किसुन संकल्प लोक
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        • ।।बुढबा नेता ।।
        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
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        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
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        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
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                                                                मंत्रपुत्र 

                                                                                                ऋचालोक 
जहिना भौतिकता कोनो सभ्यताक जन्मक कारण बनैछ तहिना आधिभौतिकता कोनों संस्कृतिक । आ तैं ,सभ्यता एकटा सामाजिक आयोजन थिक तथा संस्कृति,मानसिक प्रयोजन । 

       सभ्यता जँ कोनो संस्कृतिकें शरीर प्रदान करैछ तं साहित्य दैत अछि  आत्मा तथा दर्शन निर्माण करैछ ओकर व्यक्तित्व । कोनो सभ्यता भनें कोनो संस्कृतिकें जन्म दैत हो,किंतु वैह संस्कृति कलंतारमें ओहि सभ्यताकें सुरक्षित रखैत अछि  । यैह कारण थिक जे सभ्यता,संस्कृतिकें भूगोल दैत अछि तथा संस्कृति,सभ्यताकें इतिहास । 

  आदिम आर्य सभ्यताकें एहने इतिहास आ भूगोल दैत अछि ऋग्वेद । 

  ऋग्वेद विश्वक आदिम आर्य-मनक प्रथम चेतना-गीत थिक , सौंदर्य बोधक प्रथम उन्मेष थिक,प्रथम उदगार थिक,प्रथम स्पन्दन थिक आ थिक आदिम संस्कृतिक स्मृति-शेषक प्राचीनतम लिपि-बंधन । 

  ऋग्वेद विश्व दाडमयक प्राचीनतम संकलन थिक व समस्त इंडो-युरोपियन साहित्यक प्राचीनतम अवशेष थिक,विश्व साहित्यक प्राचीनतम ज्ञानकोष थिक । 

ऋग्वेद एकटा एहन वृक्ष थिक ,जाकर शाखा थिक वेद , प्रशाखा थिक ब्राह्मण-आरण्यक तथा जाकर पुष्प थिक उपनिषद एवं जाकर फेन थिक सूत्र-स्मृति आ जकर सुगंधी थिक विभिन्न दर्शन  

 वेद,हिंदुत्व केर जीवन थिक ,ब्राह्मण-आरण्यक-उपनिषद ओकर यौवन तथा स्मृतिदर्शन ओकर प्रौढ़ता । 

एही प्रौढ़ता सँ कहियो योरोप चकित रहि  गेल छल । नीत्से कहलनि -'मनुस्मृति,बाइबिल सँ  श्रेष्ठ अछि।' इम्बोलडट कहलनि -'एहि भाग्वात्गीताकें पढ़' लेल एतेक दिन धरि, भाग्य हमरा जीवित रखने छल '। 

1784 में सर विलियम जोन्स कहलनि -'ग्रीक लैटिन,गाथिक,कोल्टिक तथा पार्श्व भाषा ओही मूल भाषा सँ  बहरायल अछि जाहि  सँ संस्कृत । मैक्समूलर तं अपने नामे राखि लेल मोक्षमूल, कहलनि जे विश्वमें इंडो योरोपियन भाषाक जतेक शब्द अछि, सबटा  संस्कृतक मात्र पाँच सँ धातु रूप सँ  बहरायल अछि ।     
योरोप चौकि उठल । पुरातत्व-विज्ञान आ तुलनात्मक भाषा-विज्ञानक जन्म भेल, प्राच्य विद्या पर कार्यारम्भ भेल। कार्यारम्भ भेल छल  प्रथम-प्रथम 1651 ई  में डच  पादरी एब्राहम रोजरक  ब्राह्मण-ग्रंथ सूचना सँ । 1760 मे  दुपरांक 'औपनिषतक' फ्रेंच अनुवाद देखि जर्मनी बाजल-समस्त विश्व में एहि जोड़क दोसर साहित्य नहि  भै सकैछ ।' पश्चात ततेक कार्य भेल जे 1852 में वेबरक इतिहास में पाँच सौ प्राच्य विद्या सम्बन्धी ग्रन्थ पर विवेचना भेल,एच .टी .कोलब्रुकलग, 1860ई  में दस हजार पौंड मूल्यक  प्राच्य विद्या पर पाण्डुलिपि प्रस्तुत भ' गेल छल जे ईस्ट इंडिया कम्पनिकें द' क' चल गेलाह जे सम्प्रति इंडिया लाइब्रेरी में अछि ।


