Like Us Here
किसुन संकल्प लोक
  • होम
  • हमारे बारे में
  • रचनाएँ
    • कवियों की सूची >
      • रामकृष्ण झा 'किसुन' >
        • मनुक्ख जिबेत अछि
        • जिनगी : चारिटा द्रिष्टिखंड
        • उग रहा सूरज …
        • ‘किसुन जी’ क दृष्टि आ मूल्य-बोध
        • मृत्यु
      • राजकमल चौधरी >
        • प्रवास
        • वयः संधि , द्वितीय पर्व
        • द्रौपदी सँ विरक्ति
        • अर्थ तंत्रक चक्रव्यूह
        • तुम मुझे क्षमा करो
        • पितृ-ऋण
        • जेठ मास का गीत
        • कोशी-किनारे की सांझ
        • राजकमल चौधरी की मैथिली कविताएं : गांव के बार&
      • नंदिनी पाठक >
        • दिल की जमीं
        • अथक प्रयास
        • स्नेह सुगंध
        • स्नेह
        • भीर भावना क़ी
        • प्रकाशित आत्मा
        • नेपथ्य
        • जिन्दगी शहर की
        • छीटे मनोरथ के
        • आसमा से
        • धृष्टता
        • गवाही
        • अग्निदीक्षा
        • उपेक्षा
        • उसड़ संगति
      • आर.सी. प्रसाद सिंह >
        • जीवन
        • तुम्हारी प्रेम-वीणा का अछूता तार
        • जीवन का झरना
        • नए जीवन का गीत
        • चाँद को देखो
      • प्रो. मायानंद मिश्र >
        • आस्था
        • युग वैषम्य
        • हे आबेबला युग
        • मानवता
        • साम्राज्यवाद
      • अनुप्रिया >
        • अकेला बूढा
        • वजूद तुम्हारा
        • एक बार मुस्कुराना
        • डाकिया
        • कौन
        • अधूरा सपना
        • तुम
        • मेरी कहानी
        • प्रेम
        • घर में शब्द
        • उन्मुक्त
        • तुम
        • डायरी
        • देह
        • भगजोगनी
        • बेनाम पते की चिट्ठियां
        • पैबंद लगे सपने
        • माएं
        • बिरवा
        • क्यूँ
        • एक पिता
        • उम्मीद
        • अपने ही विरुद्ध
        • तुम्हारे इंतजार में
        • कौन हो तुम
        • मेरा मन
        • मैं और तुम
        • जाने क्यूँ >
          • अधूरे सवाल
        • अन्धकार
        • सूरज
        • कौन
        • जिन्दगी
        • मेरा अकेलापन
        • मेरी आहटें
        • तुम और मैं
      • जीवकांत >
        • इजोरियामे नमरल आर्द्रांक मेघ
        • सीमा
        • परिवार
        • सौन्दर्य-बोध
      • डा. गंगेश गुंजन >
        • आत्म परिचय : युवा पुरुष
        • अनुपलब्ध
        • पीड़ा
        • बंधु चित्र
        • एक टा कविता
        • गोबरक मूल्य
      • नचिकेता >
        • भूख बँटे पर
        • दरख्तों पर पतझर
        • जेहन में
        • खुले नहीं दरवाज़े
        • किसलय फूटी
        • कमरे का धुआँ
        • उमंगों भरा शीराज़ा
      • नामवर सिंह >
        • दोस्त, देखते हो जो तुम
        • कोजागर
        • पंथ में सांझ
        • धुंधुवाता अलाव
        • विजन गिरिपथ पर चटखती
        • पारदर्शी नील जल में
      • बाबा नागार्जुन >
        • नवतुरिए आबओं आगाँ
        • आन्हर जिन्दगी !
        • मनुपुत्र,दिगंबर
        • छीप पर राहऔ नचैत
        • बीच सड़क पर
        • जी हाँ , लिख रहा हूँ
        • सच न बोलना
        • यह तुम थीं
      • रामदेव झा >
        • मोन
        • निर्जल मेघ
        • फोटोक निगेटिव
        • काल-तुला
      • कुमार मुकुल >
        • सफेद चाक हूं मैं
        • हर चलती चीज
        • सोचना और करना दो क्रियाएं हैं
        • लड़की जीना चाहती है
        • प्‍यार – दो कविताएं
        • गीत
        • मैं हिन्‍दू हूँ
        • महानायक
        • बना लेगी वह अपने मन की हंसी
        • हमें उस पर विश्‍वास है
        • दिल्ली में सुबह
        • ज़िन्दगी का तर्जुमा
        • वॉन गॉग की उर्सुला
        • जो हलाल नहीं होता
        • न्यायदंड
        • मेरे रक्‍त के आईने में
        • पिता
        • समुद्र के ऑसू
        • यतीमों के मुख से छीने गये दूध के साथ…
