड़त तखनहि एहि प्रष्न सभक उत्तर भेटि सकैछ।
भूकम्प बला तथ्य अर्धसत्य थिक। अपन मूल अभिजनसँ लगभग र्इ. पूर्व 3500 वर्षक आसपास सर्वप्रथम एकटा बृहत आर्यदल कासिपयन सागरक पूब होइत दक्षिण दिस चलल छल, जाहिसँ हित्ती, मित्तनी, हुर्री, कस्साइट तथा इंडो र्इरानीक विभिन्न आर्यदलक निर्माण कालांतरमे भेल। आ तेँ र्इ. पूर्व 3100 वर्षक दजला फरातक ओ महाबढि़, जाहिमे अनक नगर भासि गल छल, केर स्मृति महाप्लावनक रूपमे (वैदिक साहित्य) शतपथ ब्राह्राणमे सुरक्षित अछि।
श्रोचक तथ्य र्इ अछि जे सुमेरियाक पौराणिक कथामे महाप्लावनसँ नाह द्वारा मात्र राजा जियसूद्र बचैत अछि, बाइबिलमे ओहिना नाहसँ नूह बचैत अछि तथा शतपथ ब्राह्राणमे नाहेसँ मात्र मनु बचैत अछि। र्इ साम्य एहि तथ्य दिस संकेत करैत अछि जे एहि घटनाकेँ निकटसँ देखल ओ सुनल गेल अछि। बाइबिलक रचनाकार हिब्रू मेसोपोटामियाक (दजला फरातक) पषिचमी तट पर छल आ र्इ आर्यदल पूर्वी तट पर ओहि समय धरि अवष्ये छल। पूर्वी तटक आर्य भने प्रत्यक्षत: प्रभावित नहि भेल हो किन्तु निकटक एहन महान दुर्घटना अवष्ये आतंक उपसिथत कयने होयत। आ तेँ ओकर स्मृति भारतीय आर्यमे बनल रहल जे शतपथमे प्रकट भेल। अवष्य र्इ लौकिक परम्परामे रहल होयत ओहिना, जहिना हिब्रू जनम रहल, कारण ओल्ड टेस्टामेन्टक रचना केर कालखंड प्राय: वैह थिक जे शतपथ ब्राह्राएरक थिक अर्थात र्इ. पूर्व 1000 वर्षक आसपास। ऋग्वेद अवेस्ता तथा ओल्ड टेस्टामेन्ट एक समयक एक व्यकितक रचना नहि थिक।
सम्भव थिक जे ओहि मूलअभिजनमे बचल शेष आर्यभाषाभाषी पुन: संख्याधिक्यक कारणे विभिन्न दिषामे चलल होयत जकर प्रमाण थिक डोरियन आ एकियन आर्यदल जे यूनानक इतिहासमे र्इ. पूर्व 1500 आसपास प्रकट होइत अछि।
हमरा बुझने एहि भूकत्पकेँ मूल अभिजनसँ आर्य निष्क्रमणक सम्बन्ध जोड़ब अर्धसत्य थिक।
दोसर, दूइये से वर्षमे (र्इ. पूर्व 2000 वर्षक चलल) इंडो र्इरानी दल लगभग सात-आठ सै मीलक कासिपयन सागरक दूरी तय करैत र्इरान पहुँचल जखन कि ओहि समयमे प्षुचारणक क्रममे प्रसार गति अति मंथर होइत छल आ लक्ष्यहीन अपरिचित यात्रामे सेहो गति मंथर होइते अछि, असम्भव लगैत अछि। शेष तीन सै वर्षक अभ्यन्तरे इंडो र्इरानी सौमनस्यपूर्वक रहल जाहि कारणे इन्द्र वरूणक उपाधि व्यागल गेल, आ पुन: भारतक दूरी तय करैत 1500 र्इ. पूर्वमे भारत पहुँचि गेल, युकितसंगत नहि लगैत अछि।
आब तँ प्राय: र्इ निषिचत भ• गेल अछि जे भारतीय आर्य दल र्इ. पूर्व 2000 वर्षक आसपास भारत पहुँचि गेल छल जकर प्रमाण सुवास्तु तटक उत्खनन सेहो प्रस्तुत करैत अछि जामिे धूसर मृदभांड भेटल अछि।
डा. विंटरनित्ज साहसपूर्वक ऋग्वेदक तिथिविन्दुकेँ र्इ. पूर्व 2500 वर्ष ल• गेल छलाह। र्इ मत सत्यक मात्र निकट अछि, सत्य नहि।
ऋग्वेदक रचनाक आरम्भविन्दू, सम्भव र्इ. पूर्व 3000-3200 वर्षक आसपास होमक चाही जखन अपन मूल अभिजनसँ दक्षिणी आर्यदल चलिकेँ र्इरानक उत्तरी तथा कासिपयन दक्षिणी छोरक आसपास पहुँचल होयत। अवेस्ताक ऐर्यन वेइजो नामक स्थानक सम्बन्धमे विवाद अछि ओ स्थान एहीक निकट होमक चाही जकरा र्इरानक वेनिददादमे आर्य कमूल अभिजन कहल गेल अछि। सम्भव समिमलित दक्षिणी आर्यदल बहुत दिन धरि एहीठाम (अर्थात कासिपयन दक्षिणी एवं र्इरानक उत्तरी छोर पर) रहि गेल हों तैं एहि दूनू आर्यदलमे रचना परम्पराक प्राचीनता अछि, एकमे ऋग्वेद तथा दोसरमे अवेस्ता।
