प्रेम
कितनी ही भाषाओँ में
कितने ही
तरीकों से
लिखा मैंने
प्रेम
कागज़ पर
और फिर मिटाने की कोशिश में उसे
खो दिया अपना अस्तित्व
सबसे बचाकर
छुपाकर रखा
किताबों के बीच
और एक नयी कविता उग आई पन्नों में
चूल्हे की आग में फेंकना चाहा
पर जला बैठी
अपनी ही अंगुलियाँ
सबकी नाराजगी और ताने सुनते हुए
बंद कर लिए सारे दरवाजे और खिड़कियाँ
और
ठठाकर हँसता रहा
मुझपर
प्रेम
मैं
घुप्प अंधेरों में टटोलती रही
प्रेम को
और
जुगनुओं के साथ चमकता रहा
चेहरा
प्रेम का
कितने ही
तरीकों से
लिखा मैंने
प्रेम
कागज़ पर
और फिर मिटाने की कोशिश में उसे
खो दिया अपना अस्तित्व
सबसे बचाकर
छुपाकर रखा
किताबों के बीच
और एक नयी कविता उग आई पन्नों में
चूल्हे की आग में फेंकना चाहा
पर जला बैठी
अपनी ही अंगुलियाँ
सबकी नाराजगी और ताने सुनते हुए
बंद कर लिए सारे दरवाजे और खिड़कियाँ
और
ठठाकर हँसता रहा
मुझपर
प्रेम
मैं
घुप्प अंधेरों में टटोलती रही
प्रेम को
और
जुगनुओं के साथ चमकता रहा
चेहरा
प्रेम का