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        • ।।बुढबा नेता ।।
        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
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        • ।।गोनू झाक गीत।।
        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
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        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
      • रामधारी सिंह दिनकर>
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भूगोलक मंच पर इतिहासक नृत्य  

भारतक मानचित्र पर लगैछ जेना विष्वक सर्वोच्च हिमषिखरक मस्तक तानने प्रौढ़ हिमालय, अपन दुनू सबल स्कन्धक बल पर दुनू हाथेँ दक्षिणी पठारकेँ पकड़ने, 
समुद्री घात- प्रतिघातसँ दक्षिणकेँ बचबैत, निर्निमेष दृषिटसँ विष्व क्षितिज दिस ताकने चल जा रहल अछि। मस्तक थिक दुर्जेय एवरेस्ट, स्कंध थिक हिन्दूकुष ओ ब्राहमा प्रदेषक गिरि श्रंृखला तथा दुनू बाँहि थिक पूर्वी एवं पषिचमी तटीय पर्वतमाला।
हिमालय महान अछि अपन 1500 तथा 200 मीलक नाम चाकर शरीरेँ 12 लाख 21 हजार मीलक भारतकेँ उत्तरी शीत ओ शत्रुसँ रक्षाक कारणे: हिमालय महान अछि, दक्षिणी मानसूनकेँ रोकिकेँ भारतकेँ हरित-भरित बनेबाक कारणे: हिमालय महान अछि, भारतकेँ वातावरणक मुस्कान- सुख देबाक कारणे आ हिमालय महान अछि गंगा-यमुना-सरस्वती सन अनेक स्रोतसिवनी नदी दानक कारणे।
यैह नदी दान अनेक सुविस्तृत हरितांचलक निर्माण केलक जाहिठाम इतिहासक अनेक नृत्य भेल, असंख्य कृषक समाजक गान भेल। हिमालयक एही महानतासँ प्रभावित भ• केँ कन्याकुमारीक चरणकेँ धोबाक लेल सागर स्वयं उपसिथत भेल।
उपसिथत भेल सागर, भारतक तीनू थिक, दिससँ आ उदग्रीव भावेँ भारतक सभ्यताक वैभव देखबाक लेल, संस्कृतिक गौरव गान सुनबाक लेल।
वस्तुत: भारत देष नहि, महादेष थिक, रूसकेँ छोडि़ समस्त योरोपसँ पैघ अछि। योरोपक कतेक देष एकर कतेक जिलासँ छोट अछि। आने देष जकाँ भारतक दुइ गोट प्राकृतिक प्रभाग अछि, मैदान आ पर्वतमाला, पे एकरा अतुल सम्पन्नतो दैत अछि, रक्षो करैत अछि। र्इ बात भिन्न थिक जे हिमालयक काँखतर, खैवर-बोलन दने अनेक डाकू-लूटेरा अबैत रहल, लुटैत रहल, किन्तु ताहिसँ भारतक प्राकृतिक सम्पदाक कहियो अभाव नहि भेल, सब आक्रमणकारीक दयनीय सिथतिकेँ देखैत ओकरा दाने मानि लेलक।
दान देलक भारतकेँ प्र्र्र्र्र्र्र्रकृति स्वयं। विस्तारक दान, सुखद जलवायुक दान, अपरिमित वर्षाक दान, अनेक नदी-मैदानक दान, भूरत्नक दान, भारत धन्य भ• गेल। धन्य भेल लुटेरा, धन्य भेल आगंतुक दर्षनार्थी।
भारत सुदर्षनक देष भेल, विष्वक लेल तीर्थ भेल। र्इ तीर्थ देख• कहियो आयल छल सुमेरक महान राजा जियसूद्रक असंख्य प्रजा, र्इरानक राजा, यूनानक राजकुमार सिकन्दर, एषियाक दीनहीन सर्वहारा सब, गजनीक लुटेरा, योरोपक डाकू।
