रूह......
जाने क्यों चाँद आजकल शरमाता है शायद मेरी हालत से घबराता है,
कब आशियाने मैं रौशनी आएगी
क्योंकि अब अँधेरा बहोत डरता है…..
इन जलजलों का कोई हिसाब तो होगा
जरुर कहीं न कहीं खुदा तो होगा,
इसी उम्मीद पर अपना कम
उसका ज्यादा ख्याल करते है,
इस सुने मंजर मै बेताब
बेखयाल रूह की तरह फिरा करते है…..
अब आदत पड़ गई है अपने आपको पर्दों मैं छिपाने की
रौशनी के ख़याल से भी दिल डरता है,
दूर भागते थे जिन यादों से कभी
उन्ही मै अब सांसों का उपाय दीखता है….
मर जाते कभी के गर आसमां होते
टिकी है निगाहें ज़मी पर
इसीलिए इंतजार रहता है……..
कब आशियाने मैं रौशनी आएगी
क्योंकि अब अँधेरा बहोत डरता है…..
इन जलजलों का कोई हिसाब तो होगा
जरुर कहीं न कहीं खुदा तो होगा,
इसी उम्मीद पर अपना कम
उसका ज्यादा ख्याल करते है,
इस सुने मंजर मै बेताब
बेखयाल रूह की तरह फिरा करते है…..
अब आदत पड़ गई है अपने आपको पर्दों मैं छिपाने की
रौशनी के ख़याल से भी दिल डरता है,
दूर भागते थे जिन यादों से कभी
उन्ही मै अब सांसों का उपाय दीखता है….
मर जाते कभी के गर आसमां होते
टिकी है निगाहें ज़मी पर
इसीलिए इंतजार रहता है……..