।।ककरा लेल लिखै छी ॥
जै काल मे लिखै छी
मुलुकक रहै छी आनन्दित।
लिखळ जखन भ’ जाइए
होइए जे बडका काज केलहुंए।
पढै छी जखन सद्यः लिखलका कें
तं बड तोष होइए जे चलह
धरतीक अन्न-तीमन खेलियै
तं ओकरा लेल काजो किछु केलियै।
बाद मे फेर जं कहियो
पढै छी लिखलका कें
तं भारी अचरज मे पडै छी अपने
अरे, ई बात हम लिखलियै? हम?
ई तं बहुत जीवन्त बात लिखि सकलियै...
अइ आत्मबोध सं जे भीतर ऊर्जा खदबदाइए
से फेर सृजन करबाक लेल
हृदय सुगबुगाइए..
तों जुनि दुखी हुअह हौ बाबू जोगीलाल,
हम तं जते बेर सोचै छी
यैह बात पाबै छी
जे अपने लेल अपने
कलम उठाबै छी।
मुलुकक रहै छी आनन्दित।
लिखळ जखन भ’ जाइए
होइए जे बडका काज केलहुंए।
पढै छी जखन सद्यः लिखलका कें
तं बड तोष होइए जे चलह
धरतीक अन्न-तीमन खेलियै
तं ओकरा लेल काजो किछु केलियै।
बाद मे फेर जं कहियो
पढै छी लिखलका कें
तं भारी अचरज मे पडै छी अपने
अरे, ई बात हम लिखलियै? हम?
ई तं बहुत जीवन्त बात लिखि सकलियै...
अइ आत्मबोध सं जे भीतर ऊर्जा खदबदाइए
से फेर सृजन करबाक लेल
हृदय सुगबुगाइए..
तों जुनि दुखी हुअह हौ बाबू जोगीलाल,
हम तं जते बेर सोचै छी
यैह बात पाबै छी
जे अपने लेल अपने
कलम उठाबै छी।