पितृ-ऋण
पिता थे–एक सार्थक शब्द
और, हमने शब्दों की सार्थकता को
अविश्वसनीय बताया।
जीते थे पिता मूल्यों में
अभिव्यक्ति में, नीति में,
अर्थवत्ता में।
हम जीवन धारण करते हैं केवल
व्यक्तित्व की निरर्थकता में।
पितृ-ऋण से मुक्ति का दूसरा कोई उपाय हमारे पास नहीं है
कभी होगा भी नहीं
होगा भी नहीं।
और, हमने शब्दों की सार्थकता को
अविश्वसनीय बताया।
जीते थे पिता मूल्यों में
अभिव्यक्ति में, नीति में,
अर्थवत्ता में।
हम जीवन धारण करते हैं केवल
व्यक्तित्व की निरर्थकता में।
पितृ-ऋण से मुक्ति का दूसरा कोई उपाय हमारे पास नहीं है
कभी होगा भी नहीं
होगा भी नहीं।