भारतक संधान : इतिहासक चमत्कार
विश्व इतिहासक पृष्ठ पर भारतक जन्म एकटा आकसिमकता छल, एकटा चमत्कार छल।
चमत्कार छल योरोपक जे पन्द्रहम शताब्दीमे तुर्की साम्राज्य द्वारा स्थल मार्ग रोकि देला पर समुद्री मार्ग ताक• लागल। अनेक समुद्रकेँ टपैत भारतक प्राचीन वैभवकेँ स्मरण करैत, अपन खाली पेट नेने भारत पहुँचि गेल आ र्इसाक प्रथम शताब्दीक आसपास रोमसँ भारतीय व्यापारी द्वारा व्यापारक लाभ क्रममे आनल गेल सोना ताक• लागल, लुट• लागल।
लुट• सँ पूर्व योरोप पहिने अपनामे कुकूर जकाँ लड़ल, लड़ल डच आ पोत्र्तगाीज आ फ्रेंच। अंतमे जीत भेल अंगरेजक। अंगरेज लुटैत-लुटैत शासन कर• लागल। शासन लेल आवष्यक भेल भारतीय परम्पराक ज्ञान। आवष्यक भेल इतिहासक संधान।
भारतमे, आधुनिक अर्थमे इतिहास नहि छल। इतिहास, संस्कृति तथा साहित्य जे किछू छल से प्राचीन कालमे कंठाग्र छल, बादमे ओ जीवनमे उतरिकेँ समाजक वस्तुु बनि गेल छल। 1839 र्इ. मेे एलिफिस्टन कहलक जे प्राचीन भारतकेँ इतिहास नहि अछि। अधिकांष अंगरेजक धारणा, जे ओकर अज्ञानता पर आधारित छल, भेल जे भारतकेँ प्रचीनता नहि अछि।
प्राचीनताक उदधाटन केलनि प्रथम-प्रथम 1764 र्इ. मे मद्रास प्रेसीडेंसीक ब्रुषफुट जनिका प्राचीनतम हथियार आ हडडी भेटल, जकर विवरणसँ योरोप चौकि उठल। भारतो आदिमानवक क्षेत्र मानल जाय लागल। पुरातत्व विभारग साकांक्ष भेल, इतिहास लेखन सक्रिय भेल।
एहि प्रकारेँ प्राचीन भारतक इतिहास, आधुनिक अर्थमे, अठारहम शताब्दीक पश्चाते लीखल जाय लागल। एतबा अवष्य जे एहि प्रकारक प्रयास एहिसँ पूर्व भारतमे कहियो नहि भेल छल। ओकर प्रयोजनो नहि छल।
प्रयोजन थिक इतिहास केर अतीतक विवरण उपसिथत करैत वत्र्तमानक निर्देषन तथा भविष्यक लेल मार्ग-संकेत देब। एहि अर्थमे, अति प्राचीनेकालसँ, भारतमे इतिहासक प्रतिष्ठा छल। ऋग्वैदिक कालमे सूत एकटा अधिकारी मानल जाइत छल जकर कार्ये छल इतिहास आ परम्पराकेँ सुरक्षित राखब तथा समय-समय पर (अभिषेककालमे निषिचते) उपसिथत करब। स्वयं ऋग्वेदमे अनेक ऐतिहासिक उपाख्यान अछि जे कालांतरक ब्राहम्ण, उपनिषद होइत पुराण धरि चलि गेल अछि जे ओही सूत परम्पराक परिणाम थिक।
ओही सूत परम्पराक परिणाम थिक रामायण आ महाभारत।
महाभारतमे प्रथम-प्रथम इतिहास शब्दक व्यवहार भेल अछि तथा परिभाषा कयल गेल अछि जे प्राचीन भारतीय इतिहास संकल्पनाके प्रकट करैत अछि, जकर समर्थन करैत डा. ब्युहलर कहलनि जे स्वयं महाभारतमे प्रचूर सामग्री र्अछि।
इतिहासक उíेष्य सामंती युद्धक विवरणे टा प्रस्तुत करब नहि थिक, अपितु समाज विकासक चित्रण करब सेहो अभिप्रेत थिक। कहबाक प्रयोजन नहि जे समाज विकासक स्वयं उíेष्य थिक सभ्य एवं सुसंस्कृत रूपें आनन्दमय संतुलित जीवनयापन।
