गई बिजली
गई बिजली!
यातना का शिविर मेरा घर हुआ!
अंधे अंधेरे ने मुझे अंधा बनायाः
और मैं-
गुमसुम रहा- खोया रहा,
देह अपनी टोहता, जीता रहा
कभी बैठा रहा, कभी लेटा रहा
याद करता रहा एक-एक को
चिंतारहित मैं सबको
अविचलित मैं
चिंतन और मनन से
चेतना को खोजता ही रहा मैं
प्राप्त करने में लगा ही रहा मैं
सृष्टि के प्रारूप की संरचना
करने में ही व्यस्त रहा मैं!
यातना का शिविर मेरा घर हुआ!
अंधे अंधेरे ने मुझे अंधा बनायाः
और मैं-
गुमसुम रहा- खोया रहा,
देह अपनी टोहता, जीता रहा
कभी बैठा रहा, कभी लेटा रहा
याद करता रहा एक-एक को
चिंतारहित मैं सबको
अविचलित मैं
चिंतन और मनन से
चेतना को खोजता ही रहा मैं
प्राप्त करने में लगा ही रहा मैं
सृष्टि के प्रारूप की संरचना
करने में ही व्यस्त रहा मैं!