ऋग्वेदमे (प्राय: धोखासँ) यमयमीक सम्वाद संकलित अछि जाहिम यमी बहीनि, भाय यमसँ रति दानक याचना करैत अछि जकरा भाय यम अस्वीकार क• दैत अछि। एहिसँ दुइ बातक संकेत भेटैत अछि।
सम्भव, र्इ. पूर्व 3500 वर्षसँ पूर्व, मूल आर्यअभिजनमे एहन परम्परा रहल हो जकर प्रमाण योरापमे भेटैत अछि, किन्तु एहि समयक आसपास जे दक्षिणी आर्य चलल से एहि परम्पराकेँ छोडि़ देलक। सामान्यत: आर्यभाषाभाषीमे र्इ परम्परा 3500 र्इ. पूर्वक पश्चात नहि रहल। तेँ यम, यमीक प्रस्तावकेँ अस्वीकार क• दैत अछि।
र्इ. पूर्व 3500 वर्षक आसपास अपन मूल अभिजनसँ चलल दक्षिणी आर्य, एहि चारि सै वर्षमे प्राय: 700 मील चलिकेँ 3100 र्इ. पूर्वक आसपास र्इरान पहुँचि गेल होयत तखने ओकरा महाप्लावनक अनुभव भेलैक।
कहबाक प्रयोजन नहि जे ओहि समयमे आर्य जीवन पशुपालन युगमे छल जखन षिकार मुख्य आजीविका होइत अछि। आ एहन समयमे, एहन सिथतिमे, संख्याधिक्य भेला पर निष्क्रमण वहिर्गमन होइत अछि।
गीतरचना सम्भव पहिनहुँ होइत हो, किन्तु र्इ. पूर्व 3000-3200 वर्षक आसपाससँ र्इरान कालमे रचनापरम्परा अवष्य तीव्र भेल होयत तथा इन्द्र, मित्र, वरूण, नासत्य, वैष्वानर आदि देवता अपन दृढ़ रूपमे असितत्वमे आबि गेल होयत जकर प्रमाण थिक जे एही देवताकेँ ल• क• हित्ती मित्तनी दल र्इ. पूर्व 2800 के आसपास पुन: कासिपयन सागरक पषिचमी तट होइत उत्तर दिषामे चलल जे 2500 र्इ. पूर्वक आसपास (आधुनिक) तुर्की प्रवेष केलक। मित्तनी तँ दक्षिणे रहल किन्तु हित्ती उत्तरी तुर्की धरि गेल। एहि दुनू दलकेँ अपन-अपन क्षेत्रमे पूर्व आदिवासीसँ प्राय: हजार वर्ष धरि संघर्ष कर• पड़ल। पाछू कालांतरमे मिश्रित भ• गेल किन्तु आर्य देवताक स्मृति रहिये गेल। तेँ जखन हित्ती ओ मित्तनीक अलग-अलग राज्य स्थापन भेल तँ परस्पर युद्ध होमय लागल जकर प्रमाण थिक बोगाजकोइक आ संधिलेख जे र्इ. पूर्व 1400 वर्षक थिक जाहिमे इन्द्र, मित्री, वरूणक उल्लेख साक्षीरूपमे भेल अछि तथा जे हित्ती ओ मित्तनीक बीचक संधि थिक।
हित्ती मित्तीक एही निष्क्रमण कालमे सम्भव कासिपयन सागरक पषिचम, अरब दिससँ आयल अकाडियनसँ सम्पर्क भेल जाहिसँ असुर नामक एकटा मिश्रित जातिक जन्म (हिब्रुये जकाँ) भेल। सम्भव र्इ घटना कासिपयन सागरक ठीक मध्य पषिचममे उर्मियाँ झील ओ टारस पर्वतक आसपास भेल होयत, कारण पाछू यैह क्षेत्र असुर जातिक भेल जाहिमे जरथुस्ट्र भेल।
अकाडियन घुमक्कड़ जाति छल जे पाछू दजला पर क• केँ बेबिलोनियामे, सुमेरी सभ्यताकेँ नष्ट करैत, राज्य कर• लागल जकर प्रसिद्ध राजा भेल सारगन (र्इ. पूर्व 2700 अथवा 2400 वर्ष) सुलगी तथा हम्मूरावी (र्इ. पूर्व 2100 वर्ष) जे प्राय: विष्वक प्रथम कानूनग्रंथक संग्रहकत्र्ता थिक जे माटिक तख्तीपर कीलाक्षरमे अछि।
एही अकाडियन राजाक भयसँ, जे बहुत प्रतापी भेल, असुर, र्इरान दिस ससरि आयल जे सम्भव र्इ. पूर्व 2500-2600 वर्षक आसपासक घटना थिक। किछु दिन धरि तँ इंडो र्इरानी दलसँ नीक सम्बंध रहल जाहि कारणे असुर उपाधि ग्राहय भेल किन्तु कालांतरमे मतभेद आरम्भ भेल आ देवासुर संग्राम घटित भेल जाहिमे असुर आ पार्षव तथा मद्र (मिडस) एक दिस भेल तथा भारत दिस चल• बला आर्य एक दिस। एहि युद्धमे भारतीय आर्यक विजय भेल किन्तु तकर बाद भारतीय दल पूब मुहेँ चलि देलक। एहि समय धरि भारतीय आर्य अपन देवतेक नामे राजा अथवा सेनापतिक नामकरण कर• लागि गेल छल, तेँ र्इ युद्ध इन्द्रक नेतृत्वमे लड़ल गेल। तेँ अवेस्तामें इन्द्र त्याज्य भेल। तेँ असुर शब्दक अर्थ बदलल, र्इरानमे असुर भेल देव (अहुर मज्दा) किन्तु भारतीय आर्यमे असुर भेल राक्षस ज अर्थ रहिये गेल।
