सीमा
थाकि गेल छियह,हे मित्र !
बहुत रास बाट टपलहुं, बहुत गिरीश्रिंगकें नपलहुं |
बहुतो दूर आकाशमे बौअयलहुं
मुदा अपना सीमा मे एखनो, बद्ध,संकुचित छी |
एखनो वैह भूख, एखनो वैह पीड़ा ,
आकाशक बिस्तारमे बुझाइछ
निरर्थकता …..
एक टा ठेही |
थाकि गेल छियह,हे मित्र !
एखनो बडकी टा आकाश
इशारा करैत अछि,
एखनो रहस्य बहुत रास मौन, बहुत रास प्रस्नचिंह|
मुदा हमर सीमा सभक ऊपर अछि
हमर क्षणिकता आ दौर्बल्य
हमरा एक टा परबा बना देने अछि
हमरा नहि होइछ--
एही शरीरें
हम सृष्टी कोनो भागमें
तोड़ी सकब अपन संकुचन,सीमा,
अपदार्थत्व |
थाकि गेल छियह,हे मित्र !
बहुत रास बाट टपलहुं, बहुत गिरीश्रिंगकें नपलहुं |
बहुतो दूर आकाशमे बौअयलहुं
मुदा अपना सीमा मे एखनो, बद्ध,संकुचित छी |
एखनो वैह भूख, एखनो वैह पीड़ा ,
आकाशक बिस्तारमे बुझाइछ
निरर्थकता …..
एक टा ठेही |
थाकि गेल छियह,हे मित्र !
एखनो बडकी टा आकाश
इशारा करैत अछि,
एखनो रहस्य बहुत रास मौन, बहुत रास प्रस्नचिंह|
मुदा हमर सीमा सभक ऊपर अछि
हमर क्षणिकता आ दौर्बल्य
हमरा एक टा परबा बना देने अछि
हमरा नहि होइछ--
एही शरीरें
हम सृष्टी कोनो भागमें
तोड़ी सकब अपन संकुचन,सीमा,
अपदार्थत्व |
थाकि गेल छियह,हे मित्र !