        • बेचैन सी एक लड़की जब झांकती है मेरी आंखों मे&
        • कि अकाश भी एक पाताल ही है – कथा कविता
        • पूरबा हवा है यह
        • मनोविनोदिनी >
          • मनोविनोदिनी-1
          • मनोविनोदिनी-2
        • कवि रिल्‍के के लिये
        • आफिसिअल समोसों पर पलनेवाले चूहे
        • तुम्‍हारी उदासी के कितने शेड्स हैं विनायक ì
        • मुझे जीवन ऐसा ही चाहिए था…
      • तारानंद वियोगी >
        • ।।बुढबा नेता ।।
        • ।।बेबस जोगी ।।
        • ।।घर ।।
        • ।।कः कालः।।
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • यात्रीजी की वैचारिकता
        • परम्परा आ लेखक – डॉ० तारानन्द वियोगी
        • मृतक-सम्मान
        • ककरा लेल लिखै छी
        • सुग्गा रटलक सीताराम
        • मेरे सीताराम(मैथिली कहानी)
        • नागार्जुन की संस्कृत कविता – तारानन्द विय
        • ।।गोनू झाक गीत।।
        • ।।जाति-धरम के गीत।।
        • ।।भैया जीक गीत।।
        • ।।मदना मायक गीत।।
        • गजल – तारानन्द वियोगी
        • गजल
        • केहन अजूबा काज
        • तारानन्द वियोगीक गजल
        • मैथिली कविता ।। प्रलय-रहस्य ।।
        • ।।प्रलय-रहस्य।।
        • ।।धनक लेल कविक प्रार्थना।।
        • ।।बुद्धक दुख॥
        • ।।गिद्धक पक्ष मे एकटा कविता।।
        • ।।विद्यापतिक डीह पर।।
        • ।।पंचवटी।।
        • ।।घरबे।।
        • ।।रंग।।
        • ।।संभावना।।
        • ।।सिपाही देखैए आमक गाछ।।
        • ।।जै ठां भेटए अहार ।।
        • ।।ककरा लेल लिखै छी ॥
        • ।।स्त्रीक दुनिञा।।
        • ।।घर ।।
      • रामधारी सिंह दिनकर >
        • मिथिला
        • परिचय
        • समर शेष है
        • परशुराम की प्रतीक्षा
        • परशुराम की प्रतीक्षा
        • परशुराम की प्रतीक्षा
        • रश्मिरथी – सप्तम सर्ग
        • रश्मिरथी -पंचम सर्ग
        • रश्मिरथी-चतुर्थ सर्ग
        • रश्मिरथी-तृतीय सर्ग
        • रश्मिरथी-द्वितीय सर्ग
        • रश्मिरथी – प्रथम सर्ग
      • विद्यापति >
        • कंटक माझ कुसुम परगास
        • आहे सधि आहे सखि
        • आसक लता लगाओल सजनी
        • आजु दोखिअ सखि बड़
        • अभिनव कोमल सुन्दर पात
        • अभिनव पल्लव बइसंक देल
        • नन्दनक नन्दन कदम्बक
        • बटगमनी
        • माधव ई नहि उचित विचार
      • कीर्ति नारायण मिश्र >
        • अकाल
      • मधुकर गंगाधर >
        • स्तिथि
        • दू टा कविता
        • प्रार्थना
        • मीत
        • जिनगी
      • महाप्रकाश >
        • जूता हमर माथ पर सवार अछि
      • हरिवंशराय बच्चन >
        • आ रही रवि की सवारी
        • है अँधेरी रात पर दीवा जलाना कब मना है?
        • अग्निपथ
        • क्या भूलूं क्या याद करूँ मैं
        • यात्रा और यात्री
        • मधुशाला -1 >
          • 2
          • 3
          • 4
          • 5
          • 6
          • 7
        • मैं कहाँ पर, रागिनी मेरा कहाँ पर
      • जयशंकर प्रसाद >
        • आत्‍मकथ्‍य
        • आँसू -1 >
          • आँसू-2
          • आँसू-3
          • आँसू-4
          • आँसू-5
          • आँसू-6
        • प्रयाणगीत
        • बीती विभावरी जाग री
      • गजानन माधव मुक्तिबोध >
        • भूल ग़लती
        • पता नहीं...
        • ब्रह्मराक्षस
        • लकड़ी का रावण
        • चांद का मुँह टेढ़ा है
        • डूबता चांद कब डूबेगा
        • एक भूतपूर्व विद्रोही का आत्म-कथन
        • मुझे पुकारती हुई पुकार
        • मुझे क़दम-क़दम पर
        • मुझे याद आते हैं
        • मुझे मालूम नहीं
        • एक अरूप शून्य के प्रति
        • शून्य
        • मृत्यु और कवि
        • विचार आते हैं
      • अली सरदार जाफ़री >
        • मेरा सफ़र >
          • तरान-ए-उर्दू
          • हाथों का तराना
          • अवध की ख़ाके-हसीं
