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        • ।।बुढबा नेता ।।
        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
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        • ।।गोनू झाक गीत।।
        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
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        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
      • रामधारी सिंह दिनकर>
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भारतमे इतिहासक संकल्पना 

भारतवर्ष अनेक समयमे अनेक नाम रहल अछि। किछु देषीय लोक द्वारा,   किछु विदेषीक द्वारा।
द्रविड़ सभ्यताक (हड़प्पा सभ्यताक) कालमे सुमेरीलोकनिमे एक रनाम डिलमुन छल जे बेबीलोनियाक राजा सारगनक लेखसँ प्रकट होइछ जे व्यापारक क्रममे उल्लेख भेल अछि। सुमेरियाक पौराणिक कथाक अनुसार महापलावनक (र्इ. पूर्व 3100 वर्ष) पश्चात राजा जियसूद्र जे एसगरे बचि गेल छल (जेना बाइविलक डैल्यूजमे एसगर नूह तथा शतपथ ब्राह्रामणक महाप्लावनसँ एसगर मनु बचैत अछि) अमर हेबाक लेल डिलमुने दिस आयल छल। एकर अर्थ थिक ओहि समयमे भारतक उपयुक्त सुखद जलवायु छल। भारतक एकटा दोसरो नाम ओहि समयक भेटैत अछि मेल्हा।
आर्यकाल अर्थात आर्य प्रसारक क्रममे भारतक अनेक नाम भेल जाहिमे ब्रह्रार्षि देष (जे सुवास्तुसँ सरस्वती तट धरि लेल छल) या आर्यावर्त (जे मुख्यत: उत्तर भारतक लेल छल) अधिक प्रसिद्ध भेलं दक्षिणक सांस्कृतिक विजय अथवाउ आर्यीकरणक पश्चात हिमालयसँ कन्याकुमारी धरिक नाम भारत अथवा भारतवर्ष पड़ल। एहि नामकरणक सम्बंध इक्ष्वाकु दुष्यन्तपुत्र भरतोसँ जोड़ल जाइत अछि तथा ऋग्वैदिक आर्यजन भरतोसँ, जकर प्रसिद्ध राजा सुदास छलाह। पौराणिक कालमे एक रनाम जम्बूद्वीप सेहो छल जे सम्भव वृहत्तर भारतक लेल छल।
र्इ. पूर्व छठम शताब्दीक र्इरानी राजा दाराक अभिलेखमे प्रथम-प्रथम हिन्दी शब्दक व्यवहार भटैत अछि जाहिसँ कालान्तरमे हिन्दूआ हिन्दूस्थान भेल आ जे मुसलमान उच्चारणमे विकृत भ• केँ हिन्दुस्तान भ• गेल। पठान मुगल कालमे यैह नाम चलैत रहल।
र्इरानी लोकनि स केँ ह मे उच्चारण करैत अछि तैं ओ सिन्धकेँ हिन्द कहलक। आ तैं पषिचम एषियामे वस्त्रक लेल सिन्दनतथा अरबीमे गणितक हिन्दसा प्रचलित भेल जकर अर्थ थिक जे र्इ दुनू वस्तु ओम्हर भारतेसँ गेल छल। 
एही हिन्दकेँ यूनानी इंड कहलक। मेगास्थनीजक पुस्तकक नामे इंडिका रहल। एहीसँ अंगरेजी उच्चारणमे (जकर माय क्रीट आ बाप यूनान थिक) इंडिया भेल जकरा संवैधानिक नाम सेहीो बना देल गेल। किन्तु भारतीय जनतामे भारतवर्ष सर्वमान्य ओ सर्वप्रचलित भेल।
प््राचलित भेल भारतवर्षक लेल उपमहाद्वीप, आ अंगरेजेक लेल देष।
ज्हिना महाभारतक लेल कहल जाइछ जे, जे भारतमे नहि अछि, महाभारततोमे नहि अछि तहिना जे विष्वमे नहि अछि, भारतोमे नहि अछि, अर्थात भारत विष्वक लघुरूप थिक। भारतक परिभ्रमण कयने विष्वदर्षनक फल भेटि सकैछ, मात्र सड़क, मकान आ भूगोल छोडिकेँ। विष्वक प्राय: समस्त संस्कृति, भाषा, धर्म, तथा परम्परा कोनो ने कोनो रूपमे एत• अछिये। एहन विष्वभरिमे, एहि रूपमे, कतहु नहि अछि। वस्तुत: भारत स्वयं एकटा विष्व थिक, विष्वरूप थिक, लघुविष्व थिक। 
भारत विष्वमे रहियोकेँ विष्वसँ भिन्न अछि, भिन्नो रहिकेँ विष्वमय अछि। ठीक तहिना भारत एषियमे रहियोकेँ एषियासँ सर्वथा भिन्न अछि। उत्तरक हिमालय आ दक्षिणक समुद्र एकरा एषियेसँ नहि, विष्वोसँ पृथकता प्रदान करैत अछि। आकृति-प्रकृति, सभ्यता-संस्कृति आ लोकाचार-परम्परामे भारत एषियासँ सर्वथा भिन्न अछि। तेँ एकरा एषिया महादेषक एकटा देष मानबामे ने कोनो तर्क अछि, ने कोनो तुक अछि। र्इ अंगरेजेक परिकल्पना छल।
एहि भ्रान्त परिकल्पनामे परिवर्तन अनिवार्य अछि। जनसंख्यामे भारतक भने दोसर स्थान हो किन्तु क्षेंत्रफलमे, अनेकमे, प्रथम अछि। रूसकेँ छोडि़ यारोपसँ पैघे अछि भारत। जँ आस्ट्रेलियाकेँ महादेष मानल जा सकैछ तँ भारतो निषिचत रूपेँ महादेष थिक। बलिक भूगोलक परिभाषाकेँ सेहो बदलबाक प्रयोजन अछि। रूस, चीन आ भारत तीनू महादेष थिक। 
महादेश भारतक इतिहास, विष्वक सामान्य इतिहास जकाँ नहि अछि। एकर पषिचमोत्तर भिन्न इतिहास अछि, उत्तरक भिन्न दक्षिणक भिन्न। किन्तु यैह ऐतिहासिक भिन्नता भारतकेँ एक समग्र इतिहास दैत अछि। इतिहासक एक्के राष्ट्रीय धारासँ समस्त भारत सम्बद्ध अछि, जुड़ल अछि। उत्तेरेक आर्यक प्रतीक्षा दक्षिणक इतिहास करैत छल। दक्षिणेक भकित भावनामे उत्तर भारत अपन विस्तृत मार्ग तकलक अछि। उत्तर-दक्षिण, पूब-पषिचम एक अछि, एक धड़कन अछि, एक स्पन्दन अछि।
एही एकताकेँ तोड़बाक प्रयास अंगरेज, इतिहासक माध्यमे कयने छल जे अंतमे भारतकेँ तोडि़येकेँ गेल।
भारतक इतिहास लेखन एखनधरि अंगरेजक प्रभाव अछि। एहि प्रभावसँ मुकितक लेल दुइ टा प्रयास एहि बीच भेल अछि। एकटाकेँ राष्ट्रीयतावादी कहल गेल आ दोसर विदेषी चष्मा धारण कयने अछि जे मात्र भौतिकताक मानदंडसँ भारतीय इतिहासक चित्रण करैत अछि। वस्तुत: दुनू तटस्थ आ निष्पक्ष इतिहास लेल अतिवाद थिक जे भ्रामको अछि, घातको र्अछि। किछू इतिहासकारमे एकटा आरो प्रवृति कार्य क• रहल अछि, किछु महत्वपूर्ण भारतीय तिथिकेँ आगू आनबाक प्रवृति। निष्चय र्इ प्रवृति अंगरेजे इतिहासकारक देन थिक जे यूनानी सभ्यताकेँ प्राचीन मनेबाक लेल करैत छल। एहि क्रममे जाहि उत्खनन साक्ष्यक अभावक घोषणा ओ सब करैत छल।, इहो लोकनि करैत छथि। अंगरेज अथवा पाष्चात्य इतिहासकार तँ कहलक जे भारतीयकेँ ने तँ इतिहासक संकल्पने छल आ ने इतिहास लिख• आयल। किन्तु एहिठाम महाभारतो-रामायणकेँ इतिहासे मानल जाइत छल, तक्षषिले कालसँ अथवा उपनिषदे कालसँ इतिहास षिक्षक विषय बलि गेल छल, एहि बातकेँ बिसारि देल गेल।