जैं ल• क• इडो र्इरानी दल बहुत दिन धीरे संगसंग रहल तैं दुनूक भाषा प्राय: एके रहल जकर प्रमाण थिक ऋग्वेद तथा अवेस्ता। एही कालखंडमें अर्थात 300 र्इ. पूर्व आसपास पूर्वक गान परम्पार, जे सम्भव मूल अभिजनेक आसपास आरम्भ भेल होयतख् यज्ञसँ सम्बद्ध भ• गेल।
मूल अभिजनमे आगि आ गीत दुनू भने रहल हो किन्तु दुनूमे सम्बन्ध नहि छल। यज्ञक तथा अगिनक पूजा आरम्भ नहि भेल दल, से आरम्भ भेल र्इरानमे, सेहो 3000 र्इ. पूर्वसैं ल• केँ 2500 र्इ. पर्वक बीच। तेँ र्इरानमे कुंड बनाकेँ अगिनक पूजा प्रथा चलल। यैह प्रथा भारतीयो आर्यक सड.े चलल आ यज्ञवाद प्रारम्भ भेल तथा गीत बनल मंत्र एवं मंत्रकेँ भेटल कंठ परम्परा। यैह कंठ परम्परा अवेस्तोकेँ भेटल जकर सम्पादन र्इ. पूर्व छठम शताब्दीक आसपास भेल आ यैहह श्रुति परम्परा ऋग्ंवेदोकेँ भेटल जकर सम्पादन महाभारत घटनाकालमे भेल। स्मरणीय जे बोगाजकोइलेखमे 'अगिन' उल्लेख नहि अछि। अगिन आधान परवत्ती थिक।
र्इरान कालधरि अर्थात र्इत्र पूर्व 2500 वर्षसँ पूर्व, मंत्रमे रचनाकारक (ऋषिक) नामक परम्परा नहि छल, यैह प्रथा अवेस्तोम अछि। तेँ वेदकेँ (ऋग्वेदकेँ) कहल गेल 'अपौरूषेय जेँ ल• केँ र्इ. पूर्व तीनो हजार वर्षसँ गीतरचनाक परम्परा छल तेँ कहल गेल 'अनादिआ अगिन आधान द्वारा यज्ञसेँ सम्बद्ध भेल तेँ भेल 'पवित्र'।
मंत्रकेँ भेटी गेल कंठ जे पिता-पुत्र अथवा गुरू-षिष्य परम्परा द्वारा सुनिकेँ स्मरण राखल गेल, तेँ बनल श्रुति।
र्इ. पूर्व 2500 वर्षक पश्चात अर्थात जखन भारतीय आर्य हेलमन्द (अफगानिस्तान)क तटक आसपास छल ताधरि देवासुर संग्रामक कारणे बहुत रास पूर्वक गान लुप्त भ• गेल छल। यैह कारण थिक जे महाभाष्य एक्कैसटा ऋग्वेदक शाखाक उल्लेख करैत अछि जाहिन सम्प्रति एकटा शाकल शाखा प्राप्त अछि। निष्चये, हेलमन्दक पश्चात मंत्ररचना परम्परा तीव्र भेल होयत कारण ताधरि भारतीय यज्ञवादक जन्म भ• गेल छल आ गान, मंत्रक गरिमा प्राप्त क• गेल छल जे सुवास्तु तटक बाद तीव्रतर भेल आ (सुवास्तु तटक बाद मंत्रमे ऋषि एवं देवक नामो रहय लागल) जे सरस्वती तट धरि तीव्रतम भेल। किन्तु यमुना तटक सम्पादक कालमे, एहू बीचक बहुत मंत्र लुप्त भ• गेल अथवा सम्पादित नहि कयल जा सकल। मंत्र लोपक भावना अवष्य समाजमे रहल होयत तेँ र्इ. पूर्व दोसर शताब्दीक महाभाष्य एक्कैस शाखाक उल्लेख करैत अछि।
र्इरानसेँ हेलमन्द धरि (ता आधुनिक भौगोलिक सीमाक जन्म नहि भेल छल) मंत्र स्मरण भने आर्यक सामूहिक प्रवृति रहल हो किन्तु तकर बादेसँ स्मृति कर्म वर्गीय भ• गेल होयत। कारण, एकर बाद हेलमनद तटक आसपासक आदिवासी अनार्य जातिसँ संघर्ष करैत बढ़• पड़ल होयत तेँ प्रसार गतियों मन्द भेल तथा अधिकांषकेँ युद्धोमे संलग्न रह• पड़ैत होयत।
सीमित रूपमे एही समयसँ समाज वर्ग विभाजन दिस बढ़ल। यैह कारण अछि जे डा. ए. एल वैषम भारतीय आर्यमे अति प्राचीने कालसँ वर्ग कल्पना करैत दथि। किन्तु वर्गक स्वरूप सुवास्तु तटक पष्चाते अर्थात र्इ. पूर्व 2000 वर्षक बाद स्पष्ट भेल होयत जे सिन्धु पास केलाक बाद प्रकट भेल।
जे हो, सुवास्तु तट धरि मंत्ररचना अथवा स्मरण कार्य एक विषेष वर्गक देख रेखमे चल• लागत होयत कारण यज्ञ ताधरि आर्यसमाजक एकट आवष्यक अंग भ• गेल छल। यैह वर्ग कालांतरमे ब्राह्राण संस्कार कहौलक। अन्य दोसर वर्ग सिन्धुसँ पूर्व नहि भेल होयत। सब मीलिसेकेँ युद्धो करैत छल, पशुपालनो आ यज्ञो।