          • पत्थर की दीवार
          • लम्हों के चिराग़
        • एलान-ए-जंग
        • मेरा सफ़र.
        • वेद-ए-मुक़द्दस
      • गजेन्द्र ठाकुर >
        • धांगि बाट बनेबाक दाम अगूबार पेने छेँ
        • डिस्कवरी ऑफ मिथिला
      • पंकज पराशर >
        • आख़िरी सफ़र पर निकलने तक
        • पुरस्कारोत्सुकी आत्माएँ
        • बऊ बाज़ार
        • रात्रि से रात्रि तक
        • मरण जल
        • हस्त चिन्ह
      • मनीष सौरभ >
        • शाम, तन्हाई और कुछ ख्याल
        • सखी ये दुर्लभ गान तुम्हारा
        • मैं अभी हारा नही हू
        • क्या तुम् मेरे जैसी हो
      • जयप्रकाश मानस >
        • पता नहीं
        • मृत्यु के बाद
        • जाने से पहले
        • ऊहापोह
        • ख़ुशगवार मौसम
        • जब कभी हो ज़िक्र मेरा
        • लोग मिलते गये काफ़िला बढ़ता गया
        • आयेगा कोई भगीरथ
        • प्रायश्चित
        • अशेष
      • केदारनाथ अग्रवाल >
        • तुम भी कुछ हो
        • समुद्र वह है
        • वह चिड़िया जो
        • पूंजीवादी व्यवस्था
        • अन्धकार में खड़े हैं
        • प्रक्रति चित्र
        • मार्क्सवाद की रोशनी
        • वह पठार जो जड़ बीहड़ था
        • लिपट गयी जो धूल
        • आवरण के भीतर
        • काल बंधा है
        • कंकरीला मैदान
        • गई बिजली
        • पाँव हैं पाँव
        • बुलंद है हौसला
        • बूढ़ा पेड़
        • आओ बैठो
        • आदमी की तरह
        • एक हथौड़े वाला घर में और हुआ!
        • घर के बाहर
        • दुख ने मुझको
        • पहला पानी
        • बैठा हूँ इस केन किनारे
        • वह उदास दिन
        • हे मेरी तुम
        • वसंती हवा
        • लघुदीप
        • एक खिले फूल से
      • डॉ.धर्मवीर भारती >
        • अँधा युग
      • सूर्यकांत त्रिपाठी "निराला >
        • सरोज स्मृति
        • कुकुरमुत्ता
        • राम की शक्ति पूजा
        • तोड़ती पत्थर
      • कालीकांत झा "बूच" >
        • सरस्वती वंदना
        • गीत
        • आउ हमर हे राम प्रवासी
        • गौरी रहथु कुमारी
        • कपीश वंदना
      • जगदीश प्रसाद मण्‍डल >
        • एकैसम सदीक देश
        • मन-मणि
        • जरनबि‍छनी
        • गीत- १
        • गीत-२
      • वंदना नागर उप्पल >
        • रूह......
        • आखरी पल
        • जरा
        • शान
      • प्रियंका भसीन >
        • परिचय
  • उपन्यास
    • मायानंद मिश्र >
      • भारतीय परम्पराक भूमिका >
        • सुर्यपुत्रिक जन्म
        • भूगोलक मंच पर इतिहासक नृत्य
        • सभ्यताक श्रृंगार :सांस्कृतिक मुस्कान
        • भारतक संधान : इतिहासक चमत्कार
        • भारतमे इतिहासक संकल्पना
        • भारतीय इतिहासक किछु तिथि संकेत
        • भारतीय समाज : चतुर पंच
        • भारतीय आस्थाक रूप : विष्वासक रंग
        • पूर्वोत्तरक तीन संस्कृति - कौसल,विदेह,मगध
      • मंत्रपुत्र >
        • प्रथम मंडल
        • द्वितीय मण्डल
        • तृतीय मंडल
        • चतुर्थ मण्डल
        • पंचम मंडल
        • षष्ठ मण्डल
        • सप्तम मंडल
        • अष्टम मण्डल
        • नवम मंडल
        • दशम मंडल
        • उपसंहार
    • मुंशी प्रेमचन्द >
      • निर्मला >
        • निर्मला -1
        • निर्मला -2
        • निर्मला -3
        • निर्मला - 4
        • निर्मला - 5
        • निर्मला -6
        • निर्मला -7
        • निर्मला -8
      • नमक का दारोगा
      • ईदगाह
      • कफ़न
      • पंच परमेश्वर
      • बड़े घर की बेटी
      • ठाकुर का कुआँ
      • शूद्रा
      • पूस की रात
      • झाँकी
      • त्रिया-चरित्र
    • असगर वजाहत >
      • मन-माटी
      • ज़ख्म
    • वंदना नागर उप्पल >
      • अधुरा प्रेम-वंदना नागर उप्पल
  • योगदान कैसे करें
  • फोटो गैलेरी
  • आर्ट गैलेरी
  • वीडियो
  • संपर्क
  • ब्लॉग
  • वेब लिंक्स
  • सन्देश

