धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छेँ
मैथिली गजल शास्त्र
गजलक उत्पत्ति अरबी साहित्यसँ मानल जा सकैत अछि मुदा ओतए ई अरकान माने कोनो उत्तेजक घटनाक वर्णन विशेषक रूपमे छल। मुदा गजल जँ ऐ अरकान सभक समुच्चय अछि तँ से फारसीक देन छी। फेर ओतएसँ गजल उर्दू-हिन्दी आ आब मैथिलीमे आएल अछि।
मायानन्द मिश्र मैथिली गजलकेँ गीतल कहलन्हि, मुदा हम एतए ओकरा गजले कहब आ अरबी फारसीक छन्द-शास्त्रक किछु शब्दावलीक प्रयोग करब। से मैथिली गजल शास्त्रक लेल शब्दावली भेल “अरूज” ।
बहर: उन्नैस टा अरबी बहर होइत अछि। एतेक बहर मोन रखबाक आवश्यकता नै। किएक तँ बहर माने थाट, राग-रागिनी। ऐ उन्नैसटा अरबी बहरक बदला मैथिली लेल नीचाँमे भारतीय संगीत (स्रोत स्व. श्री रामाश्रय झा रामरंग) दऽ रहल छी। आ किएक तँ देवनागरी आ मिथिलाक्षरमे जे बाजल जाइत अछि सएह लिखल जाइत अछि (ह्रस्व इ सेहो मैथिलीमे अपवाद नै अछि) से ह्रस्व आ दीर्घ स्वरकेँ गनबाक विधि मैथिलीमे भिन्न अछि, सेहो एतए देल जाएत। जइ बहरमे शेरमे आठ (माने शेरक दुनू मिसरामे चारि-चारि) अरकान हुअए से भेल मसम्मन आ जइबहरमे शेरमे छह (माने शेरक दुनू मिसरामे तीन-तीन) अरकान हुअए से भेल मुसद्द्स । एतए मैथिलीमे विभक्ति सटा कऽ लिखबाक वैज्ञानिक आधार फेर सिद्ध होइत अछि कारण गजलमे जे विभक्ति हटाइयो कऽ लिखब तैयो अरकान गनबा काल तेना कऽ गानए पड़त जेना विभक्ति सटल हुअए, विभक्ति लेल अलगसँ गणना नै भेटत।
जइ बहरमे एक्केटा रुक्न हुअए से भेल मफरिद बहर आ जइमे एकटासँ बेशी रुक्न हुअए (रुक्नक बहुवचन अराकान) से भेल मुरक्कब बहर।
दूटा अराकान पुनः आबए तँ ओकरा बहरे-शिकस्ता कहल जाएत।
मिसरा आ शेर: मैथिली गजलमे दू पाँतीक दोहा जे कोनो उत्तेजक घटनाक विशेष वर्णन करैत अछि तकरा मिसरा वा शेर कहल जाइ छै। दुनू पाँती एकट्ठे भेल शेर आ ओइ दुनू पाँतीकेँ असगरे मिसरा कहब। मतलाक दुनू मिसरामे एकरंग काफिया माने तुकबन्दी हएत।
ऊला आ सानी: शेरक पहिल मिसरा ऊला आ दोसर मिसरा सानी भेल। दू मिसरासँ मतला आ दू पाँतीसँ दोहा बनल।
अरकान (रुक्न) आ जिहाफ: आठ टा अरकान (एकवचन रुक्न) सँ उन्नैस टा बहर बहराइत अछि। से अरकान मूल राग अछि आ बहर भेल वर्णनात्मक राग। अरकानक छारन भेल जिहाफ । जेना वरेण्यम् सँ वरेणियम्।
तकतीअ: दू पाँतीक कोनो उत्तेजक घटनाक विशेष वर्णन करैत दोहा जे मिसरा वा शेर अछि आ कएक टा मिसरा वा शेर मिलि कऽ गजल बनैत अछि, तकर शल्य चिकित्सा लेल तकतीअ अछि। से मिसरा कोन राग-रागिनीमे अछि तकर तकतीअसँ बहर ज्ञात होइत अछि ।
मतला (आरम्भ) आ मकता (अन्त): गजलमे पहिल शेर मतला आ आखिरी शेर मकता भेल। मतलाक दुनू मिसरामे तुक एकरंग होइत अछि आ मकतामे कवि अपन नाम दै छथि। मकताक कखनो काल लोप रहत, एकरा सन्दर्भसँ बुझब थिक, मतला सेहो गजलमे नै रहैत अछि मुदा प्रारम्भमे गजलकारकेँ ई रखबाक चाही।
काफिया आ रदीफ: तुकान्त काफियाक बादक वा कफियायुक्त शब्दक पहिनेक अपरिवर्तित शब्द/ शब्द समूहकेँ रदीफ कहैत छिऐ। काफिया युक्त शब्द बदलत मुदा रदीफ नै बदलत। काफिया वर्ण वा मात्राक होइ छै आ रदीफ शब्द वा शब्द समूहक।
दूटा काफियाबला शेर जू काफिया कहल जाइत अछि।
एक दीर्घक बदला दूटा ह्रस्व सेहो देल जा सकैए।
जेना काफिया वर्ण आ मात्राक संग शब्दकेँ सेहो प्रयुक्त करैत अछि तेहिना रदीफ एकर विपरीत शब्द आ शब्दक समूहमे सन्निहित वर्ण आ मात्राकेँ सेहो प्रयुक्त करिते अछि। ऐ तरहेँ पहिल पाँतीमे जँ शब्द समूह रदीफ अछि तँ दोसर पाँतीमे ओकर कोनो एक शब्द दोसर शब्दक अंंग भऽ सकैए आ ओइ काफिया युक्त शब्दमे रदीफक उपस्थिति रहि सकैए। दूटा काफियाक बीचमे सेहो रदीफ रहि सकैए, रदीफ ऐ तरहेँ अनुपस्थितसँ लऽ कऽ एक शब्द, शब्दक समूह वा वाक्य भऽ सकैत अछि जे अपरिवर्तित रहत। काफिया युक्त शब्द गजलमे बदलैत रहत। मैथिली व्याकरणक दृष्टिसँ अपरिवर्तित मात्रा अपरिवर्तित अपूर्ण शब्दकेँ बिना रदीफक गजल कहि सकै छिऐ,कारण ई काफियाक मूल विशेषता छिऐ (अपरिवर्तित मात्रा वा अपरिवर्तित अपूर्ण शब्द) ..आ जँ शब्द वा शब्दकअपरिवर्तित समूह दृष्टिसँ देखी तँ एतए रदीफ अनुपस्थित अछि। ओना रदीफ अनुपस्थित सेहो रहि सकैए,शास्त्रीय दृष्टिसँ कोनो दिक्कत नै अछि। से प्रारम्भमे बिना रदीफक गजलक बदला "एक शब्द, शब्दक समूह वावाक्य" जे अपरिवर्तित रहए, माने रदीफक प्रयोग करू।