र्इ बात भिन्न थिक जे भारतमे इतिहास संकल्पना अपन सभ्यता संस्कृतिक अनुकूले भिन्न छल। एहिठाम इतिहासलेल शासक महत्वपूर्ण नहि छल, महत्वपूर्ण छल सामान्यजन आ सामान्यजनक लेल षिक्षेक कार्य इतिहास करैत छल, जाहि लेल छल चारण परम्परा तथा ओकर रामायण-महाभारत। इतिहास तँ भारतक कर्ममय जीवनक एकटा अतिआवष्यक अंगे छल जे चतु:चतु: (चारि वर्ण व्यवस्था, चारि आश्रम व्यवस्था, चारि ऋण तथा चारि पुरूषार्थ) मे समाहित छल जे ब्राह्राण, आरण्यक, उपनिषद, सूत्र, स्मृति, अष्टाध्यायी, अर्थषास्त्र तथा महाभाष्यसँ ताकऽ  पड़त, बहार करऽ  पड़त। सतर्कतासँ ताकलासँ किछु इतिहासक वस्तु रामायण, महाभारत, गीता, जातक तथा पुराण आदिमे सेहो भेटि सकैछ। एकर अतिरिक्त अछि विदेषी यात्रीसभक वर्णन जाहिमेसँ अतिरंजना ओ पक्षपातकेँ बहार कर• पड़त।
इतिहास व्यतीत वर्णन थिक, सुदूी अतीत दर्षन थिक, कोनो वत्र्तमान आकलन नहि। आ तेँ इतिहासकारक दायित्व बढि़ जाइत अछि। दृषिट आ दृषिटक निष्पक्षता अत्यन्त प्रयोजनीय भऽ  जाइछ।
इतिहासक सर्वाधिक महत्वपूर्ण कार्य थिक सर्वप्रथम काल विभाजन, जाहि लेल किछु तिथि निर्धारण सेहो आवष्यक भऽ  जाइत अछि। भारतीय इतिहासमे एहि प्रसंग अनेक विवाद ओ मतान्तर अछि, जाहि कारणे किछु जटिलता तथा भ्रम सेहो उत्पन्न भऽ  जाइत अछि जे विषेषत: सामान्य पाठक ओ छात्रक लेल असुविधाजनके होइत अछि।
भारतीय इतिहासमे अंगरेजेक मान्यतानुसार (जे साक्ष्य अभावक नाम पर थोपल जाइछ) आध, प्रागैतिहास तथा प्राचीन आदि शब्द प्रचलित अछि जे जटिल, भ्रामक आ विवादास्पद अछि। आ एहि प्रकारेँ विधिवत प्राचीन इतिहासक प्रारम्भ वी. सिम्सथे जकाँ बुद्धकालसँ प्रारम्भ होइत अछि।
स्मरणीय जे एहि प्रकारक साक्ष्यक अभाव मौर्योकालमे, गुप्तोकालमे, तकर बादो होइत रहैत अछि। वस्तुत: मुगलकालसँ साक्ष्यक निरंतरता भेटैत अछि। तखन भारतक इतिहास मुगलकालेसँ अथवा अधिक प्रामाणिक साक्ष्यक दृषिट´े अंगरेजे कालसँ प्रारम्भ हेबाक चाही जे अंगरेज चाहितो छल।एहि दृषिट´े भारतीय इतिहास लेखन रूढि़वादी भऽ  गेल। एहि रूढि़केँ तोड़ऽ  पड़त।
र्इ. पूर्व 30,000 वर्ष पूर्व आधुनिक मानवक जन्म भऽ  जाइत अछि। आ र्इ. पूर्व 15000 वर्ष पूर्व आगिक आविष्कार ओ प्रयोग आरंभ भ• जाइछ, माथ आ हाथ एक भऽ  गेल रहैत अछि। र्इ. पूर्व 10,000 वर्षमे जे गर्म बिहाडि़ उठल छल तकर बादे भारतीय मानव अपन स्थायी निवास संधानक दिषामे बढ़ल छल। र्इ. पूर्व 5000 वर्षक आसपाससँ भारतीय मानव नहि मात्र अपन नग्नताक लेल उचित झाँपन व्यवस्था प्रारम्भ क• देलक अपितु प्राय: समस्त भारतमे अन्न उत्पादनक लेल विकसित प्राणालीक जन्म सेहो भऽ  गेल। वन्यअन्न बीजकण तँ सात-आठ हजार वर्ष र्इ. पूर्वेसँ भेटऽ  लगैत अछि।
एहि प्रकारेँ भारतक प्रागैतिहासिककाल यैह थिक जे र्इ. पूर्व 8000 वर्षसँ ल• केँ र्इ. पूर्व 3500 वर्ष धरि चलैत अछि। एहि कालखंडक ने कोनो साहित्य अछि ने पर्याप्त उत्खनन साक्ष्य। किन्तु प्राय: एही समयसँ मानवीय सभ्यता नदी घाटीक यूगमे प्रवेष करैत मानल गेल अंिछ। एही समयमे भारतमे ह•रक आ चाकक आविष्कार भेल जे कृषिकेँ विकसित रूप प्रदान केलक आ सभ्यता दोसर चरणमे प्रवेष केलक अर्थात इतिहासक प्राचीनकालमे। भारतीय इतिहासक प्राचीनकाल र्इ. पूर्व 3500 वर्षसँ र्इ. पूर्व 500 र्इ. धरि चलैत अछि।
एहि प्राचीनकालक मुख्यत: तीन गोट घटना थिक। प्रथम थिक भारतीय आदिमानव जे द्रविड़ सभयताक रूपमे रूपांतरित भेल आ जे अपन विकासक चरम कालमे नहि मात्र विकसित नगर प्रणालीक जन्म देलक अपितु सुदूर मिस्र, मेसोपोटामिया, क्रीट धरि जाकेँ सफल वाणिज्यो व्यापार केलक जे एकर आंतरिक उधोग आ व्यापारक प्रतिफलन थिक, जकरा पाछाँ विकसित कृषि प्रणालीक सुदीर्घ परम्परा रहल होयत। एही समयमे, गृहक लेल पाकल र्इंट, बत्र्तन लेल चाक, यातायात लेल  बैलगाड़ी एवं नाह, व्यापार लेल बाट ओ तुलादंड, पहिर• लेल वस्त्र उधोग ठाढ़ भेल जे मिस्र धरिकेँ देलक। एहि समयमे ताम्र आ काँसाक निर्माण षिल्प विकसित भेल तथा ओकर प्रचलन व्यापक भेल। एही समयसँ समाज षिकार, पशुपालन युगक मातृसत्तात्मकतासँ पितृसत्तात्मकता दिस उन्मुख भेल जे कृषि एवं उधोेग प्रधान सामाजक व्यवसिथत स्थायित्व लेल सर्वथा अनुकूल रहल होयत, जकरा विवाह प्रथा दृढ़ता होयत।
थ्चंतनक क्षेत्रमे सम्भव पुनर्जन्मक कल्पना आबि गेल छल किन्तु उपसनाक क्षेत्रमे अन्य सेमेटिके जकाँ साकार मूर्ति पूजनक प्रथा छल। द्रविड़ मुख्यत: मातृदेवी तथा लिंगदेवक उपासक छल जे हड़प्पा उत्खननमे भेटल। सम्भव षिकार युगक लिंगदेव भारषिवसँ एकाकार भ• गेल हो जे कालांतरमे आर्यक उपासना पद्धतिमे सेहो आयल, तखने अनेक नामकरण भेल जाहिमे रूद्र, षिव, महादेव अधिक प्रसिद्ध भेल।
र्इ. पूर्व प्राय: 10,000 वर्षसँ जे निग्रोइटसँ बाह्रा आगमन आरम्भ भेल से प्रोटो ओष्ट्रेलाइड एवं अल्पाइन धरि अनेक औषिट्रक जाति आयल आ मीलि-पचिकेँ भारतीय भ• गेल। ब्राह्रा आगमनक प्रथम चरण सेहो द्रविड़े कालमे पूर्ण भेल जाहि क्रममे अनेक सांस्कृतिक आदान-प्रदान भेल, भारतीय आदिमानवक भाषामे अनक परिवर्तन भेल ओ द्रविड़ भाषाक रूपमे मान्य भेल जे आइयो दक्षिण भारतमे अछि।
द्रविड़ सभ्यता विष्वक सेमेटिक सभ्यतामे सर्वाधिक विस्तृत क्षेत्रक सभ्यता छल, जकर विस्तार कष्मीरसँ गुजरात धरि तथा काबुल नदीसँ यमुना नदी धरि छल आ जाहिमे अनेक नगर छल, जाहिमे हड़प्पा, मोहनजोदड़ो, लोथल आ कालीवेंगन आदि मुख्य छल जकर विकसित नगर व्यवस्था, क्रीटक नासस नगरसँ तथा सुमेर बेबीलोनियाक उर, किषसँ एवं मिस्रक मेमिफस, गिजेसँ श्रेष्ठ ओ व्यवसिथत छल। जकरा सम्बन्धमे अनेक अंगरेज विद्वानक मत अछि जे द्रविड़ नगर अठारहम शताब्दीक लंदलनसँ श्रेष्ठ, व्यवसिथत ओ सुन्दर छल।
एहि सभ्याताक अंत र्इ. पूर्व 1800 मे मानल जाइत अछि। एकर अधिकांष लोक दक्षिएाभारत चल गेल, सम्भव एकर मूल दक्षिणेभारतसँ कहियो आयलो छल।
द्रविड़ सभ्याताक उत्तरार्ध कालक मुख्य घटना थिक भारतमे आर्य आगमन। आ तेँ द्रविड़ सभ्यताक अंतक एकटा कारण आय्र मानल जाइत अछि। किन्तु र्इ मत सर्वमान्य नहि अंिछ।
असलमे र्इ. पूर्व 2000 पश्चात पषिचमोत्तर भारतक (विषेषत: सिन्धु क्षेत्रक) जलवायुमे तीव्रतासँ परिवर्तन आब• लागल, वर्षाक अभाव होमय लोगल, थार मरूभूमिक विस्तार होमऽ  लागल, सिन्धु पाटमे परिवर्तन होमऽ  लागल जकर प्रभाव कृषि आ उधोग पर पड़ल । नगर उजड़• लागल। उत्तर दिस आर्य प्रसार भ• रहल छल तेँ ओकर सभक दिषा दक्षिणे दिस भेल।
