बैठा हूँ इस केन किनारे!
बैठा हूँ इस केन किनारे!
दोनों हाथों में रेती है,
नीचे, अगल-बगल रेती है
होड़ राज्य-श्री से लेती है
मोद मुझे रेती देती है।
रेती पर ही पाँव पसारे
बैठा हूँ इस केन किनारे
धीरे-धीरे जल बहता है
सुख की मृदु थपकी लहता है
बड़ी मधुर कविता कहता है
नभ जिस पर बिंबित रहता है
मै भी उस पर तन-मन वारे
बैठा हूँ इस केन किनारे
प्रकृति-प्रिया की माँग चमकती
चटुल मछलियाँ उछल चमकतीं
बगुलों की प्रिय पात चमकती
चाँदी जैसी रेत दमकती
मैं भी उज्ज्वल भाग्य निखारे
बैठा हूँ इस केन किनारे
दोनों हाथों में रेती है,
नीचे, अगल-बगल रेती है
होड़ राज्य-श्री से लेती है
मोद मुझे रेती देती है।
रेती पर ही पाँव पसारे
बैठा हूँ इस केन किनारे
धीरे-धीरे जल बहता है
सुख की मृदु थपकी लहता है
बड़ी मधुर कविता कहता है
नभ जिस पर बिंबित रहता है
मै भी उस पर तन-मन वारे
बैठा हूँ इस केन किनारे
प्रकृति-प्रिया की माँग चमकती
चटुल मछलियाँ उछल चमकतीं
बगुलों की प्रिय पात चमकती
चाँदी जैसी रेत दमकती
मैं भी उज्ज्वल भाग्य निखारे
बैठा हूँ इस केन किनारे