जिनगी : चारिटा द्रिष्टिखंड
१
जिनगी थिक
टिकट ट्रामक
अपन स्टापेज धरिक
यात्रा कऽ
ओकर उपभोग कऽ
चुपचाप
दैत’छि लोक जाकर फेकि |
२
जिनगी थिक
चून देल,चुनौल
दुहु हाथक बीच पौने
रगर-थापर
तमकुलकेर ज़ूम
ठोरमे किछु काल जाकर राखी
जाकर भोगी
थुकड़ी दैत’छि लोक
‘पच’ दऽ फेकि
३
जिनगी थिक
एक रचना
जे अपन शीर्षक सहित
छपी जाइछ
जं संपादक रहऽथि दहीन
तखन हैत न मेष अथवा मीन
नहीं तं अस्वीकृत बनाय सखेद
प्रेषके लग होइछ पुनि दिसपैच |
४
जिनगी थिक
नऽव् कविता
किछु गोट्यके
जाकर होईछे
किछु गोट्य के नऽहि
भावक बोध
बोध्गम्यो होइत जे
कहबैत अछी दुर्बोध
जिनगी थिक
टिकट ट्रामक
अपन स्टापेज धरिक
यात्रा कऽ
ओकर उपभोग कऽ
चुपचाप
दैत’छि लोक जाकर फेकि |
२
जिनगी थिक
चून देल,चुनौल
दुहु हाथक बीच पौने
रगर-थापर
तमकुलकेर ज़ूम
ठोरमे किछु काल जाकर राखी
जाकर भोगी
थुकड़ी दैत’छि लोक
‘पच’ दऽ फेकि
३
जिनगी थिक
एक रचना
जे अपन शीर्षक सहित
छपी जाइछ
जं संपादक रहऽथि दहीन
तखन हैत न मेष अथवा मीन
नहीं तं अस्वीकृत बनाय सखेद
प्रेषके लग होइछ पुनि दिसपैच |
४
जिनगी थिक
नऽव् कविता
किछु गोट्यके
जाकर होईछे
किछु गोट्य के नऽहि
भावक बोध
बोध्गम्यो होइत जे
कहबैत अछी दुर्बोध