कि अकाश भी एक पाताल ही है – कथा कविता
हवा और पतंग
पतंग थी एक
अपनी लटाई से लगी
खूब
फड़फड़ा रही थी एक हवा में
तो एक और हवा आयी
कहा- चलो, खूब उड़ाती हूं तुम्हें
पतंग फड़फड़ायी खुशी से
सच्ची, खूब उड़ाओंगी ना
हां हां
खूब उड़ाउंगी
राम जी के दुआरे तक पहुंचा दूंगी
पतंग
और जोर से फड़फड़ायी
और उड़ चली हवा संग
इस अकाश से उस अकाश
सुबह से दोपहर फिर शाम हुयी
हवा ने पूछा – खूब मजा आया ना
खूब – पतंग खूब जोर से फड़फड़ायी
तब हवा ने कहा – अब लौटती हूं
घर
क्या – पतंग ने पूछा
हां,शाम हो रही , लौटना तो होगा ना
पर मेरी लटाई
लटाई – वह तो उड़ गयी
उसका क्या करोगी
अरे,फिर मैं कहां जाउंगी
मुझे भी अपने घर ले चलो
नहीं
मैं अपने घर की अच्छी बच्ची हूं
बाहर की चीजें
घर नहीं ले जाती
फिर
मैं क्या करूं
तू
चल अब तेरी डोर छोड देती हूं
हवा ने कहा
फिर तू उपर उड़ती चली जाएगी
एकदम अकाश में
पतंग फड़फड़ायी
सच्ची
सच्ची,एकदम रामजी के दुआरे जा पहुंचेगी
ओह,एकदम रामजी के दुआरे
खुशी से पतंग फड़फड़ायी
खूब जोर से
और हवा ने उसकी डोर छोड़ दी
और पतंग उड़ चली
अनंत अकाश की ओर
पतंग को क्या पता
कि अकाश भी
एक पाताल ही है …
पतंग थी एक
अपनी लटाई से लगी
खूब
फड़फड़ा रही थी एक हवा में
तो एक और हवा आयी
कहा- चलो, खूब उड़ाती हूं तुम्हें
पतंग फड़फड़ायी खुशी से
सच्ची, खूब उड़ाओंगी ना
हां हां
खूब उड़ाउंगी
राम जी के दुआरे तक पहुंचा दूंगी
पतंग
और जोर से फड़फड़ायी
और उड़ चली हवा संग
इस अकाश से उस अकाश
सुबह से दोपहर फिर शाम हुयी
हवा ने पूछा – खूब मजा आया ना
खूब – पतंग खूब जोर से फड़फड़ायी
तब हवा ने कहा – अब लौटती हूं
घर
क्या – पतंग ने पूछा
हां,शाम हो रही , लौटना तो होगा ना
पर मेरी लटाई
लटाई – वह तो उड़ गयी
उसका क्या करोगी
अरे,फिर मैं कहां जाउंगी
मुझे भी अपने घर ले चलो
नहीं
मैं अपने घर की अच्छी बच्ची हूं
बाहर की चीजें
घर नहीं ले जाती
फिर
मैं क्या करूं
तू
चल अब तेरी डोर छोड देती हूं
हवा ने कहा
फिर तू उपर उड़ती चली जाएगी
एकदम अकाश में
पतंग फड़फड़ायी
सच्ची
सच्ची,एकदम रामजी के दुआरे जा पहुंचेगी
ओह,एकदम रामजी के दुआरे
खुशी से पतंग फड़फड़ायी
खूब जोर से
और हवा ने उसकी डोर छोड़ दी
और पतंग उड़ चली
अनंत अकाश की ओर
पतंग को क्या पता
कि अकाश भी
एक पाताल ही है …