आर्य प्रसार उत्तर पूर्वक दिषामे छल। सम्भव (स्वात) सुवास्तु तट धरि आर्य अबैत-अबैत युद्धसँ थाकि गेल छल अथवा सिन्धु पार केलाक बादसँ क षिकार्म अधिक आकर्षक लागल, जाहि कारणे स्थायी निवास अनिवार्य भेल ओ एहि लेल आवष्यक छल आर्य-अनर्याक मिलन। अनार्य ताधरि आर्यक लेल अपन षिल्पक कारणे सेहो उपयोगी भऽ  रहल छल, सड.हि कृषि लेल दासोक प्रयोजन बढि़ गेल छल तेँ सह-असितत्वे आवष्यक भेल होयत। तेँ ऋग्वेदमे अधिक युद्ध वर्णन नहि अछि, तेँ दासराज्ञ युद्धमे आर्य-अनार्य दूनू संग-संग लड़ल छल। किन्तु सम्भव हड़प्पाक पतन आर्ये द्वारा भेल हो जकरा ऋग्वेदमे हरियूपिया कहल गेल अछि आ इन्द्रक नाम भेल पुरन्दर। र्इ सबटा रावी तटक घटना थिक। एहीठाम हड़प्पा छल जे आर्य मार्ग पर पड़ैत छल।
आर्य आगमन प्राचीनकालक दोसर घटना थिक जकर तिथिविन्दु एखनहूँ पेंडुलम जकाँ डोलि रहल अछि। अनेक मत-मतान्तर अछि।
किन्तु सामान्यत: र्इ. पूर्व 2000 आसपास आर्यलोकनिक पहिल दल जाहिमे अनेक जन (उपदल) छल, सिन्धु नदी पार कऽ  गेल छल। सिन्धुक पषिचमे अर्थात सुवास्तुये तटसँ आर्यमे स्थायी निवास आ कृषिक प्रवृति जागऽ  लागल छल। झेलमसँ सरस्वती तट धरि आर्य ग्राम बसऽ  लागि गेल। पशुपालनक ह्रास आ कृषिक विकास क्रमष: प्रारम्भ भेल। पूर्वकालक श्रुतिकर्मा ब्राह्राण तथा युद्धकर्मा क्षत्रिय संस्कारक अतिरिक्त विष:मे रहऽ  बला वैष्य संस्कार अलग भऽ  रहल छल जे मुख्यत: पशुपालन आ कृषि कार्य करैत छल।
सम्भव देवासुर संग्रामक पश्चात जे कासिपयन सागरक दक्षिणी तथा (आधुनिक) र्इरानक उत्तरी छोर पर लड़ल गल छल, चेनाव तट धरि आर्य लोकनिकेँ बीचक अनेक सेमेटिक अनार्य जातिसँ युद्ध करऽ  पड़ल होयत। तेँ प्रसार गति मन्दो अछि आ ऋग्वेदमे पणि, दस्यु  आ दासक प्रति एतेक घृणा ओ निन्दा भाव अछि।
किन्तु लगैत अछि जे चेनावक पश्चातेसँ आर्य मनोवृतिमे परिवर्तन आबऽ  लागल, अनार्य षिल्प आर्यजीवनक आवष्यक अंग बनऽ  लागल, कृषिक लेल दासक प्रयोजन पडऽ  लागल, कारण भारतीय कृषिपद्धतिसँ वैह परिचित छल आ तेँ रावी तटधरि दुनूक मिलन प्रक्रिया तीव्र भेल, जकर प्रमाण थिक दासराज्ञ युद्ध जाहिमे आर्य-अनार्य दुनू मीलिकेँ लड़ल छल जे युद्ध आर्य आर्यक बीचक छल।  आ तेँ आर्यमे दासक प्रति, दस्यु ओ पणिक अपेक्षेँ कोमलता अछि जे ऋग्वेदसँ ध्वनित अछि।
ऋग्वेदमे पणि आ दस्युक प्रति अधिक घृणा व्यक्त कयल गेल अछि। पणि व्यापारी छल आ सम्भव ओकरे सहयोगेँ दस्यु लोकनि आर्यक गाय चोरा लैत छल, अथवा जाहि पैघ अनार्य किसानक खेत आर्य लोकनि छिनने जा रहल छल ओकर रोष अथवा उत्पात स्वाभाविके अछि। हमीर बुझने यैह पूर्वक पैघ किसान आर्य द्वारा दस्यु कहौलक। 
आर्य प्रसारक कारणे एहन-एहन किसानक जमाव सम्भव हड़प्पाक आसपास अधिक भेल होयत। पैघ किसानक लेल नगरक निकट केर वास उपयुक्ते होइत अछि तेँ पहिनहँुसँ हड़प्पा नगरक चारूकात पैघ-पैघ किसान रहलो होयत, जकरा संग नीक ताल-मेल हड़प्पा नगरक व्यापारी लोकनिक रहल होयत, जे स्वाभविके अछि। आ एही सभक कारणे आर्यालेकनिक लेल हड़प्पा-पतन आवष्यक भऽ  गेल होयत, जे भेल। यैह थिक कृष्ण (कारी अनार्य) जा इन्द्रक युद्ध। इन्द्र ओहि समयक जननेता राजाकेँ सेहो कहल जाइत छल, जे जनकेर सर्वाधिक महत्वपूर्ण योद्धा होइत छल जा जे युद्धमे प्रधान सेनापतियो होइत छल आ जकर निर्वाचन होइत छल। यैह निर्वाचन पद्धति कालान्तर पौराणिक कथाक तपस्यासँ इन्द्रक आसन डोलब थिक।
राहुल सांकृत्यायनक मतेँ रावी तटक पश्चात राजाक इन्द्रपद समाप्त भ• गेल। किन्तु लगैत अछि ज एही समयक देव इन्द्र आ राजा इन्द्रक एकीकरणेमे उत्तर वैदिकयुगक दैवी सिद्धान्तक बीज निहित अछि जकरा अनुसारेँ राजा देव प्रतिनिधि मानल गेल।
जे हो, ओहि समयक भूमिहीने, आर्य द्वारा दास कहौलक जकरा प्रति अपेक्षाकृत दया देखाओल गेल आ जे मिलनक क्रममे सबसँ पहिने आर्यक जीवनक आवष्यक अंग भेल जे उत्तर वैदिक युगमे शूद्र कहिकेँ आर्यवृत्तमे ल• लेल गेल।
अधिकांष दस्यु (पैघ किसान) अथवा पणि (नागरिक व्यापारी) भागि गेल होयत, किछु मरलो होयत, शेष दासवर्गमे अधीनता स्वीकार करैत, आबि गेल होयत।
एहि पणिकेँ किछु इतिहासकार फोनेषियन मानैत छथि, जे भ्रामक तथा तथ्यहीन थिक। एक तँ फोनेषियन कमूल निवास उर्वर अर्धचन्द्रमे अर्थात जोर्डनसँ पषिचममे छल। व्यापारिक आवागमन छलहो तँ एहि कालखंउमे टूटल छल। र्इ कालखंड अर्थात र्इ. पूर्व 1800 र्इ. क आसपास, भारत आ पषिचम एषिया तथा मिस्रक लेल अषांति काल छल। कासिपयन सागरसँ पषिचम-उत्तरमे हित्ती, मित्तनी, कस्साइट आ हुर्री लोकनिमे, जे आर्य भाषाभाषी छल, परस्पर संघर्ष चलि रहल छल, आ कस्साइट सब एलम बेबीलानिया दिस बढि़ रहल छल। एम्हर उर्मियाँ झीलक आसपास, जे कासिपयनसँ पषिचम दक्षिणमे अछि, असुर जाति जे सम्भवच आर्य ओ अकाछियनक वर्णसंकर जाति छल, अपन असितत्व लेल संघर्ष कऽ  रहल छल। मेसोपोटामियमे, सुमेरी सभ्यताकेँ समाप्त कऽ  केँ बेबीलोनियाक अकाडियन राजा सारगन (र्इ. पूर्व 2700),(र्इ. पूर्व 2500) तथा हम्मूरावी र्इ. पूर्व (2100) क कठोर शासनक पश्चात पषिचम एषियामे अषांति आ अराजकता मचल छल। मिस्रमे हिक्सस जातिक, जे सम्भव आर्ये भाषाभाषी छल, उपद्रव बढ़ल छल। एहन समयमे पूर्वक व्यापारिक यातायातमे अवष्ये बाधा पड़ल होयत, आवागमन निषिचत बन्द भऽ  गेल होयत किछु कालक लेल।
तेँ पणि फोनेषियन नहि थिक। दोसर, पणि दस्यु आ दसक लेल ऋग्वेदमे जाहि प्रकारक विषेषणक प्रयोग अछि ओ एहिमतकेँ निराधार कऽ  दैत अछि। ओ विषेषण थिक कृष्ण, अनासस अदेवयु, मृधवाक तथा षिष्वदेवा: आदि। र्इ षिष्नदेवा: विषेषण पणिकेँ हड़प्पा आ मोअनजोदड़ोक नागरिक व्यापारी सिद्ध करबाक लेल पर्याप्त अछि। सम्भव एही पणिसँ कालान्तरक पण मुद्रारूप भेल हो।
जे हो, र्इ. पूर्व 1800 र्इ. क दाषराज्ञकेर पश्चात आर्य-अनार्यक सांस्कृतिक मिलन प्रक्रिया अवष्ये तेज भेल होयत विषेषत: दृषद्वती ओ यमुना नदीक दिषामें ऋग्वेदमे यमुनाक उल्लेख मात्र तीन बेर तथा गंगाक एक बेर भेल अछि जकर अर्थ लगाओल जाइछ जे पूर्व वैदिकयुगमे आर्य प्रसार एम्हर नहि भेल छल, तथापि प्रसार दिषाक सूचना अवष्ये भेटि जाइत अछि।
