मेरी आहटें
झरे हुए पीले पत्तों की तरह
मैं भी
टुटा हुआ हूँ
अपने आप से
बेजान देह को ढोता हुआ
धूप के चेहरे पर
उग आई झुर्रियां
याद दिलाती हैं मुझे
मेरी उम्र
मैं छुपता हूँ
कभी
अपने पीछे
कभी
अधूरे सपनो की दौड़ में शामिल भीड़ में
गहरी प्यास
में डूबा हुआ
बूंदों के पीछे भटकता हूँ
अपनी
पलकों से गिरते हुए गीली यादों को
बचाने की तमाम कोशिशों में
नींद की दीवारों के भीतर
गूंजती है मेरी
आवाजें
और
सुबह की उदास सीढ़ियों पर
सुनता हूँ
अपनी ही आहटें
मैं भी
टुटा हुआ हूँ
अपने आप से
बेजान देह को ढोता हुआ
धूप के चेहरे पर
उग आई झुर्रियां
याद दिलाती हैं मुझे
मेरी उम्र
मैं छुपता हूँ
कभी
अपने पीछे
कभी
अधूरे सपनो की दौड़ में शामिल भीड़ में
गहरी प्यास
में डूबा हुआ
बूंदों के पीछे भटकता हूँ
अपनी
पलकों से गिरते हुए गीली यादों को
बचाने की तमाम कोशिशों में
नींद की दीवारों के भीतर
गूंजती है मेरी
आवाजें
और
सुबह की उदास सीढ़ियों पर
सुनता हूँ
अपनी ही आहटें