कलम, कैमरा और हम

3/7/2012

0 Comments

 

मीडिया यानि कि जनसंचार माध्यमों की भूमिका पर पिछले कुछ वर्षों से बहुत कुछ लिखा जा रहा है। वर्ष 1991 से आरंभ हुए नवउदारीकरण के बाद तो मानों शब्दों और दृष्यों की बाढ़ है। मीडिया की भूमिका पर कई तरह की किताबें बाजार में आ रही हैं, पर कैमरामैन का कैमरा है कि हिलता ही नहीं और कलमकार की कलम है कि चलती ही नहीं, जब तक कि 'ऊपर से' साफ-साफ दिशा-निर्देश न मिल जायें। ये दिशा-निर्देश किसी सरकारी महकमे में जिस तरह लिखा हुआ होता है उस तरह लिखे हुए नहीं हैं, बल्कि एक ऐसी लिपि में 'डाउनलोड' किए हुए हैं जिसे सिर्फ मालिक और उसका नौकर ही पढ़ सकते हैं। इसको पारदर्शिता का नाम भी दिया जाता है कि ''देखो हमारी आपसी समझ कितनी परिपक्व है।'' इसे एक तरह की त्रासदी ही कहा जायेगा कि इस तथाकथित परिपक्व समझ का विरोध करने वाले और फिर इसे 'गरिमापूर्वक' स्वीकार कर लेने का श्रेय- एक ही व्यक्ति को जाता है। वे हैं 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के दिलीप पांडगांवकर। 'टाइम्स ऑफ इंडिया' के नये और युवा मालिक समीर जैन ने कहा कि, ''अखबार उनके लिए ठीक उसी तरह का उत्पादन है जिस तरह कि कोई भी प्रेशर कुकर, साबुन अथवा टूथपेस्ट का उत्पादन होता है और जो लाभ का सौदा होता है।'' समीर जैन की इस बात पर अपना विरोध दर्ज करते हुए दिलीप पांडगांवकर ने 'टाइम्स ऑफ इंडिया' की नौकरी से त्यागपत्र दे दिया। देश और समाज के वे नागरिक जिन्हें छपे हुए शब्द पर भरोसा था, उन्हें सुकून मिला। भले यह धारणा तब तक पुरानी पड़ चुकी थी कि छपा हुआ शब्द आसमान से आयद होता है पर फिर भी तब तक अनास्था का अंधेरा इतना घना नहीं हुआ था। ऊपर आसमान में जो हमारे उपग्रह हैं उनके 'सर्वर' में छपे हुए शब्द पर विश्वास करने वालों का एक बड़ा वर्ग था, जिस की अपनी मान्यताएं थीं, जिसके पास अपना एक मूल्य-बोध था। फिर पता नहीं क्या हुआ, उपग्रह के किस हिस्से से कौन सी अदृश्य किरणें निकलीं और दिलीप पांडगांवकर वापिस 'टाइम्स ऑफ इंडिया' में आ गये। इस बार निदेशक, कार्पोरेट बन कर। वह दिन देश की पत्रकारिता का एक काला दिन था। संभवत: तब तक दिलीप पांडगांवकर एक व्यक्ति नहीं रह गए थे, वे एक ब्रांड में बदल गए थे, जिसकी जरूरत समीर जैन को थी और दिलीप पांडगांवकर को भी। उन्हें ऐसा लगा था कि यह उनके 'कैरियर' का अंतिम पड़ाव है, इसको छोड़ दिया तो वे बाजार के अंधेरे में कहीं खो जाएंगे। सचमुच बाजा र की चकाचौंध आंखों की रोशनी छीन रही थी। राजनैतिक उथल-पुथल चरम पर थी। मंडल आयोग की रिपोर्ट का स्वीकार होना जिसकी अनुशंसा के आधार पर समाज के पिछड़े वर्गों, अनुसूचित जातियों और जन-जातियों को शिक्षा और रोजगार के क्षेत्र में पर्याप्त अवसर देने का प्रावधान था। भारतीय जनता पार्टी के नेता लालकृष्ण आडवानी की रथयात्रा और उसके बाद बाबरी मस्जिद विध्वंस, देश में जगह-जगह पर सांप्रदायिक दंगे, तमिल उग्रवादियों द्वारा पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की हत्या। तेजी से घटे इस दुर्भाग्यजनक और त्रासद घटनाक्रम के बाद जब स्व. पी.