केहन अजूबा काज
सूतल जागल सोह अहीं के आबैए
ए रुनझुन, ई देह कते भरमाबैए
ठहरल जल छी ठंडा-ठंडा, इतमिनान छी
गरम हवा ई हलचल कोना मचाबैए
लचक अहां के पत्ता-पत्ता कसक फूल के
अइ बगिया के माली मोहि बताबैए
जे कहबै से कहबै लेकिन एखन ने मानब
एखन प्रीत मनुहार हार बरसाबैए
जै मुस्की सं अहां करै छी अल्लो-मल्लो
सै मुस्की ई देखियौ रौद उगाबैए
ठाढ रहै छी एक पएर सं एक चलै छी
केहन अजूबा काज प्रेम करबाबैए
ए रुनझुन, ई देह कते भरमाबैए
ठहरल जल छी ठंडा-ठंडा, इतमिनान छी
गरम हवा ई हलचल कोना मचाबैए
लचक अहां के पत्ता-पत्ता कसक फूल के
अइ बगिया के माली मोहि बताबैए
जे कहबै से कहबै लेकिन एखन ने मानब
एखन प्रीत मनुहार हार बरसाबैए
जै मुस्की सं अहां करै छी अल्लो-मल्लो
सै मुस्की ई देखियौ रौद उगाबैए
ठाढ रहै छी एक पएर सं एक चलै छी
केहन अजूबा काज प्रेम करबाबैए