।।प्रलय-रहस्य।।
घरही जे जयबें रे सहुआ
सहुनियां-बुधी रचबें
बिसरि जयबें कोसिका के नाम….
आ, साहुजी ठीके बिसरि गेला।
सय बरख भेलै, दू सय बरख भेलै
कोशीक संग भेल रहनि करार,
कोशी कें शंका छलनि तहियो
जे जहिना सकुशल पौता अपना कें साहुजी,
सहुआइन-संग मिलि क’ रचता बुद्धि
आ, कोशी कें बिसरि जेता।
मुदा
वचनबद्ध भेल रहथि साहुजी--
जीबो मोरा जयतै कोसीमाइ
परानो किछु जे बचतै
तैयो ने बिसरबह तोहर नाम….
जीबो बचलनि
कथी ले’ जयतनि हुनकर परान
मुदा बडे आराम सॅ बिसरि गेला कोशी के नाम।
बिसरि गेला जे कोशी के माटि सॅ बनलनि हुनकर काया
बिसरि गेला जे कोशी के पानि सॅ पौलनि संस्कार
कोशीक लास्य सॅ सिखलनि जीवन-राग
आ, हुनके ताण्डव सॅ आविष्कृत केलनि धर्म।
खसैए जखन लोक
तॅ खसिते चलि जाइए।
सैह देखियौ
हुनकर धियापुता हेलब धरि बिसरि गेल।
सोंइस-नकार-बोछ कें देखलक जॅ कहियो
तॅ खाली ज्योग्राफिक चैनल पर,
देखियौ
जे ई बेचारे साहुजी
हॅसैत रहला सब दिन कोसिकन्हाक लोक पर--
दोख जिनक यैह जे दू तटबंधक भीतर फॅसल छला ओ सब,
तिनका सब पर हॅसथिन
जे पनिहग्गा होइए ई सब।
कहलहुं ने,
खसैए जखन लोक
तॅ खसिते चलि जाइए।
ककरा बुद्धि पर एते निचिन्त छला साहुजी?
ककरा हुलकौला पर एतेभेलनि हिम्मत
जे जइठां कोशी-धार नै पाबै छल थाह
ततय बनौलनि दूमहला।
जइठां रानू सरदारक संग भेल रहै कोशीक मुलकात
निज तइठां खोललनि फैक्टरी।
ककरा बुद्धि पर छला एते निचिन्त?
अइ आजाद मुल्क मे ककर अपन भेलै सहुआइन जे हिनकर होइतनि?
आ, तकरा बुद्धि पर एते अगराएब?
एक सहुआइन गेल तॅ दोसर हाजिर
दोसर गेल तॅ तेसर हाजिर।
बिका गेल देश महराज,
एही सहुआइनक कुचक्र मे।
कहि लियनु सब भने हुनका ‘नेताजी नेताजी’
मुदा असल मे तॅ भेलखिन ओ साहुजीक बहु
जे चुनावक बाद सांढभेल चरी करथि।
जकरा दुअरिया हो रानू कोशी बहे धरबा
सेहो कइसे सूतत निचिन्त?
मुदा साहुजी निचिन्त सूतल रहला
तते भरोस छलनि नेताजीक आश्वासन पर।
बनैया सुग्गर आ नीलगाय पर केने रहितथि
हुराड आ बनबिलाड पर
गदहा आ महीस पर जॅ केने रहितथि भरोस,
तॅ आइ ई दिन नै देख’ पडितनि।
चुट्टी आ पिपडी धरि,
गडै आ चेंगा धरि
होइए एतबा जागन्त
जे यदि ओ अहां कें आश्वासन देने रहितय
तॅ की मजाल
जे तटबंधक भीतर जमा भ’ पबितै एतेक एते सिल्ट?
सिंगही ओकरा अपन कांट सॅ काछि भसा दीतै महराज,
हारिल आ बटेर ओकरा लोले लोल तौलि लीतय।
की मजाल?