एही संतुलित जीवनयापनकेँ ध्यानमे राखि धर्म, अर्थ, काम तथा मोक्षकेँ पुरूषार्थ मानल गेल एवं वर्णाश्रम व्यवस्थाकेँ सफल समाजक लेल अनिवार्य रूपमे स्वीकार कयल गेल जे विष्वक समाजषास्त्रीकेँ चकित क• देलक।
महाभारत तथा पुराणमेे षिक्षा नियोजित अछि जे कालांतरमे जीवनमे उतरिकेँ सामाजिक नियमक रूप धारण क• लेलक। यैह कारण थिक जे भारतमे दंड व्यवस्था (मुख्यत: प्राचीनतकालमे) गौण रहल।
वस्तुत: प्राचीन भारतक इतिहास राजनीतिक कम सांस्कृतिक अधिक अछि।
र्इ बात भिन्न जे एहिठाम प्राचीन यूनानक हिरोडोटस अथवा प्राचीन रोमक लिवीटाल्मी सन इतिहासकार नहि भलाह जे मात्र इतिहासे टा लिखितथि। भारतमे तँ झानाकोषक परम्परा रहल अछि आ से अछि ऋग्वेदसँ जकर परम्परा पाणिनी होइत (चौदहम शताटदीक मिथिलाक ज्योतिरीष्वर ठाकुरक) वर्णरत्नाकर धरि चलि आयल अछि। भारतक प्राचीन गं्रथ सबमे जीवन, समाज राजनीति तथा धर्म, सबटा एक्केठाम भेटि जाइत अछि तत्कालीन षिक्षा पद्धतिक अनुकूल। प्राचीन योरोपमे चौदहम शताब्दीसँ पूर्व षिक्षाक कोनो परम्परा नहि छल, छल मात्र बाइबिल घोंटब। तेँ योरोपीय संस्कृतिमे इतिहासक भिन्न प्रयोजन पड़ल।
भारतमे इतिहास, पुराण बनिकेँ दैनिक अंग बनि गेल छल जकर प्रमाण थिक सूत परम्परा। र्इ बात भिन्न थिक जे एहि सूत परम्पराक पुराण केर शैली थिक साहितियक (तेँ अलंकरीिक अछि) तथा उíेष्य अछि भकित भावना, तेँ अतिषयोकितपूर्ण सेहो अछि। दोसर, पुराणमे संतुलित व्यवस्थाक अभाव अछि (परस्पर विरोधी र्अछि) तथापि सतर्कतापूर्वक परीक्षणक पश्चात पुराणक उपयोग इतिहास निर्माणमे भ• सकैछ। एहि प्रसंग अनेक विद्वानक कार्य र्अछि जाहिमे पार्जिटर साहेब अविस्मरणीय रहताह।
प््राचीन भारतक इतिहास निर्माणक प्रसंग डा. रोमिला थापरक कथन निषिचते मान्य थिक जे भारतक प्राचीन इतिहास कल्पनाश्रिते अधिक रहत। किन्तु कल्पना निराधार नहि, अनके आधार अछि जाहिमे मुख्य अछि पुरातत्व साक्ष्य, साहित्य एवं विदेषी यात्रीक यात्रा वर्णन।
पुरातत्वमे मुख्य अछि उत्खनन, अभिलेख तथा सिक्का आदि। साहित्यमे वैदिक, बौद्ध, लौकिक साहित्य तथा अष्टाध्यायी एवं अर्थषास्त्र प्रमुख अछि जाहि आधार पर प्राचीन इतिहासक निर्माण सम्भव अछि।
प्राचीन इतिहास निर्माणमे उपयोगी होइत अछि पषिचम एषियाक भारत प्रसंग उल्लेख तथा विभिन्न यात्रीक वर्णन। सुमेरियाक पौराणिक उल्लेखमे भारत, बेबीलोनक सारगनक भारतीय व्यापारक उल्लेख तथा बोनाजकोइक संधिलेख, प्राचीन भारतक कतिपय पक्षकेँ महत्वपूर्ण ढंगेँ प्रकाषित करैत अछि।