वी. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने और उन्होंने विश्व बैंक की नौकरी कर चुके डा. मनमोहन सिंह को देश का वित्तमंत्री बनाया तो देश की जनता ने जैसे कुछ समय के लिए चैन की सांस ली। किसी को इस बात का इल्म नहीं था कि बहुत जल्द हमारे ऊपर एक नई भाषा और एक नई संस्कृति और उस विदेशी मूल्य-पध्दति का आक्रमण होने वाला है जिसके खिलाफ लड़ते-लड़ते हमारे पूर्वजों ने आजादी प्राप्त की थी।
हमारे तमाम संस्थान इस कुचक्र का शिकार हुए लेकिन उनकी योजना का सबसे पहला शिकार हमारे जनसंचार संस्थान थे। दरअसल यह काम आसान था। हमारे पास या तो सरकारी मीडिया के रूप में आकाशवाणी और दूरदर्शन थे या फिर कुछेक अखबार, जिनकी समाज में अपनी प्रतिष्ठा थी। वर्ष 1988-89 और 1992 के मध्य जो राजनैतिक गहमागहमी हुई उसने इन अखबारों को उनके कथ्य के आधार पर बांट दिया था। 'जनसत्ता' और 'देशबन्धु' को छोड़कर उत्तर भारत के अधिकतर हिंदी के बड़े अखबार घोषित रूप में सांप्रदायिक हो चुके थे। अल्पसंख्यकों और पिछड़े वर्गों का इन अखबारों से लगभग विश्वास उठ चुका था जो कि आज भी पूरी तरह से पुर्नस्थापित नहीं हो सका है। दूरदर्शन और आकाशवाणी से जड़ता की सड़ांध आती है और फिर सरकारी बंधुआ होने के कारण भी ये दोनों संस्थान कभी अपनी विश्वसनीयता अर्जित नहीं कर सके। 
गौरतलब बात यह है कि 1991-92 के बाद आरंभ में यह लगा कि सब ठीक-ठाक चल रहा है, और पारदर्शिता बढ़ी है, आम आदमी को बोलने के लिए जुबान मिल गई है पर जल्दी ही यह भ्रम टूटने लगा। क्या पारदर्शिता का एक मतलब यह भी होता है कि उसमें सिर्फ अंधकार दिखाई दे? घनी धुंध और घने कोहरे के पारदर्शी होने के क्या मायने होते हैं? वर्ष 1999 में अटल बिहारी वाजपेयी की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन सरकार ने उस पक्षी को पंख लगा दिये जिसे पिंजरे से बाहर निकालने का काम डा. मनमोहन सिंह ने किया था। यह पक्षी जो एक बार आसमान में उड़ा तो फिर उसने जमीन पर नहीं देखा। ऊंची-ऊंची अट्टालिकाओं पर ही उसने अपने बैठने और टिकने की जगह बनाई। जमीन उसे नार ही नहीं आती थी। उसी के पंखों में मीडिया के कैमरामैन ने अपनी लेंस और कलमकार ने अपनी कलम छिपा दी और फिर जैसे किसी तोते को रटाया जाता है, उसी तरह यह पक्षी भी 'इंडिया इज शाईनिंग' का पाठ रटने लगा। आसमान में इस नारे की गूंज इतनी ज्यादा थी कि धरती