डाकू लुटेरा सबसँ रक्षा करबाक चेष्टा केलक हिमालय आ सागर। भारत विष्वक एकटा भिन्न महादेष भेल। देषक प्राकृतिक विभाजन केलक बीचक विध्य आ सतपुरा। भेल उत्तर आ दक्षिण। किन्तु भारतक सांस्कृतिक मन कहियो विभाजित नहि भेल। उत्तर मन तृप्त भेल कन्याकुमारी आ रामेषवरमक दर्षनसँ, दक्षिण मन विभोर भेल मानसरोवर आ बद्रीविषालकेँ पाबि। पषिचमक द्वारका, पुरी दिस तकैत सूर्योदयकेँ प्रणिपात केलक तथा पूबक पुरी द्वारिकाकेँ निहारैत सूर्यास्तकेँ नमस्कार केलक। पूब-पषिचम, उत्तर-दक्षिण एक भेल, एक थिक आ एक रहत।
वस्तुत: मानव शरीरे जकाँ, भारतक अनेक अंग-प्रत्यंग अछि जे एकर ब्राहय रूप थिक किन्तु एकर आभ्यन्तकिरक आत्ममन एक थिक। भारतक आंगिक संज्ञा, क्रिया, विषेषणमे भने वैभिन्य हो, किन्तु सब एकर सांस्कृतिक व्याकरणक भिन्न-भिन्न अध्याये जकाँ अछि। जहिना प्रकृतिक नियम थिक एकर परिवर्तनषीलता तहिना भारतक विषेषता थिक अनकतामे एकता।
भारत, विष्वक एकमात्र लघुरूप थिकं जहिना महाभारतक प्रसंग कहल जाइछ जे, जे भारतमे अछि से महाभारतोमे अछि सैह भारतोक प्रसंग कहला जा सकैछ जे, जे विष्वमे भिन्न-भिन्न रूपमें अछि से भारतमे एक रूपमें अछि। जँ एहन कोनो प्राकृतिक प्रकोपक कारणे पुन: विष्वकेँ उत्पन्न करबाक प्रयोजन भेल तँ भारत पुन: एहने दोसर विष्वक निर्माण क•  सकैत अछि। यैह थिक भारतक सामथ्र्य।
समस्त विष्वमे मूल रूपमे तीन टा रंग अछि, तीन टा प्रजाति अछि भिन्न-भिन्न भूक्षेत्रमेंत्र, इथोपियनक कारी वर्ण, काकेषियनक गोर रंग तथा मंगोलियनक पीयर रंग-भारतमे एकठाम र्इ तीनू प्रजाति अछि, र्इ तीनू रंग अछि, एही तीनू रंगक अनेक रंग- विरंगक रूप अछि।
विष्वभरिमेे जतेक सभ्यता, संस्कृति ओ धर्म अछि, भारतमे एकठाम सेमेटिक आ आर्य सभ्यता संस्कृति तथा धर्म जाइत अछि। एक्के भारतमे सेमेटिक, वैदिक, पारसी, र्इसार्इ आ इस्लाम आदि विभिन्न धर्म ओ मतावलम्बी निवास करैत अछि।
विष्व भरिमें अनेक प्रकृति, जलवायु तथा प्राकृतिक साधन अछि जे भारतमे एक्के ठाम भेटि जाइत अछि। प्रकृति केर षटऋतु षटदर्षने जकाँ, भारत छोडि़ विष्वक अन्य कोनो भूखंड पर नहि अछि। वस्तुत: भारत, विष्वक लघुरूप थिक। भारतात्मा विष्वात्मा थिक।
भारतमे अति प्राचीनेकालसँ विष्वक विभिन्न प्रभागसँ विभिन्न प्रजातिक लोक आबि-आबि, एहिठामक अनुकूल जलवायु, प्राकृतिक सम्पन्नता तथा मूलवासीक सह असितत्व एवं सहिष्णुता पाबि शरण लैत रहल, अपन भूमि मानि बसैत रहल, मिलैत-पचैत रहील अछि, जाहिमे मुख्य अछि निग्रोइट, प्रोटो आस्ट्रेलाइड, अल्पाइन तथा  अन्य आग्नेय औसिट्रक जाति एवं बादमें मंगोल, यूनानी, शक, हूण, सिथियन, पहलव तथा तुर्क आदि। र्इ विभिन्न जाति गंगा भारत समुद्रमे आबिकेेँ मीलि गेल।