मुख्य सिन्धु पार केलाक बादे आर्य कृषिमे प्रवृत भेल तकर बादे अन्य वर्ग स्पष्ट भेल जकर विवेचन आगू होयत।
कहल जाइत अछि जे (विषेषत: मैक्समूलरक र्इ मत मान्य अछि) भारत अयलाक बाद पुन: एकटा दल पषिचम दिस घुमल आ तुर्की धरि पहुँचल आ तखन ओहि संधिलेखमे इन्द्र, मित्र, वरूण, नासत्यक उल्लेख सम्भव भेल। र्इ मान्यता महान असंगत, तर्कहीन तथा असम्बद्ध अछि।
भारतमे र्इ. पूर्व 1500 केर आसपास धरि ऋग्वेदक रचना होइत रहैत अछि आ वैह मंत्र तथा देवता ल• केँ आर्यदल जाइछ सेहो मात्र एक सै वर्षमे (कारण र्इ. पूर्व 1400 वर्षक ओ संधिलेख थिक, र्इ निषिचत अछि) आ किछुये वर्षमे हित्ती मित्तनी भारतीय देवताकेँ स्वीकारो क• लैत अछि। र्इ सबटा असम्बद्ध तथा असंगत अछि।
एक तेँ जाहि मार्गकेँ भारतीय आर्य, र्इरानसेँ सुवास्तु तट धरि 300-400 सै वर्षमे पार केलक तथा सुवास्तु (खैबर) सेँ सरस्वती तट धरिमे प्राय: 400-500 सै वर्ष लागल अर्थात कुल 700-800 वर्ष लागल तकरा एहिठामसँ जाइबाला आर्य मात्र एक सै वर्षमे पार क• गेल, र्इ अत्यन्त असंगत लगैत अछि।
दोसर, जाइते हित्ती मित्तनी भारतीय धर्म ओ देवताकेँ स्वीकारो क• लेलक, र्इ आरो तर्कहीन लगैत अछि। कारण अन्य धर्म ओ संस्कृतिक ग्रहण कइिन ओ समय साध्य अछि। चारिम, जाहि मार्ग होइत आर्य प्रथम बेर आयल छल कठिन ओकर भयंकरता आ आंतक ओकरा मानसमे पुराणकाल धरि रहल अछि, तकरा बिसरिकेँ ओ कोना घुमल होयल ? एहन प्रत्यागमनक उल्लेख ऋग्देवमे कतहु नहि अछि। तुर्वषक सम्बन्धमे एहन संकेत भेटितो अछि तेँ इहो संकेतज अछि ओ सब सिन्धुक पषिचमी पारमे बसि गेल। दोसर, ओहि समयमे जखन पषिचम एषिया हिक्सस, करसाइट, अकाडियन तथा असुर सबसेँ अषांते नहि छल, अपितु आतंकितो छल आ ताहि मार्गकेँ कोनो आर्यदल र्इरानक बादो लगभग हजार मील चलिकेँ तुर्की पहुँचि गेल, असम्बद्ध कल्पना थिक।
पाँचम, भारत सन सुखद जलवायु, विपुल भूमि, अनन्त वन्य पषुकेँ छोडि़के आर्यक ओहि दलकेँ घुमबाक प्रयोजने कोन छल? र्इ ओहि कालक निष्क्रमणक अवधारणाक सर्वथा विपरीत अछि। तेँ एहि कल्पनाम, जे आर्यक दल पुन: घुमल होयत आ ताहिसँ हित्ती मित्तनी प्रभावित भेल होयत जे प्राय: दू हजार मीलसँ अधिक दूरी पर अछि, घोर तथ्यहीन आ निराधार लगैत अछि।
समीचीन यैह लगैत अछि ज अपन मूल अभिजनसँ निष्क्रमणक बादो र्इरान धरि हित्तह मित्तनी कस्साइट हुर्रीक इल इंडो र्इरानीक सड.हि बहुत दिन धरि रहल होयत तथा इंडो र्इरानीमे यज्ञवाद आरम्भ होइसँ पूर्वे चलो गेल तेँ ओकरा सभक सड.े गेल मात्र देवता कल्पना। एही इंडो र्इरानी देवमे सेँ धौस, जियस बनिके यूनान गेल तथा मित्र रोम धरि पहुँचि सकल।
एकटा आरो दुष्कल्पना अंिछ जे हित्ती मित्तनी कृष्ण सागर दिससँ अर्थात उत्तर बाटेँ तुर्की प्रवेष केलक। इहो मत निराधार अछि, कारण एहिमे हित्तियेटाकेँ उत्तरी तुर्कीमे पबैत छी, शेष सब (मित्तनी, कस्साइट, हिक्सस, हुर्री) या तँ दक्षिणी तुर्कीमे अछि अथवा तुर्कीक दक्षिण पषिचम उर्बर अर्धचन्द्र मे स्थापित पबैत छी। बादोमे दुर्गम हेबाक कारणे तुर्कीक उत्तरक मार्ग कहियो प्रचलित नहि भेल, अपितु उर्मियाँ झील अथवा टारस पर्वत जे कासिपयन सागरक प्राय: ठीक मध्य पषिचममे अछि, यैह मार्ग कहियो व्यापारिक मार्ग बनल छल। तेसर जँ असुर जाति हिब्रू जकाँ मिश्रित जाति थिक तँ ओ निषिचते अकाडियन आ हित्ती मित्तनीक मिश्रण होयत। आ जेँ ल• केँ अकाडियन बेबिलोनियामे तथा असुर टारस पर्वतक आसपास अछि तेँ हित्तीक दक्षिणी मागेँ, तुर्की प्रवेषक संकेत करैत अछि।
