छीप पर राहऔ नचैत
छीप पर राहऔ नचैत
कनकाभ शिखा
उगिलैत रहऔ स्निग्ध बाती
भरी राति मृदु-मृदु तरल ज्योति
नाचथु शलभ -समाज
उत्तेजित आबथु-जाथु
होएत हमर अंगराग हुतात्मक भस्म
सगौरव सुप्रतिसथिट हसितही हम रहबे
दिअठिक जड़सँ के करत बेदखल हमरा
ने जानि , कहिया ,कोन युग में
भेटल छल वरदान
अकल्प हम रहब बइसल दीप देवताक कोरमें
कनकाभ शिखा
उगिलैत रहऔ स्निग्ध बाती
भरी राति मृदु-मृदु तरल ज्योति
नाचथु शलभ -समाज
उत्तेजित आबथु-जाथु
होएत हमर अंगराग हुतात्मक भस्म
सगौरव सुप्रतिसथिट हसितही हम रहबे
दिअठिक जड़सँ के करत बेदखल हमरा
ने जानि , कहिया ,कोन युग में
भेटल छल वरदान
अकल्प हम रहब बइसल दीप देवताक कोरमें