प्रकाषित करैत अछि प्राचीन भारतकेँ यूनानी, रोमन, चीनी तथा अरबी जिज्ञासु लोकनिक वृतान्त। स्काइलैक्स फारसक एकटा यूनानी सैनिक छल जे सिकन्दर (र्इ. पूर्व 326) सँ पूर्वहि सिंधप्रदेष आयल छल, जकर उल्लेख हिरोडोटसक हिस्टोरिकामे भेटैत अछि। सम्भवत: यैह प्रथम यात्री छल। मेगास्थनीजक डंडिका एहि प्रसंग एकटा लाइट हाउस थिक जकर अनेक किरण अनेक यूनानी तथा रोमन लेखमे भेटैत अछि। र्इ. पूर्व तेसर शताब्दीक यूनानी पेट्रोकालीजक भारत प्रसंग लेख केर स्ट्रेबो बहुत प्रषंसा करने अछि। र्इ. पूर्व प्रथम शताब्दीमे एकटा यूनानी जे मिस्रमे रहैत छल आ जे भारतीय समुद्र तटक यात्रा कयने छल, पेरीप्लजक रचना केलक जे महत्वपूर्ण मानल जाइत र्अछि।
र्इ. पूर्व प्रथम शताब्दीक पिलनी तथा र्इ. पूर्व दोसर शताब्दीक टालमी नामक रोमन लेखकक किछु अंष भारतीय इतिहास लेल निषिचत महत्वपूर्ण अछि।
महत्वपूर्ण अछि र्इ. पूर्व प्रथम शताब्दीक प्रथम चीनी लेखक शुमाचीन, पाँचम शताब्दीक सुलेमान, दसम शताब्दीक अल मसूदी तथा एगारहम शताब्दीक अल बेरूनी जे संस्कृत भाषा सिखलनि तथा भारतीय संस्कृतिक प्रषंसा करैत भारतीय गणित, ज्योतिष, विज्ञान, दर्षन तथा धार्मिक परम्पराक विष्व संस्कृतिमे महत्व प्रतिपादित केलनि।
अल बेरूनी, महमूद गजनीक समकालीन छल किन्तु महमूद जत• असभ्य, बर्बर तथा लुटेरा बनि क• डाकू जकाँ भारतकेँ लुटलक आ जाइत काल सोमनाथक फाटक पर्यन्त नेने तत• अल बेरूनी अपन निष्पक्षता, धार्मिक निरपेक्षता द्वारा भारतीय संस्कृतिक जाहि शब्देँ महिमा गायन कयने छथि से गजनीक गाल पर अरबक थापरे मानल जायत। कहबाक प्रयोजन नहि जे एहि सब सामग्रीक महत्व इतिहास लेखनक लेल उल्लेखनीय अछि।
उल्लेखनीय अछि प्रारमिभक भारतीय इतिहास लेखनक क्षेत्रमे उन्नैसम शताब्दीक चाल्र्स ग्रान्ट, जेम्स मिल तथा बी.ए. सिमथ जे वैज्ञानिक इतिहास लेखनक क्रममे एकटा कलंकक रूपमे स्वमण कयल जायत। ताहिमे जेम्स मिल अपन अज्ञानता, पक्षपातपूर्ण विचार तथा निकृष्ट सिद्धांत निरूपणसँ (अपन इतिहास द्वारा) जतेक गोटाकेँ भ्रान्त करबाक चेष्टा केलक जे एकरा हिटलरे सुसोलिनीक कोटिमे राखि दैत अछि। हमरा बुझने नर हत्यासँ मानस हत्या अधिक जघन्य थिक। चाल्र्स ग्रान्ट आ जेम्स मिल एहने जघन्य अपराधी थिक।
असलमे र्इ सब जर्मनी आ फ्रांसक भारतीय सुनिकेँ खौंझा उठल छल, लजिजत भ• उठल छल, गुलाम भारतक सांस्कृतिक वैभवक प्रकाषसँ बौखला उठल छल। र्इ वैह समय छल जखन भारतक ऋग्वेद, ब्राहमण, उपनिषद आ समृतिक काव्यात्मकता, बौद्धिकता तथा दार्षनिक उच्चतासँ योरोप चौंकिकेँ मुग्ध भ• रहल छल, भारतीय प्राचीन सांस्कृतिक वैभवक प्रति अनेक फ्रेंच ओ जर्मन विद्वान विसिमत भ• रहल छलाह, सर विलियम जोन्स भारतीय ज्ञानक प्रकाषन लेल आकुल व्याकुल भ• रहल छलाह, आ मैक्समूलर अपन नामे मोक्षमूल राखि नेने छलाह।
