उन्मुक्त
जलती धूप में
भूल आई हो
अपने सारे सपने
कहीं जल न जाएँ देखना
किसी परिंदे के पंखों को
खोंसकर अपने बालों में
बादलों के बीच
चली जाती हो
चूल्हे पर
खौलता रहता है
अदहन का पानी
तितलियों से मांगकर थोडा सा रंग
अपनी कहानियों में
भरती हो चटख रंग
जाने कब से
खटखटा रही है सांझ
तुम्हारी खिड़की
और
तुम तारों के संग हंसकर
चाय पी रही हो
तुम सिर्फ अपने भीतर ही नहीं रहती
जाने कितनी देह में
बसती हो तुम
बाहर भीतर की परिधि से मुक्त ….
भूल आई हो
अपने सारे सपने
कहीं जल न जाएँ देखना
किसी परिंदे के पंखों को
खोंसकर अपने बालों में
बादलों के बीच
चली जाती हो
चूल्हे पर
खौलता रहता है
अदहन का पानी
तितलियों से मांगकर थोडा सा रंग
अपनी कहानियों में
भरती हो चटख रंग
जाने कब से
खटखटा रही है सांझ
तुम्हारी खिड़की
और
तुम तारों के संग हंसकर
चाय पी रही हो
तुम सिर्फ अपने भीतर ही नहीं रहती
जाने कितनी देह में
बसती हो तुम
बाहर भीतर की परिधि से मुक्त ….