 एहि प्रसंगें,ऋग्वेदक प्राचीनता पर सेहो विचार भेल । अनेक विवाद भेल । मैक्समूलरकें बोगाजकोइलेखकेर पश्चात् 1907 में अपन मत परिवर्तित कर पड़ल । देखलनि 1500 ई .पूर्व । विंटरनिंज्क मत हमरा अधिक तर्कसंगत लागल जे 2500 ई पूर्व सँ मानैत छथि। किन्तु ऋग्वेदक रचना,हमरा मतें निश्चित रूपें 3500 वर्ष ई पूर्व सँ पहिनहि प्रारम्भ भ गेल होयत । अपन मूल अभिजन सँ  प्रथम आर्य-निष्क्रमण,ओ महाप्लावन थिक । जे दजलाफरात में ई पूर्व 3000 वर्ष भेल छल  जकल स्मृति-शेष बाइबिल में डैल्युज थिक  जाहिमे मात्र नूह बचल, शतपथ ब्राह्मण में महाप्रलय थिक  जाहिमे मात्र मनु बचल सुमेरियाक पौराणिक कथा में मात्र राज जियशूद्र बचल |   

यैह  समय थिक  जाहि  समय में हित्ती मित्तीनी -दल अपन दोसर वासकाल सँ निष्क्रमण केलक आ ओकर हलचल आधुनिक तुर्की में प्रकट भेल आ जकर इन्द्र -मित्र-वरुण-नासत्य  बोगाज्कोइक संधि-लेख में जे 1400ई  पूर्वक थिक  भेटैत अछि ई दुनू दल पहिने आदिवासी सँ लड़ल तखन दुनूक संस्कृतिक मिलन भेल जाही कारणे अनार्य देव तंशुबू देव तथा सिहंवाहिनी देवी स्वीकृत भेल तखन दुनु परस्पर लड़' लागल जाकर प्रमाण थिक  ओ अभिलेख । एकर अर्थ भेल जे इंद्र-मित्र-गान मूल अभिजन में ई पूर्व 3000 वर्ष सँ पहिनहि प्रारम्भ भ' गेल होयत जकरा ल' क' हित्ती ।मित्तनी  दल गेल आ जे 'मित्र' पाछू  रोम धरि  पहुंचि  गेल तथा धौंस यूनान में ज्यूसस  बनी गेल ।   जाही समय में हित्ती-मित्तनी चलल छल ( इ. पूर्व 3000) ताहि समय धरी,मूल अभिजन-स्थान में अर्थात कास्पियन सागरक उत्तर पूर्व में, मात्र अग्नि-धूर लगैत छल अपन आ पशु रक्षा लेल तथा शिकार पकेबाक लेल । 
ओहि समय धरि  याज्ञिक क्रियाक जन्म नहीं भेल छल , तैं ओ सबक याज्ञिक क्रिया ल' क'नहीं जा सकल ,मात्र गान ल' क' गेल । याज्ञिक क्रिया प्रथम-प्रथम प्रारम्भ भेल पार्श्व क्षेत्र में,तैं ओत' इ क्रिया शेष रही गेल जे ओ सब अग्निहोत्री भेल  |      
एही पार्श्व क्षेत्र में आर्य गानक सम्बन्ध आर्य-अग्नि सँ भेल मंत्र-रूप मे तथा याज्ञिक क्रियाक जन्म भेल । आ जैं ल ' क' हित्ती-मित्तिनी अपन मूल अभिजन, सँ पहिने गेल तैं ओकरा संगे याज्ञिक क्रिया नहीं गेल । 

हिब्रू ये जकां असुर संकर जाति  थिक । कास्पियन सागरक पश्चिम टारस पर्वत ठीक असुर निवास जे लुटेरा आ बर्बर छल । एही तारस सँ  दक्षिण उर्मियाँ  झील अछि जे कालान्तरक जरथुष्ट्रक जन्मभूमि थिक जरथुष्ट्रो असुरे जातिक छल । प्रारम्भ में असुर सँ  सम्बंध  नीक रहबाक कारणे इन्द्र  वरुणक उपाधि असुर सेहो छल , पाछू पार्शव क्षेत्रमें ओही असुर सँ  बहुत काल धरि  इन्द्रक नेतृत्व में युद्ध चलैत  रहल जाहिमे मद्र  आ पार्शव सेहो असुरेक संग देलक तथा भारतीय अर्यशाला सँ  पराजित भेल । यैह  युद्ध  थिक  देवासुर संग्राम         