बहर आ संगीत
पहिने कमसँ कम ३७ ‘की’ बला की-बोर्ड लिअ।
ऐमे १२-१२ टाक तीन भाग करू। १३ आ २५ संख्या बला की सा,आ सां दुनूक बोध करबैत अछि। सभमे पाँचटा कारी आ सातटा उज्जर ‘की’ अछि। प्रथम १२ मंद्र सप्तक, बादक १२ मध्य सप्तक आ सभसँ दहिन १२ तार सप्तक कहबैछ। १ सँ ३६ धरि मार्करसँ लिखि लिअ। १ आ तेरह सँ क्रमशः वाम आ दहिन हाथ चलत।
१२ गोट ‘की’ केर सेटमे ५ टा कारी आ सात टा उज्जर ‘की’ अछि।
प्रथम अभ्यासमे मात्र उजरा ‘की’ केर अभ्यास करू। पहिल सात टा उजरा ‘की’ -सा, रे, ग, म, प, ध, नि- अछि आ आठम उजरा की तीव्र- सं - अछि जे अगुलका दोसर सेटक - स - अछि।
वाम हाथक अनामिकासँ स, माध्यमिका सँ रे, इंडेक्स फिंगर सँ ग ,बुढ़बा आँगुरसँ म , फेर बुढ़बा आँगुरक नीचाँसँ अनामिका आनू आ प, फेर माध्यमिकासँ ध, इंडेक्स फिंगरसँ नि, आ बुढ़बा आँगुरसँ सां- ऐ हिसाबसँ बजेबाक प्रयास करू। दहिन हाथसँ १२ केर सेट पर पहिल’की’ पर बुढ़बा आँगुरसँ स, इंडेक्स फिंगरसँ रे, माध्यमिकासँ ग,अनामिकासँ म, फेर अनामिकाक नीचाँसँ बुढ़बा आँगुरकेँ आनू आ तखन बुढ़बा आंगुरसँ प, इंडेक्स फिंगरसँ ध,माध्यमिकासँ नि आ अनामिकसँ सां बजाउ। दुनू हाथसँ सां दोसर १२ केर सेटक पहिल उज्जर ‘की’ अछि। आरोहमे पहिल सेटक सां अछि तँ दोसर सेटक प्रथम की रहबाक कारण सा।
दोसर गप जे की-बोर्डसँ जखन आवज निकलए तँ अपन कंठक आवाजसँ एकर मिलान करू। कनियो नीच-ऊँच नैहुअए। तेसर गप जे संगीतक वर्ण अछि सा,रे,ग,म,प,ध,नि,सां एकरा मिथिलाक्षर/ देवनागरीक वर्ण बुझबाक गलतीनै करब। आरोह आ अवरोहमे स्वर कतेक नीच-ऊँच हुअए तकरे टा ई बोध करबैत अछि। जेना कोनो आन ध्वनि जेना “क” केँ लिअ आ की-बोर्डपर निकलल सा,रे...केर ध्वनिक अनुसार “क” ध्वनिक आरोह आ अवरोहक अभ्यासकरू।
ऐ सातू स्वरमे षडज आ पंचम मने सा आ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ हेबाक गुंजाइश नै छैक। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर अछि से सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइश अछि ऐमे। सा आ प मात्र शुद्ध होइत अछि, आ विकृति भऽ सकैत अछि दू तरहेँ, शुद्धसँ ऊपर स्वर जाएत आकि नीचाँ। यदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ नीचाँ रहत तँ ओ कोमल कहाएत। म कँ छोड़ि कऽ सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, ग,ध, नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ शुद्ध। म केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ तीव्र। रे दैत अछि उत्साह, ग दैत अछि शांति, म सँ होइत अछि भय, ध सँ दुःख आ नि सँ होइत अछि आदेशक भान। शुद्ध स्वर तखन होइत अछि,जखन सातो स्वर अपन निश्चित स्थानपर रहैत अछि। ऐ सातोपर कोनो चेन्ह नै होइत अछि।
जखन शुद्ध स्वर अपन स्थानसँ नीचाँ रहैत अछि तँ कोमल कहल जाइत अछि आ ई चारिटा होइत अछि, ऐमे नीचाँ क्षैतिज चेन्ह देल जाइत अछि, यथा- रे॒, ग॒, ध॒, नि॒।
शुद्ध आ मध्यम स्वर जखन अपन स्थानसँ ऊपर जाइत अछि, तखन ई तीव्र स्वर कहाइत अछि, ऐमे ऊपर उर्ध्वाधर चेन्ह देल जाइत अछि। ई एकेटा अछि- म॑।
एवम प्रकारे सात टा शुद्ध यथा- सा,रे,ग, म, प, ध, नि, चारिटा कोमल यथा- रे॒,ग॒,ध॒,नि॒ आ एकटा तीव्र यथा म॑ सभ मिला कऽ १२ टा स्वर भेल।
ऐमे स्पष्ट अछि जे सा आ प अचल अछि, शेष चल वा विकृत।
आब फेर की-बोर्ड पर आउ। ३७ टा की बला की-बोर्ड हम ऐ हेतु कहने छलहुँ, किएक तँ १२, १२, १२ केर तीन सेट आअंतिम ३७म तीव्र सां हेतु।
सप्तकमे सातटा शुद्ध आ पाँचटा विकृत मिला कऽ १२ टा भेल!