पूर्व वैदिकयुगक उत्तरार्धमे ब्राह्राण संस्कारमे जन्मनाक सिद्धान्त आबि गेल छल, शेष दुनूमे कर्मणेक सिद्धांत छल जे उत्तर वैदिकयुगक उत्तरार्ध धरि रहल। एहि कालखंउमे व्यवसाय परिवर्तन सुगम छल। तीनू संस्कारक (वर्णक) पुत्र आ पुत्रीक उपनयन होइत छल तखने ओ पितृकुल अथवा गुरूकुलमे श्रुति अभ्यासक षिक्षा ग्रहण करैत छल। कालांतरमे क्रमष: स्त्रीषिक्षा आ उपनयन प्रथा घटल गेल जे गृहकार्यक दायित्वेक कारणे भेल होयत, उपेक्षाक कारणे नहि, जेना कि कहल जाइत अछि।
पुत्री उपनयन ओ षिक्षा केर प्रति उदासीनता वैष्योमे आयल। आ पूर्व वैदिक युगक अंतधरि गृहकार्य,कृषि,व्यवसायक अधिकताक कारणे उपनयन प्रथा बन्द भऽ  गेल किन्तु रहल द्विजे कोटिमे। षिक्षाक द्वार सर्वथा बन्द नहि भेल, किन्तु मात्र श्रुति अभ्यास जे एकमात्र ब्राह्राणक कर्म रहि गेल छल, ओकरा लेल अनावष्यक ओ अनुपयोगी भऽ  गेल। षिल्प षिक्षाक विकास होमऽ  लागल जे कौकिताकेँ प्रोत्साहित केलक जाहिसँ कालान्तरमे जातिक जन्म भेल। पाछू षिल्पषिक्षाक प्रमाण तक्षषिलोक पाठष्सूचीसँ भेटऽ  लगैत अछि। षिक्षाक सम्बन्धमे आर्यलोकनि दासीपुत्र वर्णसंकरोक प्रति उदारे छलाह जकर प्रमाण थिक ऋषि काक्षीवान, लोमषा (स्त्री ऋषि), घोषा तथा उत्तर वैदिकयुगक इतरादासी पुत्र ऐत्तरेय महिदास, जकरा नामे ऐत्तरेय ब्राह्राणग्रंथ अछि, आदि। किन्तु अधिकांष वर्णसंकर वैष्ये संस्कार दिस उन्मुख होइत छल, किछु दासवृत्ति दिस सेहो। एहने दास परम्पराक लोक अनार्यक सड.हि उत्तर वैदिकयुगमे शूद्र भेल अर्थात जकर पानि चलैत रहल। परवर्ती युगक कमार, कुम्हार, सोनार आदिक बीज एही परम्पराम अछि।
पूर्व वैदिकयूगमे वर्णसंकरताक प्रति कोनोे उपेक्षाभाव नहि छल। उत्तर वैदिकयुगक कालोंतरमे उत्तराधिकारक प्रष्न पर र्इ वर्णसंकर प्रथा समस्या उत्पन्न करऽ  लागल तेँ एहि प्रथाकेँ निन्दनीयेटा नहि मानल जाय लागल, अपितु बन्द करबाक लेल आर्य सप्तमर्यादामे ब्रह्राचर्यकेँ अत्यधिक महत्व देल गेल जे पाछू पाष्र्वनाथ, महावीर आ बुद्ध धरिकेँ एहि प्रषन पर जोर दैत पबैत छी।
पूर्व वैदिकयुगक आर्य समाज मूलत: पितृसत्तात्मके छल आ विवाह प्रथामे दृढ़ता आब• लागि गेल छल, किन्तु पूर्वकालक मातृसत्तात्मकताक प्रमाण सेहो यदाकदा भेटि जाइत अछि आ से उपनिषद काल धरि भेटैत रहैत अछि, पूर्व वैदिक युगक अंत आ उतर वैदिकयुगक आरम्ीाक द्रोपदी तथा उपनिषदीय सत्यकाम जावालि आदि एकरे प्रमाण थिक।
पूर्व वैदिकयुगमे राजाक चूनाव होइत छल, जे जननेता होइत छल आ उपहार ओ लूट निर्भर रहैत छल तथा सभा ओ समितिक द्वारा नियंत्रित मर्यादित रहैत छल जे सामाजिक समझौता सिद्धान्तक अनुकूले छल। किन्तु उत्तरार्धसँ कौलिकता प्रथाक जन्म होमऽ  लगैत अछि जे उत्तर वैदिकयुगमे पूर्णतया कौलिके नहि होइत अछि, दैतवी सिद्धान्तक अनुकूलो भऽ  जाइत अछि आ विदथ (सभा आ समिति) क्रमष: गौण होइत चल जाइत अछि।
एकर कारण छल।
पूर्व वैदिकयुगक जन गत्वर छल, राजा ओहि गत्वर जनक नेता छल, जकरा योद्धा होयब अनिवार्य छल तेँ चुनाव कबिलाइ संस्कृतिक अनुकूले छल। किन्तु रावीतटक पश्चात विषेषत: सरस्वती तटसँ पूर्व आर्य निवासमे अधिक स्थायित्व आयल, कृषिकर्म क्रमष: प्रधान भेल। युद्ध अपेक्षाकृत घटैत गेल तेँ राजपद कौलिक होमऽ  लागल जे कालांतरमे निरंकुष भेल तथा कराधान प्रथाक जन्म भेल। राज्य आ राजनीति बदलि गेल। राजाकेँ उपहार देबाक प्रथा बन्द भेल जे एखनधरि ओकर जीवनयापनक साधन छल। ओहि कालमे एकटा जन, जाहिमे अनेक परिवारक किछु ग्राम रहैत छल, एकटा राष्ट्र कहबैत छल। एहि प्रकारेँ अनु, यदु, द्रुहयु, तुर्वष ओ पुरू जन केर अतिरिक्त जे पंचजना: कहौलक किछु गौणजन से हो छल जाहिमे भरत, त्रित्सु, क्रिवि ओ सृंजय आदि मुख्य छल जे पाछू मीलिकेँ कुरू कहौलक। 
पूर्व वैदिकयूगक आर्य प्रवृतिमार्गी छलाह जे नियमित रूपेँ यज्ञ करैत छलाह तेँ प्रत्येक गृहमे कुलागिन रहैत छल। अर्थ, धर्म आ काम मात्र तीनटा पुरूषार्थ छल तथा नरक केर कल्पनाक जन्म नहि भेल छल। ऋषि लोकनिक मंत्ररचनामे सुवास्तु तटक पष्चातेसँ तीव्रता आबि गेल छल ज सरस्वती तट धरि अबैत-अबैत चरम पर पहूँचि गेल जकरे संकलन थिक ऋग्वेद।
ऋग्वैदिक कालक एकटा आरो महत्वपूर्ण घटना थिक जाहिसँ पूर्वोतर भारतक इतिहासक जन्म होइत अछि।
दाशराज्ञे युद्धक अर्थात 1800 र्इ. पूर्वक आसपास, ऋग्वैदिक आर्यक गौण शाखाक एकटा बृहत आर्य दल, व्यास नही पार करैत हिमालयक तलहटी दने पूब दिस चलल छल। एहि दलमे भरत, त्रित्सुक संग किछू कस्साइट जन सेहो छल जे कुष अथवा कस सेहो कहबैत छल। एही कुष (अथवा कस) सँ कौषिक भेल, जाहि संस्कृतिक प्रतिनिधि छलाह विष्वमित्र। एहि वंषक सब विषिष्ट व्यकितत्व अपनाकेँ रावियो तट पर पबैत छी आ सरयुगो तट पर जखन कि दुनूक कालखंउमे कम सँ कम दू- तीन सय वर्षक अंतर अवष्ये अछि। 1 एकरे मिलल-जुलल रूप अथवा भिन्ने एकटा गौण आर्यजन जे इक्ष्वाकुक अतिअल्प चर्चसँ लगैत अछि र्इ दल मुख्य आर्यदलक जीवनसँ हटि गेल। ऋग्वेदमे मान्धाताक चर्च सेहो एक बेर भेल अछि। लगैत अछि ओहि दलक वैह नेता रहल होथि जेना यदु जनक नेता विदर्भ छला जे मूल आर्य क्षेत्रसँ दक्षिण चल गेल छलाह।
जे हो, र्इ दल सर्वप्रथम सरयू तटपर कोसल राज्यक स्थापना केलक आ संख्यामे अधिक अनार्य रहबाक कारणे राजतंत्रकेँ जन्म देलक। राजतंत्रक विरोधी तथा निर्वाचन पद्धतिक कबिलाइ संस्कृतिक समर्थक किछु समूह, सम्भव जाहिमे कुष अथवा कस्साइटेक आधिक्य रहल हो, ओहिठामसँ कपिलवस्तु दिस आबि गेल। सम्ीाव ताधरि कस्साइट आ इक्ष्वाकु एक भऽ  गेल छल। तेँ कोसलक इक्ष्वाकु जकाँ कपिलवस्तुक शाक्य (जे पालमे सक्क होइत अछि आ जे मागधी प्राकृतक वर्ण विपर्ययक कारणे कस्सेसँ भेल होयत, कारण हमदान लेखपाठसँ अधिक स्पष्ट भऽ  जाइत अछि जे सक्क आ कस्स एक्के थिक) तथा मल्ल एवं कोलिय जे पूर्वोतरक गणराज्य थिक, सब अपनाकेँ इक्ष्वाकुये कहैत अछि।
इक्ष्वाकुक एक दल बादमे सरस्वती तटसँ विदेध माथव तथा गोतम रहूगणक नेतृत्वमे सदानीरा पार कऽ  विदेहमे जनक वंषक स्थापना केलकं एहि दलमे ब्राह्राण संस्कारक लोक अधिक छल, जाहिमे दृषद्वती तटक अधिक छल जकरा सरस्वती तटक ऋषि किछू हीनदृषिठसँ देखैत छलाह। स्मरणीय जे दृषद्वती, सरस्वतीयेक शाखानदी छल।
सरस्वती तट पर भरत-त्रित्सु राजा सुदासक राज्य छल जे सब इक्ष्छवाकुये छल।