एही असुरक राज्य अकाडियनक पश्चात उत्तरी बेबिलोनिया (असीनिया) मे, र्इ. पूर्व चौदहम शताब्दीक पश्चात भेल छल जकरा आतंकसँ पषिचम एषिया काँपि उठल छल जे बर्बरताक इतिहास कीर्तिमान बनि गेल। आगि आ पानिक परीक्षा, असुरे परीक्षा थिक जे भारतो धरिमे प्रचलित भेल, अस्तु।
द्रविड़ सभ्यताक अंत सामान्यत: 1750 र्इ. क आसपास मानल जाइत अछि आ अनेक कारणमे सँ एक कारण आर्य आतंक सेहो मानल जाइत अछि।
इहो तथ्य थिक जे उत्तरी भारतसँ समस्त हड़प्पा सभ्यताक अंत एकाएक एके बेरमे नहि भेल होयत। र्इ. पूर्व 1750 सामान्यत: निम्न बिन्दू तक। एकर अर्थ भेल जे हड़प्पा पतन सर्वप्रथम भेल आ से भेल पूर्णत: आर्यक हाथेँ, तेँ इन्द्र पुरन्दर तथा ऋग्वेदमे हरीयूपिया पतनक चर्च अछि ज हड़प्पा थिक। तेँ र्इ अनुमान सहजहि कयल जा सकैछ जे हडप्पाक पतन जे रावीतट पर अछि, र्इ. पूर्व 1800 वर्षक आसपास अवष्ये भ• गेल होयत, तखन भेल मोअन जोदड़ोक,तखन लोथल केर आ 1750 र्इ. पूर्व धरि र्इ सभ्यता सामान्यत: उत्तर भारतसँ समाप्त भ• गेल।
जँ र्इ. पूर्व 1800 क आसपास आर्य रावी धरि पहुँचल तँ एकर अर्थ थिक जे रावीसँ उत्तर चेनाव, ताहिसँ उत्तर झेलम आ ताहूसँ उत्तर मुख्य सिन्धु तथा ओकर उत्तर सुवास्तु तट अछि, जकरा र्इ. पूर्व 2000 क आसपास आर्य अवष्ये छोडि़ देने होयत। एतेक पैघ दूरीक लेल 200 वर्ष कोनो प्रकारेँ अधिक नहि मानल जायत।
ऋग्वेदमे सुवास्तु तटक जेहन प्रषंसात्मक वर्णन अछि ताहिसँ लगैत अछि जे आर्य ओत• किछु अधिके दिन रहल होयत जाहि लेल 200 वर्ष अधिक नहि थिक। एकर अर्थ र्इ भेल जे र्इ. पूर्व 2500 सैक आसपास जे भारतीय आर्य र्इरानसँ चलल से र्इ. पूर्व 2400 वर्षक आसपास हेलमन्द नदी (अफगानिस्तान) पार कयने होयत तथा र्इ. पूर्व 2200-2300 वर्षक आसपास सुवास्तु तट पर आबि गेल होयत।
सामान्यत खैबर घाटीसँ सरस्वती तट धरि प्रसार गतिमे 500 सै वर्ष मानल जाइत अछि। र्इ. पूर्व 1800 वर्षक आसपास हड़प्पा पतन पश्चात राविये तट पर दाषराज्ञ युद्ध भेल छल ताधरि आर्य प्रसार दृषद्वती तटसँ दक्षिणी भूभाग धरि भ• गेल छल, कारण राजा सुदासक राज्य एही आसपासमे छल। आ र्इ. पूर्व 1300 र्इ. क आसपास धरि यमुना तट पर कुरू तथा गंगाक तट पर पांचाल बसि गेल होयत, तखने महाभारतक घटना घटल। माहभारतेक घटनाक आसपास ऋग्वेदक सम्पादन विभाजन भेल अछि।
एकर अर्थ भेल जे सुवास्तु तटसँ सरस्वती दृषद्वती तट धरि मंत्ररचना एवं श्रुतिक कंठ परम्परामे अत्याधिक तीव्रता ओ सुव्यवस्था आयल जकर सम्पादन यमुना तट पर भेल।
एहि प्रकारेँ, र्इ. पूर्व 3500 वर्षक आसपास मूल अभिजनक लोकगीत परम्परा, र्इरानमे र्इ. पूर्व 3000 वर्षक आसपाससँ मंत्र जरम्परामे परिवर्तित भेल होयत आ र्इ. पूर्व 2500 वर्षक बादसँ एहिमे तीव्रता आयब प्रारम्भ भेल होयत जे हेलमन्द तट धरि (जे कतेक बेर भारतक अंग भेल) तीव्रतर तथा सरस्वती तट धरि तीव्रतम भेल होयत। एहि प्रकारेँ ऋग्वेदक रचनाकालकेँ र्इ. पूर्व 3000 वर्षसँ र्इ. पूर्व 1500 र्इ. पूर्व धरिक मानबामे आपति नहि होमक चाही।
दोसर महत्वपूर्ण तिथि भारतक प्राचीन इतिहासक थिक महाभारतक घटना काल। कारण, एकर बादे उत्तर वैदिककाल अर्थात ब्राह्राण काल मानल जाइत अछि जाहिमे अथर्ववेदसँ सूत्र साहित्य धरिक रचना ओ सम्पादन भेल अछि।