 एही देवासुर संग्रामक पश्चात् इन्द्र असुर उपाधि त्यागल तथा असुर शब्दक अर्थ भेल राक्षस । किन्तु पार्शवमे असुरे भेल देवता (अहुर मज्दा ) तथा इन्द्र  भ 'गेल अहिरमन अर्थात राक्षस । आ तें अवस्तामे जे जर्थुषट्रक सम्पादन थिक  मात्र इन्द्रेटा  त्याज्य भ' गेल। शेष भाषा,भाव,समाने रहल।   

एही देवासुर संग्रामक पश्चात् भारतीय आर्य जखन पूर्व दिशा ग्रहण केलक ताधरि अग्नि आधान द्वारा याज्ञिक क्रियाक जन्म भ' गेल छल । गान मंत्र बनि  क' सम्बद्ध भ'गेल छल । किन्तु आब मंत्रमे ऋषि तथा देवक नाम रह' लागल जे पूर्व कालमे नहीं रहैत  छल , तें अवस्ता में ई  प्रथा नही  भेटैछ । एहि महायुद्धक कारणे बहुतो गान लुप्त भ'गेल छल । पुनः तत्परता सँ  मंत्ररचना तथा श्रुति-परंपरा विकसित भेल आ कालांतरमे   ब्राह्मण-वर्गक जन्म भेल ।

ई पूर्व द्वितीय  शताब्दिक महाभाष्य कहेछ जे एकैसटा ऋगवेदक शाखा छल  जाहिमे सँ  सम्प्रति एकटा शाकल शाखा भेटैच  जाहिमे 10 हजार 5 सै  80 मंत्र अछि जे 1029 सूक्त तथा 10 मंडलमे विभाजित अछि। 
निश्चित रुपें इ बीस शाखामे सँ  बहुतो तँ ओहि सम्पादन-कालमे छुटी गेल । ओहि लुप्त शाखामे अधिकांश उषा गीत रहल होयत अथवा यम-यमी-संवाद सन-सन सूक्त जाकर याज्ञिक क्रियामें  कोनो प्रयोजन नहीं पड़ल    

एही यम-यमी संवादक आधार पर जे धोखा सँ संकलित भ'गेल जाहिमे,सहोदरे में रति-दानक याचना अछि जाकर यम अस्वीकार क' दैत  अछि-हमर व्यक्तिगत मान्यता अछि जे ई  मंत्र प्राचीनतम मंत्र थिक  जाकर रचना 3500 ई  सँ  पहिने समाप्त भ'गेल होयत, कारण ई  सामाजिक परंपरा आर्यमे ई पूर्व 3500 सँ  पहिनहि समाप्त भ'गेल छल । ऋग्वेदकेर रचनाकालक प्रारम्भिक बिंदु स्थित करबामे इतिहासकार एही अंतः साक्ष्यक उपयोग कियैक नहीं केलनि से महान  आश्चर्य अछि ।             

ऋग्वैदिक आर्य-निवासक प्रसंग सेहो प्रश्न सब उठैत रहल अछि। स्मरणीय जे भूगोलो बदलैत रहल अछि । कहियो ईरान धरि  भारतीयसीमा छल। अशोक,अल्लौद्दीन तथा अकबरक समयमे तँ अफगानिस्तान भारतेक अंग छल । तें निवास-प्रश्न निरर्थक । सुवास्तु नदी सँ  ल' कें  सरस्वती धरिक अधिक वर्णन अछि । यामुनाक तीन बेर तथा गंगाक मात्र एक बेर उल्लेख भेल अछि -यैह  तथ्य एही विवादकें समाप्त क'दैत  अछि।        

हमरा बुझने आर्य-इतिहासक शैशव प्रारंभ भेल कास्पियन सागरक उत्तरी पूर्वी तट पर, कैशोर्य बीतल  पार्शव क्षेत्रमे , यौवन आयल सुवास्तु तट पर, प्रौढ़ता प्राप्त भेल सरस्वतीक प्रवाहमे । तत्पश्चाते हिंदूक जन्म भेल ता आर्य-अनार्य छल । एही सभक साक्ष्य ऋग्वेदमे भेटी जाइत अछि । 