ओही समयमे वषिष्ठवंषक नेतृत्वमे आरो ब्राह्रामणदल विदेह आयल, जकर संकेत शतपथ ब्राह्राणमे भेटैत अछि। ओहि समयमे वन आ वन्यपशु ओ वन्यजनक कारणे पैघ-पैघ दल बनाकेँ लोक चलैत छल। सम्भव थिक पराषर्य शुकदेव अपन युवाकालमे एकटा पैघ ब्राह्राणदलक सड.े विदेह आयल छलाह जकर संकेत पुराण दैत अछि।
महाभारतक पश्चात जखन कुरू पांचालमे उपनिषदीय ज्ञानकांडक प्रधानता भेल सम्भव ओहू समयमे ब्राह्राणक अनेक दल मिथिला आयल हो।
एही कारणे मिथिलामे अनेक ब्राह्राणवंष तथा गौत्र भेटैत अछि। एही ब्राह्राणक आधिक्यक कारणे जनककेँ कर्मकांड आ ज्ञानकांडमे समन्वय स्थापित करब विवषता भऽ  गेल, ओहिना जहिना रामकेँ कोसलमे अनार्र्यक षिष्नदेव अर्थात षिवक पूजन करब विवषता भेल छलनि।
केसले आ मिथिलेसँ काषी ओ वैष्यालीमे आर्यीकरण भेल किन्तु जहाँ धरि वैदिक कर्मकांडक प्रष्न अछि एहि दुनूठाम शाक्ये जकाँ उदासीनता छल। वैदिक कर्मकांडक गढ़ विदेहे आवि मिथिले रहल।
एम्हरेसँ आर्यदल दक्षिण गंगा पार करैत चम्पा आ मगधमे आर्यीकरण केलक किन्तु आर्यक कमी तथा अनार्यकक प्रधानताक करणे, मिश्रणक क्रममे वैदिक कर्मकांड छूटैत चल गेल तेँ एहि क्षेत्रकेँ व्रात्य कहल गेल तथा अथर्ववेदमे निदो भेल अछि।
एहि प्रकारेँ दाषराज्ञ तथा महाभारत युद्धक बीचमे पूर्वोतर भारतक तीन प्रकारक तीन संस्कृतिक निर्माण भेल, प्रथम थिक कोसल, काषी तथा विदेह, द्वितीय थिक शाक्य, वैषाली एवं तृतीय थिक मगधक व्रात्य-संस्कृति। महाभारतक घटनाक सड.हि पूर्व वैदिक युगक अंत तथा उत्तर वैदिक युगक आरम्भ मानल जाइत अछि। यैह थिक प्राचीन कालक तेसर घटना।
उत्तर वैदिक यूगकेँ ब्राह्राण काल कहल जेबाक चाही।
महाभारतक घटना धरि वेद सभक विभाजन ओ सम्पादनक कार्य प्राय: भऽ  गेल छल। कृष्णा द्वैपायन व्यासकेँ वेदक विभाजन तथा सम्पादन कार्यक आरम्भक कारणे वेदव्यास सेहो कहल जाइत अछि, किन्तु सम्भव थिक एहिसँ पूर्वे अपान्तरतमा व्यास नामक व्यकित एहि कार्यकेँ आरम्भ कयने छलाह जकरा व्यवसिथत पूर्णता कृष्ण द्वैपायने देलनि।
ताधरि मंत्र रचना ततेक अधिक तथा अनेक गुरू परम्पराक जन्म भऽ  गेल छल जे र्इ कार्य अत्यावष्क छल।
एही उतर वैदिकयुग अथवा ब्राह्राणकालसँ यज्ञवादमे विस्तार ओ व्यवस्था आयल तथा पौरोहित्य एकटा भिन्न वृत्त ओ कर्म बनल तेँ ब्राह्राणग्रंथक रचना ओ महत्व बढ़ल। युजर्वेद वस्तुत: एक अर्थमे ऋग्वेदक ब्राह्राणेग्रंथ थिक, विषेषत: कृष्ण यजुर्वेद जाहिमे ब्राह्राण अंष संयुक्ते अछि आ यैह थिक दुनू यजुर्वेदक मुख्य अंतर।
एहि युग धरि अबैत-अबैत पूर्वक आर्यक जनपदीय पद्धति (कबिलाइ संस्कृति) अथवा सामाजिक समझौताक सिद्धान्त षिथिल होम• लागल तथा राजतंत्रक दैवी सिद्धान्तकेँ प्रमुखता भेटऽ  लागल। राजतंत्रमे कौलिकताक सिद्धान्तकेँ प्रतिष्ठा ओ मान्यता भेटल। पूर्व युगक सभा ओ समिति क्रमष: गौण भेल गेल तथा निरंकुषताक भूमिका प्रस्तुत होमऽ  लागल, किन्तु राजा सर्वथा निरंकुष नहि भेल, ओकरा समक्ष सभासद अथवा मंत्रिपरिषद नियंत्रण लेल रहैत छल।
समस्त उत्तर भारतवर्षक आर्यीकरण भेल तथा आर्य प्रसार विन्यश्रंखलाकेँ पार कऽ  गेल जकर नाम पड़ल आर्यावर्त।
आर्यावर्तमे आर्य-अनार्य एक भेल जकर नामकरण कालांतरमे भेल हिन्दू। हिन्दूमे ब्राह्राण, क्षत्रिय, वैष्यक अतिरिक्त शुद्रक कोटि बनल। पूर्व वैदिकयुगक किछू षिल्पी जे आदरणीय तथा मान्य छल, ताहिमे सँ किछु वैष्य वर्गमे गेल, शेष शूद्र कोटिमे गेल। षिल्प परिवर्तन तथा ओहि कारणे वर्ण परिवर्तन र्इ. पूर्व आठम शताब्दी धरि सुगम ओ लचीला रहल। ब्राह्राणमे जन्मनाक सिद्धान्त तँ प्राय: पूर्ववैदिके युगमे मान्य भऽ  गेल छल, उत्तर वैदिक युगक ब्राह्राण कालमे तकर बाद जन्मनाक सिद्धान्त क्षत्रिय संस्कारमे प्रवेष करऽ  लागल, शेष कर्मणेक सिद्धान्त रहल तथा व्रात्यष्टोम यज्ञक द्वारा आर्यीकरण तथा वर्ण-वर्ग निर्धारण होइत रहल जे गुप्तकाल धरि चलैत रहल।
एहि ब्राह्राण कालमे कृषिमे लौह केर प्रयोग अधिकाधिक भेल तथा जंगल टुटैत गेल, जनपद बसैत गेल, कृषि बढ़ैत गेल आ वाणिज्य व्यवसाय अपन स्वरूप धारण करैत गेल, जाहिसँ अनेक नगरक जन्म भेल।
नगर विकासक सड.हि षिल्पी व्यवसायी लोकनिक श्रेणी बन• लागल जकर अपन व्यावसायिक तथा जातीय नियम तथा मुखिया (श्रेष्ठी) छल।
स्थानीय हाट बजारसँ नगर तथा नगरसँ आंतरिक एवं अंतरप्रान्तीय व्यापारक मार्ग प्रषस्त भेल। र्इ. पूर्व पाँचम शताब्दीसँ आहत मुद्रा भेटऽ  लगैत अछि जे विकसित व्यापारक सूचना दैत अछि।
न्वीन परती जमीनक उत्पादनसँ जनपदे सम्पन्नता आब• लागल तथा कराधान प्रथा प्रारम्भ भेल। घोषित अनुर्वर भूमिवर कर नहि लगैत छल तथा नवीन परती भूमिपर पाँच वर्ष धरि नहि, तकर बाद छठमांषसँ बिसमांष धरि लगैत छल। मुख्य जनपदसँ दूर बसल लोकसँ जाधरि जनपद विस्तार ओत• धरि नहि भ• जाइत अछि, राजस्व नहि लेल जाइत छल। कौटिल्यक अर्थषास्त्रक अनुसारेँ कृषकपर कोनो बोझ नहि छल तथा मेगास्थनीजक आधारपर एहिठाम दासप्रथा (मिस्र,यूनान तथा रोम जकाँ) नहि छल। स्त्रीक दायित्व सीमित भेल जा रहल छल।
प्राय: र्इ. पूर्व नवम शताब्दीसँ भूमि पर स्वामित्वक परम्पराक जन्म होम• लागल। किन्तु प्रारम्भमे खरीद-बिक्री नहि होइत छल, खरीद-बिक्रीक प्रमाण र्इ. पूर्व छठम शताब्दीसँ भेट• लगैत अछि।
एहि प्रकारेँ सामाजिक, राजनीतिक तथा आर्थिक जीवनमे शांति एवं सामंजस्य छल। हलचल छल सांस्कृतिक जीवनमे।
उत्तर वैदिक युगमे देव कल्पनामे परिवर्तन भेल।
पूर्वक इन्द्र, मित्र, वरूण, वैष्वानरक स्थान पर यज्ञक प्रधानता भेल तथा ब्रह्राा, विष्णु, महेषक त्रिदेव असितत्वमे आयल एवं धरतीक देव भूदेव ब्राह्राण भेल जे अभिषेक कालमे दैवी सिद्धान्तक घोषणा सेहो करैत छल, गुरूकुल सेहो चलबैत छल तथा पौरोहित्य ओ मंत्रित्वक माध्यमे धर्म कर्मक नियामक सेहो छल।
आर्य-अनार्यक मिलनक कारणे त्रिदेवक कल्पना अत्यावष्यक छल। पूर्व वैदिक युगक एहि तीनू गौण देवक रूपान्तरक संग प्रधानता भेटल। प्रजापति ओ ब्रह्राा कतिपय कारणे पूर्व वैदिको युगमे प्रधाने छलाह। विष्णु सूर्यक रूप-नाम तथा रूद्र प्रकृतिदेव छलाह।