मीलि गेल किन्तु सभक किछु विषेषताक फूल संस्कृति देव पर चढ़ैत रहल, सुरक्षित रहल। यैह सांस्कृतिक वैभिन्य भारतक सांस्कृतिक प्राचीनताकेँ स्पष्ट करैत अछि।
विष्वक अन्य भाग जकाँ, भारतमे, कहियो कोनो सभ्यता संस्कृति प्राचीनक चिता पर ठाढ़ नहि भेल, अपितु पुष्टवाटिकामें परस्पर आलिंगित-प्रतिलिंगित होइत रहल। यैह एकर सांस्कृतिक समृद्धि थिक। विषेषता थिक।
आ र्इ विषेषता एहिठाम एकटा वैभिन्यक सृषिट केलक जे एकर ऐष्वर्य थिक। भारतक ऐष्वर्य थिक, एहिठामक भाषा आ बोली समूह। दक्षिणमे जँ अनार्य भाषा परिवार अछि तेँ उत्तरमे आर्यभाषा परिवारक विकास भेल। आ एही भाषाक माध्यमे अनेक क्षेत्रीय संस्कृतिक विकासमे सहायके भेल, परिपुष्टते प्रदान केलक, यैह थिक भारतक विलक्षणता।
भारतकेँ तीनू सागर तथा सीमांचलक पर्वतश्रंखला, विष्वसँ जाही मात्रामे पृथकता देलक ताही मात्रामें आंतरिक एकता सेहो देलक।
हिमालयसँ कन्याकुमारी धरि तथा ब्रहमापुत्रसँ सिन्धु धरिक लोक अपनाकेँ भारतवासी मानलक, अपन देषकेँ भारत मानलक। मानलक अपन सांस्कृतिक धरोहर वेद, ब्राहमण, आरण्यक, उपनिषद, रामायण, महाभारत आ गीताकेँ। समस्त देष एक भाषा मानलक संस्कृतकेँ आ ओहीमे देवार्चन कर• लागल।
देवार्चन भेल फल-फूल आ जलसँ। समस्त देषक समस्त नदीकेँ समान  आदर भेटल, प्रात:स्मरणीय भेल। देषक चारू सीमा पर देवक स्थापना भेल आ यात्रा माध्यमे देष एक भेल। देषक सुख-दुख एक भेल।
समान भावेँ समस्त भारतवासी, एतिठामक मनीषाक द्वारा स्थापित वर्ण व्यवस्था एवं वर्णाश्रम अपन मान्यतामे स्थान देलक। समान भावेँ प्रत्येक भारतीय प्रारम्भमे इन्द्रमित्र वरूणकेँ अपन देव मानलक, तखन ब्रहमा, विष्णु, महेषकेँ आ आदिषकित मानलक भगवतीकेँ, वीणावादिनीकेँं।
एकेष्वरवाद, पुनर्जन्म, आत्माक अमरता तथा मोक्षकेँ समान रूपेँ समस्त भारतीय अपन चिंतन-मननक आधार बनौलक।
वस्तुत: भारत अनेकतामे एकताक देष थिक, एकरा कहले टा नहि गेल अछि, मानलो गेल अछि। समस्त भारतवासी मानलक अछि, आ तेँ आइयो समस्त देषमे एकटा संविधान मान्य अछि।
मान्य नहि भेल तँ किछु कलुषित अंगरेजकेँ जकर सबदिन उíेष्य रहल भारतमे विषताक विषवपन करब। आ तेँ चाल्र्स ग्रान्टसँ ल• ए.एल. वैषम धरि एकदिससँ सब कहलक जे भारतकेँ एकता देलक अंगरेज।
किन्तु सिथति सर्वथा विपरीत अछि, भारतकेँ एकमात्र तोड़बाक प्रयास केलक अंगरेज। एहि प्रयासक अपवाद छथि सर विलियम जोन्स सन संत-मनीषी।
असलमे अधिकांष अंगरेज इतिहासकार लोकनिक इतिहास लेखन, विषेषत: भारतक प्रसंगे, पक्षपातपूर्ण ओ दोषपूर्ण अछि।  ओ लिखैत छथि प्राचीन कालपर आ तकैत छथि आधुनिक मान्यता। कोनो राष्ट्र मात्र भूगोलसँ नहि बनैत अछि, राष्ट्र बनैत अछि  इतिहाससँ, सभ्यता आ संस्कृतिक आत्मासँंं।
