तारानन्द वियोगी
साहित्य-लेखन में प्रयुक्त नाम-- तारानन्द वियोगी
पिता--- स्व० बद्री महतो
जन्म-तिथि--- 15. 1. 1966
स्थायी पता--- बदरिकाश्रम, महिषी,सहरसा,बिहार 852216
शिक्षा-- विद्यावारिधि (पी-एच० डी०) (कामेश्वर सिंह द०सं०वि०वि०), एम०ए०(संस्कृत)(पटना वि० वि०), आचार्य (साहित्य) (का०सिं०द०सं०वि०वि०),बी० एड० (मिथिला वि० वि),शास्त्री, उत्तरमध्यमा (का०सिं०द०सं०वि०वि०)
सेवा-जीविका--- केन्द्रीय विद्यालय संगठन में अध्यापन (1986 से 1993) बिहार प्रशासनिक सेवा में उपसमाहर्ता (1993 से)
साहित्य-सेवा--- विभिन्न विधाओं में 29 पुस्तकें अबतक प्रकाशित।साहित्य अकादेमी तथा नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया ने भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित की हैं।कुछ पुस्तकें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित-प्रशंसित हुई हैं।विभिन्न विषयों पर 100 से अधिक शोधपत्र तथा इससे भी अधिक सृजनात्मक विधाओं की रचनाएं महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित।
प्रमुख पुस्तकें (सम्पादन) --- मंडन मिश्र और उनका अद्वैत वेदान्त (आचार्य मंडन मिश्र के दर्शन पर), भनहि विद्यापति(महाकवि विद्यापति के जीवनपरक उपन्यास का अनुवाद) देसिल बयना(कथा-संग्रह(नेशनल बुक ट्रस्ट), बिहार की हिन्दी कहानी(दो खंडों में), राजकमल चौधरीःसृजन के आयाम,श्वेतपत्र आदि-आदि।
प्रमुख पुस्तकें (मौलिक)--- रामकथा और मैथिली रामायण, कर्मधारय, धूमकेतु (आलोचना) तुमि चिर सारथि(संमरण) महिषी की ताराःइतिहास और आख्यान(क्षेत्रीय इतिहास)बुद्ध का दुख और मेरा, हस्तक्षेप,अपन युद्धक साक्ष्य (कविता)
राक्षस की अंगूठी(विशाखदत्त के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ की पुनर्प्रस्तुति आम पाठकों के लिए)ई भेटल तं की भेटल,
1966 मे महिषी(सहरसा-बिहार) में जन्म।शिक्षा--आचार्य,एम०ए०,पी-एच०डी०आदि-आदि।
मिथिला-समाज में एक प्रखर-मुखर साहित्य-कर्मी के रूप में प्रख्यात। अपने गांव-घर के परिसर में एक ऐसे 'क्रियावान विद्वान' के रूप में जाने जाते हैं, जो हमेशा किसी-न-किसी सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान को पूरा करने में अपनी टीम के साथ लगा रहता है। सृजनात्मक तथा आलोचनात्मक--दोनों ही प्रकार के लेखन में समान रुचि एवं गति, किन्तु मूलतः कवि। मैथिली में दलित साहित्य के प्रतिष्ठापक बताए जाते हैं। मौलिक एवं विचारोत्तेजक लेखन के लिए लगातार चर्चित और विवादित भी। कहानियां भी लिखी हैं और आलोचनात्मक ग्रन्थ भी,जिन्हें महत्वपूर्ण माना गया। यात्री नागार्जुन की संगत में रहे, जिसका आख्यान 'तुमि चिर सारथि' लिखा, जिसे अत्यन्त पठनीय माना गया। अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेजी में अनुवाद।
प्रमुख कृतियां-- बुद्ध का दुख और मेरा, हस्तक्षेप, अपन युद्धक साक्ष्य(कविताएं), अतिक्रमण, शिलालेख, प्रतिनिधि कथा (कहानियां) , कर्मधारय, रामकथा आ मैथिली रामायण, धूमकेतु (आलोचना), राक्षस की अंगूठी, यह पाया तो क्या पाया, गोनू झा के किस्से(बाल-साहित्य), तुमि चिर सारथि(संस्मरण), महिषी की ताराःइतिहास और आख्यान(क्षेत्रीय इतिहास), देसिल बयना, श्वेतपत्र, राजकमल चौधरीःसृजन के आयाम, मंडन मिश्र और उनका अद्वैत वेदान्त, भनहि विद्यापति, एकटा चंपाकली एकटा विषधर आदि-आदि(संपादित-अनूदित कृतियां)