त्रिदेवक ब्रह्राामे तँ शुद्ध आर्यत्व विषेषत: ब्राह्राणत्वे अछि। वैदिक रूद्र केर अनार्यक लिंगदेव संग एकाकार भेल आ अनार्यसँ षिवत्वक अपेक्षा छल तेँ पशुपति षिवक रूपमे नामकरण भेल। षिवकेँ महादेव सेहो कहल गेल, जाहिसँ अनार्य गौरवक अनुभव कयने होयत।
पशुचारी युगक स्थान पर कृषि युग आबि गेल छल तेँ त्रिदेव कल्पना युगानुरूपे छल तेँ मान्यो भेल।
एहि त्रिदेवक संग अवतारवादक कल्पना, शतपथ ब्राह्राणक माध्यमे सर्मक्षमे आयल। शतपथे ब्राह्राणक परिषिष्ट वृहदारणयक केर माध्यमे सर्वप्रथम पुनर्जन्म एवं कर्मफलवादक कल्पना सेहो प्रस्तुत भेल जे तत्कालीन राजतंत्रक अनुकूल छल।
ब्राह्राण कालक सर्वाधिक महत्वपूण्र घटना थिक कर्मकांड ओ ज्ञानकांडक संधर्ष जकरा, अंगरेज इतिहासकार भ्रमवष ब्राह्राण क्षत्रिय संघर्ष माननक जे सर्वथा तथ्यहीन थिक। 
अंगरेजक उíेष्य छल प्राचीन भारतमे ब्राह्राण क्षत्रियक संघर्ष देखबैत, लड़ाकू सिद्ध करब तथा राष्ट्रीय एकताकेँ तोड़ब। वस्तुसिथति से नहि अछि। एहि दूनू जातिमे सब दिन सौमनस्य रहल अछि, प्राचीन भारतमे आरो अधिक। उत्पादन करैत छल वैष्य आ शूद्र जकर अधिषेष उपयोग र्इ दुनू मीलिके करत छल जाहि लेल दुनूमे परस्पर सहयोग तथा सौमनस्य आवष्यक छल। जकर प्रथम प्रमाण थिक दैवी सिद्धान्त, जाहि  आधार पर ब्राह्राणे क्षत्रिय राजाकेँ देव प्रतिनिधि घोषित करैत पूर्व युगक उपहार व्यवस्थाक बदलामे राजस्व कराधान मान्यताक प्रतिपादन करैत अछि जकरा बदलामे ब्राह्राणकेँ अनेक विषेष सुविधा देल जाइत छल। छान्दोग्य उपनिषदकेँ कोना तोड़ल-मोड़ल गेल तकर एकटा प्रमाण पर्याप्त मानल जेबाक चाही।
छान्दोग्य उपनिषदमे यज्ञवादक कर्मकांडक अपेक्षेँ ब्रह्रावादक तत्वचिंतनकेँ श्रेष्ठ मानल गेल अछि जे अपन मत प्रतिपादन ओ प्रचारक लेल आवष्यके छल। एही क्रममे छान्दोग्य उपनिषदमे कहल गेल जे जेँ ल• केँ तत्वचिंतने मुकितक लेल आवष्यक अछि जे क्षत्रिय करैत अछि तेँ क्षत्रिय, ब्राह्राणसँ श्रेष्ठ अछि।
एहि कथनमे कतहु संघर्ष भाव नहि अछि अपितु तत्वचिंतनक श्रेष्ठता घोषित अछि। एहि बातकेँ जातकमे जे एकटा प्रतिबद्ध तथा अप्रामाणिक साहित्य थिक, बहुत तूल देल गेल आ इतिहासमे कलिपत ब्राह्राण क्षत्रियक संघर्ष केर भ्रान्त धारणाक जन्म भेल। 1881 मे आर. मूर एही जातककेँ प्रमाण मानि, ब्राह्राण क्षत्रियक संघर्ष पर एकटा बृहत निबंधक रचना कयल, जे एकठा सोíेष्य भ्रान्त धारणाक प्रतिफलन थिक।
जेँ ब्राह्राण क्षत्रियमे कोनो प्रकारक वास्तविक संघर्ष रहैत तँ समस्त उपनिषदक रचना जे प्राय: ब्राह्राणे केलनि से नहि करितथि तथा ने उपनिषदीय भावना, जे सर्वप्रथम शुक्ल यजुर्वेदेमे प्रकट भेल, जकर प्रवक्ता याज्ञवल्क्य मानल जाइत छथि, असितत्वमे नहि अबैत। किछु दिन धरि उपनिषद मौखिक रूपमे रहैत आ संअमे समाप्त भ• जाइत। ब्राह्राण द्वारा गुरू-षिष्य परम्परा नहि भेटैत। 
उपनिषदीय भावनाकेर समापितक उíेष्य ने ब्राह्राणेक छल आ ने क्षत्रियेक छल, अपितु दुनूक हितसाधन एहि धारणासँ होइत छलैक, तेँ एकर एतेक विकास तथा प्रचार-प्रसार भेल।
क्षत्रिय राजन्यक दरबारमे एकर विकास भेल तथा एहि पर शास्त्रार्थ आदि भेल तकर अनक प्रमाण अछि। प्रमाण अछि जे ब्राह्राण लोकनि एहि लेल विीिन्न राजदरबारमे जाइत रहथि। जँ संघर्ष भाव रहैत तँ जेबाक प्रयोजने नहि छल।
ब््राह्राण काल आर्यीकरणक छल, अनार्य सब आर्यवृत्तमे आबिकेँ योग्यतानुसार क्रमष: क्षत्रिय, वैष्य तथा शूद्र कोटिमे स्थान पाबि रहल छल। अधिकांषत: वैष्य तथा शूद्रे उत्पादनसँ संलग्न छल आ जकर अधिषेष उपभोग ब्राह्राण क्षत्रियकेँ करक छल। ओहि समाजमे विद्रोह भावना नहि उठैत ताहि लेल तँ एकदिस दैवी सिद्धान्त छल आ दोसर दिस छल भाग्यवाद।
एहि भाग्यवादक सम्बन्ध पुनर्जन्मवाद तथा कर्मफलवादसँ छल। राजाक लेल विद्रोह भावनाकेँ समाप्त करक लेल विचार आवष्यक छल। तेँ ब्रह्रातादी अद्वैत भावनाक सड.हि पुनर्जनम ओ कर्मफलवादक अवधारणाक जन्म क्षत्रिये राजन्य वर्गमे सर्वप्रथम भेल, जाहिठाम ब्राह्राण लोकनि एहि रहस्य (उपनिषद) केँ पाप्त कलनि। बाह्राण लोकनि सेहो अपन हित एहि भावनामे देखलनि। एकरा व्यवसिथत रूप् देलनि। यैह कारण थिक जे आध्यात्मवादक व्यवसिथत विकसित रूप सर्वप्रथम शुक्ल यजुर्वेदक चालीसम अध्याय र्इषोपनिषदमे व्यक्त भेल अछि।
टसलमे, तत्वचिंतनसँ संन्यासकेँ प्रात्साहन भटैत छल जाहिसँ कर्मविमुखताक तथा निवृतिमार्गक निराषवादक सम्भावना बढि़ जाइत। तेँ निष्काम कर्मक प्रतिपादन आवष्यक छल, जकरा अनुसारेँ सबकेँ बिनु फलक आषा कयने अपन-अपन कर्म करबा पर जोर देल गेल। एहिसँ उत्पादन पर प्रभाव नहि पड़ल।
एही शुक्ल यजुर्वेदक ब्राह्राण थिक शतपाि ब्राह्राण, जाहिमे अवतारवादक तथा ओकरे परिषिष्ट बृहदारण्यकमे सर्वप्रथम पुनर्जन्म एवं कर्मफलवादक जन्म होइत अछि। र्इ समस्त भावना ब्राह्राण तथा क्षत्रियक लेल तथा तत्कालीन आर्य समस्या ओ सामाजिक जीवनोक लेल अत्यावष्यक छल। तेँ मान्यता टिकि सकल ओ कालजयी भेल। एहि सभक आधार पर ब्राह्राण क्षत्रियक संघर्षक कल्पना तथ्यहीन तथा निराधार अछि।
ब््रााह्राण कालमे यज्ञवादकेँ प्रमुखते नहि भेटल, र्इ जटिलो भेल तथा आडम्बरपूर्ण सेहो। तेँ दोसर दिस समानानतरमे ज्ञानमार्गक धारा सेहो प्रवाहित भेल।
किन्तु र्इ दुनू भावना कर्मकांड तथा ज्ञानकांड समाजक विषेष वर्ग लेल छल। कर्मकांड ब्राह्राण तथा सम्पन्न वर्गक वस्तु छल, ज्ञान मार्ग बुद्धिजीवीक लेल छल। समाजक सामान्य जनक लेल भकितये टा, सेहो सगुणोपासने उपयुक्त एवं अनुकूल भ• सकैत छल। तेँ त्रिदेव कल्पना केर अनुकूले वैष्णव एवं शैव धर्मक जन्म भेल। भारतक किछु भागमे जैन तथा बौद्ध धर्म किछु दिनूक लेल जन्म लेलक तथा भकित मार्गक लेल मार्ग प्रषस्त केलक। ब्रह्राचर्य, अहिंसा आदि वैदिके धर्म केर सप्तमर्यादा थिक जे कुरूधर्म केर नामसँ प्रचलितो छल। एही मान्यता सबकेँ ल• क• महावीर जैन ओ बुद्ध अपन-अपन धर्मक स्वरूप ठाढ़ कयने छलाह। समाजमे वर्णसंकरताकेँ रोक• लेल तथा सुगम जीवन एवं व्यापारिक सुविधा लेल अहिंसाक प्रचार अत्यावष्यक छल। र्इ लोकनि निष्कामकर्मक अनुकूले कर्म पर सेहो जोर देलनि तथा कर्म द्वारा फलक परिवर्तनक नवीन मान्यता दैत अजितकेषकम्बल तथा मक्खलि गोषाल लोकनिक विरोध केलनि जे सब वस्तुत: वैदिक धर्मक विरोधी तथा अक्रियावादी ओ अराजकतादी छलाह।