1818 मे जेम्स मिलक बि्रटिषकालीन भारतक इतिहास प्रकाषित भेल जकरा पढि़ अनेक अंगरेज प्रषासक (जे पाठयग्रंथक रूपमे पढ़ैत छल) भ्रष्ट होइत छल। एक दृषिट´े, र्इ सब स्वयं अंगरेजक जडि़ काटलक, भारतीयकेँ भ्रान्त विचारसँ अतिषीघ्र क्रुद्ध क• देलक, जाहिसँ स्वाधीनता आन्दोलन निकट आबि गेल। नहि तँ भारत सन सहिष्णु देष तथा क्षुद्र र्इष्र्याग्रस्त भारतीय रजवाड़ाक कारणे इहो सब मुसलमाने जकाँ अनेक समय धरि शासन क• सकैत छल। वस्तुत: र्इसार्इ मिषनरीक मूर्खतासँ भारतमे अंगरेजक जडि़ कटि गेल।
एहि मूर्खताक नेता छल चाल्र्स ग्रान्ट जे तत्कालीन इंग्लैंडक एकटा महत्वपूर्ण र्इसार्इ छल जे कहने फिरैत छल जे हिन्दू धर्म मूर्ख निकृष्ट तथा शैतानक धर्म थिक सड.हि ओ प्राचीन भारतकेँ पतित, बैमान आ यौन पापाचारी मानैत छल। जेम्स मिल, चाल्र्स ग्रान्टकेँ अपन आदर्ष मानिकेँ इतिहास लिखलक तथा प्राचीन भारतीयमे एकटा आरो विषेषण जोड़लक-बर्बर। यैह सर्वप्रथम हिन्दू काल, मुसिलम काल तथा बि्रटिष कालक रूपमे भारतीय इजिहासक विभाजन केलक। एहि विभाजन द्वारा साम्प्रदायिकताक बीजारोपनक सड.हि अपन काल विभाजनक अज्ञानता सेहो प्रकट केलक। हिन्दू काल तथा मुसिलम कालमे धर्मकेँ प्रधानता मानलक (मुसलमान नहि मुसिलम शब्द अछि) किन्तु तेसर र्इसार्इ कालकेँ बि्रटिष काल कहि देलक।
बी.ए. सिमथकेँ भारतीय इतिहास लेखनक यैह परम्परा भेटल छल तेँ ओ भारतीय समाजकेँ क्रूर तथा भयानक मानैत कहलक जे भारतीयकेँ शासन करबाक योग्यता नहि अछि।
भारतीय मानसकेँ र्इ सब बात उत्तेजित केलक, कालांतरमे अनेक निष्पक्ष इतिहास लीखल गेल, लिखा रहल अछि। किन्तु जहिना महाकाव्य लेखनमे खल निन्दा अनिवार्य मानल जाइत अछि, अथवा र्इरान द्वारा अरबीकेँ गारि देब धार्मिक कृत्य मानल जाइत छल, महिना भारतीय इतिहास लेखनक क्रममे एहि तीनू (खल) केँ स्मरण कयल जाइत रहत।
हमर अपन व्यकितगत धारणा अछि जे जहिना दसम शताब्दीक बाद भारतमे आब• बला विदेषी, भारतीयक सड.े मीलिकेँ पचि नहि सकल अथवा भारतीय राष्ट्र देवताक आराधना परम्परागत रूपेँ नहि क• सकल, नहि क• सकैत छल, तहिना तत्कालीन अधिकांष अंगरेज इतिहासकारसँ निष्पक्ष तटस्थताक आषा करब अनैतिहासिक थिक। ए.एल. वाषम सन समकालीन इतिहास लेखक केर किछू परस्पर विरोधी विचार, जकर विवरण आगू देब, चौंका दैत अछि।