सम्प्रति--- बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी।
1966 मे महिषी(सहरसा-बिहार) में जन्म।शिक्षा--आचार्य,एम०ए०,पी-एच०डी०आदि-आदि।
मिथिला-समाज में एक प्रखर-मुखर साहित्य-कर्मी के रूप में प्रख्यात। अपने गांव-घर के परिसर में एक ऐसे 'क्रियावान विद्वान' के रूप में जाने जाते हैं, जो हमेशा किसी-न-किसी सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान को पूरा करने में अपनी टीम के साथ लगा रहता है। सृजनात्मक तथा आलोचनात्मक--दोनों ही प्रकार के लेखन में समान रुचि एवं गति, किन्तु मूलतः कवि। मैथिली में दलित साहित्य के प्रतिष्ठापक बताए जाते हैं। मौलिक एवं विचारोत्तेजक लेखन के लिए लगातार चर्चित और विवादित भी। कहानियां भी लिखी हैं और आलोचनात्मक ग्रन्थ भी,जिन्हें महत्वपूर्ण माना गया। यात्री नागार्जुन की संगत में रहे, जिसका आख्यान 'तुमि चिर सारथि' लिखा, जिसे अत्यन्त पठनीय माना गया। अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेजी में अनुवाद।
प्रमुख कृतियां-- बुद्ध का दुख और मेरा, हस्तक्षेप, अपन युद्धक साक्ष्य(कविताएं), अतिक्रमण, शिलालेख, प्रतिनिधि कथा (कहानियां) , कर्मधारय, रामकथा आ मैथिली रामायण, धूमकेतु (आलोचना), राक्षस की अंगूठी, यह पाया तो क्या पाया, गोनू झा के किस्से(बाल-साहित्य), तुमि चिर सारथि(संस्मरण), महिषी की ताराःइतिहास और आख्यान(क्षेत्रीय इतिहास), देसिल बयना, श्वेतपत्र, राजकमल चौधरीःसृजन के आयाम, मंडन मिश्र और उनका अद्वैत वेदान्त, भनहि विद्यापति, एकटा चंपाकली एकटा विषधर आदि-आदि(संपादित-अनूदित कृतियां)
सम्प्रति--- बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी।
सम्पर्क--बदरिकाश्रम,महिषी,सहरसा,बिहार। मोबाइल 09431413125
ईमेल[email protected]
पिता--- स्व० बद्री महतो
जन्म-तिथि--- 15. 1. 1966
स्थायी पता--- बदरिकाश्रम, महिषी,सहरसा,बिहार 852216
शिक्षा-- विद्यावारिधि (पी-एच० डी०) (कामेश्वर सिंह द०सं०वि०वि०), एम०ए०(संस्कृत)(पटना वि० वि०), आचार्य (साहित्य) (का०सिं०द०सं०वि०वि०),बी० एड० (मिथिला वि० वि),शास्त्री, उत्तरमध्यमा (का०सिं०द०सं०वि०वि०)
सेवा-जीविका--- केन्द्रीय विद्यालय संगठन में अध्यापन (1986 से 1993) बिहार प्रशासनिक सेवा में उपसमाहर्ता (1993 से)
साहित्य-सेवा--- विभिन्न विधाओं में 29 पुस्तकें अबतक प्रकाशित।साहित्य अकादेमी तथा नेशनल बुक ट्रस्ट,इंडिया ने भी कुछ पुस्तकें प्रकाशित की हैं।कुछ पुस्तकें राष्ट्रीय स्तर पर चर्चित-प्रशंसित हुई हैं।विभिन्न विषयों पर 100 से अधिक शोधपत्र तथा इससे भी अधिक सृजनात्मक विधाओं की रचनाएं महत्वपूर्ण पत्रिकाओं में प्रकाशित।
प्रमुख पुस्तकें (सम्पादन) --- मंडन मिश्र और उनका अद्वैत वेदान्त (आचार्य मंडन मिश्र के दर्शन पर), भनहि विद्यापति(महाकवि विद्यापति के जीवनपरक उपन्यास का अनुवाद) देसिल बयना(कथा-संग्रह(नेशनल बुक ट्रस्ट), बिहार की हिन्दी कहानी(दो खंडों में), राजकमल चौधरीःसृजन के आयाम,श्वेतपत्र आदि-आदि।
प्रमुख पुस्तकें (मौलिक)--- रामकथा और मैथिली रामायण, कर्मधारय, धूमकेतु (आलोचना) तुमि चिर सारथि(संमरण) महिषी की ताराःइतिहास और आख्यान(क्षेत्रीय इतिहास)बुद्ध का दुख और मेरा, हस्तक्षेप,अपन युद्धक साक्ष्य (कविता)