बुद्धक विरोध वस्तुत: गणतंत्रक (जकर मूल सामाजिक समझौता सिद्धान्ततमे अछि) विरोध राजतंत्रसँ छल जे दैवी सिद्धान्त द्वारा नियंत्रित छल, जकर नियंता ब्राह्राणे लोनि छलाह। बुद्ध कतहुसँ वैदिक धर्म तथा ब्राह्राणे भेलाह तथा कालांतरक अन्य प्रधान षिष्य ओ दार्षनिक चिंतक प्राय: सबटा ब्राह्राणे भेलाह।
एही कालखंडमे अर्थात र्इ. पूर्व आठम-नवम शताब्दीमे वर्ण व्यवस्था अपन आधुनिक स्वरूप दिस उन्मुख भेल तथा समाजमे वर्णाश्रम धर्मक प्रतिष्ठा भेल जे कालांतरमे हिन्दू धर्मक आत्मा बनि गेल।
वस्तुत: ब्राह्राण काल, भारतीय इतिहासक तथा हिन्दू जीवनक एकटा एहन कालखंड थिक जे स्वणयुगे टा नहि थिक अपितु अर्थनीति, धर्मनीति ओ समाजनीतिक दृषिट´े आधारस्तम्भ एवं मेरूदंड सेहो थिक।
राजा परीक्षितसँ बिमिबसार धरि राजा, रानी एवं सेनापतिक नामोल्लेखक संग राजनीतिक इतिहास निर्माणमे, भने असुविधा भ• सकैत र्अछि किन्तु सामाजिक, आर्थिक एवं सांस्कृतिक इतिहास लेल विपुल ओ प्रचूर साहित्य अछि जे वास्तविक रूपमे कोनो देषक यथार्थ इतिहास थिक।
एहि कालखंडक अर्थात ब्राह्राण कालक उत्तरार्धक रचना थिक सूत्र साहित्य, जाहिमे सामाजिक इतिहास लेल पर्याप्त प्रामाणिक तथ्य निहित अछि।
र्इ पूर्व 500 र्इ. मे भारतीय इतिहासक प्राचीनकाल समाप्त भ• जाइत अछि।
स्मरणीय जे भारतीय इतिहासक आदिम लेखक अंगरेजे भेल। र्इ बात भिन्न थिक जे ओ सब तोड़-मोड़ बहुत केलक किन्तु श्रमो कम नहि केलक। इहो बात अवष्य जे ओ सब भारतीय आत्मासँ पूर्णरूपेण परिचित नहि भ• सकैत छल, अथवा ओकर सभक मान्यता भिन्न छल तेँ भारतीय इतिहासक अनके भ्रमक जन्मदाता भेल।
1922-23 सँ पूर्व द्रविड़ सभ्यता, उत्खनक प्रतीक्षामे छल आ आर्य आगमनकेँ मैक्समूलरक मतेँ र्इ. पूर्व 1500 वर्षमे मानैत छल। आर्य संस्कृति मान्य संंस्कृति छल तेँ पुरातातिवक साक्ष्यक अभावमे ओ सब बुद्ध युगसँ अर्थात र्इ. पूर्व छठम शताब्दीसँ भारतीय इतिहासक प्राचीनकाल मानलक। 
दोसर,ओ सब यूनानी सभयतासँ अधिक प्राचीन अन्य सभ्यता संस्कृतिकेँ मानियो नहि सकैत छल, तेँ एतेक विकृतिक जन्म भेल।
एम्हर किछु प्रतिबद्ध इतिहासकार लोकनि सामन्तादकेँ गुप्तेकालमे देखैत छथि तेँ तकर बादेसँ मध्यकालक आरम्भ मानैत छथि। जो लोकनि जाहि सामन्ती शोषणकेँ मध्यकालक आरम्भ लेल आधार मानैत छथि, एक तँ र्इ कोनो ठोस आधारे नहि थिक, शोषणक किछु सिथति सम्भवत: ब्राह्राणे कालक पूर्वार्धमे बनल छल जखनसँ व्यवस्थाक जन्म भेल, जकर विरोध अथर्ववेद तथा यजुर्वेदक भक्षक (राजाक लेल) सँ होइत अछि। किन्तु ओहि समयमे पूर्ण निरंकुषता नहि छल तेँ शोषण चक्र तीव्र नहि भेल, शोषण सिथति पूर्णतया नहि छल। सामन्ती शोषणाकेँ एकमात्र आधार मानिकेँ इतिहासक कालविभाजन अनैतिहासिको थिक तथा तथ्यहीनो थिक।
दोसर, गुप्तकालक पश्चात पठान काल धरि भारतीय इतिहास अनष्चयता तथा अराजकताक इतिहास थिक जे मुख्यत: केन्द्रीय प्रबल शकितक अभावक धोतक थिक। एहन समयमे सुनियाजित शोषण सम्भवे नहि अछि। शोषणो लेल केन्द्रीय प्रबल शकित तथा राजनीतिक सुव्यवस्था आवष्यक अछि। तेसर, ओहि समयक सामन्त जे परस्पर युद्धमे व्यस्त रहैत छल, अपन-अपन प्रजाक सहानूभूतिक अधिक अपेक्षा रखैत छल। तेँ जाहि प्रकारक शोषणक कल्पना करैत र्इ प्रतिबद्ध इतिहासकार युग विभाजक मान्यताकेँ स्थापित करैछ, ओ तर्कहीन अछि।
र्इ. पूर्व 500 र्इ. सँ, आदि कालकेँ आरम्भ करबाक अनेक महत्वपूर्ण तर्क अछि जे सार्थक, समचीन आ उपयुक्ते नहि अछि अपितु भारतीय इतिहास तथा भारतीय समाजक आत्माक अनुकूलो अछि।
सर्वप्रथम र्इ. पूर्व 500 र्इ. सेँ इतिहासकेँ आहत मुद्रा भेटैत अछि जे एकटा विकसित समाजक विकसति उधोग धंधा एवं वाणिज्य व्यवसायक सूचना दैत अछि जे निरंतर प्रगति करैत गेल, जकर आंतरिक प्रमाण थिक विभिन्न नगरक जन्म तथा विदेष व्यापरमे कालांतकरक रोमधरिक व्यापार। युवा इतिहासकार डा विजयकान्त ठाकुरक द्वितीय शहरीकरण एही कालक घटना थिक। पहिल छल द्रविड़नगर। एहि प्रकारेँ प्राचीन भारत प्राय: लगभग दू-अढ़ाय हजार वर्षक पश्चात अपन पूर्व सिथतिम, विषेषत: भौतिक समृद्धिक दृषिट´े, पुन: घुमल आ अपन प्रगति पंथकेँ आगू बढ़ौलक।
दोसर, एखन धरि अर्थात ब्राह्राण काल धरि जे आर्य अनार्य दू छल ओ एक भेल आ ओकर नाम र्इरानी लेखमे हिन्दू भेल। कालांतरमे यैह नाम प्रचलितो भेल। एही कालखंडमे उत्तर भारतक आर्यीकरण समाप्त भेल तथा दक्षिण भारतक आर्यीकरणमे तीव्रता आयल।
तेसर, एही र्इ. पूर्व 500 आसपाससँ भारतीय इतिहासक महान घटना घटल जे इतिहासक धारामे एकटा युगान्तर उपसिथत केलक ओ थिक साम्राज्यवादक उदय। र्इ सर्वथा नवीन घटना छल। विमिबसार जाहि साम्राज्यवादक षिलान्यास केलक, अजातषत्रु आहि पर अटटालिका ठाढ़ केलक जकरा पूर्ण केलक र्इ. पूर्व चारिम तेसर शताब्दीक चन्द्रगुप्त मौर्य तथा अषोक। साम्राज्यवादक र्इ प्रवृति किछु कालक लेल विराम अवष्य लेलक किन्तु पुन: गुप्त कालमे प्रखर रूपमे प्रकट भेल। पुन: हर्षवर्धन पूर्व तथा पश्चात कतिपय कारणे षिथिल भेल जे पठान मुगल तथा अंगरेज कालमे चरम पर पहुँचि गेल आ बृहत्तर भारतक स्वरूप बनल।
र्इ साम्राज्यवाद अपन केन्द्रीयकरीणक कारणे (मार्ग विकाससँ) वाणिज्ये व्यवसाय टाकेँ विकसित नहि केलक अपितु भारतीय इजिहासमे प्राचीन जनपदीय मान्यताकेँ तोड़ैत राष्ट्रीय एकताक भावनाकेँ जन्म दैत इतिहास धाराकेँ बदलि देलक। एहिसँ समाजमे शानितये व्यवस्था टा नहि आयल, अपितु कृषि विकासक सड.हि अनके षिल्प विकास सेहो भेल। एकरा अतिरिक्त एही समयसँ राजतंत्रमे पूर्णतया निरंकुषता आयल तथा शोषणक प्रक्रियाक जन्म होम• लागल। जाहि सामन्तावादकेँ गुप्त कालसँ देखल जाइत अछि ओकर जन्मक भूमिका मौर्येकालक नौकरषाहीसँ बन• लगैत अछि।
चारिम, एही र्इ. पूर्व 500 र्इ. क आसपाससँ भारतीय क्षेत्रमे विदेषीक आगमन, आक्रमण तथा लूट प्रारम्भ होइत अछि, जकर प्रमाण थिक पषिचमोत्तर भारतकेँ र्इरानी साम्राज्यक अंग बनब तथा स्वर्णकणक शोषण। र्इ प्रवृति भारतीय इतिहासकेँ कालांतरमे ततेक प्रभावित केलक जे अन्ततोगत्वा भारतमे परतंत्रताक एकटा परम्परे बनि गेल, जकरा माध्यमे भारतक भयंकर शोषण भेल।