भारतीय इतिहास लिखैत काल अंगरेज इतिहासकार (अधिकांष) तटस्थ नहि रहि सकैत छल र्इ स्वाभविके अछि, र्इ सब एकटा आरो भ्रान्त धारणा ल• केँ चलैत छल जे यूनानसँ प्राचीन कोनो संस्कृति भइये नहि सकैत अछि। तेँ जँ विष्वक कोनो अन्य संस्कृतिक पता लगैत छल तँ र्इ सब ओकर तुलना यूनानी संस्कृतिसँ करैत छल तथा ओकरा (यूनानीकेँ) श्रेष्ठ मानि लैत छल।
स्मरणीय जे भारतीय इतिहास लेखनक कार्य एकटा आकसिमकते थिक। भारतमे व्यापारिक सुविधा एवं शोषणक लेल चिंतनक क्रममे भारतक इतिहास लिखा गेल।
1778 र्इ. मे ए. वी. हाल्डेडक द्वारा भारतीय ग्रंथक प्रथम अंगरेजी अनुवाद विवादार्णव सेतुक भूतिकामे भारतीय समाजक तथा वर्ण व्यवस्था पर विचार कयल गेल छल। र्इ विचार एहि लेल कयल गेल छल जे व्यापर तथा शोषण लेल भारतीय सामाजिक व्यवस्थामे परिवर्तन आनल जाय अथवा नहि।
एही सामग्रीक आधार पर 1818 र्इ. मे जेम्स मिल प्रथम-प्रथम बि्रटिषकालीन भारतक इतिहास लिखलक जे भारतक प्रथम इतिहास भेल आ जाहिमे भारतीय वर्ण-व्यवस्थाकेँ भयानक कुरूप मानैत प्राचीन भारतकेँ असभ्य, बर्बर,मूर्ख, प्रगति विरोधी, पतित तथा लड़ाकू अत्याचारी मानलक।
असलमे जेम्स मिलक एहि अदभूत धारणाक पाछू चाल्र्स ग्रांट नामक एक अदभत अंगरेज अवधारणा कार्य क• रहल छल जे ओहि समयमे लन्दनि´ा बौद्धिक, समाजमे अपन मुखरताक लेल प्रसिद्ध छल तथा जे तत्कालीन र्इसार्इ मिषनरी सभक सफल नेतृत्व क• रहल छल आ जे हिन्दू धर्मकेँ पतित, मूर्ख आ शैतानक धर्म मानि रहल छल ओ हिन्दू समाजमे मात्र बैमानी, धोखाघड़ी, स्वार्थपरता तथा कुकर्मी, यौन पापाचारीकेँ देखैत छल जकर एकमात्र उद्धारक र्इसार्इ धर्मेटाकेँ मानैत छल। आ एम्हर भारत छल जे राताराती र्इसार्इ धर्म नहि स्वीकार क• रहल छल। तेँ भारत कटटरपंथीक देष मानल जाय लागल।
अपन पर्वजक एहने अनुभव आ ज्ञान ल• केँ इतिहास लेखनक क्षेत्रमे उतरल बी. सिमथ (1869-1900) जे अपन पूर्वजक समर्थन करैत लिखलक जे प्राचीन भारतीय बर्बर आ लड़ाकू रहल अछि, एकरा (हिन्दूकेँ) अपन शासन सन महत्वपूर्ण कार्य नहि कर• अबैत अछि तेँ एकरा पर आने शासन केलक अंिद तथा अंगरेजीये शासनसँ भारतक कर• उद्धार भ• सकैत अछि।
एहने इतिहास पाठय पुस्तक बनैत छल तथा यैह इतिहास पढि़-पढि़ अंगरेज भारतमे शासन कर• अबैत छल।
जेम्स मिल जाहि सामग्रीक आधार पर भारतीयमे बर्बरता तथा अत्याचार देखने छल, ओही सामग्रीक आधार पर 1841 र्इ. मे एलिफिंस्टन प्राचीन भारतकेँ व्यवसिथत, शांत , सहिष्णु आ संतुलित संतुष्ट देखने छल। किन्तु एलिफिंस्टन मत सामन्यत: अंगरेज शासक तथा शोषकक अनुकूल नहि पड़ैत छल तेँ अमान्य भ• गेल, उपेक्षित रहि गेल।