वाम कातसँ १२ टा उजरा आ कारी की मंद्र सप्तक, बीच बला १२ टा की मध्य सप्तक आ २५ सँ ३६ धरि की तार सप्तक कहल जाइत अछि।
आरोह- नीचाँसँ ऊपर गेनाइ, जेना मंद्र सप्तकसँ मध्य सप्तक आ मध्य सप्तकसँ तार सप्तक।
मंद्र सप्तकमे नीचाँ बिन्दु, मध्य सप्तक सामान्य आ तार सप्तकमे ऊपर बिन्दु देल जाइत अछि, यथा-
स़, ऱ,ग़,म़,प़,ध़,ऩ सा,रे,ग,म,प,ध,नी सां,रें,गं,मं,पं,धं,निं
अवरोह- तारसँ मध्य आ मध्यसँ मंद्रकेँ अवरोह कहल जाइत अछि।
वादी स्वर- जइ स्वरक सभसँ बेशी प्रयोग रागमे होइत अछि। समवादी स्वर- जकर प्रयोग वादीक बाद सभसँ बेशी होइत अछि। अनुवादी स्वर- वादी आ समवादी स्वरक बाद शेष स्वर। वर्ज्य स्वर- जइ स्वरक प्रयोग कोनो विशेष रागमे नै होइत अछि। पकड़- जइ स्वरक समुदायसँ कोनो राग विशेषकेँ चिन्हैत छी।
गायन काल सेहो सभ राग-रागिनीक हेतु निश्चित रहैत अछि। १२ बजे दिनसँ १२ बजे राति धरि पूर्वांग आ १२ बजे रातिसँ १२ बजे दिन धरि उत्तरांग राग गाओल-बजाओल जाइत अछि।
पूर्वांग रागक वादी स्वरमे कोनो एक टा (सा, रे, ग, म, प ) होइत अछि। उत्तरांगक वादी स्वरमे (म,प,ध,नि,सा)मे सँ कोनो एक टा होइत अछि। सूर्योदय आ सूर्यास्तक समयमे गाओल जाएबला रागकेँ संधि प्रकाश राग कहल जाइत अछि।
रागक जाति
रागक आरोह आ अवरोहमे प्रयुक्त्त स्वरक संख्याक आधारपर रागक जातिक निर्धारण होइत अछि।
एकर प्रधान जाति तीन टा अछि। १. संपूर्ण (७) २.षाड़व(६) ३.औड़व(५) आ ऐमे सामान्य स्वर संख्या क्रमशः ७,६,५ रहैत अछि।
आब ऐ आधारपर तीनूकेँ फेँटू।
संपूर्ण-औड़व की भेल? पहिल रहत आरोही आ दोसर रहत अवरोही। कहू आब। (७,५) ऐमे सात आरोही स्वर संख्या आ ५ अवरोही स्वर संख्या अछि। संपूर्णक सामान्य स्वर संख्या ऊपर लिखल अछि(७) आ औड़वक (५) । तखन संपूर्ण-औड़व भेल(७,५)। अहिना ९ तरहक राग जाति हएत। १.संपूर्ण-संपूर्ण (७,७) २.संपूर्ण-षाड़व (७,६) ३.संपूर्ण-औड़व(७,५), ४. षाड़व-संपूर्ण- (६,७), ५. षाड़व- षाड़व - (६,६), ६. षाड़व -औड़व (६,५), ७.औड़व-संपूर्ण(५,७), ८.औड़व- षाड़व(५,६), ९. औड़व- औड़व(५,५)।
थाट:
थाट- एकटा सप्तकमे सात शुद्ध, चारिटा कोमल आ एकटा तीव्र स्वर (१२ स्वर) होइत अछि। ऐमे सात स्वरक ओसमुदाय जेकरासँ कोनो रागक उत्पत्ति होइत अछि, तकरा थाट वा मेल कहल जाइत अछि।
थाट रागक जनक अछि, थाटमे सात स्वर होइत छैक(संपूर्ण जाति)। थाटमे मात्र आरोही स्वर होइत अछि। थाटमे एकहि स्वरक शुद्ध आ विकृत स्वर संग-संग नै रहैत अछि। विभिन्न रागक नामपर थाट सभक नाम राखल गेल अछि। थाटक सातो टा स्वर क्रमानुसार होइत अछि आ ऐमे गेयता नै होइत छैक।
थाट १० टा अछि।
१.आसावरी-सा रे ग॒ म प ध॒ नि॒ २.कल्याण-सा रे ग म॑ प ध नि ३.काफी-सा रे ग॒ म प ध नि॒ ४.खमाज-सा रे ग म प ध नि॒ ५.पूर्वी-सा रे॒ ग म॑ प ध॒ नि ६.बिलावल-सा रे ग म प ध नि ७.भैरव-सा रे॒ ग म प ध॒ नि ८.भैरवी-सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ ९.मारवा-सा रे॒ ग म॑ प ध नि १०.तोड़ी-सा रे॒ ग॒ म॑ प ध॒ नि
वर्ण:
वर्णसँ रागक रूप-भाव प्रगट कएल जाइत छैक। एकर चारिटा प्रकार छैक।
१.स्थायी-जखन एकटा स्वर बेर-बेर अबैत अछि, ओकर अवृत्ति होइत अछि।
२.अवरोही- ऊपरसँ नीचाँ होइत स्वर समूह, एकरा अवरोही वर्ण कहल जाइत अछि।
३.आरोही- नीचाँसँ ऊपर होइत स्वर समूह, एकरा आरोही वर्ण कहल जाइत अछि।
४.संचारी-जइमे उपरका तीनू रूप लयमे हुअए।
लक्षण गीत: रचना जइमे बादी, सम्बादी, जाति आ गायनक समय केर निर्देशक रागक लक्षण स्पष्ट भऽ जाए।
स्थायी: कोनो गीतक पहिल भाग, जे सभ अन्तराक बाद दोहराओल जाइत अछि।
अन्तरा: जकरा एकहि बेर स्थायीक बाद गाओल जाइत अछि।
अलंकार/पलटा: स्वर समुदायक नियमबद्ध गायन/ वादन भेल अलंकार।
आलाप: कोनो विशेष रागक अन्तर्गत प्रयुक्त्त भेल स्वर समुदायक विस्तारपूर्ण गायन/ वादन भेल आलाप।
तान: रागमे प्रयुक्त्त भेल स्वरक त्वरित गायन/ वादन भेल तान।
तानक गति द्रुत होइत अछि आ ऐमे दोबर गतिसँ गायन/ वादन कएल जाइत अछि।
