आदमी की तरह
चम्मचों से नहीं
आकंठ डूब कर पिया जाता है
दुख को दुख की नदी में
और तब जिया जाता है
आदमी की तरह, आदमी के साथ
आदमी के लिए
रेत मैं हूँ जमुन-जल तुम!
मुझे तुमने
ह्रदय तल से ढँक लिया है
और अपना कर लिया है
अब मुझे क्या रात क्या दिन
क्या प्रलय- क्या पुनर्जीवन!
रेत मे हूँ जमुन-जल तुम!
मुझे तुमने
सरस रस से कर दिया है
छाप दुख-दव हर लिया है
अब मुझे क्या शोक- क्या दुख,
मिल रहा है सुख- महासुख!
आकंठ डूब कर पिया जाता है
दुख को दुख की नदी में
और तब जिया जाता है
आदमी की तरह, आदमी के साथ
आदमी के लिए
रेत मैं हूँ जमुन-जल तुम!
मुझे तुमने
ह्रदय तल से ढँक लिया है
और अपना कर लिया है
अब मुझे क्या रात क्या दिन
क्या प्रलय- क्या पुनर्जीवन!
रेत मे हूँ जमुन-जल तुम!
मुझे तुमने
सरस रस से कर दिया है
छाप दुख-दव हर लिया है
अब मुझे क्या शोक- क्या दुख,
मिल रहा है सुख- महासुख!