महाभारतक घटनाकालक प्रसंग तीनटा मत अछि मुदा प्रचलित मात्र दुइ गोट अछि।
प्रथम थिक डा. चिन्तामणि विनायक वैधक र्इ. पूर्व 3100 वर्षक। दोसर, डा. काषीप्रसाद जायसवाल तथा डा. राधाकुमुद मुखर्जी लोकनिक र्इ. पूर्व 1400 र्इ. क। किन्तु एहि दुनूमे सम्प्रति इतिहासजगतमें डा. बी. बी. लालक मत र्इ. पूर्व 900 र्इ. बला अधिक मान्य भेल जकरा डा. आर. एस. शर्मा तथा डा. रोमिला थापरक सेहो समर्थन प्राप्त भेल। र्इ मत अछि पुरातातिवक साक्ष्यक सीमित आधार पर।
कहबाक प्रयोजन नहि जे भारतीय पुरातत्व 1784क बादसँ आइधरि अपन विवषता तथा अभावगाथा कहैत रहल अछि, प्राय: कोनो उत्खनन पूर्ण नहि भ• पबैत अछि, कतेक आवष्यक उत्खनन कार्य तेँ प्रारम्भो नहि भेल अछि, जे होइतो अछि ओ अदहे-छिदहा होइत अछि। निर्विवाद पुरातातिवक साक्ष्य इतिहास निर्माण लेल सर्वाधिक ठोस ओ महत्वपूर्ण साक्ष्य थिक, किन्तु भारतक प्राचीन इतिहास मात्र ण्ही आधार पर ठाढ़ नहि कयल जा सकैछ।
आर्य सभ्यता ग्राम्य सभ्यता छल आ सड.ही गत्वर सेहो। दोसर र्इ. पूर्व 500 र्इ. धरि पाथर तथा पाकल र्इटाक व्यवहार सामान्यत: नहि´े भेल अछि। लोहाक ततेक अविकसित षिल्प छन जे ओकरा माटिमे मीलि जेबाक अधिक सम्भावना छल। तै ँ प्राचीन इतिहास लेल साहित्यके साक्ष्य अधिक मान्य होमक चाही। डा. आर. एस. षर्माक र्इ कथन एहि प्रसंग महत्वपूर्ण अछि जे र्इ. पूर्व 1800 सै सँ र्इ. पूर्व 300 वर्षक बीच केर पुरातातिवक साक्ष्य बड़ दुर्लभ अछि। तै इतिहास निर्माण लेल अन्य साक्ष्य पर निर्भर कर• पड़त।
महाभारत घटनाकालक प्रसंग र्इ. पूर्व 900 वर्ष बला मत सेहो समीचीन नहि लगैत अछि। एहि दृषिट´े र्इ. पूर्व 1400 र्इ. बला मत अधिक समीचीन अछि।
महाभारत घटनाकाल 1200 र्इ. पूर्व होमक चाही, तखने अनेक तथ्यक संगति बैसि सकैत अछि।
हसितनापुरक उत्खनन एम्हरी भेल अछि ताहि आधार पर डा. रोमिला थापर कहैत छथि जे 800 र्इ. पूर्व गंगा के किनारे पर यह (हसितनापुर) बसा हुआ था। पुराणों में बताया बया है कि यह घटना युद्ध के तत्काल बाद हसित्नापुर में राज्य करनेवाले राजा के सातवें उत्तराधिकारी के शासनकाल में हुर्इ थी। इससे महाभारत युद्ध का समय लगभग 900 र्इ. पूर्व ठहरता है।
सात पीढ़ीक लेल मात्र एक सै वर्षक अंतराल निर्धारित करब उचित नही जखन कि अंतराल निर्धारण लेल एक पीढ़ीक समय सामान्यत: 20 वर्षसँ 33 वर्ष धरि मानल जाइत अछि। एहि प्रकारेँ डा. थापरक तिथि 940 र्इ. पूर्व अथवा 1030 र्इव पूर्व होमक चाही।
एक पीढ़ी लेल 20 वर्षक सीमा पाष्चात्य इतिहासकारक थिक जाहिठाम जीवनमे अपेक्षाकृत अधिक तीव्रता एवं परिवर्तनषीलता अछि। अंगरेज इतिहासकारक लेल र्इ स्वाभाविक अछि। जाहि यूनान अथवा रोमकेँ र्इ सब आर्दष मानैत अछि ओकर आर्य सभ्यताक जन्मे क्रमष: र्इ. पूर्व 1400 तथा र्इ. पूर्व 800 र्इ. क पश्चात होइत अछि आ अनेक कारणे योरोपक जीवनगति ओहू समयमे अपेक्षाकृत तीवे्र छल। पार्जीटर साहब क• केँ पौराणिक पीढ़ीक लेल 33 वर्ष मानलनि।
दोसर अथर्ववेद (20-127-10)मे परीक्षित राज्यक समृद्धिक चर्च भेल अछि। एहिसँ दुइटा प्रामाणिक साक्ष्य उपसिथत होइत अछि।