जे जतय बनल छलनि साहुजीक तिनमहला
ताहि सॅ पांच मरद ऊपर बहितथि कोशीधार
बालुक भीड पर कनैत हकन्न?
ककरा भरोस पर हौ बाबू साहुजी?
—नेताजीक भरोस पर।
नेताजी कहता ‘आम’
तॅ सौंसे मुलुकक इंजीनियर चिकरत ‘आम आम’
आ, जॅ नेताजी बाजि गेला ‘जामु’
तॅ सुनाइ पडत समस्त विशेषज्ञ सभक शृगाल-स्वर-
‘जामु जामु जामु’
आ, ताहि लोक सब पर एते भरोस?
कथी ले रोपलियै कोसीमाइ आमुन-जामुन गछिया
कथी ले रोपलियै बीट बांस?
ईहो कोनो पुछबाक बात भेलै?
रोपने तॅ हेता भोगेक लेल
मुदा के नहि कर’ देलकनि भोग?
के भसिया क’ ल’ गेलनि
सय बरखक दू सय बरखक प्रगति?
के खत्ता खसा क’ मारलकनि?
सोचथु साहुजी
आबो अपन सोचथु।
मुदा कोन बुद्धिएं सोचता साहुजी?
कोन मुहें बजता?
कनियो रहलनि कहियो दया-दरेग
जे जकर सखा-सन्तान छला
जकर नाद-पूरनि सॅ ग्रहण केने रहथि जीवन-तत्त्व
ओ कोशी एतबा दिन कोन हाल मे रहली?
पछिमहि राज सं एलै एक मोगलबा
बान्हि जे देलकै कोसिका-धार
ऐसन बान्ह जे बन्हलक मोगलबा
सिकियो ने पसीझै मोगला के बान्ह
हिन्दुओ ने बूझै मोगला तुरुको ने बूझै
सब जन सॅ चकरी ढोआबे
राजा शिवसिंह बैठल छल मचोलबा
तेकरो सॅ चकरी ढोआबे
एहि तरहें बान्हल गेल छली कोशिका।
कलपि कलपि क’ चिट्ठी लिखथि कोशी
अपन एक-एक बहीन कें--
दे न गे गंगा बहिनो साथ
दे न गे जमुना बहिनो साथ
दे न गे कमला बहिनो साथ
सब बहीन चिट्ठी पढथि, कानथि हकन्न
भीजि जाइन बाम-दहिनक माटि
हुनका सभक नोर सॅ
जे कि बहीनक दुर्दशा पर बहराइन।
मुदा किनको नहि चलल किछु
कोनो सक्क नहि ककरो।
मोगलबाक बान्ह से भेल बज्जर
जे ओहि मे सिकियो नै पसीझै छलै,
कोशीक धार तॅ बहुत पैघ बात छल।
सालोसाल चीत्कार करथि कोशी--
गे बहीन गंगा, सरंग ठेकि बालु पर हकरै छी गे
गे बहीन जमुना, सबटा पैरुख चुकि जाइए
रेगिस्तान परहक तलमली मे गे
कोशी मोन पाडथि पछिला दिन, पछिला बाट
ओ जुग, ओ रुआब
आ, हिचुकि हिचुकि कानथि।
हुनकर नोर जे बहय धाराप्रवाह
ताही सॅ टुटै छल कहियो पूर्वी तटबंध,
कहियो पच्छिमी तटबंध।
मुदा कहू, कहिया सुनलनि साहुजी
कोशीक अरण्यरोदन?
वा सर्वनियन्ता सहुआइने सुनने होथि
तॅ सेहो कहू।
उनटे कविता रचैत रहला कवि-गण
उपद्रवी दुष्टा कोशी कें भेटलै खूब सजाइ
बान्हि क’ मूसुक बान्ह भाइ सब जेल मे देल ढुकाइ
बोलो भैया रामेराम हो भाइ
कोशी-सन बेदरदी जग मे कोइ नै….
ठीके बेदरदी जग मे कोइ नै
मुदा
कोशी-सन आ कि सहुआइन-सन
सोचथु आबो साहुजी
भेदन करथु प्रलयक रहस्य…..