ऋग्वेद, छंदमें   रचित एकटा  साहित्यक ज्ञान-कोष थिक  जाहिमे समाजक आर्थिक ,सामाजिक, सांस्कृतिक तथा राजनीतिक-चेतनाक अभिव्यक्ति भेल अछि , जकर सम्बन्ध कैशोर्यकालमें  याज्ञिक क्रिया सँ भेल तें प्राप्त भेल कंठ -परंपरा तें  भेल श्रुति ।   

रचना परंपरा शैशव काल सँ  प्रारम्भ भेल तें  भेल 'अनादि  अनन्त ' कैशोर्य-काल धरी देव तथा ऋषि-नाम नहीं रहैत  छल तें भेल 'अपौरुषेय' याज्ञिक क्रिया सँ  सम्बद्ध भेल, गान भेल मंत्र तें 'पवित्र' आ 'महान ' । किन्तु ऋग्वेद वस्तुतः आर्य-मनक गीत थिक , आर्य-जीवनक इतिहास थिक । 
 एहने ऋग्वेदकें प्रमाण  मानिकें  एही 'मंत्र-पुत्र ' क रचना भेल अछि । 

इतिहासकार लोकनिमें महाभारतक घटना कालक प्रसंग में मुख्यतः दुई गोट मत अछि । डॉक्टर काशी प्रसाद जायसवाल ,डॉक्टर राधाकुमुद मुखर्जी लोकनि ई  पूर्व 1400 तथा डॉक्टर आर.एस. शर्मा, डॉक्टर रोमिला थापर लोकनी इ.पूर्व 900  ई . मानैत  छथि । 

किन्तु हमरा मते महाभारतक घटना ई.पूर्व 1200 ई में घटल होयत । कारण लोहाक व्यवहार भारत में 1100 ई.पूर्व सँ  1300ई. अछि अर्थात महाभारतक घटना सँ 100 वर्ष पूर्वक | यैह समय थिक  पूर्व वैदिक युगक अंतिम उत्तरचरणक । एही समयमे आर्यक प्रासारसरस्वती तट सँ यमुना आ गंगाक तट दिस भेल तथा कुरु आ पांचालक जन्म भेल आ तकर बाद भेल महाभारत । 
पूर्व वैदिक युगक एही समयमे आर्य कृषि आ शिल्प दिस उन्मुख भेल । स्थायी ग्राम बसल । समाजमे वर्ग विभाजन भेल । आब ब्राह्मण मात्र श्रुति-कर्म कर ' लागल आ एहिमे सर्वप्रथम जन्मनाक सिद्धांत मान्य  भेल, शेष दुनु वर्ग,क्षत्रिय आ विशः (  व्यमक) वैश्यमे कर्मणे  रही गेल । समाजमे अनार्य शिल्पक संडहि अनार्य मूर्ति  प्रवेश कयल। ऋग्वेदमे अछि  जे एकटा  राजा दस गायमे इन्द्र -मूर्ति  लेल । ऋग्वेदमे दान-प्रसंग बब्लूथ अनार्य केर चर्चा अछि । मूर्ती-पूजन क्रिया सेहो एही काल में यदा-कद प्रारम्भ भेल होयत जाकर विरोध स्वाभाविक । प्रायः एही सँ किछु पूर्वे कौशलक राम मूर्ती पूजन प्रारम्भ केलनि जे संभव हुनक विवशता छल-एहि  पर 'पुरोहित'मे विचार भेल अछि ।   

राजा-निर्वाचनमे कौलिक प्रथा प्रचलित भेल-विदथ  सभा आ' समिति क्रमशः गौण भेल गेल। निरंकुश राजतन्त्रक सुत्रपातक यैह कालखंड थिक । आर्य जीवन प्रवृति मार्गी-छल ,पुरुषार्थ मात्र अर्थ धर्म आ काम छल  । मोक्ष आ शूद्र उत्तर वैदिक युगक विषय थिक  जे 'पुरोहित' मे वर्णितअछि।    किन्तु अनार्य जे शूद्र बनल ओ निरंतर आर्य जीवनक लेल अनिवार्य बनैत चल गेल। पूर्व वैदिक जीवनमे सहभोज आ गविश्ष्ठ - युद्ध अति-प्रिय छल । 
कृष्ण -नाग युद्ध भेल अछि तथा कुरु जनपदक किछु जनक वैवाहिक सम्बन्ध सेहो भेल तथा महाभारतमे नाग-प्रशंशा अछि तें  ओकर निवास यमुने तट मानल अछि। कुरु,पांचाल-नगर-निर्माण शुद्ध कल्पना थिक । 