आब आउ तालपर। संगीतक गतिक अनूरूपेँ ई झपताल- १० मात्रा, त्रिताल- १६ मात्रा, एक ताल- १२ मात्रा, कहरवा- ८ मात्रा, दादरा- ६ मात्रा होइत अछि।
गीत, वाद्य आ नृत्यक लेल आवश्यक समय भेल काल आ जइ निश्चित गतिक ई अनुसरण करैत अछि से भेल लय।जखन लय त्वरित अछि तँ भेल द्रुत, जखन आस्ते-आस्ते अछि, तँ भेल विलम्बित आ नै आस्ते अछि आ नैद्रुत तँ भेल मध्य लय।
मात्रा ताल केर युनिट अछि आ ऐसँ लय केँ नापल जाइत अछि।
तालमे मात्रा संयुक्त रूपसँ उपस्थित रहला उत्तर ओकरा विभाग कहल जाइत अछि- जेना दादरामे तीन मात्रा संयुक्त्त रहला उत्तर २ विभाग।
तालक विभागक नियमबद्ध विन्यास अछि छन्द आ तालक प्रथम विभागक प्रथम मात्रा भेल सम आ एकर चेन्ह भेल + वा x आ जतय बिना तालीक तालकेँ बुझाओल जाइत अछि से भेल खाली आ एकर चेन्ह अछि ० ।
ओ सम्पूर्ण रचना जइसँ तालक बोल इंगित होइत अछि, जेना मात्रा, विभाग,ताली, खाली ई सभटा भेल ठेका।
चेन्ह- तालीक स्थान पर ताल चेन्ह आ संख्या। सम + वा x खाली ०
ऽ अवग्रह/बिकारी
- एक मात्राक दू टा बोल
- एक मात्राक चारिटा बोल
एक मात्राक दूटा बोलकेँ धागे आ चारि टा बोलकेँ धागेतिट सेहो कहल जाइत अछि।
तालक परिचय
ताल कहरबा
४ टा मात्रा, एकटा विभाग, आ पहिल मात्रा पर सम।
धागि नाति नक धिन।
तीन ताल त्रिताल
१६ टा मात्रा, ४-४ मात्राक ४ टा विभाग। १,५ आ १३ पर ताली आ ९ म मात्रापर खाली रहैत अछि।
धा धिं धिं धिं
धा धिं धिं धा
धा तिं तिं ता
ता धिं धिं धा
झपताल
१० मात्रा। ४ विभाग, जे क्रमसँ २,३,२,३ मात्राक होइत अछि।
१ मात्रा पर सम, ६ पर खली, ३,८ पर ताली रहैत अछि।
धी ना
धी धी ना
ती ना
धी धी ना
ताल रूपक
७ मात्रा। ३,२,२ मात्राक विभाग।
पहिल विभाग खाली, बादक दू टा भरल होइत अछि।
पहिल मात्रापर सम आ खाली, चारिम आ छठमपर ताली होइत अछि।
धी धा त्रक
धी धी
धा त्रक
ह्रस्व-दीर्घ गणना
छन्द दू प्रकारक अछि। मात्रिक आ वार्णिक। वेदमे वार्णिक छन्द अछि।
वार्णिक छन्दक परिचय लिअ। ऐमे अक्षर गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ नै गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि।द्विमानक कोनो अक्षर नै होइछ। मुख्यतः तीनटा बिन्दु मोन राखू-
१. हलंतयुक्त्त अक्षर-० २. संयुक्त अक्षर-१ ३. अक्षर अ सँ ह -१ प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू :-
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=१+५+२+२+३+३+३+१=२० मात्रा
आब दोसर उदाहरण देखू ; पश्चात्=२ मात्रा ; आब तेसर उदाहरण देखू
आब=२ मात्रा ; आब चारिम उदाहरण देखू स्क्रिप्ट=२ मात्रा
छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए । मुदा ऐसँ ई नै बुझबाक चाही जे आजुक नव कविता गद्य कोटिक अछि कारण वेदक सावित्री-गायत्री मंत्र सेहो शिथिल/ उदार नियमक कारण, सावित्री मंत्र गायत्री छंद मे परिगणित होइत अछि - जेना यदि अक्षर पूरा नै भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादमे बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कऽअलग कएल जाइत अछि। जेना- वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः।
आजुक नव कविताक संग हाइकू/ क्षणिका लेल मैथिली भाषा आ संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आ पूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपिमे वएह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि, जइमे जे लिखल जाइत अछि सएह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व “इ” एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नै अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ, ह्र्स्व 'इ', छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल हाइकू लेल मैथिली उपयुक्त भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि मुदा की इंग्लिशमे संधि नै अछि?