सहुनियां-बुधी रचबें
बिसरि जयबें कोसिका के नाम….
आ, साहुजी ठीके बिसरि गेला।
सय बरख भेलै, दू सय बरख भेलै
कोशीक संग भेल रहनि करार,
कोशी कें शंका छलनि तहियो
जे जहिना सकुशल पौता अपना कें साहुजी,
सहुआइन-संग मिलि क’ रचता बुद्धि
आ, कोशी कें बिसरि जेता।
मुदा
वचनबद्ध भेल रहथि साहुजी--
जीबो मोरा जयतै कोसीमाइ
परानो किछु जे बचतै
तैयो ने बिसरबह तोहर नाम….
जीबो बचलनि
कथी ले’ जयतनि हुनकर परान
मुदा बडे आराम सॅ बिसरि गेला कोशी के नाम।
बिसरि गेला जे कोशी के माटि सॅ बनलनि हुनकर काया
बिसरि गेला जे कोशी के पानि सॅ पौलनि संस्कार
कोशीक लास्य सॅ सिखलनि जीवन-राग
आ, हुनके ताण्डव सॅ आविष्कृत केलनि धर्म।
खसैए जखन लोक
तॅ खसिते चलि जाइए।
सैह देखियौ
हुनकर धियापुता हेलब धरि बिसरि गेल।
सोंइस-नकार-बोछ कें देखलक जॅ कहियो
तॅ खाली ज्योग्राफिक चैनल पर,
देखियौ
जे ई बेचारे साहुजी
हॅसैत रहला सब दिन कोसिकन्हाक लोक पर--
दोख जिनक यैह जे दू तटबंधक भीतर फॅसल छला ओ सब,
तिनका सब पर हॅसथिन
जे पनिहग्गा होइए ई सब।
कहलहुं ने,
खसैए जखन लोक
तॅ खसिते चलि जाइए।
ककरा बुद्धि पर एते निचिन्त छला साहुजी?
ककरा हुलकौला पर एतेभेलनि हिम्मत
जे जइठां कोशी-धार नै पाबै छल थाह
ततय बनौलनि दूमहला।
जइठां रानू सरदारक संग भेल रहै कोशीक मुलकात
निज तइठां खोललनि फैक्टरी।
ककरा बुद्धि पर छला एते निचिन्त?
अइ आजाद मुल्क मे ककर अपन भेलै सहुआइन जे हिनकर होइतनि?
आ, तकरा बुद्धि पर एते अगराएब?
एक सहुआइन गेल तॅ दोसर हाजिर
दोसर गेल तॅ तेसर हाजिर।
बिका गेल देश महराज,
एही सहुआइनक कुचक्र मे।
कहि लियनु सब भने हुनका ‘नेताजी नेताजी’
मुदा असल मे तॅ भेलखिन ओ साहुजीक बहु
जे चुनावक बाद सांढभेल चरी करथि।
जकरा दुअरिया हो रानू कोशी बहे धरबा
सेहो कइसे सूतत निचिन्त?
मुदा साहुजी निचिन्त सूतल रहला
तते भरोस छलनि नेताजीक आश्वासन पर।
बनैया सुग्गर आ नीलगाय पर केने रहितथि
हुराड आ बनबिलाड पर
गदहा आ महीस पर जॅ केने रहितथि भरोस,
तॅ आइ ई दिन नै देख’ पडितनि।
चुट्टी आ पिपडी धरि,
गडै आ चेंगा धरि
होइए एतबा जागन्त
जे यदि ओ अहां कें आश्वासन देने रहितय
तॅ की मजाल
जे तटबंधक भीतर जमा भ’ पबितै एतेक एते सिल्ट?
सिंगही ओकरा अपन कांट सॅ काछि भसा दीतै महराज,
हारिल आ बटेर ओकरा लोले लोल तौलि लीतय।
की मजाल?
जे जतय बनल छलनि साहुजीक तिनमहला
ताहि सॅ पांच मरद ऊपर बहितथि कोशीधार
बालुक भीड पर कनैत हकन्न?