महाभारत युद्ध वर्णनमे जे अतिषयोकित हो एतबा तँ अछिये जे कुरूराज्यक अतिरिक्त ओहि आसपासक अनेक राज्यक महान विनाष भेल होयत तथा कृषि कार्य कर• बला अधिकांष युवा प्रौढ़क मृत्यु रूपमे भ• गेल होयत। पुन: कृषि विकासक लेल नवीन पीढ़ीकेँ कासँ कम 30-40 वर्षक अंतराल अवष्ये चाही। अर्थात महाभारतक युद्धक 40-50 वर्षक पष्चाते पुन: आंहि क्षेत्रमे (कुरू राज्यमे) समृद्धिक सम्भावना बनैत अछि जकर चर्च अथर्ववेदमे राजा परीक्षित प्रसंगमे अछि। एकर अथ। भेल जे परीक्षितक राज्यकाल 50-60 वर्षसँ अधिके रहल होयत। अर्थवेद सन प्रामाणिक ग्रंथक समक्ष पुराणक कथा प्रामाणिक अवष्ये नहि मानल जायत।
दोसर महाभारतसँ पूर्व नागक संगब आर्यक नीक सम्बन्ध छल अपितु वैवाहिको सम्बन्ध होम• लागल छल आ तकरहि सड.े परीक्षितक सम्बन्ध पुन: बिगडि़ जाइत अछि। जाहि युद्धमे ओकर मृत्यु होइत अछि तकरा पुराण नाग दंष कहैत अछि। या तँ र्इ कथा मिथ्या थिक नहि तँ नाग विद्रोहक कारण ताक• पड़त। सम्भव थिक परीक्षितक समृद्धि घुमला पर अथज्र्ञत युद्धक 50-60 वर्षक पश्चात परीक्षितक निरंकुषता पुन: बढि़ गेल हो तथा नागक प्रति जे ओकर यमुने तटक प्रजा छल, शोषण बढि़ गेल हो तेँ ओ विद्रोह क• देने हो, जाहिमे परीक्षितक मृत्यु भ• गेल हो। र्इ नागयुद्ध जनमेजयकाल धरि चलैत पबैत अछि।
एहिसँ परीक्षित कालक दीर्घता सेहो प्रकट होइत अछि सड.हि अथर्ववेदक उल्लेख कालनिर्णयक साक्ष्य सेहो प्रस्तुत करैत अछि।
डा. विंटरनित्ज अथर्ववेदक किछु अंषकेँ ऋग्वेदोसँ प्राचीन मानने छथि जे वस्तुत: अछियो किन्तु ओकर अंतिम निषिचत रूप महाभारतक घटनाकालमे अथवा तुरत बादमे आबि गेल होयत। तेँ ओकर तिथि र्इ. पूर्व 1100 र्इ. मानल जा सकैछ।
बुद्धक तिथि सर्वमान्य रूपेँ निषिचत अछि र्इ. पूर्व छठम शताब्दी। बुद्धसँ पूर्व समस्त ब्राह्राण साहित्य (ब्राह्राण, आरण्यक, उपनिषद) केर रचना समाप्त तँ भइये गेल छल जे सूत्र साहित्य सेहो अपन रचनात्मक मघ्य-सिथतिमे छल। डा. राधाकुमुद मुखर्जी सूत्र साहित्य काल र्इ. पूर्व 800 र्इ. मानैत छवि।
र्इ तिथि एहि कारणे संगत अछि जे सूत्र साहित्य काल घिरे भारतीय समाजमे प्राय: जन्मनाक सिद्धान्त आबि गेल छल, अपितु किछु वर्ण बद्धमूलो भ• गेल छल जकर विरोध बुद्ध कयने छलाह आ कर्मणेक सिद्धान्त चलब• चाहैत छलाह जे आव सम्भव नहि रहल छल। जैं ल• केँ बुद्ध शाक्य सन अर्धविकसित जाति अथवा क्षेत्रक छलाह जाहिठाम प्राचीन ऋग्वैदिक जीवन, समाज पद्धति (गणतंत्रीय सामाजिक समझौता सिद्धान्त मान• बला) छल तेँ कर्मणे चाहैत छलाह।
सूत्र साहित्यक अनेक उíेष्यमे सँ एकटा महत्वपूर्ण उíेष्य अछि वर्णाश्रम धर्मक प्रतिष्ठापन तथा उपनिषदक पश्चात केर सन्यास सम्बन्धी अराजकताक निराकरण करैत विभिन्न आर्य संस्कारक मर्यादा निर्धारित करब। एकर अथ भेल जे आरण्यक उपनिषद के मान्यताक प्रचारक बादे सूत्र साहित्यक र्इ प्रयोजन अनुभव कयल गेल होयत। र्इ कार्य उपनिषदक रचनाक सै दू सै वर्षक पश्चाते भेल होयत। एकर अर्थ जे उपनिषदक रचना र्इ. पूर्व 900 र्इ. पूर्व क आसपास अवष्ये अपन मध्यकालमे आबि गेल होयत। र्इ तर्कसंगत एहि कारणे सेहो अछि जे 200-300 वर्षक उपनिषदक प्रचारक बादे बुद्धक जन्म (र्इ. पूर्व छठम सदी) भेल होयत। कारण एक तँ बुद्ध उपनिषदेक मूल भावना पर अपन मत निर्माण कयने छलाह, दोसर उपनिषदक मूल सुसम्बद्धता नहि अछि। आत्मकेँ मानब किन्तु नित्याकेँ नहि मानब र्इ उपनिषदसँ दूरिये प्रकट करैत अछि।