अंगरेज बैमानियो बहुत र्इमानदारी आ निष्टाक संग करैत अछि जे ओकर जातीय गुण थिक। एहि प्रकारक इतिहास लेखन तथा प्राचीन भारतक अनेक विवाद उपस्थापनक पाछू ओकर सभक एकटा आरो मुख्य उíेष्य छल, भारतीय बुद्धिजीतीमे विषयान्त (भटकाव) उपसिथत करब। एहि लेल 1881 र्इ. मे शूद्रक ओहने दयनीय सिथति छल जेहन अमेरिकामे 1860 र्इ. सँ पूर्व गृहदासक छल। ओ सब भारतीय अखंडताकेँ तोड़बाक अथक प्रयास अपन इतिहास लेखनक क्रममे केलक, एक दिस अदिवासीकेँ भड़कौलक, दोसर दिस उच्चवर्गकेँ निम्न वर्ग पर अत्याचार करैत देखौलक, नारीक हीन सिथतिक चित्रण केलक तथा ब्राहमण, क्षत्रियकेँ परस्पर युद्धे करैत देखौलक, एहि क्रममे आर. मूर 188 पृष्ठक युद्ध विवरण प्रस्तुत क• गेल।
एकर फल र्इ भेल जे (जकर आषा अंगरेजकेँ छल) उन्नैस शताब्दीक उत्तरार्धक अधिकांष भारतीय बुद्धिजीवी राजनीति तथा अर्थनीति सन महत्वपूर्ण विषयकेेँ छोडि़ अन्य सामाजिक (गौण) विषयमे लागि गेलाह। केटकर तथा डा. अम्बेदकर शुद्रक इतिहास ताक• में, राजेन्द्रलाल मित्र (1881र्इ.) भारतक गोवधमे तथा अन्य विद्वानलोकनि प्राचीनभारतमे सतीप्रथा, विधवा विवाह आदि सन-सन विषयमे उलझि गेलाह। आ एहि विवाद सबसेँ जे सामग्री प्रस्तुत होइल छल ताहिसँ इतिहास लिखय लागल। भारतीय इतिहास लेखनक सबसँ पैध दूर्भाग्य र्इ भेल जे इतिहास लेखनमे म.म. काणे तथा म.म. डा. सर गंगानाथ झा सन-सन संस्कृतक विद्वान नहि एलाह। आ इतिहास प्रस्तुत होइत संस्कृतक सामग्री पर। एहन सामग्रीक पहिने फारसी अनुवाद होइत छल, तखन अंगरेजीमे। भाव परिवर्तनक सम्भावना तँ अंगरेजियमे छल, स्वयं संस्कृत जनैत नहि छलाह।
एहि सभक कारणे तत्कालीन भारतीय इतिहासमे अनेक भ्रान्त आ असम्बद्ध बात भेटि जायब अस्वाभाविक नहि, जकर एकटा उदाहरण तत्काल अछि भारतमे आर्य आगमन तथा ऋग्वेदक रचनाक कालबिन्दू जे एखन धरि र्इ. पूर्व 4500 र्इ. सँ ल• केँ 1500 र्इ. पूर्वक बीचमे डोलि रहल अछि।
भारतीय इतिहास लेखनक एकटा महत्वपूर्ण घटना थिक द्रविड़ सभ्यताक संधान। 1922-23 र्इ मे राखलदास बनजीकेँ एहि सभ्यताक पता एकटा उत्खननक क्रममे चलल आ कालांतरमे हड़प्पा ओ मोअन जोदड़ो नगर प्रकट भेल, बादमे आरो छओ गोट नगरक उत्खनन भेल, आब तँ द्रविड़ सभ्यताक नगर संख्या बहुत बढि गेल अछि। एहि सभ्यताक लिपि नहि पढ़ल जा सकल अछि किन्तु एकर मोहर सब एषियाक विभिन्न भागमे भेटल अछि।
द्रविड़ सभ्यताक समय सामान्यत: 4000 र्इ. पूूर्व सँ 1800 र्र्इ. पूर्व धरिक मानक चाही। यधपि एहू तिथिविन्दू पर अनेक मतवाद अछि। किन्तु महत्वपूर्ण बात र्इ थिक जे एहि सभ्यतासँ प्राचीनो सभ्यता सभक पता चलल अछि जाहिमे सँ कतिपय सँ कतिपय तँ सिन्धु नदीसँ पषिचमो अछि आ किछु यमुनासँ पूबो। सामान्यत: आब तँ इ. पूर्व 7 हजार वर्ष पूर्वक अन्नषेष सेहो भेटि गेल अछि। एखनधरि विष्वक प्राचीनतम गाम पषिचम एषियाक जेरिको भेटल अछि जे र्इ. पूर्व 7 हजार वर्ष पूर्वक थिक। हमर निषिचत मत अछि जे भारतमे र्इ. पूर्व 8 हजार वर्षसँ बहुत पूर्वे भारतीय ग्राम बसि गेल होयत।