गजलक उत्पत्ति अरबी साहित्यसँ मानल जा सकैत अछि मुदा ओतए ई अरकान माने कोनो उत्तेजक घटनाक वर्णन विशेषक रूपमे छल। मुदा गजल जँ ऐ अरकान सभक समुच्चय अछि तँ से फारसीक देन छी। फेर ओतएसँ गजल उर्दू-हिन्दी आ आब मैथिलीमे आएल अछि।
मायानन्द मिश्र मैथिली गजलकेँ गीतल कहलन्हि, मुदा हम एतए ओकरा गजले कहब आ अरबी फारसीक छन्द-शास्त्रक किछु शब्दावलीक प्रयोग करब। से मैथिली गजल शास्त्रक लेल शब्दावली भेल “अरूज” ।
बहर: उन्नैस टा अरबी बहर होइत अछि। एतेक बहर मोन रखबाक आवश्यकता नै। किएक तँ बहर माने थाट, राग-रागिनी। ऐ उन्नैसटा अरबी बहरक बदला मैथिली लेल नीचाँमे भारतीय संगीत (स्रोत स्व. श्री रामाश्रय झा रामरंग) दऽ रहल छी। आ किएक तँ देवनागरी आ मिथिलाक्षरमे जे बाजल जाइत अछि सएह लिखल जाइत अछि (ह्रस्व इ सेहो मैथिलीमे अपवाद नै अछि) से ह्रस्व आ दीर्घ स्वरकेँ गनबाक विधि मैथिलीमे भिन्न अछि, सेहो एतए देल जाएत। जइ बहरमे शेरमे आठ (माने शेरक दुनू मिसरामे चारि-चारि) अरकान हुअए से भेल मसम्मन आ जइबहरमे शेरमे छह (माने शेरक दुनू मिसरामे तीन-तीन) अरकान हुअए से भेल मुसद्द्स । एतए मैथिलीमे विभक्ति सटा कऽ लिखबाक वैज्ञानिक आधार फेर सिद्ध होइत अछि कारण गजलमे जे विभक्ति हटाइयो कऽ लिखब तैयो अरकान गनबा काल तेना कऽ गानए पड़त जेना विभक्ति सटल हुअए, विभक्ति लेल अलगसँ गणना नै भेटत।
जइ बहरमे एक्केटा रुक्न हुअए से भेल मफरिद बहर आ जइमे एकटासँ बेशी रुक्न हुअए (रुक्नक बहुवचन अराकान) से भेल मुरक्कब बहर।
दूटा अराकान पुनः आबए तँ ओकरा बहरे-शिकस्ता कहल जाएत।
मिसरा आ शेर: मैथिली गजलमे दू पाँतीक दोहा जे कोनो उत्तेजक घटनाक विशेष वर्णन करैत अछि तकरा मिसरा वा शेर कहल जाइ छै। दुनू पाँती एकट्ठे भेल शेर आ ओइ दुनू पाँतीकेँ असगरे मिसरा कहब। मतलाक दुनू मिसरामे एकरंग काफिया माने तुकबन्दी हएत।
ऊला आ सानी: शेरक पहिल मिसरा ऊला आ दोसर मिसरा सानी भेल। दू मिसरासँ मतला आ दू पाँतीसँ दोहा बनल।
अरकान (रुक्न) आ जिहाफ: आठ टा अरकान (एकवचन रुक्न) सँ उन्नैस टा बहर बहराइत अछि। से अरकान मूल राग अछि आ बहर भेल वर्णनात्मक राग। अरकानक छारन भेल जिहाफ । जेना वरेण्यम् सँ वरेणियम्।
तकतीअ: दू पाँतीक कोनो उत्तेजक घटनाक विशेष वर्णन करैत दोहा जे मिसरा वा शेर अछि आ कएक टा मिसरा वा शेर मिलि कऽ गजल बनैत अछि, तकर शल्य चिकित्सा लेल तकतीअ अछि। से मिसरा कोन राग-रागिनीमे अछि तकर तकतीअसँ बहर ज्ञात होइत अछि ।
मतला (आरम्भ) आ मकता (अन्त): गजलमे पहिल शेर मतला आ आखिरी शेर मकता भेल। मतलाक दुनू मिसरामे तुक एकरंग होइत अछि आ मकतामे कवि अपन नाम दै छथि। मकताक कखनो काल लोप रहत, एकरा सन्दर्भसँ बुझब थिक, मतला सेहो गजलमे नै रहैत अछि मुदा प्रारम्भमे गजलकारकेँ ई रखबाक चाही।
काफिया आ रदीफ: तुकान्त काफियाक बादक वा कफियायुक्त शब्दक पहिनेक अपरिवर्तित शब्द/ शब्द समूहकेँ रदीफ कहैत छिऐ। काफिया युक्त शब्द बदलत मुदा रदीफ नै बदलत। काफिया वर्ण वा मात्राक होइ छै आ रदीफ शब्द वा शब्द समूहक।
दूटा काफियाबला शेर जू काफिया कहल जाइत अछि।
एक दीर्घक बदला दूटा ह्रस्व सेहो देल जा सकैए।
जेना काफिया वर्ण आ मात्राक संग शब्दकेँ सेहो प्रयुक्त करैत अछि तेहिना रदीफ एकर विपरीत शब्द आ शब्दक समूहमे सन्निहित वर्ण आ मात्राकेँ सेहो प्रयुक्त करिते अछि। ऐ तरहेँ पहिल पाँतीमे जँ शब्द समूह रदीफ अछि तँ दोसर पाँतीमे ओकर कोनो एक शब्द दोसर शब्दक अंंग भऽ सकैए आ ओइ काफिया युक्त शब्दमे रदीफक उपस्थिति रहि सकैए। दूटा काफियाक बीचमे सेहो रदीफ रहि सकैए, रदीफ ऐ तरहेँ अनुपस्थितसँ लऽ कऽ एक शब्द, शब्दक समूह वा वाक्य भऽ सकैत अछि जे अपरिवर्तित रहत। काफिया युक्त शब्द गजलमे बदलैत रहत। मैथिली व्याकरणक दृष्टिसँ अपरिवर्तित मात्रा अपरिवर्तित अपूर्ण शब्दकेँ बिना रदीफक गजल कहि सकै छिऐ,कारण ई काफियाक मूल विशेषता छिऐ (अपरिवर्तित मात्रा वा अपरिवर्तित अपूर्ण शब्द) ..आ जँ शब्द वा शब्दकअपरिवर्तित समूह दृष्टिसँ देखी तँ एतए रदीफ अनुपस्थित अछि। ओना रदीफ अनुपस्थित सेहो रहि सकैए,शास्त्रीय दृष्टिसँ कोनो दिक्कत नै अछि। से प्रारम्भमे बिना रदीफक गजलक बदला "एक शब्द, शब्दक समूह वावाक्य" जे अपरिवर्तित रहए, माने रदीफक प्रयोग करू।