आ ओ इतिहास तथा सभ्यता संस्कृति सब दिनसँ एक रहल अछि। नहि तँ भारतीय आर्य विष्वक अन्ये आर्य जकाँ मूर्तिपूजन नहि करैत, भगवती आ षिव समस्त देषक देव नहि होइतथि। चारू धामक यात्रा नहि करैत, भगवती आ षिव समस्त देषक देव नहि होइतथि। चारू धामक यात्रा नहि होइत। वेद उपनिषद दक्षिणकेँ मान्य नहि होइत, भकित आ भागवत उत्तरमे मान्यता नहि प्राप्त करैत। भारतीय इतिहास अषोक, चन्द्रगुप्त, अलाउíीन खिलजी तथा अकबरकेँ अपन राजा मानलक, अपन देष मानलक अफगानिस्तानकेँ सेहो। एहि समकालक भारत, रूस लगाकेँ समस्त योरोपसँ पैघ छल। कहियो भारतीय आर्य र्इरान आ कासिपयन सागर धरिक भूखंडकेँ अपन देष मानने छल, तेँ ऋग्वेदमे कतहुँ विषेष रूपेँ आवास संकेत नहि अछि। र्इरानमे भारतीय आर्य कहयो रहल छल आ ओहिठामक असुर मद्रसँ युद्ध कयने छल जे देवासुर संग्राम थिक, र्इ तँ आब सर्वमान्य ऐतिहासिक तथ्य भ – गेल अछि।
इतिहास साक्षी अछि जे अपन विखंडनक नीतिक कारणे योरोपक इतिहास जतेक विभाजित ओ रक्तरंजित रहल अछि ततेक भारत, एषिया आ आफि्रकामे कहिया नहि रहल। आइयो बीच नगरमे देबालसँ विभाजन योरोपेमे देखल जाइत अछि। आइयो ग्रेट बि्रटेन एक नहि भ .. सकल अछि।
इतिहास साक्षी अछि जे एक्के हजरत इब्राहिम(एब्राहम) सँ हिब्रू, र्इसाइ तथा इस्लाम धर्मक जन्म भेल अछि, आ सभक एक्के धर्मस्थान थिक जेरूजलम। एहि तीनू धर्मक एक्के पैगम्बर थिक, इब्राहिम (एब्राहम), मूसा (मोसेस), दाउद (डेविड) आदि, तथापि एहि मतावलम्बी लोकनिक परस्परक रक्तरंजित इतिहाससँ प्राचीने इतिहास लजिजत नहि अछि, आधुनिको इतिहास क्षुब्ध अछि। आयरलैंड आ इंगलैंड, इजराइल आ फिलीस्तीन तथा र्इरान आ इराक अदिक संघर्ष प्राचीने युद्ध परम्पराक आधुनिक प्रमाण थिक।
योरोपक संस्कृतिक जन्मे युद्धसँ भेल अछि, युद्धेमे यौवनो आयल। असलमे योरोपक धर्म ओकर अपन भूमिसँ, अपन-विचारसँ नहि जनमल अछि, आयातित थिक। पषिचम एषियासँ गेल अछि, तैं ओ आयातित धर्म पाछू स्वर्ग केर टिकट काट• लागल, विक्रय केन्द्र बनल चर्च। योरोजक संस्कृतिक जननी थिक क्रीट आ पिता थिक ग्रीस। संस्कृतियो आयोजिते रहल। मात्र विषेषता रहल अपन, धर्म प्रचारमे। एहि दुनू धर्मक जन्म विकास अपन-अपन क्षेत्रमे बर्बरतापूर्ण रक्तपातेसँ भेल अछि, कान्सटैंटीनोपुलसँ पूर्वक योरोप तथा इजरत मुहम्मदक मक्कासँ मदीनाक पलायन एही पथ्यक प्रमाण थिक।
असलमे एहि दुनू धर्मक हाथमे छल तरूआरि आ बन्दूक आ उíेष्य छल साम्राज्यवादक घृणित लोभ। ओही लोभक कथा कहैत अछि सेंट पीटरक करूणा जे संगठन कयने छल क्रूसेडक लेल आ धर्म यात्री आबिकेँ लागि गेल विलास तथा उपनिवेषक स्थापनामे। लोभ तँ तेहन प्रबल छल जे एक क्रूसेडक पचास हजार अपन निरीह योरोपीय (फ्रेंच) षिषुकँ पषिचम एषियाक हाथेँ गुलाम बनेबाक लेल बेचि लेलक। ठीक तहिना महमूद गजनी आ महमूद गारीक उíेष्य भारतमे अपन धर्मप्रचार नहि छल, उíेष्य छल लूटब, से लुटलक आ चलि देलक।
