तुम और मैं
धीरे धीरे बजती रही
तुम्हारी
मुस्कुराहटें
पहचानी सी धुन पर
मैं पलटता रहा पन्ने
आसमान के
और
इन्द्रधनुष
मेरी मेज पर
लटकाकर अपने पाँव गुनगुनाता रहा
बारिश चुपके से लिख गयी
सोंधी सोंधी पातियाँ
माटी के नाम की
मेरी कविताओं से निकल कर तुम
टहलने लगी
मेरी साँसों की
पगडंडियों पर
और बजती रही तुम
मेरे बाहर भीतर
तुम्हारी
मुस्कुराहटें
पहचानी सी धुन पर
मैं पलटता रहा पन्ने
आसमान के
और
इन्द्रधनुष
मेरी मेज पर
लटकाकर अपने पाँव गुनगुनाता रहा
बारिश चुपके से लिख गयी
सोंधी सोंधी पातियाँ
माटी के नाम की
मेरी कविताओं से निकल कर तुम
टहलने लगी
मेरी साँसों की
पगडंडियों पर
और बजती रही तुम
मेरे बाहर भीतर