बहर आ संगीत
पहिने कमसँ कम ३७ ‘की’ बला की-बोर्ड लिअ।
ऐमे १२-१२ टाक तीन भाग करू। १३ आ २५ संख्या बला की सा,आ सां दुनूक बोध करबैत अछि। सभमे पाँचटा कारी आ सातटा उज्जर ‘की’ अछि। प्रथम १२ मंद्र सप्तक, बादक १२ मध्य सप्तक आ सभसँ दहिन १२ तार सप्तक कहबैछ। १ सँ ३६ धरि मार्करसँ लिखि लिअ। १ आ तेरह सँ क्रमशः वाम आ दहिन हाथ चलत।
१२ गोट ‘की’ केर सेटमे ५ टा कारी आ सात टा उज्जर ‘की’ अछि।
प्रथम अभ्यासमे मात्र उजरा ‘की’ केर अभ्यास करू। पहिल सात टा उजरा ‘की’ -सा, रे, ग, म, प, ध, नि- अछि आ आठम उजरा की तीव्र- सं - अछि जे अगुलका दोसर सेटक - स - अछि।
वाम हाथक अनामिकासँ स, माध्यमिका सँ रे, इंडेक्स फिंगर सँ ग ,बुढ़बा आँगुरसँ म , फेर बुढ़बा आँगुरक नीचाँसँ अनामिका आनू आ प, फेर माध्यमिकासँ ध, इंडेक्स फिंगरसँ नि, आ बुढ़बा आँगुरसँ सां- ऐ हिसाबसँ बजेबाक प्रयास करू। दहिन हाथसँ १२ केर सेट पर पहिल’की’ पर बुढ़बा आँगुरसँ स, इंडेक्स फिंगरसँ रे, माध्यमिकासँ ग,अनामिकासँ म, फेर अनामिकाक नीचाँसँ बुढ़बा आँगुरकेँ आनू आ तखन बुढ़बा आंगुरसँ प, इंडेक्स फिंगरसँ ध,माध्यमिकासँ नि आ अनामिकसँ सां बजाउ। दुनू हाथसँ सां दोसर १२ केर सेटक पहिल उज्जर ‘की’ अछि। आरोहमे पहिल सेटक सां अछि तँ दोसर सेटक प्रथम की रहबाक कारण सा।
दोसर गप जे की-बोर्डसँ जखन आवज निकलए तँ अपन कंठक आवाजसँ एकर मिलान करू। कनियो नीच-ऊँच नैहुअए। तेसर गप जे संगीतक वर्ण अछि सा,रे,ग,म,प,ध,नि,सां एकरा मिथिलाक्षर/ देवनागरीक वर्ण बुझबाक गलतीनै करब। आरोह आ अवरोहमे स्वर कतेक नीच-ऊँच हुअए तकरे टा ई बोध करबैत अछि। जेना कोनो आन ध्वनि जेना “क” केँ लिअ आ की-बोर्डपर निकलल सा,रे...केर ध्वनिक अनुसार “क” ध्वनिक आरोह आ अवरोहक अभ्यासकरू।
ऐ सातू स्वरमे षडज आ पंचम मने सा आ प अचल अछि, एकर सस्वर पाठमे ऊपर नीचाँ हेबाक गुंजाइश नै छैक। सा अछि आश्रय आकि विश्राम आ प अछि उल्लासक भाव। शेष जे पाँचटा स्वर अछि से सभटा चल अछि, मने ऊपर नीचाँक अर्थात् विकृतिक गुंजाइश अछि ऐमे। सा आ प मात्र शुद्ध होइत अछि, आ विकृति भऽ सकैत अछि दू तरहेँ, शुद्धसँ ऊपर स्वर जाएत आकि नीचाँ। यदि ऊपर रहत स्वर तँ कहब ओकरा तीव्र आ नीचाँ रहत तँ ओ कोमल कहाएत। म कँ छोड़ि कऽ सभ अचल स्वरक विकृति होइत अछि नीचाँ, तखन बुझू जे “रे, ग,ध, नि” ई चारि टा स्वरक दू टा रूप भेल कोमल आ शुद्ध। म केर रूप सेहो दू तरहक अछि, शुद्ध आ तीव्र। रे दैत अछि उत्साह, ग दैत अछि शांति, म सँ होइत अछि भय, ध सँ दुःख आ नि सँ होइत अछि आदेशक भान। शुद्ध स्वर तखन होइत अछि,जखन सातो स्वर अपन निश्चित स्थानपर रहैत अछि। ऐ सातोपर कोनो चेन्ह नै होइत अछि।
जखन शुद्ध स्वर अपन स्थानसँ नीचाँ रहैत अछि तँ कोमल कहल जाइत अछि आ ई चारिटा होइत अछि, ऐमे नीचाँ क्षैतिज चेन्ह देल जाइत अछि, यथा- रे॒, ग॒, ध॒, नि॒।
शुद्ध आ मध्यम स्वर जखन अपन स्थानसँ ऊपर जाइत अछि, तखन ई तीव्र स्वर कहाइत अछि, ऐमे ऊपर उर्ध्वाधर चेन्ह देल जाइत अछि। ई एकेटा अछि- म॑।
एवम प्रकारे सात टा शुद्ध यथा- सा,रे,ग, म, प, ध, नि, चारिटा कोमल यथा- रे॒,ग॒,ध॒,नि॒ आ एकटा तीव्र यथा म॑ सभ मिला कऽ १२ टा स्वर भेल।
ऐमे स्पष्ट अछि जे सा आ प अचल अछि, शेष चल वा विकृत।
आब फेर की-बोर्ड पर आउ। ३७ टा की बला की-बोर्ड हम ऐ हेतु कहने छलहुँ, किएक तँ १२, १२, १२ केर तीन सेट आअंतिम ३७म तीव्र सां हेतु।
सप्तकमे सातटा शुद्ध आ पाँचटा विकृत मिला कऽ १२ टा भेल!
