।।स्त्रीक दुनिञा।।
स्त्रीक एक दुनिञा
ओकरा भीतर।
एक दुनिञा ओकरा बाहर।
भीतर---
किसिम किसिम के
फूल फुलबाडी ;
बाहर---
एक एक डेग
संकट सं भारी।
भीतर---
एकटा राधा अछि
एकटा कन्हैया अछि ;
बाहर---
जनक छथि लाचार
आ राम निरदैया अछि।
हौ बाबू जोगीलाल
स्त्री कें बुझिहह
तं ठीक एही तरहें बुझिहह---
तोरा जकां
एक दुनिञा कहियो
नै हेतै ओकर ;
जे ओकरा ले’ ठमकि क’ चलतै
से हेतै ओकर।
स्त्री जं रहती सृष्टि मे
तं बस एहिना रहती ;
से चाहे तोरा सं किछु
कहती, नै कहती।
ओकरा भीतर।
एक दुनिञा ओकरा बाहर।
भीतर---
किसिम किसिम के
फूल फुलबाडी ;
बाहर---
एक एक डेग
संकट सं भारी।
भीतर---
एकटा राधा अछि
एकटा कन्हैया अछि ;
बाहर---
जनक छथि लाचार
आ राम निरदैया अछि।
हौ बाबू जोगीलाल
स्त्री कें बुझिहह
तं ठीक एही तरहें बुझिहह---
तोरा जकां
एक दुनिञा कहियो
नै हेतै ओकर ;
जे ओकरा ले’ ठमकि क’ चलतै
से हेतै ओकर।
स्त्री जं रहती सृष्टि मे
तं बस एहिना रहती ;
से चाहे तोरा सं किछु
कहती, नै कहती।