डायरी
धुंधली सी यादों की
पीली पत्तियां
अब भी
डायरी के पन्नों के बीच
लेती हैं साँसें
खोलती हैं अपनी सारी बेचैनियाँ
और उगते
खदबदाते शब्दों की पोटलियाँ
गुनगुने धुप सी मीठी
और सांझ की डूबती परछाइयों
के किस्से
कितने बंद दरवाजे
और खिड़कियाँ हैं
भीतर
खुलने को …
एक
आवाज सी आती है
गहरी साँसों की
डायरी से
पीली पत्तियां
अब भी
डायरी के पन्नों के बीच
लेती हैं साँसें
खोलती हैं अपनी सारी बेचैनियाँ
और उगते
खदबदाते शब्दों की पोटलियाँ
गुनगुने धुप सी मीठी
और सांझ की डूबती परछाइयों
के किस्से
कितने बंद दरवाजे
और खिड़कियाँ हैं
भीतर
खुलने को …
एक
आवाज सी आती है
गहरी साँसों की
डायरी से