राक्षस की अंगूठी(विशाखदत्त के नाटक ‘मुद्राराक्षस’ की पुनर्प्रस्तुति आम पाठकों के लिए)ई भेटल तं की भेटल,
1966 मे महिषी(सहरसा-बिहार) में जन्म।शिक्षा--आचार्य,एम०ए०,पी-एच०डी०आदि-आदि।
मिथिला-समाज में एक प्रखर-मुखर साहित्य-कर्मी के रूप में प्रख्यात। अपने गांव-घर के परिसर में एक ऐसे 'क्रियावान विद्वान' के रूप में जाने जाते हैं, जो हमेशा किसी-न-किसी सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान को पूरा करने में अपनी टीम के साथ लगा रहता है। सृजनात्मक तथा आलोचनात्मक--दोनों ही प्रकार के लेखन में समान रुचि एवं गति, किन्तु मूलतः कवि। मैथिली में दलित साहित्य के प्रतिष्ठापक बताए जाते हैं। मौलिक एवं विचारोत्तेजक लेखन के लिए लगातार चर्चित और विवादित भी। कहानियां भी लिखी हैं और आलोचनात्मक ग्रन्थ भी,जिन्हें महत्वपूर्ण माना गया। यात्री नागार्जुन की संगत में रहे, जिसका आख्यान 'तुमि चिर सारथि' लिखा, जिसे अत्यन्त पठनीय माना गया। अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेजी में अनुवाद।
प्रमुख कृतियां-- बुद्ध का दुख और मेरा, हस्तक्षेप, अपन युद्धक साक्ष्य(कविताएं), अतिक्रमण, शिलालेख, प्रतिनिधि कथा (कहानियां) , कर्मधारय, रामकथा आ मैथिली रामायण, धूमकेतु (आलोचना), राक्षस की अंगूठी, यह पाया तो क्या पाया, गोनू झा के किस्से(बाल-साहित्य), तुमि चिर सारथि(संस्मरण), महिषी की ताराःइतिहास और आख्यान(क्षेत्रीय इतिहास), देसिल बयना, श्वेतपत्र, राजकमल चौधरीःसृजन के आयाम, मंडन मिश्र और उनका अद्वैत वेदान्त, भनहि विद्यापति, एकटा चंपाकली एकटा विषधर आदि-आदि(संपादित-अनूदित कृतियां)
सम्प्रति--- बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी।
1966 मे महिषी(सहरसा-बिहार) में जन्म।शिक्षा--आचार्य,एम०ए०,पी-एच०डी०आदि-आदि।
मिथिला-समाज में एक प्रखर-मुखर साहित्य-कर्मी के रूप में प्रख्यात। अपने गांव-घर के परिसर में एक ऐसे 'क्रियावान विद्वान' के रूप में जाने जाते हैं, जो हमेशा किसी-न-किसी सामाजिक-सांस्कृतिक अभियान को पूरा करने में अपनी टीम के साथ लगा रहता है। सृजनात्मक तथा आलोचनात्मक--दोनों ही प्रकार के लेखन में समान रुचि एवं गति, किन्तु मूलतः कवि। मैथिली में दलित साहित्य के प्रतिष्ठापक बताए जाते हैं। मौलिक एवं विचारोत्तेजक लेखन के लिए लगातार चर्चित और विवादित भी। कहानियां भी लिखी हैं और आलोचनात्मक ग्रन्थ भी,जिन्हें महत्वपूर्ण माना गया। यात्री नागार्जुन की संगत में रहे, जिसका आख्यान 'तुमि चिर सारथि' लिखा, जिसे अत्यन्त पठनीय माना गया। अनेक रचनाओं का विभिन्न भारतीय भाषाओं एवं अंग्रेजी में अनुवाद।
प्रमुख कृतियां-- बुद्ध का दुख और मेरा, हस्तक्षेप, अपन युद्धक साक्ष्य(कविताएं), अतिक्रमण, शिलालेख, प्रतिनिधि कथा (कहानियां) , कर्मधारय, रामकथा आ मैथिली रामायण, धूमकेतु (आलोचना), राक्षस की अंगूठी, यह पाया तो क्या पाया, गोनू झा के किस्से(बाल-साहित्य), तुमि चिर सारथि(संस्मरण), महिषी की ताराःइतिहास और आख्यान(क्षेत्रीय इतिहास), देसिल बयना, श्वेतपत्र, राजकमल चौधरीःसृजन के आयाम, मंडन मिश्र और उनका अद्वैत वेदान्त, भनहि विद्यापति, एकटा चंपाकली एकटा विषधर आदि-आदि(संपादित-अनूदित कृतियां)
सम्प्रति--- बिहार प्रशासनिक सेवा में अधिकारी।
सम्पर्क--बदरिकाश्रम,महिषी,सहरसा,बिहार। मोबाइल 09431413125
ईमेल[email protected]