वाम कातसँ १२ टा उजरा आ कारी की मंद्र सप्तक, बीच बला १२ टा की मध्य सप्तक आ २५ सँ ३६ धरि की तार सप्तक कहल जाइत अछि।
आरोह- नीचाँसँ ऊपर गेनाइ, जेना मंद्र सप्तकसँ मध्य सप्तक आ मध्य सप्तकसँ तार सप्तक।
मंद्र सप्तकमे नीचाँ बिन्दु, मध्य सप्तक सामान्य आ तार सप्तकमे ऊपर बिन्दु देल जाइत अछि, यथा-
स़, ऱ,ग़,म़,प़,ध़,ऩ सा,रे,ग,म,प,ध,नी सां,रें,गं,मं,पं,धं,निं
अवरोह- तारसँ मध्य आ मध्यसँ मंद्रकेँ अवरोह कहल जाइत अछि।
वादी स्वर- जइ स्वरक सभसँ बेशी प्रयोग रागमे होइत अछि। समवादी स्वर- जकर प्रयोग वादीक बाद सभसँ बेशी होइत अछि। अनुवादी स्वर- वादी आ समवादी स्वरक बाद शेष स्वर। वर्ज्य स्वर- जइ स्वरक प्रयोग कोनो विशेष रागमे नै होइत अछि। पकड़- जइ स्वरक समुदायसँ कोनो राग विशेषकेँ चिन्हैत छी।
गायन काल सेहो सभ राग-रागिनीक हेतु निश्चित रहैत अछि। १२ बजे दिनसँ १२ बजे राति धरि पूर्वांग आ १२ बजे रातिसँ १२ बजे दिन धरि उत्तरांग राग गाओल-बजाओल जाइत अछि।
पूर्वांग रागक वादी स्वरमे कोनो एक टा (सा, रे, ग, म, प ) होइत अछि। उत्तरांगक वादी स्वरमे (म,प,ध,नि,सा)मे सँ कोनो एक टा होइत अछि। सूर्योदय आ सूर्यास्तक समयमे गाओल जाएबला रागकेँ संधि प्रकाश राग कहल जाइत अछि।
रागक जाति
रागक आरोह आ अवरोहमे प्रयुक्त्त स्वरक संख्याक आधारपर रागक जातिक निर्धारण होइत अछि।
एकर प्रधान जाति तीन टा अछि। १. संपूर्ण (७) २.षाड़व(६) ३.औड़व(५) आ ऐमे सामान्य स्वर संख्या क्रमशः ७,६,५ रहैत अछि।
आब ऐ आधारपर तीनूकेँ फेँटू।
संपूर्ण-औड़व की भेल? पहिल रहत आरोही आ दोसर रहत अवरोही। कहू आब। (७,५) ऐमे सात आरोही स्वर संख्या आ ५ अवरोही स्वर संख्या अछि। संपूर्णक सामान्य स्वर संख्या ऊपर लिखल अछि(७) आ औड़वक (५) । तखन संपूर्ण-औड़व भेल(७,५)। अहिना ९ तरहक राग जाति हएत। १.संपूर्ण-संपूर्ण (७,७) २.संपूर्ण-षाड़व (७,६) ३.संपूर्ण-औड़व(७,५), ४. षाड़व-संपूर्ण- (६,७), ५. षाड़व- षाड़व - (६,६), ६. षाड़व -औड़व (६,५), ७.औड़व-संपूर्ण(५,७), ८.औड़व- षाड़व(५,६), ९. औड़व- औड़व(५,५)।
थाट:
थाट- एकटा सप्तकमे सात शुद्ध, चारिटा कोमल आ एकटा तीव्र स्वर (१२ स्वर) होइत अछि। ऐमे सात स्वरक ओसमुदाय जेकरासँ कोनो रागक उत्पत्ति होइत अछि, तकरा थाट वा मेल कहल जाइत अछि।
थाट रागक जनक अछि, थाटमे सात स्वर होइत छैक(संपूर्ण जाति)। थाटमे मात्र आरोही स्वर होइत अछि। थाटमे एकहि स्वरक शुद्ध आ विकृत स्वर संग-संग नै रहैत अछि। विभिन्न रागक नामपर थाट सभक नाम राखल गेल अछि। थाटक सातो टा स्वर क्रमानुसार होइत अछि आ ऐमे गेयता नै होइत छैक।
थाट १० टा अछि।
१.आसावरी-सा रे ग॒ म प ध॒ नि॒ २.कल्याण-सा रे ग म॑ प ध नि ३.काफी-सा रे ग॒ म प ध नि॒ ४.खमाज-सा रे ग म प ध नि॒ ५.पूर्वी-सा रे॒ ग म॑ प ध॒ नि ६.बिलावल-सा रे ग म प ध नि ७.भैरव-सा रे॒ ग म प ध॒ नि ८.भैरवी-सा रे॒ ग॒ म प ध॒ नि॒ ९.मारवा-सा रे॒ ग म॑ प ध नि १०.तोड़ी-सा रे॒ ग॒ म॑ प ध॒ नि
वर्ण:
वर्णसँ रागक रूप-भाव प्रगट कएल जाइत छैक। एकर चारिटा प्रकार छैक।
१.स्थायी-जखन एकटा स्वर बेर-बेर अबैत अछि, ओकर अवृत्ति होइत अछि।
२.अवरोही- ऊपरसँ नीचाँ होइत स्वर समूह, एकरा अवरोही वर्ण कहल जाइत अछि।
३.आरोही- नीचाँसँ ऊपर होइत स्वर समूह, एकरा आरोही वर्ण कहल जाइत अछि।
४.संचारी-जइमे उपरका तीनू रूप लयमे हुअए।
लक्षण गीत: रचना जइमे बादी, सम्बादी, जाति आ गायनक समय केर निर्देशक रागक लक्षण स्पष्ट भऽ जाए।
स्थायी: कोनो गीतक पहिल भाग, जे सभ अन्तराक बाद दोहराओल जाइत अछि।
अन्तरा: जकरा एकहि बेर स्थायीक बाद गाओल जाइत अछि।
अलंकार/पलटा: स्वर समुदायक नियमबद्ध गायन/ वादन भेल अलंकार।
आलाप: कोनो विशेष रागक अन्तर्गत प्रयुक्त्त भेल स्वर समुदायक विस्तारपूर्ण गायन/ वादन भेल आलाप।
तान: रागमे प्रयुक्त्त भेल स्वरक त्वरित गायन/ वादन भेल तान।
तानक गति द्रुत होइत अछि आ ऐमे दोबर गतिसँ गायन/ वादन कएल जाइत अछि।
