नेपथ्य
हूँ फिर किसी के आत्मा में कैदी |
जहा सींखचो में किसी ने मुझे कसा है
उस कटीले बाड़ में-जहा वजूद मेरा फसा है
जहा मेरी हार है |
हाँ वही नेपथ्य है !
जहा से वेश बदलकर
वह आता है मंच पर
मै चुपचाप मूकदर्शक बनकर
देखती रहती हूँ नाटक
नेपथ्य का खूंखार चेहरा
मुझे पुकारता है |
मेरा वजूद दर्शकों कि भीर में
एक बार फिर हारता है
खीच कर नेपथ्य से
श्रृंगार सारा मै उतारूँ
मंच पर लाऊं उसे फिर
भीड़ से उसको पुकारूँ
जहा सींखचो में किसी ने मुझे कसा है
उस कटीले बाड़ में-जहा वजूद मेरा फसा है
जहा मेरी हार है |
हाँ वही नेपथ्य है !
जहा से वेश बदलकर
वह आता है मंच पर
मै चुपचाप मूकदर्शक बनकर
देखती रहती हूँ नाटक
नेपथ्य का खूंखार चेहरा
मुझे पुकारता है |
मेरा वजूद दर्शकों कि भीर में
एक बार फिर हारता है
खीच कर नेपथ्य से
श्रृंगार सारा मै उतारूँ
मंच पर लाऊं उसे फिर
भीड़ से उसको पुकारूँ