कवि रिल्के के लिये
जब वह
कलम पकडता है
तो देवता लोटने लगते हैं
उसके कदमों की धूल में
पुनर्जन्म के लिये
तब
अपनी निरीहता और विस्फार
उन्हें सौंपता हुआ
रचता है वह उन्हें
खुद को प्रकृतिमय करता
सोचता
कि प्रबल होते मनुष्य की
नित नूतन कल्पना
कहां तक
संभाल सकेगी
इस अबल का बोझ।
कलम पकडता है
तो देवता लोटने लगते हैं
उसके कदमों की धूल में
पुनर्जन्म के लिये
तब
अपनी निरीहता और विस्फार
उन्हें सौंपता हुआ
रचता है वह उन्हें
खुद को प्रकृतिमय करता
सोचता
कि प्रबल होते मनुष्य की
नित नूतन कल्पना
कहां तक
संभाल सकेगी
इस अबल का बोझ।