आब आउ तालपर। संगीतक गतिक अनूरूपेँ ई झपताल- १० मात्रा, त्रिताल- १६ मात्रा, एक ताल- १२ मात्रा, कहरवा- ८ मात्रा, दादरा- ६ मात्रा होइत अछि।
गीत, वाद्य आ नृत्यक लेल आवश्यक समय भेल काल आ जइ निश्चित गतिक ई अनुसरण करैत अछि से भेल लय।जखन लय त्वरित अछि तँ भेल द्रुत, जखन आस्ते-आस्ते अछि, तँ भेल विलम्बित आ नै आस्ते अछि आ नैद्रुत तँ भेल मध्य लय।
मात्रा ताल केर युनिट अछि आ ऐसँ लय केँ नापल जाइत अछि।
तालमे मात्रा संयुक्त रूपसँ उपस्थित रहला उत्तर ओकरा विभाग कहल जाइत अछि- जेना दादरामे तीन मात्रा संयुक्त्त रहला उत्तर २ विभाग।
तालक विभागक नियमबद्ध विन्यास अछि छन्द आ तालक प्रथम विभागक प्रथम मात्रा भेल सम आ एकर चेन्ह भेल + वा x आ जतय बिना तालीक तालकेँ बुझाओल जाइत अछि से भेल खाली आ एकर चेन्ह अछि ० ।
ओ सम्पूर्ण रचना जइसँ तालक बोल इंगित होइत अछि, जेना मात्रा, विभाग,ताली, खाली ई सभटा भेल ठेका।
चेन्ह- तालीक स्थान पर ताल चेन्ह आ संख्या। सम + वा x खाली ०
ऽ अवग्रह/बिकारी
- एक मात्राक दू टा बोल
- एक मात्राक चारिटा बोल
एक मात्राक दूटा बोलकेँ धागे आ चारि टा बोलकेँ धागेतिट सेहो कहल जाइत अछि।
तालक परिचय
ताल कहरबा
४ टा मात्रा, एकटा विभाग, आ पहिल मात्रा पर सम।
धागि नाति नक धिन।
तीन ताल त्रिताल
१६ टा मात्रा, ४-४ मात्राक ४ टा विभाग। १,५ आ १३ पर ताली आ ९ म मात्रापर खाली रहैत अछि।
धा धिं धिं धिं
धा धिं धिं धा
धा तिं तिं ता
ता धिं धिं धा
झपताल
१० मात्रा। ४ विभाग, जे क्रमसँ २,३,२,३ मात्राक होइत अछि।
१ मात्रा पर सम, ६ पर खली, ३,८ पर ताली रहैत अछि।
धी ना
धी धी ना
ती ना
धी धी ना
ताल रूपक
७ मात्रा। ३,२,२ मात्राक विभाग।
पहिल विभाग खाली, बादक दू टा भरल होइत अछि।
पहिल मात्रापर सम आ खाली, चारिम आ छठमपर ताली होइत अछि।
धी धा त्रक
धी धी
धा त्रक
ह्रस्व-दीर्घ गणना
छन्द दू प्रकारक अछि। मात्रिक आ वार्णिक। वेदमे वार्णिक छन्द अछि।
वार्णिक छन्दक परिचय लिअ। ऐमे अक्षर गणना मात्र होइत अछि। हलंतयुक्त अक्षरकेँ नै गानल जाइत अछि। एकार उकार इत्यादि युक्त अक्षरकेँ ओहिना एक गानल जाइत अछि जेना संयुक्ताक्षरकेँ। संगहि अ सँ ह केँ सेहो एक गानल जाइत अछि।द्विमानक कोनो अक्षर नै होइछ। मुख्यतः तीनटा बिन्दु मोन राखू-
१. हलंतयुक्त्त अक्षर-० २. संयुक्त अक्षर-१ ३. अक्षर अ सँ ह -१ प्रत्येक।
आब पहिल उदाहरण देखू :-
ई अरदराक मेघ नहि मानत रहत बरसि के=१+५+२+२+३+३+३+१=२० मात्रा
आब दोसर उदाहरण देखू ; पश्चात्=२ मात्रा ; आब तेसर उदाहरण देखू
आब=२ मात्रा ; आब चारिम उदाहरण देखू स्क्रिप्ट=२ मात्रा
छन्दोबद्ध रचना पद्य कहबैत अछि-अन्यथा ओ गद्य थीक। छन्द माने भेल एहन रचना जे आनन्द प्रदान करए । मुदा ऐसँ ई नै बुझबाक चाही जे आजुक नव कविता गद्य कोटिक अछि कारण वेदक सावित्री-गायत्री मंत्र सेहो शिथिल/ उदार नियमक कारण, सावित्री मंत्र गायत्री छंद मे परिगणित होइत अछि - जेना यदि अक्षर पूरा नै भेल तँ एक आकि दू अक्षर प्रत्येक पादमे बढ़ा लेल जाइत अछि। य आ व केर संयुक्ताक्षरकेँ क्रमशः इ आ उ लगा कऽअलग कएल जाइत अछि। जेना- वरेण्यम्=वरेणियम्
स्वः= सुवः।
आजुक नव कविताक संग हाइकू/ क्षणिका लेल मैथिली भाषा आ संस्कृत आश्रित लिपि व्यवस्था सर्वाधिक उपयुक्त्त अछि। तमिल छोड़ि शेष सभटा दक्षिण आ समस्त उत्तर-पश्चिमी आ पूर्वी भारतीय लिपि आ देवनागरी लिपिमे वएह स्वर आ कचटतप व्यञ्जन विधान अछि, जइमे जे लिखल जाइत अछि सएह बाजल जाइत अछि। मुदा देवनागरीमे ह्रस्व “इ” एकर अपवाद अछि, ई लिखल जाइत अछि पहिने मुदा बाजल जाइत अछि बादमे। मुदा मैथिलीमे ई अपवाद सेहो नै अछि- यथा 'अछि' ई बाजल जाइत अछि अ, ह्र्स्व 'इ', छ वा अ इ छ। दोसर उदाहरण लिअ- राति- रा इ त। तँ सिद्ध भेल हाइकू लेल मैथिली उपयुक्त भाषा अछि। एकटा आर उदाहरण लिअ। सन्धि संस्कृतक विशेषता अछि मुदा की इंग्लिशमे संधि नै अछि?