ककरा भरोस पर हौ बाबू साहुजी?
—नेताजीक भरोस पर।
नेताजी कहता ‘आम’
तॅ सौंसे मुलुकक इंजीनियर चिकरत ‘आम आम’
आ, जॅ नेताजी बाजि गेला ‘जामु’
तॅ सुनाइ पडत समस्त विशेषज्ञ सभक शृगाल-स्वर-
‘जामु जामु जामु’
आ, ताहि लोक सब पर एते भरोस?
कथी ले रोपलियै कोसीमाइ आमुन-जामुन गछिया
कथी ले रोपलियै बीट बांस?
ईहो कोनो पुछबाक बात भेलै?
रोपने तॅ हेता भोगेक लेल
मुदा के नहि कर’ देलकनि भोग?
के भसिया क’ ल’ गेलनि
सय बरखक दू सय बरखक प्रगति?
के खत्ता खसा क’ मारलकनि?
सोचथु साहुजी
आबो अपन सोचथु।
मुदा कोन बुद्धिएं सोचता साहुजी?
कोन मुहें बजता?
कनियो रहलनि कहियो दया-दरेग
जे जकर सखा-सन्तान छला
जकर नाद-पूरनि सॅ ग्रहण केने रहथि जीवन-तत्त्व
ओ कोशी एतबा दिन कोन हाल मे रहली?
पछिमहि राज सं एलै एक मोगलबा
बान्हि जे देलकै कोसिका-धार
ऐसन बान्ह जे बन्हलक मोगलबा
सिकियो ने पसीझै मोगला के बान्ह
हिन्दुओ ने बूझै मोगला तुरुको ने बूझै
सब जन सॅ चकरी ढोआबे
राजा शिवसिंह बैठल छल मचोलबा
तेकरो सॅ चकरी ढोआबे
एहि तरहें बान्हल गेल छली कोशिका।
कलपि कलपि क’ चिट्ठी लिखथि कोशी
अपन एक-एक बहीन कें--
दे न गे गंगा बहिनो साथ
दे न गे जमुना बहिनो साथ
दे न गे कमला बहिनो साथ
सब बहीन चिट्ठी पढथि, कानथि हकन्न
भीजि जाइन बाम-दहिनक माटि
हुनका सभक नोर सॅ
जे कि बहीनक दुर्दशा पर बहराइन।
मुदा किनको नहि चलल किछु
कोनो सक्क नहि ककरो।
मोगलबाक बान्ह से भेल बज्जर
जे ओहि मे सिकियो नै पसीझै छलै,
कोशीक धार तॅ बहुत पैघ बात छल।
सालोसाल चीत्कार करथि कोशी--
गे बहीन गंगा, सरंग ठेकि बालु पर हकरै छी गे
गे बहीन जमुना, सबटा पैरुख चुकि जाइए
रेगिस्तान परहक तलमली मे गे
कोशी मोन पाडथि पछिला दिन, पछिला बाट
ओ जुग, ओ रुआब
आ, हिचुकि हिचुकि कानथि।
हुनकर नोर जे बहय धाराप्रवाह
ताही सॅ टुटै छल कहियो पूर्वी तटबंध,
कहियो पच्छिमी तटबंध।
मुदा कहू, कहिया सुनलनि साहुजी
कोशीक अरण्यरोदन?
वा सर्वनियन्ता सहुआइने सुनने होथि
तॅ सेहो कहू।
उनटे कविता रचैत रहला कवि-गण
उपद्रवी दुष्टा कोशी कें भेटलै खूब सजाइ
बान्हि क’ मूसुक बान्ह भाइ सब जेल मे देल ढुकाइ
बोलो भैया रामेराम हो भाइ
कोशी-सन बेदरदी जग मे कोइ नै….
ठीके बेदरदी जग मे कोइ नै
मुदा
कोशी-सन आ कि सहुआइन-सन
सोचथु आबो साहुजी
भेदन करथु प्रलयक रहस्य…..