तारानन्द वियोगीक गजल
ओ मनुक्ख जे टुकडी-टुकडी भेल पडल अछि
अहां चैन सं रही ओ तकरे लेल मरल अछि
जे दीपक हो जडइत चहुंदिस तम कें चिरइत
तकरे दम पर आन दीप मे ज्योति बरल अछि
नेता कें नहि देखियौ नेता कें की देखबै
जत्तहि टेबबै तहीठाम ई जन्तु सडल अछि
लोकतंत्र अछि संविधान अछि न्यायालय अछि
बाहर बाहर ठोस आ भीतर कते तरल अछि
भूमंडल के दौड मे शामिल अहां भोग ले’
मुदा ने जानी विभव-गाछ फल कोन फडल अछि
हिन्दुत्वक मादे सोचलहुं तं ख्याल उठल
ऐंठी बचले अछि एखनहु बस डोर जडल अछि
अहां चैन सं रही ओ तकरे लेल मरल अछि
जे दीपक हो जडइत चहुंदिस तम कें चिरइत
तकरे दम पर आन दीप मे ज्योति बरल अछि
नेता कें नहि देखियौ नेता कें की देखबै
जत्तहि टेबबै तहीठाम ई जन्तु सडल अछि
लोकतंत्र अछि संविधान अछि न्यायालय अछि
बाहर बाहर ठोस आ भीतर कते तरल अछि
भूमंडल के दौड मे शामिल अहां भोग ले’
मुदा ने जानी विभव-गाछ फल कोन फडल अछि
हिन्दुत्वक मादे सोचलहुं तं ख्याल उठल
ऐंठी बचले अछि एखनहु बस डोर जडल अछि