पाँचम एही कालखंडमे भारतीय संस्कृतिक दार्षनिक चिंतनक परम्परा अपन चरम पर पहुँचल। जाहि उपनिषदमे वेदान्तक बीज निहित छल ओ सांख्यक माध्यमे अपन भौतिकवादी चिंतनकेँ अतुल गरिमा एही युगमे प्रदान केलक। सांख्यक अतिरिक्त शेष पाँचो दर्षन-योग, मीमांसा, वैषेषिक आदिक विकास क्रम एही समयसँ प्रारम्भ भ• जाइत अछि जे भारतीयताक महान विषेषता थिक।
छठम, एही समयसँ सूत्रसाहित्य अपन उत्तर सिथति तथा स्मृतिसाहित्य अपन प्रारमिभक सिथति प्राप्त कर• लगैत अछि जे भारतीय समाजकेँ एकटा नियामक व्यवस्थे टा नहि देलक अपितु सामाजिक अस्तव्यवस्तताकेँ नियंत्रित सेहो केलक।
सतम, जे रामायण, महाभारत तथा गीता अपन वत्र्तमान रूप र्इसाक पहिल दोसर शताब्दीमे प्राप्त केलक, तकर रचना सेहो एही कालखंडमे अपन व्यवसिथत मार्ग धारण क• रहल छल। सड.हि त्रिदेवक वैष्णव ओ शैव मत, जकर जन्म ब्राह्राणे कालमे भ• गेल छल, एही यूगमे व्यापक लोकप्रियता एवं सर्वमान्यता प्राप्त क• गेल जे कालांतरक हिन्दू जीवनक आत्मा बनल जे आइयो ओहिना वत्र्तमान अछि।
आठम, पौराणिक विपुल साहित्य जे साकार सगुणोपासना भकित पद्धतिक आवष्यक अंग बनल, तकर सूत्रपात सेहो एही कालखंडमे भेल जे इतिहास निर्माणक लेल सेहो आवष्यक भेल। सड.हि जातक कथा तथा विपुल बौद्ध जैन साहित्य एही युगक उत्तरार्धक रचना थिक।
एहि प्रकारेँ एहि विभिन्न कारणे, र्इ. पूर्व 500 र्इ. सँ आदिकालक आरम्भ मानब समीचीन अछि।
भारतीय इतिहासक आदिकाल जे र्इ. पूर्व 500 र्इ. सँ प्रारम्भ होइत अछि से 500 र्इ.धरि चलैत अछि।
एहि काल खंडमे यूनानी, पहलव, शक, आमीर तथा हुण आदि आयल जे अंततोगत्वा आदिकालक निग्रोइट, प्रोटोऔष्ट्रेलाइड तथा अन्य औषिट्रक जाति जकाँ पूर्णतया भारतीय भ• गेल, हिन्दू भ• गेल।
एहि युगमे व्यापारक क्रममे पषिचमे तथा मध्ये एषियासँ नहि, अपितु पूर्वी एषियासँ सेहो व्यापारिक सम्बंध भेल तथा भारतीय संस्कृतिक प्रसारक सड.हि भारतीय उपनिवेषक जन्म भेल जे बृहत्तर भारतक रूप धारण केलक।
र्इसाक प्रथम शताब्दीसँ हिन्दू जीवनक भकितधारणा जे निरंतर भारतीय समाजकेँ जोड़ने रहल, अपन वत्र्तमान रूपमे आबिकेँ सिथर भ• गेल, जकरा पौराणिक साहित्य एकटा स्थायित्व प्रदान केलक आ जे कालांतरक विदेषी आक्रमण अत्याचारक बिहाडि़मे हिन्दू समाजकेँ एकसूत्रमे बन्हैत ओकर रक्षा केलकं
 र्इ. पूर्व 500 र्इ. क पाणिनिक अष्टाध्यायी, र्इ. पूर्व चारिम शताब्दीक कौटिल्यक (चाणक्यक) अर्थषास्त्र तथा र्इ. पूर्व दोसर शताब्दीक महाभाष्य इतिहासनिर्माण लेल अतिप्रामाणिक सामग्री प्रस्तुत करैत अछि। अर्थषास्त्र प्रसंग पं. श्याम शर्मासँ डा. रामिला थापर धरि अनेक विवाद उठल अछि। किन्तु वस्तुत: ओ थिक चाणक्येक रचना जकरा कालांतरमे बृहत रूप (सम्भव विष्णु शर्माक माध्यमे) देल गेल। र्इसाक प्रथम शताब्दीसँ संस्कृत साहित्यक नाटक प्रारम्भ होइत र्अछि जे कालांतरमे विभिन्न विधाकेँ समृद्ध केलक तथा परवर्तीकालीन भारतीय साहित्यक उपजीव्य बनल आ विकासक सुदृढ़ परम्परा देलकं
र्इसाक चारिम शताब्दीक आर्यभटक गणित तथा दषमलव प्रणाली आर्य-विष्वमे प्रथम बेरी विज्ञानक द्वारक उदघाटन केलक जे अरबीमे हिन्दसा कहौलक तथा भारतीय गणित योरोपकेँ देलक। भारतीय ज्योतिषक विकासक जन्मकाल सेहो यैह थिक।
र्इ. पूर्व चारिम शताब्दीमे यूनानक भयानक महत्वकांक्षी सिकन्दर भारतकेँ लुटबाक लेल खैबर मार्गकेँ खोललक आ पंजाबक (भारतक) इतिहासक महान बर्बर लुटेरा अपनाकेँ सिद्ध केलक, जकर अनुसरण आठम शताब्दीक अरबी तथा एगारहम शताब्दीक महमूूद गजनी करैत, क्रूरतम अत्याचार, बर्बर हिंसा तथा भारतक अतुल सम्पत्तिक लूटसँ विष्वक लूटक इतिहासकेँ लजिजत क• देलक। भारतकेँ लुटबाक परम्परा अब्दाली आ नादिरषाह धरि बनल रहल जकर बर्बरता, अत्याचारक दुनियामे एकटा माहावरा बनि गेल।
एही लूट आ अत्याचारसँ भारतक उत्तर मध्यकालक जन्म होइत अछि।
एहि कालखंडक भारतीय इतिहास फूट,लूट आ कूटक इतिहास थिक।
हर्षवर्धनक पश्चात सबल केन्द्रीय शकितक अभावमे, भारतीय सामन्तवाद अपन क्षुद्र श्वान युद्धमे ताहि प्रकारेँ व्यस्त ओ जर्जर भ• गेल छल जे विदेषी बर्बरकेँ रोकि नहि सकल।
ताधारि हिन्दू समाजमे अवष्ये रूढि़वादिता आबि गेल छल जे (आब हूण धरि जकाँ) विदेषीकेँ तचा नहि सकैत छल। नवागंतुक आक्रमणकारीक कटटरता, बर्बरता, अत्याचार, हिंसा, असहिष्णुता तथा क्रुरता, इतिहासक मानसेसँ एहि प्रष्नकेँ हटा देलक। आ तेँ अकबर तथा मान सिंह सन महान मानवतावादी असफले टा नहि रहल, दुनू अपन-अपन समाजमे निन्दाक पात्र सेाहे बनल।
महमूद गजनी, गोरी, चंगेज, तैमुर, अब्दाली, नादिरषाह तथा अंगरेजक भारतीय लूटक इतिहास अतिषय भयानक अछि।
गुलाम वंष धरि अनेक शासन भेल जे केन्द्रीयता तँ देलक किंन्तु ने सर्वांगीन जीवन द• सकल ने एक समाज बना सकल। एहि कालखंडमे हिन्दू जनता अत्यन्त दयनीय भ• उठल जकर रक्षा साहित्य ओ भकित भावना क• सकल। एहि युगमे कलाक विकास तँ भेल, प्रजाक भलाइ नहि भेल। भारतीय जनताकेँ ताजमहलक प्रयोजन नहि छल, चीनक देबाल केर अनिवार्यता छल जकरा हिन्दूकुषसँ अरब समुद्र धरि देल जा सकैत छल।
किन्तु अंगरेज ओहू देबालकेँ नहि मानैत, ओ समुद्र मार्गसँ आयल छल। भारतीय धरती पर भारतकेँ लुटबाक लेल योरोप जाहि प्रकारेँ प्राय: सै वर्ष धरि लड़ैत रहल, ताहिसँ योरोप स्वय क्षुब्ध आ लजिजत भ• उठल। तखन अवसर भेटि सकल अंगरेजकेँ। भारतक लूटसँ इंग्लैंडक औधोगिक क्रांति अपन पूर्णाहुति क• सकल। एकरे प्रतिक्रियामे आयल 1857, 1883, 1885, 1905, 1920, 1930, 1942, 1947 तथा 1950।
द्वितीय विष्वयुद्धक पश्चात दयनीय एवं जर्जर तथा योरोपक राजनीतिक निरीह उपेक्षित इंगलैंड, भारतीय एकताकेँ तोडै़त, विखंडनक नीतिसँ भारतकेँ जर्जर करैत, नैतिक मूल्यकेँ भयानक रूपेँ पतित करैत, भारतक पवित्र धरतीकेँ छोडि़ देलक।
अंगरेज वैज्ञानिक विकासक अनेक उपलबिध अवष्य देलक किन्तु ताही अनुपातमे भारतीय सामान्य चरित्रकेँ हास सेहो देलक।
आइ भारतक राष्ट्रीय एकता ओ अखंडताकेँ सुदृढ़ एवं सुरक्षित रखैत एहि प्रष्नक उत्तर तकबाक अछि जे र्इ भारत महादेष ककर थीक ?
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