भारतीय इतिहास र्इ. पूर्व छठम शताब्दीसँ बहुत पाछू धरि, द्रविड़ सभ्यता धरि पहुँचि गेल।
टंगरेज इतिहासकार, जकर समर्थन अधिकांष भारतीयो इतिहासकार लोकनि केललि, प्राचीन इजिहासक प्रसंगमे निरंतर ऐतिहासिक सामग्रीक अभावक ढ़ोल पीटैत रहलाह अछि। एतबा अवष्य अछि जे भारतीय पुरातत्व विभाग 1784 र्इक बुषफ्रुटेसँ आइ डा. दिलीप कुमार चक्रवर्ती धरि अपन आर्थिक अभावक हकन्न कानि रहल अछि जाहि कारणे उत्खनन कार्य पूर्ण अपर्याप्त अछि जे इतिहास लेखनक लेले आवष्यक होइत अछि।
किन्तु विष्वभरिमे भारते टा एहन देष अछि जकरा लग विष्वक प्राचीनतम साहित्य ऋग्वेदक सड.हि विपुल वैदिक प्राचीनसाहित्य अछि जकर कड़ी स्मृति साहित्य धरि अर्थात र्इसापूर्व प्रथम द्वितीय शताब्दी धरि अंिछ जे स्वयं प्रामाणिक साहित्य थिक आ जाहि आधारपर वैज्ञानिक इतिहास लेखन सम्भवे नहि अछि, सुगमो अछि।
असलमे इजिहासकार लोकनि, अंगरेज इजिहासकार लोकनि इजिस विकासक माघ्यम राजा, रानी तथा सेनापतिकेँ मानैत छलाल। वस्तुत: इजिस विकासक वास्तविक माध्यम थिक समाज। समाजेक वास्तविक इतिहास कोनो देषक यथार्थ इतिहास थिक। आ भारतीय समाजक विकासक रूपरेखा प्रस्तुत करबाक लेले प्रचूर साहित्य, ऋग्वेदसँ स्मृति साहित्य धरि भारतमे अछि। एकर अतिरिक्त अष्टाध्यायाी, अर्थषास्त्र तथा महाभाष्य सेहो अछि। एकर बादे आबि जाइत अछिलौकिक संस्कृत साहित्य । आ एही सभक आधार पर, पर्याप्त उत्खनन साक्ष्यक अभावोमे आइ भारतीय इजिहयकार देषक इजिहसक रचना करैत आबि रहल छथि। द्रविड़ सभ्यताक लिपिक अपाठ द्रविड़ इतिहासकेँ प्रस्तुत करबामे कोन बाधा देलक? ओहि लिपिमे की भटबाक आषा अछि जे अन्य सामग्रीसँ नहि भेटल अछि?
इतिहास लेखनक दृषिट´े भने पुराण, जातक, रामायण तथा महाभारतकेँ प्रामाणिक नहि मानल जाइल हो किन्तु सतर्कतापूर्वक एहि सबसँ तँ किछु ने किछु तथ्य दिस संकेत भेटिये सकैत अंिछ।
भारतक इतिहास तटस्थताक आ निष्पक्षताक प्रतीक्षमे अछि। स्वाधीनतासँ पूर्वक इतिहासकेँ जँ राष्टीयतावादक दोषसँ ग्रस्त मानल जाइत अछि तँ बादक कतिपय इजिहसकार विदेषी चष्मा लगाकेँ इतिहासकेँ अपन मतवादक मंच बनबैत अपन प्रतिबद्धताक प्रति आबद्ध छथि। स्वस्थ इतिहासक लेल र्इ दुनू वाद (अथवा अतिवाद) अपथ्य थिक। वस्तुत: भारतक इतिहास अनेक शंका ओ अनिष्चयसँ रूग्ण अछि आ इतिहासकार दिस टुक-टुक ताकि रहल अछि।