पर रहने वालों का दम घुटने लगा और अंतत: सन् 2004 में धरती पर रहने वालों ने इस पक्षी को अपने पास खींच लिया। पर कैमरे और कलम की दृष्टि और भाषा नहीं बदली, क्योंकि सिर्फ चेहरे बदले थे। जहां तक सवाल आर्थिक नीतियों का था उनमें कुछ भी नहीं बदला। गरीब आदमी सरकार के हाशिये पर ही रहा और उनका पक्षी अपने नये मालिकों के आदेश पर वापिस अट्टालिकाओं के ऊपर उड़ गया। उस पक्षी ने मुंबई की दलाल-स्ट्रीट में किसी ऊंचे भवन की छत पर अपना डेरा जमा लिया और वहीं प्रजनन भी करने लगा। इस तरह एक कैमरे की कई आंखें हो गईं और अब लगता है कि एक ही कलम है जिसमें अलग-अलग रंग की स्याही से एक ही इबारत लिखी जा रही है।
जिन वर्षों में मीडिया पूरी तरह से सरकारी नियंत्रण में था, और इसका निजीकरण एक तरह की रोमांचकारी कल्पना होने का आभास देता था उस समय यह बात संभवत: कल्पनातीत थी कि एक दिन 'मीडिया', सरकार की जगह चंद पूंजीपतियों के इशारे पर और फिर कार्पोरेट्स के दम पर और अंतत: विश्व बैंक और संयुक्त राय अमेरिका के हाथों में पकड़े रिमोट से संचालित होने लगेगा।
महात्मा गांधी ने हिंद स्वराज्य में अखबारों के लिए जो बात कही थी वह आज भी समाचार-पत्रों के साथ ही इलेक्ट्रानिक मीडिया चैनलों पर भी लागू होती है। गांधी जी ने कहा था, ''अखबार का एक काम तो है लोगों की भावनाएं जानना और उन्हें जाहिर करना, दूसरा काम है लोगों में अमुक जरूरी भावनाएं पैदा करना और तीसरा काम है लोगों में दोष हों तो चाहे जितनी मुसीबतें आने पर भी बेधड़क होकर उन्हें दिखाना।''
हम एक ऐसे समय में जी रहे हैं, जब कुछ भी असंभव नहीं है और यही एक तथ्य है जो सकारात्मक है। एक दिन अवश्य ही इस पक्षी को धरती पर उगे हुए पेड़ अपनी ओर खीचेंगे और फिर उस सच्चाई का सटीक चित्रण किया जा सकेगा जो धरती पर एक कोने से दूसरे कोने तक फैली है और टूटे हुए संवाद को जोड़ा जा सकेगा। 

                                                                                                                   ------------ तेजिन्दर
0 Comments



Leave a Reply.

    Picture
    एक छोटा सा सजग प्रयास है मेरी ओर से की बची रहे ये धरती और उसकी सृजनात्मक क्षमता ...धरती के हरे सपनों को बचाने के लिए उठे मेरे हाथ आप सबका स्नेह और साथ चाहते हैं..उम्मीद है जल्द ही खिल उठेंगे सृजन के फूल हर आँगन में ...
    आभार    
    देवाशीष वत्स  

    Archives

    May 2013
    January 2013
    June 2012
    May 2012
    March 2012
    February 2012
    January 2012
    December 2011

    Categories
       
    किसुन संकल्प लोक   

    All

    RSS Feed


Powered by Create your own unique website with customizable templates.