अपने ही विरुद्ध
मेरे भीतर
कितने चेहरे उग आये हैं
अनजाने अपरिचित से
साँसों में
होने लगी है एक
घुटन सी
अपने आपको बंद पाती हूँ
जाने क्यूँ
अपने ही भीतर
खुली किताबों से
बहते जाते हैं सारे शब्द
और खाली होता रहता है
हर एक पन्ना
लड़ना अपने आप से
इतना मुश्किल क्यूँ हुआ है
चुभने लगी है
मुझे मेरी है निगाहें
आइना भी आजकल
उदास है
कोई जख्म पुराना
खुलने लगा है
उम्मीदों की दवाएं
बेकाम हो रही हैं
कोई रास्ता नजर तो आये
उतार फेंकू
सारे चेहरे अपने
की
आज हूँ मैं
अपने ही विरूद्ध .....
कितने चेहरे उग आये हैं
अनजाने अपरिचित से
साँसों में
होने लगी है एक
घुटन सी
अपने आपको बंद पाती हूँ
जाने क्यूँ
अपने ही भीतर
खुली किताबों से
बहते जाते हैं सारे शब्द
और खाली होता रहता है
हर एक पन्ना
लड़ना अपने आप से
इतना मुश्किल क्यूँ हुआ है
चुभने लगी है
मुझे मेरी है निगाहें
आइना भी आजकल
उदास है
कोई जख्म पुराना
खुलने लगा है
उम्मीदों की दवाएं
बेकाम हो रही हैं
कोई रास्ता नजर तो आये
उतार फेंकू
सारे चेहरे अपने
की
आज हूँ मैं
अपने ही विरूद्ध .....