भारत कहियो ककरो लुटलक नहि,  अपनामे, लड़ल अवष्य तत्कालीन ऐतिहासिक प्रयोजने। किन्तु से धर्मकेँ उपलक्ष्य बनाकेँ नहि। तरूआरि आ बन्दूक अपना हाथमे ल• केँ इस्लाम आ इसार्इ अपन धर्मक जतेक उपहास केलक अछि एतेक हिब्रू आ सलातन धर्मसँ सम्भव नहि छल।
पशिचम, विष्वविजय केलक तरूआरि आ बन्दूकसँ, भारत विष्वविजय केलक धार्मिक सहिष्णुतासँ। पषिचमक आदर्ष रहल सिकन्दर जे अनकर स्वतंत्रता छीनने फिरैत छल। जे धर्म जतेक अमौलिक, चिंतनहीन तथा नवीन रहत ओ ओतेक असहिष्णु, अनुदार तथा संकीर्ण होयत। जे धर्म मानवात्मकेँ समानता आ स्वावंत्रयकेर अमृत नहि दैत अछि ओ वैचारिक विष थिक। धर्म वस्तुत: मानव आत्माक प्रयोजन थिक, समाजक एकटा आयोजन थिक। आयोजन थिक शांति लेल, आनन्द लेल। आ यैह जीवनक उíेष्य थिक, सभ्यताक प्रकाष थिक, संस्कृतिक विकास थिक। राष्ट्रक आचार जँ ओकर भूगोल थिक, तँ विचार ओकर इतिहास।
चिंतनक बौद्धिकता ओ वैविध्य निर्विवाद रूपेँ कोनो संस्कृतिक सहिष्णुताक परिचायक होइत अछि।
भारतीय सहिष्णुता भारतीय भूगोलमे अछि जकरा इतिहास निरंतर विकसिते करैत रहल।
 आदिम कालमे, भौगोलिक विस्तार, वर्षा तथा वन्यक कारणे भारतीय आदिम मानवक आवष्यकता छल जनसंख्याक आधिक्य जाहिसँ अपनाकेँ विपुल वन्यपषुसँ रक्षित क• सकय। वन्यपशुक अधिकताक कारणे भोजनक लेल एतय संघर्ष नहि छल, जेना योरोप तथा मध्य एषियाक पाथर भूमिक कारणे संघर्ष छल। आ तेँ ओही कालमे एहिठाम सह असितत्वक भावनाक जन्म भेल जे एकटा सामाजिक जीवनक सड.हि, विराट सहिष्णुताक भावबोधक बीजारोपण केलक। जकर प्रमाण, निग्रोइटसँ ल• केँ हूण धरिक आगमन तथा भारतीय समाजमे समाहित हेबाक तथ्य थिक। एही सह असितत्व आ सहिष्णुताक प्रचार वेद ब्राहमण केलक, गीता भागवत केलक, राम आ कृष्ण केलनि तथा गांधी आ नेहरू केलनि जे वस्तुत: भारतीय भूगोलक दान थिक। भारतीय मनीषाक अवदान थिक।
भूगोल संस्कृतिक एकटा निर्णायक तत्व थिक, र्इ सर्वमान्य तथ्य थिक। योरोपक शैत्य जँ सामाजिक जीवनमे संघर्ष ओ कठोरता देलक तँ भारतीय समषीतोष्णता एकरा मृदुता ओ सहिष्णुता देलक। जा तेँ हाब्स सा लाक आदिम समाजते वन्यता देखलनि किन्तु रूसो भारतीय परिेवेषकेँ मोन राखलनि तेँ ओ देखलनि सौम्य-सौमनस्य तथा शांतिपूर्ण सामाजिक जीवन।
वस्तुत: मानव सभ्यताक विकास, व्यकितवादसँ व्यकियवाद धरिक यात्राक परिणाम थिक। आदिम व्यकितवादसँ असीमित समूहवादक जन्म भेल, तखन सीमित समूहवाद (कबिलाइ जीवन) तत्पष्चात कुलवाद, कुलवादसँ परिवारवाद आ एही परिवारवादसँ समकालीन व्यकितवादक विकास भेल अछि जे समकालीन औधोगिक अर्थवादक परिणाम थिक।परिवत्र्तन आ विकासक गति प्रकृतिक अटल नियम परिनियम थिक। 
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