'मंत्रपुत्र' में मात्र ऋग्वेदक आधार पर तत्कालीन वैज्ञानिक इतिहास ताकबाक चेष्टा कायल अछि। एही दृष्टिमें मान्य  इतिहासकरेकें अधिक ध्यानमें राखल । 
'मंत्रपुत्र' हमर एकटा साहसिक परीक्षा थिक । एकटा  निवेदन पूर्वे कयल,हम इतिहासकरेकें विशेष रुपें ध्यान में राखल अछि ,स्मरणीय जे ऋग्वेदक 10म मंडलमें आत्माक बात अछि जाकर वितीहोत्रक माध्यमे व्यक्त कयल ।     

असलमे 'मंत्रपुत्र' एकटा महगथाक  स्वतंत्र कृति-क्रम थिक । 

प्रथम भेल-'प्रथमं शैलपुत्री च' जाहि में ई.पूर्व 20000 सँ  ल'क' 2000 वर्ष ई  पूर्वक अर्थात भारतीय आदि मानवक विकास-गाथाक सँड़हि द्रविड़-सभ्यताक़ आर्थिक सामाजिक चित्रण अछि जकर अंत भेल      

दोसर भेल-'मंत्रपुत्र' आदि मे  ऋग्वैदिक सामाजक आर्य अनार्यक सांस्कृतिक मिलान-गाथा अछि । तेसर भेल-'पुरोहित' जाहिमे ई पूर्व 11म शताब्दिक काल-खंडक जीवन प्रस्तुत अछि।
चारिम थिक -स्त्री-धन' जहि में ई पूर्व आठम शताब्दीक मिथिलाक इतिहास अछि । 

   एही सब कृतिमे आर्थिक आधार पर तत्कालीन समाजक परिवर्तन देखायब तथा वैज्ञानिक इतिहास ताकब-मुख्य उद्देश्य रहल अछि । कारण ई  चारु काल-छंद, भारतीय इतिहासक संक्रांतिकाल  थिक  तथा गहन अन्धकार में डूबल अछि । एक्कोटा प्रकाशन प्रारम्भ कर आ परस्पर आदान-प्रदान द्वारा वितरणकें संतुलित क' सकय तँ ई गतिरोध दूर भ'सकैछ । 
    साहस केलक संकल्प लोक आ पुस्तक वर्षक घोषणा केलक आ आइ 'मंत्रपुत्र'अपनेक हाथ में अछि । धन्यवाद संकल्प लोककें,जे प्रकाशन-मार्गक उद्घाटन करैत एकटा उदाहरण प्रस्तुत कयल। 
डॉक्टर प्रो. महेन्द्र झा जीक तथा श्री केदार काननक पांडुलिपि -प्रस्तुति कांडक कष्टकें अनुमानि शब्द नहि भेटि रहल अछि, तत्काल आशीर्वाद ।
  पाठकक लेल-'धन्यवाद,आभार,अभिनन्दन ।                                                     

   नवम्बर 1986                                                                                                                                                                                                          ---- मायानंद मिश्र       


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        • ।।बुढबा नेता ।।
        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • यात्रीजी की वैचारिकता
        • परम्परा आ लेखक – डॉ० तारानन्द वियोगी
        • मृतक-सम्मान
        • ककरा लेल लिखै छी
        • सुग्गा रटलक सीताराम
        • मेरे सीताराम(मैथिली कहानी)
        • नागार्जुन की संस्कृत कविता – तारानन्द विय
        • ।।गोनू झाक गीत।।
        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
        • गजल – तारानन्द वियोगी
        • गजल
        • केहन अजूबा काज
        • तारानन्द वियोगीक गजल
        • मैथिली कविता ।। प्रलय-रहस्य ।।
        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
      • रामधारी सिंह दिनकर >
        • मिथिला
        • परिचय
        • समर शेष है
        • परशुराम की प्रतीक्षा
        • परशुराम की प्रतीक्षा
        • परशुराम की प्रतीक्षा
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