किन्तु स्वयं उपनिषदक ज्ञानकांड, ब्राह्राण ग्रंथक यज्ञवाद अथवा कर्मकांडक प्रतिक्रियामे भेल छल। एहि प्रतिक्रिया लेल सेहो कम सँ कम सौ दू सै वर्ष चाही। ओहि कालक जीवन पद्धतिक मंथरताकेँ देखैत अथवा यज्ञवाद सन आर्यक प्राचीन मान्यताक विरोधमे मत निर्माण अत्यन्त दूर्गम कार्य रहल होयत। महाभारतक घटनाक बादे यज्ञवाद जटिल ओ आडम्बरपूर्ण भेल होयत। अर्थात एहि लेल सेहो कम सँ कम 200-300 वर्ष अवष्ये चाही।
एहि प्रकारेँ उपनिषदक रचनाकाल (र्इ. पूर्व 900 र्इ.) सँ कम सँ कम 200 वर्ष पूर्व अर्थात र्इ. पूर्व 1100 र्इ.मे कृष्ण यजुर्वेद जाहिमे ब्राह्राण अंष संयुक्ते अछि, असितत्वमे आबि गेल होयत, एकर बादे शुक्ल यजुर्वेद तथा ऐत्तरेष् ओ शतपथ ब्राह्राणक रचना भेल होयत।
अथर्ववेद ब्राह्राण ग्रंथसँ पूर्वक थिक र्इ सर्वमान्य अछि जाहिमे परीक्षितक चर्च अछि। एकर अर्थ थिक जे महाभारतक घटना र्इ. पूर्व 1200 र्इ. धरि अवष्ये सम्पन्न भ• गेल होयत।
अर्थर्ववेदक बादेक थिक ऐतरेय तथा शतपथ ब्राह्राण जकर परिषिष्ट थि वृहदारण्यक जाहिमे परीक्षितक प्रसंग जिज्ञासा व्यक्त कयल गेल अछि जे ओहि कालक अतीत थिक, जकरा लेल समाजमे उत्सुकता बनल अछि। एहूसँ सिद्ध होइत अछि जे ब्राह्राणसँ तँ युद्धघटना पूर्वक थिकहे अथर्ववेदोसँ पूर्वक थिक। तेँ युद्धघटनाक समय र्इ. पूर्व 1200 सँ एम्हर नहि आबि सकैत अछि।
दोसर, पाष्र्वनाथक तिथि थिक (777 र्इ. पूर्व ?) बुद्ध सेँ 250 वर्ष पूर्व अर्थात र्इ. पूर्व 800 र्इ. । एही पाष्र्वकेँ सर्वप्रथम एतिहासिक रूपेँ वैदिक कर्मकांडक विषेषत: आडम्बरक विरोध करैत पबैत छी। पाष्र्वनाथ निषिचत रूपेँ लगभग 200 वर्षक उपनिषदीय चिंतनक बादक छवि। आ स्वयं उपनिषदक तत्वचिंतन जे कर्मकांडक विरोधमे मानल जाइत अछि, सँ कम सँ कम दम सै वर्षक कर्मकांडक प्रचार विस्तारक बादे भेल होयत। पूर्व वैदिकयुग सरल कर्मकांड दू सै वर्षक विस्तारेमे जटिल ओ आडम्बरपूर्ण भेल होयत जकर प्रतिक्रिया उपनिषदकेँ मानल जाइत अछि। एहि प्रकारेँ पाष्र्वनाथसँ अर्थात 800 र्इ. पूर्वसँ पूर्वे 400 वर्षक आसपास महाभारततक घटना भेल अर्थात र्इ. पूर्व 1200 र्इ. समीचीन लगैत अछि।
एखन धरि भारतमे लौह संस्कृतिकेँ र्इ. पूर्व 800 र्इ. क मानल जाइत छल। एम्हर जे किछु उत्खनन कार्य भेल अछि जाहि आधार पर अहाड़ (राजस्थान) केर तिथि र्इ. पूर्व 1500 र्इ. क तथा नागदा एवं एरण केर तिथि र्इ. पूर्व 1300 र्इ. क मानल जा रहल अछि। थाइलैंड जे ढलल लोहा भेटल र्अछि ओकर समय र्इ. पूर्व 1200 सै सँ 1600 र्इ. पूर्वक मानल जा रहल अछि। एही आधर पर डा. दिलीप कुमार चक्रवती भारतक लौह संस्कृतिक काल र्इ. पूर्व 1100 र्इ. मानैत छथि। 2
ठहो मालन जा रहल र्अछि जे लोहाक उपयोग पहिने युद्धेमे भेल अछि तखन कृषिमे। जँ र्इ. पूर्व 1100 र्इ. बला मत स्वीकार्य तँ एहू दृषिट´े महाभारत युद्ध सै दू सै वर्ष पूर्वक घटना मानल जायत।
महाभारतक धटनाकाल जँ सिथर, मान्य भ• जाय तँ भारतक प्राचीन इतिहासक बहुत रास तिथि जे अंधकारमे डूबल अछि, प्रकाष तट पर आबि जायत।
एहि प्रकारेँ किछु तिथि संकेत निम्न रूपेँ भ• जाइछ।
आर्य आगमन: र्इ.पूर्व 2500 मे भारतीय क्षेत्रप्रवेष3 ऋग्वेद रचनाकाल : र्इ. पूर्व 3000 सँ 1200 र्इ. क बीच, महाभारत घटनाकाल : र्इ. पूर्व 1200 र्इ.अन्य वेदकाल : र्इ पूर्व 1100 र्इ. सम्पादन, ब्राह्राण रचनाकाल : र्इ. पूर्व 1000 र्इ. सँ प्रारम्भ, उपनिषद काल : र्इ. पूर्व 900 र्इ. पूर्व 900 र्इ. सूत्र साहित्य : र्इ. पूर्व 800 र्इ. यास्क: र्इ. पूर्व 700 र्इ. पाणिनी : र्इ पूर्व 500 र्इ।